शनिवार, 13 अप्रैल 2024

बड़े सवाल: क्या पैसे देकर BSP का टिकट लाए हैं सुरेश चौधरी, और क्या वह BJP के डमी उम्मीदवार हैं?


 महाभारत नायक भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली से बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने चौधरी सुरेश सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। सुरेश सिंह यूं तो एक उच्च शिक्षित पूर्व सरकारी अधिकारी हैं किंतु चुनावी दृष्‍टिकोण से उनकी विशेषता उनका उस जाट समुदाय से होना है जिसके मतदाताओं की मथुरा लोकसभा क्षेत्र में संख्‍या सर्वाधिक है। 

बसपा उम्मीदवार का पूरा परिचय 
विधानसभा क्षेत्र गोवर्धन के नगला अक्खा निवासी लगभग 62 वर्षीय सुरेश सिंह भारत सरकार के राजस्व विभाग सहित कई अन्य दूसरे विभागों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और फिलहाल लंबे समय से एक आवासीय शिक्षण संस्था का संचालन कर रहे हैं। 
इसके अलावा वह विश्व हिंदू परिषद और अंतर्राष्‍ट्रीय हिंदू परिषद के पदाधिकारी रहे हैं तथा राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ (RSS) से भी उनका गहरा नाता है। 
क्या पैसा देकर BSP का टिकट लाए हैं सुरेश चौधरी?
सुरेश चौधरी ने बीएसपी से अपनी उम्मीदवारी का टिकट क्या पैसा देकर लिया है, यह सवाल अब इस धर्म नगरी में इसलिए खड़ा हो रहा है क्यों कि बसपा के ही एक अन्य नेता और पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु ने पार्टी पर इस तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं। 
दरअसल, कमलकांत उपमन्यु वो पहले व्यक्ति हैं जिनका नाम बसपा ने अपनी दूसरी लिस्‍ट में मथुरा से लोकसभा उम्मीदवार के तौर पर घोषित किया। उससे पहले बसपा के राष्‍ट्रीय महासचिव मुनकाद अली सहित कई अन्य प्रदेश स्तरीय पदाधिकारियों की मौजूदगी में बाकायदा कार्यकर्ता सम्मेलन बुलाकर मीडिया के सामने कमलकांत उपमन्‍यु को मथुरा से चुनाव लड़ाने का ऐलान किया गया, और यह खबर प्रकाशित तथा प्रसारित भी हुई। 
चूंकि कमलकांत उपमन्‍यु इससे पहले 1999 में मथुरा से बसपा की ही टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके थे और तीसरे नंबर पर रहकर अच्‍छे मत प्राप्‍त किए थे इसलिए इस बार उनकी उम्मीदवारी ने किसी को आश्चर्य में नहीं डाला। लोगों को आश्चर्य तब हुआ जब उन्‍हें पता लगा कि बसपा ने उपमन्‍यु का टिकट काटकर चौधरी सुरेश सिंह को टिकट दे दिया है। 
अब क्या कह रहे हैं कमलकांत उपमन्‍यु 
चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर चुके कमलकांत उपमन्‍यु को अपना टिकट कटने से झटका लगना तो स्‍वाभाविक था ही किंतु उन्‍होंने यह बताकर मथुरा की जनता को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि पार्टी ने उनका टिकट मुंह मांगी रकम न दे पाने के कारण काटा है। 
कमलकांत उपमन्‍यु का आरोप है कि चौधरी सुरेश सिंह ने पार्टी को उनसे कहीं अधिक पैसा देकर लोकसभा की उम्मीदवारी का टिकट खरीदा है। उपमन्‍यु ने दावा किया कि सुरेश सिंह को टिकट देने के बाद भी उनके ऊपर यह कहते हुए दबाव बनाया गया कि यदि वह पार्टी को अब भी पैसा दे देते हैं तो चुनाव उन्‍हें ही लड़वाया जाएगा। 
उपमन्‍यु ने कैमरे के सामने कहा कि एक करोड़ से शुरू की गई पार्टी की डिमांड 70 लाख तक आ गई, किंतु मैं इसके लिए तैयार नहीं हुआ। 
चौधरी सुरेश सिंह का क्या कहना है? 
उधर कमलकांत उपमन्‍यु के आरोपों पर चौधरी सुरेश सिंह का पक्ष जानने के लिए काफी प्रयास किए गए किंतु उन्‍होंने कोई जवाब नहीं दिया। सुरेश सिंह ने मोबाइल पर सिर्फ इतना मैसेज भेज दिया कि ''मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। मैंने कोई पैसा नहीं दिया।'' 
क्‍या BJP के डमी उम्मीदवार हैं BSP उम्मीवार चौधरी सुरेश सिंह? 
चौघरी सुरेश सिंह पर एक आरोप यह भी लग रहा है कि वह BJP के डमी उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ रहे हैं। इस तरह का आरोप लगाने वाले लोग सुरेश सिंह की विश्व हिंदू परिषद (VHP), अंतर्राष्‍ट्रीय हिंदू परिषद तथा राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ (RSS) से जुड़ी पृष्‍ठभूमि को अपने तर्क का आधार बनाते हैं जिसे पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता। 
कांग्रेस के टिकट पर बॉक्सर विजेंदर सिंह का नाम आना भी एक कारण 
