मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

विशेषाधिकार हनन का दोषी कौन ?

चंद सवाल:
मंदिर में बैठकर शराब पीने वाले, उसके परिसर में सिगरेट पीने या मांसाहार करने वाले और वहां महिलाओं को भूखी नजरों से देखने वाले उसे अपवित्र करते हैं या उनकी हरकत पर टिप्‍पणी करने वाले ?
मंदिर की मूर्ति के वस्‍त्राभूषण तक बेच खाने वाले उसकी गरिमा को प्रभावित करते हैं या वो भक्‍त जो उनके ऐसे कुकृत्‍य को सार्वजनिक करने का प्रयास करते हैं ?
मंदिर परिसर को अपने दुष्‍कर्मों का अड्डा बनाने वाले उसकी मान-मर्यादा कलंकित करने के दोषी हैं या फिर वो लोग जो भक्‍तों को इस बात से अवगत करा रहे हों?
इन प्रश्‍नों के जवाब देने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि जवाब सभी को मालूम हैं।
ऐसे में और कुछ प्रश्‍न स्‍वत: पैदा हो जाते हैं कि लोकतंत्र के मंदिर पर अपने काले कारनामों से लगातार कालिख पोतने वालों के खिलाफ टिप्‍पणी करना मंदिर की अवमानना कैसे हो गई ?
जिस प्रकार शराबी-व्‍यभिचारी अथवा ऐसे ही दूसरे असामाजिक तत्‍वों का धार्मिक स्‍थानों पर प्रवेश कानूनन न सही पर सामाजिक नियमों के अनुसार वर्जित माना जाता है, उसी प्रकार लोकतंत्र के मंदिर में बैठने वालों के लिए भी कुछ मर्यादाएं हैं जिनका पालन करना उनका कर्तव्‍य बनता है। क्‍या वो उन मर्यादाओं का उल्‍लंघन करने के अधिकारी केवल इस बिना पर हो जाते हैं क्‍योंकि जनता ने उन्‍हें चुनकर भेजा है ?
यदि मंदिर में पुजारी बन जाने वाले को वहां लूट करने का अधिकार नहीं मिल जाता तो लोकतंत्र के मंदिर को कलंकित करने तथा उसे लूटने का अधिकार उन्‍हें केवल इसलिए कैसे मिल सकता है कि वह चुनाव जीतकर वहां पहुंचे हैं ?
यह कैसे संभव है कि वह उसकी गरिमा को तार-तार करते रहें, उसे लूटते रहें और उसकी अवमानना के मानदण्‍ड भी खुद निर्धारित करें ? 
संसद अपने आप में ठीक उसी तरह एक इमारत भर है जिस तरह किसी धार्मिक स्‍थान की इमारत होती है। उसे पवित्र अथवा अपवित्र वही लोग करते हैं जिनका उस पर आधिपत्‍य होता है।
स्‍वर्ण मंदिर में पुलिस बल को घुसने पर मजबूर आतंकी सरगना भिंडरावाला ने किया था। पुलिस को वहां गोली चलाने पर मजबूर उसके अनुयायियों व उसने किया था।
अब अगर कोई यह कहे, जैसा कि उस समय कुछ तत्‍वों ने कहा भी था कि स्‍वर्णमंदिर को पुलिस ने खून बहाकर तथा जूतों से रोंदकर अपवित्र कर दिया तो क्‍या यह बात किसी राष्‍ट्रभक्‍त के गले उतरेगी ?
कोई भी ऐसा नागरिक जो देश के वर्तमान हालातों से चिंतित है, वह तथाकथित माननीयों के आपराधिक इतिहास तथा लोकतंत्र के मंदिर में बैठकर किये जा रहे उनके कुकृत्‍यों पर उंगली क्‍यों नहीं उठा सकता ?
क्‍या उसे यह अधिकार इसलिए नहीं है क्‍योंकि वह जनसामान्‍य है और अपराधियों को किसी तरह माननीय का तमगा मिल गया है ?
हर चीज की सफलता व असफलता, अच्‍छाई एवं बुराई का आंकलन परसेंटेज से होता है। संसद के अंदर बैठने वालों में बेशक कुछ अच्‍छे लोग भी हैं लेकिन उनकी संख्‍या काफी कम रह गई है लिहाजा यही कहा जाता है कि आज संसद पर अपराधी काबिज हैं।
जाहिर है ऐसा कहने का मकसद ना तो यह है कि सारे सांसद अपराधी हैं और ना इसके पीछे संसद की अवमानना करने का कोई मकसद होता है।
इसका एकमात्र उद्देश्‍य वर्तमान हालातों को रेखांकित करना है और यह अधिकार देश के प्रत्‍येक जिम्‍मेदार नागरिक का बनता है।
संसद की अवमानना का ढिंढोरा पीटकर और उसकी आड़ में झूठे आरोप लगाकर कुछ समय के लिए भले ही आमजन का ध्‍यान बांटने में सफलता प्राप्‍त हो जाए पर अब हकीकत लोग जानने लगे हैं।
वह जानते हैं कि सांसदों के आचरण पर टिप्‍पणी करने या उनके आपराधिक चरित्र को रेखांकित करने का मतलब संसद की अवमानना न तो है और ना कभी हो सकती है।
संसद की अवमानना यदि कोई कर रहा है तो वही लोग जिन्‍हें आमजन ने वहां बैठने का अधिकार मुहैया कराया है लिहाजा विशेषाधिकार हनन का अपराध भी उन्‍हीं के खिलाफ बनता है।
उस विशेषाधिकार के हनन का, जो दिया तो उन्‍हें जनता ने है लेकिन जिसे वो अपना समझने की भूल कर रहे हैं।

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