बताया जाता है कि उपमन्‍यु को बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ाने की घोषणा के बाद सुरेश सिंह को सामने लाने का एक बड़ा कारण कांग्रेस के टिकट पर अंतर्राष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त बॉक्सर विजेंदर सिंह का कांग्रेस उम्‍मीदवारी के लिए नाम चर्चा में आना रहा। 
बॉक्सर विजेंदर सिंह भी जाट बिरादरी से ताल्‍लुक रखते हैं इसलिए कहा जाने लगा कि वो भाजपा के जाट वोट में सेंध लगा सकते हैं। मथुरा से दो बार की सांसद भाजपा उम्‍मीदवार हेमा मालिनी अभिनेता धर्मेन्द्र की पत्नी होने के कारण खुद को जाट बिरादरी से जोड़ती तो हैं लेकिन मथुरा का मतदाता इससे अधिक प्रभावित नहीं होता। वह मोदी के मैजिक का लाभ उठाकर इस धर्म नगरी में जीत का रिकॉर्ड कायम करती रही हैं, और इस बार भी वही मैजिक उनके काम आने की उम्मीद लगाई जा रही है। 
यही कारण है कि बॉक्सर विजेंदर सिंह का नाम कांग्रेस से उछलने के साथ ही भाजपा में भी हलचल दिखाई दी लिहाजा भाजपा की पूरी लॉबी सक्रिय हो गई। 
सूत्रों की मानें तो समय रहते भाजपा की सक्रियता का परिणाम चौधरी सुरेश सिंह के रूप में निकल कर आया ताकि यदि बॉक्सर विजेंदर सिंह कांग्रेस की टिकट पर ताल ठोकने उतर भी जाएं तो जाट वोट बंट जाए और इसका सीधा लाभ हेमा मालिनी को मिले। हालांकि सुरेश सिंह का नाम घोषित होने के बाद बॉक्सर विजेंदर सिंह ने कांग्रेस का ही 'हाथ' झटक दिया और वह भाजपा में शामिल हो गए। ऐसे में कांग्रेस को नामांकन के अंतिम दिन एक ऐसे कार्यकर्ता मुकेश धनकर को मथुरा से उम्मीदवार घोषित करना पड़ा जिसे कांग्रेस शायद सामान्‍य परिस्‍थितियों में कोई चुनाव नहीं लड़वाती। 
क्या बसपा का कैडर वोट भी सुरेश चौधरी की उम्मीदवारी से नाराज है? 
अब जबकि सुरेश चौधरी द्वारा बसपा उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया जा चुका है तो पता लग रहा है कि बसपा का कैडर वोट भी पार्टी के इस परिवर्तन से नाराज है। वोटर का कहना है कि सुरेश चौधरी का झुकाव हमेशा से भाजपा की ओर रहा है और अब भी वह भाजपा को ही लाभ पहुंचाने के लिए चुनाव मैदान में उतरे हैं। 
गौरतलब है कि कभी बसपा को भर-भरकर वोट देने वाला अल्पसंख्‍यक समुदाय बसपा से छिटक चुका है। इंडी गठबंधन का हिस्‍सा होने के कारण मथुरा की लोकसभा सीट कांग्रेस के हिस्‍से में आई है जिस पर कांग्रेस का 'मजबूर' प्रत्याशी मैदान में है। गठबंधन के चलते सपा का कुछ वोट यदि कांग्रेस प्रत्याशी को मिल भी जाए तो वह सिर्फ वोटों की गिनती ही बढ़ा सकेगा क्योंकि सपा का अपना जनाधार मथुरा में कभी नहीं रहा। 
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है क‍ि एक ओर जहां कोई उल्‍लेखनीय काम न कर पाने के बाद भी हेमा मालिनी की किस्‍मत का सितारा बुलंदी पर है वहीं दूसरी ओर बसपा अपने आरोप-प्रत्यारोप से ही निजात नहीं पा रही। 
बाकी कसर उसके उम्‍मीदवार सुरेश चौधरी सहित पूरी पार्टी की चुप्पी पूरी कर दे रही है, जो अपनी ही पार्टी पर लग रहे आरोपों का माकूल जवाब तक देने को तैयार नहीं है। वह और उनके मुनकाद अली जैसे बाकी बड़े नेता सिर्फ आरोपों से पल्‍ला झाड़ते नजर आ रहे हैं जबकि कमलकांत उपमन्‍यु पार्टी पर खुलकर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। 
चौधरी सुरेश सिंह को शायद अभी इस बात का इल्म नहीं कि चुनावों के दौर में इस तरह के आरोप किसी के पूरे राजनीतिक करियर को प्रभावित करते हैं। ये बात और है कि बसपा ऐसे आरोपों की आदी है। 
चौधरी सुरेश सिंह अपनी 'एक लाइना' सफाई से आरोपों का जवाब देने की कोशिश जरूर कर रहे हैं लेकिन बसपा पर टिकट बेचने के आरोप पहली बार नहीं लग रहे। चुनाव किसी स्‍तर का हो, कहते हैं कि बसपा बिना अपनी मांग पूरी कराए किसी को टिकट नहीं देती। 
और जहां तक सवाल सुरेश चौधरी को BJP के डमी उम्‍मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ाने के आरोप का है, तो इस आरोप में उनकी अपनी पृष्‍ठभूमि ही सहायक साबित हो ही रही है, साथ ही बसपा सुप्रीमो पर भी पहले से ये आरोप चस्‍पा हैं कि वह ईडी तथा सीबीआई के भय से अब हर चुनाव में वही निर्णय लेती हैं जो कहीं न कहीं बीजेपी को लाभ पहुंचाता प्रतीत होता है। 
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी

फिर एक बार सामने आई कुशल राजनीतिज्ञ श्रीकृष्‍ण के जन्मस्थान की राजनीतिक दरिद्रता

माना कि आगामी लोकसभा चुनाव पूरी तरह 'मोदी की गारंटी' पर लड़ा जाएगा और मैदान में मुखौटा चाहे कोई हो, पर पीएम मोदी ही हर उम्मीदवार का चेहरा होंगे। बावजूद इसके कुशल राजनीतिज्ञ भगवान श्रीकृष्‍ण के जन्मस्थान से हेमा मालिनी को तीसरी बार टिकट मिलना यहां की राजनीतिक दरिद्रता को पूरी तरह उजागर करता है। 
दरअसल, नटवर नागर कृष्‍ण को अपना इष्‍ट बताने वाली सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी ने उनके जन्मस्थान का लोकसभा में प्रतिनिधत्व करते हुए पिछले 10 वर्षों में ऐसा कोई उल्लेखनीय काम यहां नहीं किया जिससे उनकी तीसरी बार चुनाव लड़ने की दावेदारी पुख्‍ता होती, किंतु दुर्भाग्य से नेताओं का इस धर्म नगरी में इतना अधिक अकाल है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को कोई अन्य दिखाई ही नहीं दिया होगा। 
इस बात का थोड़ा अंदाजा तीन बार के सांसद रहे चौधरी तेजवीर सिंह को पार्टी द्वारा राज्यसभा भेजने से भी लगाया जा सकता है, अन्यथा तेजवीर सिंह तो भरी जवानी में कभी उतने सक्रिय नजर नहीं आए जितना भाजपा के किसी सांसद को होना चाहिए था। तेजवीर सिंह का कार्यकाल जिन्होंने देखा है, वह भलीभांति जानते होंगे कि चौधरी साहब किस मिट्टी के बने हैं।    
बहरहाल, इस विश्व विख्यात धार्मिक नगरी की ऐसी राजनीतिक दरिद्रता का एकमात्र कारण यही है कि यहां ऐसा कोई दमदार नेता है ही नहीं, जिसे लेकर पार्टी या जनता आश्वस्‍त हो सके। 
किसी बाहरी उम्मीदवार को तीसरी बार मथुरा से मौका मिलने पर भाजपा का एक बड़ा वर्ग निश्चित रूप से निराश होगा किंतु गौर करेंगे तो ये वर्ग काफी हद तक अपनी इस दशा या कहें कि दुर्दशा के लिए खुद भी जिम्मेदार है। 
RLD का NDA में आना भी एक बड़ा कारण 
इसमें कोई दो राय नहीं कि हेमा मालिनी को तीसरी बार मथुरा से चुनाव लड़ाने का साहस भाजपा शायद इसलिए भी कर सकी क्योंकि वह RLD को NDA का हिस्‍सा बनाने में सफल रही। यदि जयंत चौधरी NDA गठबंधन का हिस्‍सा न होते तो भाजपा को जरूर विचार करना पड़ता, लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि जैसे हेमा मालिनी की किस्मत में ही एक तरह से 'निर्विरोध राजयोग' लिखा है। 
दूसरे दलों से भी कोई चुनौती नहीं 
हेमा मालिनी की किस्मत का सितारा किस कदर बुलंद है इसे यूं भी समझा जा सकता है कि उनकी अपनी पार्टी भाजपा के साथ-साथ विपक्षी दल में भी ऐसा कोई नेता नहीं है जो उन्‍हें टक्कर देने का माद्दा रखता हो।
अगर बात करें सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की तो उसका अब यहां कोई धनी-धोरी ही नहीं रहा। कहने को वह एक राष्‍ट्रीय दल है, लेकिन मथुरा के पिछले चुनाव नतीजे बताते हैं कि अब वह यहां से चुनाव लड़ने की सिर्फ लकीर पीटती है। 
'इंडी' अलायंस के तहत समाजवादी पार्टी से सीटों के बंटवारे में यूं तो मथुरा की सीट कांग्रेस को मिली है परंतु यहां वोट बैंक के नाम पर समाजवादी का सूखा जग जाहिर है। कौन नहीं जानता कि समाजवादी पार्टी के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव अपने उस दौर तक में यदुवंशी कृष्‍ण की नगरी से कभी किसी एक उम्‍मीदवार को विधानसभा चुनाव नहीं जिता सके, जिस दौर में उनकी प्रदेशभर के अंदर तूती बोलती थी। 
वर्तमान सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी मथुरा की मांट सीट से अपने मित्र और पार्टी के कद्दावर नेता संजय लाठर को दो बार चुनाव मैदान में उतारा किंतु उसे जीत नहीं दिला सके। अखिलेश के हाथ में कमान आज भी है परंतु मथुरा से सपा का सूखा खत्म नहीं हुआ। शायद इसलिए भी उन्‍होंने सीटों के बंटवारे में मथुरा की सीट कांग्रेस के मत्थे मढ़ने में अपनी भलाई समझी। 
शेष रह गई बहिनजी की बहुजन समाज पार्टी, तो उसका ग्राफ जब से नीचे आया है तब से ऊपर आने का नाम नहीं ले रहा। हालांकि पहले भी कभी बसपा का मथुरा से कोई सांसद तो नहीं रहा लेकिन विधायक कई रहे हैं। ये बात अलग है कि आज उसके पास मथुरा में न कोई विधायक है और न चुनाव में टक्कर देने लायक कोई नेता। 
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हेमा मालिनी के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव जितना आसान बन गया है, उतने आसान तो उनके लिए पहले दो चुनाव भी नहीं रहे। सतही तौर पर देखें तो किसी दल या नेता के लिए इससे बेहतर स्‍थिति कोई और नहीं हो सकती परंतु यही स्‍थिति न केवल भाजपा के लिए बल्‍कि मथुरा की जनता के लिए भी चिंता का विषय अवश्‍य कही जा सकती है। 
मथुरा का धार्मिक और राजनीतिक दृष्‍टि से एक विशिष्‍ट स्थान है। यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने से लेकर कृष्ण जन्मस्‍थान के लिए लड़ी जा रही लड़ाई तक में यहां के जनप्रतिधियों की भूमिका रेखांकित होती है, लेकिन हेमा मालिनी उसमें अब तक फिट नहीं बैठीं। इन प्रमुख मुद्दों के अलावा यह धार्मिक नगरी अपनी गरिमा के अनुरूप विकास का लंबे समय से इंतजार कर रही है। ऐसे में यहां के लोगों को पार्ट टाइम नहीं, फुल टाइम राजनेताओं की दरकार है। हेमा मालिनी ने पिछले दस वर्षों में यहां कितना विकास कराया है और कितना समय यहां की जनता को दिया है, इसका जिक्र करने की संभवत: अब जरूरत भी नहीं रह गई। जाहिर है तीसरा कार्यकाल कुछ अलग होने की कोई उम्मीद लगाना व्‍यर्थ होगा। 
अंत में यह कह सकते हैं कि नेताओं के लिए राजनीति, कर्म से कहीं अधिक भाग्य का ऐसा खेल है कि वो जब जोर मारता है तो सारे पांसे खुद-ब-खुद फिट बैठ जाते हैं। हेमा मालिनी के पांसे कुछ यही इशारा कर रहे हैं। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

बुधवार, 6 सितंबर 2023

... उन सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष सनातियों को समर्पित, जो स्टालिन जैसों की ऊर्जा के स्त्रोत हैं


सनातन पर स्टालिन का बयान उन सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष सनातनियों को समर्पित है, जो स्टालिन जैसों की ऊर्जा के स्त्रोत हैं और जिनके कारण समय-समय पर अनेक "विधर्मी",  सनातन धर्मावलंबियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का दुस्‍साहस कर पाते हैं। 

'सनातन' का शाब्दिक अर्थ है- 'शाश्वत' अर्थात 'सदा बना रहने वाला', यानी जिसका न आदि है और न अन्त। सनातन धर्म को हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है और इसे दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्म होने का गौरव प्राप्‍त है। 

ऐसे में सवाल यही खड़ा होता है कि एक कन्वर्टेड ईसाई, भरी सभा में सनातन धर्म को समाप्‍त करने की घोषणा कर कैसे सकता है? 

वो इसलिए कि प्रथम तो विधर्मियों ने सनातन धर्मावलंबियों की सहिष्‍णुता को 'कायरता' समझ रखा है। दूसरे जिस प्रकार वृक्ष को काटने में कुल्हाड़ी की मदद लकड़ी ही करती है, उसी प्रकार सदियों से कथित धर्मनिरपेक्ष लोग सनातन को समझे बिना उसको नष्‍ट-भ्रष्‍ट करने का ताना-बाना बुनते रहते हैं। 

सच तो यह है कि धर्मनिरपेक्ष जैसा कोई शब्‍द होता ही नहीं, जो होता है वो धर्मसापेक्ष होता है। संभवत: इसीलिए संविधान में भी धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित नहीं किया गया है। 

धर्मनिरपेक्षता की प्रचलित परिभाषा को यदि मान भी लिया जाए तो किसी दूसरे धर्म को समाप्‍त करने का आह्वान करने वाला व्यक्ति विशेष या राजनीतिक दल कैसे धर्मनिरपेक्ष हो सकता है। जाहिर है कि यह धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कुर्सी के लिए खेला जाने वाला राजनीतिक खेल ही है। 

बेशक हर राजनीतिक खेल हमेशा से ही सत्ता हथियाने का जरिया बना हुआ है और इसीलिए राजनीतिक बयानबाजी के निहितार्थ भी निकाले जाते रहे हैं, किंतु इसका मतलब यह कतई नहीं कि नेतागण मुंह को गटर की तरह इस्‍तेमाल करने लग जाएं। 

राजनीति में प्रतिस्‍पर्धा होना सामान्‍य सी बात है और प्रतिस्‍पर्धा के चलते आरोप-प्रत्‍यारोप भी चलते हैं, परंतु किसी दूसरे धर्म को नेस्‍तनाबूद करने की मानसिकता यह बताती है कि वह व्‍यक्ति समाज में रहने लायक नहीं रहा। उसकी मन: स्‍थिति यह साबित करती है कि वह खुले में घूमने का अधिकार खो चुका है। 

ये बात अलग है कि सैकड़ों साल से दिमागी दिवालियापन के शिकार ऐसे लोग समाज में न सिर्फ रहते आए हैं बल्‍कि धर्म और समाज दोनों को कलंकित भी करते रहे हैं। 

देश पर आक्रांतांओं के आक्रमण का काल हो या गुलामी का कालखंड, हर दौर में ऐसे तत्‍वों की विशेष भूमिका रही है जिनके लिए 'राष्‍ट्रद्रोही' शब्‍द भी छोटा मालूम पड़ता है। 

स्‍टालिन का दुस्‍साहस ऐसे ही तत्वों की करतूत है जो हर हाल में देश को पतन के रास्‍ते पर ले जाने की मंशा पाले बैठे हैं। इनमें नेता भी हैं, और अभिनेता भी। नौकरशाह भी हैं और जनसामान्‍य भी। किसी खास राजनीतिक दल की डोर से बंधे चाटुकार भी हैं और पत्रकार भी।  

इनके अलावा एक वर्ग वो भी है जो खुद को सत्ता का स्‍वाभाविक दावेदार मानता है और जिसकी जहरभरी जुबान के लिए स्‍क्रिप्‍ट कहीं और से लिखी जाती है क्‍योंकि इस वर्ग के लोग अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं। 

तय है कि ऐसे लोगों में सुधार की कोई गुंजाइश तलाशना आत्‍मघाती हो सकता है इसलिए समय रहते उपचार जरूरी है। 

चंद रोज पहले देश की सर्वोच्‍च अदालत ने 'हेट स्‍पीच' को लेकर काफी कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। शायद अब वो समय आ गया है कि देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों की भावनाओं को आहत करने वाला बयान देकर स्‍टालिन ने हेट स्‍पीच के लिए जो मानदंड स्‍थापित किए हैं, उन्‍हें यदि अब नहीं रोका गया तो उसके दुष्‍परिणाम विधायिका एवं कार्यपालिका के साथ-साथ न्‍यायपालिका को भी भुगतने होंगे। 

-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

https://www.legendnews.in/single-post?s=dedicated-to-all-those-pseudo-secular-sanatanis-who-are-the-source-of-energy-for-stalin-like-element-11651

शनिवार, 26 अगस्त 2023

नेताजी कहिन: डर की वजह से ISRO के चंगुल से छूटकर चांद पर जा बैठा है चंद्रयान, हम उसे धरती पर लाएंगे

 

डर का डिस्क्लेमर: भय से उपजी अपनी 'सत्यनिष्ठा' के साथ मैं ये स्‍पष्‍ट करता हूं कि जो कुछ लिखूंगा पूरी तरह 'भयभीत' अवस्‍था में लिखूंगा। इसमें नेताओं के प्रति उपजी 'अनैतिक निष्‍ठा' को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। किसी खास नेता अथवा पार्टी से कोई ताल्‍लुक न होते हुए भी कुछ नेताओं का भय मुझ पर भी इसलिए हावी है क्‍योंकि उनके अनुसार संपूर्ण देश में भय का वातावरण व्याप्‍त है लिहाजा हर संस्‍था, व्‍यक्ति और यहां तक कि पत्रकार भी 'कंपायमान' हैं। मीडिया समूह जो कहते हैं... सिर्फ झूठ कहते हैं। झूठ के अलावा वो कुछ नहीं कहते। इस खास दौर में लोकतंत्र की सैकड़ों बार हत्या की जा चुकी है लेकिन उसकी आत्मा का साया देश का पीछा नहीं छोड़ रहा। लोकतंत्र की इस भटकती हुई आत्मा को हाज़िर-नाज़िर जानकर कहानी के रूप में पेश हैं भय के वातावरण की कुछ झलकियां- 

कहानी नंबर एक 
बुढ़ापे के कगार पर खड़ा एक 'दागा' हुआ सांड़ हर रोज नए और जवान सांड़ों के सामने खड़ा होकर 'खुर खोदा' करता था। कई दिनों के इस शक्ति प्रदर्शन के बाद एक किशोरवय सांड़ ने बमुश्किल हिम्मत जुटाकर उस सांड़ से पूछा- चचा, आप प्रतिदिन ये हरकत यहां आकर क्यों करते हैं। 
हम तो आपको वंशानुगत मिली आपकी पदवी के लिहाज से यथासंभव मान-सम्मान भी देते हैं। फिर ये मुंह से अजीब-अजीब आवाजें निकालना और नथुने फुलाए रखने का क्या मतलब, जबकि आपके खुरों से खुरची हुई धूल आपके ही सिर पर आकर गिरती है। कुछ स्‍पष्‍ट करेंगे तो समझने की पूरी कोशिश करुंगा। 
टीन एज सांड़ की बातों से कुछ भरोसा सा मिलते देख अधेड़ सांड़ ने पहले कन्फर्म किया कि वह उसकी बताई बातें सार्वजनिक तो नहीं करेगा और आश्‍वासन मिलने के बाद उसने रहस्‍यमयी मुस्‍कान बिखेरते हुए कहा- देखो बरखुरदार, मैं ये सारी ऊट-पटांग हरकतें अपनी इज्‍जत बचाने के लिए करता हूं। 
मुझे हमेशा यह डर सताए रहता है कि अतीत में मेरे पुरखों और मेरे द्वारा किए गए पाप खुलकर कहीं नई पीढ़ी के सामने आ गए तो क्या होगा। आप लोग मेरी दुर्गति न कर दें। ऐसा हुआ तो मेरी 'अधोगति' मुझे कहीं का नहीं छोड़ेगी, बुढ़ापा खराब कर देगी। इसी शंका से मैं आपके सामने नित नई चुनौती पेश करता हूं। ये बात अलग है कि आज तक मेरे ऐसे सारे प्रयास निरर्थक साबित हुए हैं। 
कहानी नंबर दो 
एक टुच्चा सा नेता अपनी 'बदजुबानी' के लिए देश-विदेश में कुख्‍यात हो गया और अपनी उस स्‍थिति को वह अपने तथा अपनी पार्टी के लिए मुफीद मानता था। दरबारी नेताओं से घिरे रहने के कारण उसे यह गुमान भी हो गया कि उसके मुंह से तो हमेशा फूल झड़ते हैं। 
साथ ही उसका 'वैशाख नंदनी' ज्ञान उसे यह आभास कराता रहता था कि राजनीति का जो मैदान उसे दिखाई दे रहा है, वह उसी का 'चारागाह' है। दूसरा जो कोई वहां मौजूद है, वह उसकी कृपा से है और वह उसे जब चाहे बेदखल कर सकता है। इसी नियोजित उपक्रम के तहत उसकी जुबान एक तरह से असंसदीय शब्दों की डिक्शनरी बन गई। वह न बड़े-छोटे का लिहाज करता और न पद की गरिमा देखता। मौका और दस्‍तूर का ध्‍यान रखे बिना वह हर किसी की पगड़ी उछाल देता। संसदीय मर्यादा तो उसके लिए जैसे कोई अहमियत ही नहीं रखती थी क्‍योंकि वह खुद को ही देश का भावी भाग्य विधाता मान बैठा था।    
सिर चढ़कर बोलने वाली इस दशा में बदजुबानी जब हद पार करने लगी तो किसी दुस्‍साहसी पत्रकार ने पूरे प्रोटोकॉल का अनुसरण करते हुए उससे कहा कि सर, सुना है आप बहुत अभद्र भाषा का इस्‍तेमाल करते हैं। आपको हर एक में खोट नजर आता है, और आप ये अहसास कराने का कोई अवसर नहीं चूकते कि आप ही देश की सत्ता के एकमात्र हकदार हैं। सत्ता आपकी विरासत है, इसलिए उस पर काबिज होने का किसी अन्‍य को कोई अधिकार नहीं है। आप जीतें या हारें, सत्ता से अलग रखने की हिमाकत किसी की हो कैसे सकती है। 
आप और आपके दरबारी अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता और लोकतंत्र की कथित हत्‍या का ढिंढोरा पीटते हुए हर प्‍लेटफॉर्म पर चुनी हुई सरकार को गरियाते हैं और कहते हैं कि देश में भय का वातावरण है। सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा हुआ है। एक धर्म विशेष के लोग डरे हुए हैं। उन पर अत्याचार हो रहा है। सारी सरकारी संस्‍थाएं बंधक हैं। कोई संस्‍था अपना काम नहीं कर पा रही। वही हो रहा है जो सरकार चाहती है। 
पत्रकार की इन बातों को अपनी शान में गुस्‍ताखी मानते हुए नेताजी कहने लगे- पहले तुम ये बताओ कि कौन कमीना कहता है मैं गालियां देता हूं। मेरी सरकार बनते ही मैं उस 'हरामी' को कहीं का नहीं छोड़ूंगा। वो 'नीच आदमी' गंदी नाली का 'कीड़ा' होगा। मेरे बारे में ऐसी बातें वो लुच्चे-लफंगे ही कर सकते हैं जिन्‍होंने देश का बंटाधार कर दिया है। दरअसल, जिनकी औकात मेरे सामने खड़े होकर बात करने की नहीं है, वो मेरे रहते कुर्सी पर काबिज हैं। 
धाराप्रवाह अभद्रता का ये आचरण देख पत्रकार ने डरते-डरते एक सवाल और उछाल दिया कि सर... आप तो अब भी गालियां दे रहे हैं। लाइव है सर, सारा देश आपको और आपकी अभद्रता को देख रहा है। आप विदेशों में भी देश के बाबत जो कुछ बोलते रहे हैं, वह भी जनता सुनती है। शीर्ष पदों पर बैठे हुए लोग आपसे अपने लिए नित नए अभद्र शब्‍द सुनकर भी अभिव्‍यक्‍ति की आपकी आजादी को अक्षुण्‍ण बनाए हुए हैं, और आप कहते हैं कि देश में डर का माहौल है। आपको अपने आरोपों में कोई कंट्रोवर्सी महसूस नहीं होती। डरा हुआ आदमी तो किसी के सामने बोलने की हिमाकत नहीं कर सकता। यहां तो देश के पीएम को भी खुलेआम गालियां देने की स्‍वतंत्रता हासिल है। 
ऐरे-गैरे, नत्‍थू-खैरे भी करोड़ों लोगों के सामने टीवी पर पीएम को कुछ भी कहने की आजादी रखते हैं। सांप्रदायिक सद्भाव के दूत सरेआम जहर उगलते देखे जा सकते हैं। ये कैसा डर है सर जी? 
पत्रकार के ऐसे 'आत्मघाती' सवालों को सुनकर नेताजी का मन तो किया कि तत्‍काल प्रभाव से उसका माइक छीन कर उसके मुंह पर दे मारें और उसे अच्‍छा-खासा सबक सिखा दें किंतु मामला लाइव प्रसारण का था इसलिए केवल इतना कहकर बात समाप्‍त की कि तुम बिके हुए लगते हो। किसी की गोद में बैठे हो। सवाल उसके हैं, बस मुंह तुम्‍हारा है। तुम्‍हारे जैसों के लिए ही हमने 'गोदी मीडिया' शब्द ईजाद किया है। 
नेताजी की बातों पर पत्रकार ने जाते-जाते एक सवाल और दाग दिया कि सर, भारतीय मीडिया के 'चीनी संस्‍करण' पर आपकी क्या राय है? 
पत्रकार के सवाल चूंकि चुभने वाले थे इसलिए नेताजी ने उसे सिर्फ घूरकर काम चलाना उचित समझा। ऐसे में पत्रकार ने ये सवाल और उछाल दिया कि सर, क्या आप इस बात से सहमत हैं कि पीवी नरसिंह राव देश में 'भाजपा' के पहले पीएम थे। 
बहरहाल, पत्रकार को भले ही उसके ऐसे किसी प्रश्‍न का उत्तर नहीं मिला लेकिन देश जरूर ये जान गया कि नेताजी को अभद्र आचरण करने में खासी महारत हासिल है और वो इस जन्म में शायद ही अपना आचरण सुधार सकें। 
कहानी नंबर तीन 
इस तीसरी कहानी में कई प्रमुख पात्र हैं और उनका संबंध चंद्रमा पर हो रही गतिविधियों से है। कहते हैं चांद पर होने वाली गतिविधियों से समुद्र ही नहीं, इंसान तक प्रभावित होता है। समंदर में ज्‍वार-भाटे का कारण अगर चंद्रमा है तो इंसान की मानसिक स्‍थिति को भी ये भली-भांति परिभाषित करता है। 
तभी तो एक नेताजी देश में डर के माहौल की थ्‍योरी को सही साबित करने के लिए यहां तक कहने लगे कि गोदी मीडिया नहीं मानेगा लेकिन यह सौ फीसदी सच है कि चंद्रयान-3 लॉन्च नहीं किया गया, वह तो डर के मारे ISRO के चंगुल से छूटकर चांद पर जा बैठा है। छुप गया है चंद्रमा की आड़ में जिससे कहीं उसे भी ED, NIA या CBI उठाकर न ले जाए। हमारी सरकार आने दीजिए, हम चंद्रयान को वापस अपनी धरती पर ले आएंगे। इस सरकार ने सैकड़ों करोड़ रुपए बर्बाद कर दिए। हम उसे म्यूजियम में रखेंगे, उसे देखने-दिखाने पर टिकट लगाएंगे, और इस तरह उसकी पूरी कीमत वसूलेंगे। फिर उस पैसे से 'सांड़ों' के लिए 'अस्‍तबल' बनवाएंगे। सांड़ हमारे न्‍यूज़ आइटम हैं। हम उनके लिए इतना तो कर ही सकते हैं। 
एक अन्‍य नेताजी को चंद्रयान का मामला इतना फिजूल लगा कि वह उससे अंत तक बेखबर बने रहे। गलती से एक पत्रकार पूछ बैठा उसके बारे में तो बगलें झांकने लगे। 
हमेशा मुंह से आग उगलने वाली एक नेत्री ने तो देश को अंतरिक्ष यात्री को मनोरंजन जगत से जोड़ दिया। ये बात अलग है कि उसके बाद से वह खुद मजाक का पात्र बनी हुई हैं। 
खैर, कहानी तो कहानी है। एक कहानी से भी कई कहानियां जन्‍म ले लेती हैं। जैसे एक कहानी यह भी है कि लाल रंग देखकर सांड़ भड़क उठते हैं लेकिन कुछ लोग फिर भी सिर पर लाल टोपी रखकर पूछते हैं कि सांड़ उनके पीछे क्यों पड़े हैं। सच तो ये है कि वो सांड़ों के पीछे पड़ गए हैं। सांड़ तो पहले भी सड़कों पर थे, लेकिन उन्‍हें लाल रंग दिखाकर कोई चिढ़ाता नहीं था। चिढ़ाओगे तो उसके गुस्‍से का शिकार भी बनोगे। 
सांड़ तो सांड़ हैं लेकिन उन 'कालिदासों' का क्‍या जो जिस डाल पर बैठे हैं, उसी पर आरी चलाए जा रहे हैं। सिर की टोपी का रंग नहीं देख रहे, सांड़ को दोष दे रहे हैं। जनता की जगह साड़ों पर नजर रखोगे और फिर पूछोगे कि हमारा नंबर कब आएगा। मुंह भर-भरकर गालियां दोगे और ये भी कहोगे कि डर का माहौल है। अपने 'खुर खोदने' से चुनौती नहीं दी जा सकती। चुनौती देने के लिए चुनौती स्‍वीकार भी करनी पड़ती है। देश के लिए समर्पित होने की चुनौती, कुछ कर गुजरने की चुनौती। पद पीएम का हो या सीएम का, वो किसी की व्‍यक्‍तिगत जागीर नहीं है। ये बात दूसरी है कि राजा-महाराजा भले ही कब के कूच कर गए किंतु उनकी जैसी सोच वाली नस्‍ल अभी बाकी है। 
जय हिंद। जय भारत। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शनिवार, 8 जुलाई 2023

चुनाव के बाद भी श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल में शह और मात का खेल जारी, यौन उत्पीड़न मामले में जल्द दर्ज हो सकती है FIR

 गुटबाजी की शिकार प्रतिष्‍ठित सामाजिक संस्‍था श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल में गत 28 जून को चेयरमैन और वाइस चेयरमैन के पद पर चुनाव तो सपन्न हो गया किंतु अब तक नव निर्वाचित पदाधिकारियों के शपथ ग्रहण समारोह की तारीख तय नहीं हो सकी है। 

इस संबंध में पूछे जाने पर शिक्षा मण्‍डल से जुड़े कुछ व्‍यक्तियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अभी बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी मथुरा सहित श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल की दूसरी अन्‍य संस्‍थाओं में कई पदों पर चुनाव होना बाकी है। इन पदों के लिए फिलहाल चुनावी प्रक्रिया तक अमल में नहीं लाई गई है क्‍योंकि इन पदों को आम सहमति से भरने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि गुटबाजी और अधिक मुसीबत का कारण न बन सके। 
दरअसल, श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल से जुड़े संभ्रांत लोगों का शुरू से ये मानना रहा है कि सभी विवादों और गुटबाजी के पीछे संस्‍था की लगभग एक हजार करोड़ रुपए की वो सपत्ति है जिसका अब तक कुछ तत्‍व मिलकर बंदरबांट करते रहे हैं। 
इन लोगों का कहना है कि आम सहमति से बाकी पदों को भरने का मकसद भी यही है कि विरोध के स्‍वरों को दबाकर श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल की संपत्ति का बंदरबांट उसी प्रकार होता रहे जिस प्रकार पूर्व में जमीन आदि की खरीद-फरोख्‍त के नाम पर किया जाता रहा है। 
दूसरी ओर 1926 में रजिस्‍टर्ड 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' के पदाधिकारियों समेत समाज के कुछ अन्‍य लोग भी 'श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल' के 28 जून को संपन्न हुए चुनावों की वैधता को चुनौती दे रहे हैं। उनके अनुसार 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' और 'श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल' का विवाद न्‍यायालय में लंबित होते हुए चुनाव कैसे कराए जा सकते हैं। उनकी मानें तो विवाद के निपटारे से पहले ऐसे कोई भी प्रयास गैरकानूनी और कोर्ट की अवमानना हैं। 
यौन उत्पीड़न मामले में शीघ्र FIR दर्ज करा सकती है पीड़ित युवती 
उधर दो महीने से न्‍याय की आस में बैठी उस महिला कर्मचारी का धैर्य भी अब जवाब देने लगा है जो GTT की ओर से बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के छात्रों को सॉफ्ट स्‍किल्‍स ट्रेनर के तौर पर प्रशिक्षित करने आई थी और इसलिए कॉलेज छोड़कर जाने पर मजबूर हो गईं क्‍योंकि उससे कॉलेज के एक तत्‍कालीन पदाधिकारी ने स्‍पष्‍ट रूप से न केवल कार्य अवधि के उपरांत अपने साथ अतिरिक्त समय बिताने को कहा बल्‍कि उसके सामने कुछ ऐसी बातें रखीं जिन्‍हें स्‍वीकार करना उनके लिए संभव नहीं था। 
यही कारण था कि उसने अपने साथ हुई घटना का पूरा विवरण लिख कर कॉलेज के चेयरमैन को संबोधित एक शिकायती पत्र 27 अप्रैल 2023 के दिन देते हुए प्रबंधतंत्र से ये अपेक्षा की कि वो आरोपी पदाधिकारी के खिलाफ कोई ऐसी सख्‍त कार्रवाई करे जिससे किसी महिला के साथ भविष्‍य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो और कोई महिला ऐसे प्रतिष्‍ठित कॉलेज में खुद को असुरक्षित महसूस न करे, लेकिन प्रबंधतंत्र इस पत्र को दबाकर बैठ गया। 
कॉलेज कैंपस में एक ऐसी गंभीर एवं शर्मनाक घटना होने के बावजूद प्रबंधतंत्र द्वारा कोई सुनवाई न किए जाने से क्षुब्‍ध युवती ने जॉब छोड़ना ज्‍यादा उचित समझा किंतु फिर भी उसे उम्‍मीद थी कि जांच उपरांत शायद समय रहते सुनवाई कर ली जाए। 
युवती को सबसे अधिक धक्‍का तब लगा, जब उसे पता लगा कि उसके साथ अभद्र व अमर्यादित आचरण करने वाले पदाधिकारी को प्रबंधतंत्र ने फिर चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी है। 
बताया जाता है कि प्रबंधतंत्र के इस रवैये को देखकर पीड़ित युवती ने अब अपने खिलाफ शर्मनाक हरकत करने वाले तत्‍कालीन पदाधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का मन बना लिया है और वह शीघ्र ही इस मामले की FIR दर्ज कराने पर विचार कर रही है। 
जो भी हो, लेकिन यदि ऐसा होता है तो एक ओर जहां सबसे प्राचीन इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रतिष्‍ठा धूमिल होगी वहीं दूसरी ओर एक ऐसी प्रतिष्‍ठित सामाजिक संस्‍था की गरिमा भी प्रभावित होगी जिसे शिक्षा व मेडिकल के क्षेत्र में कृष्‍ण की नगरी को बहुत कुछ देने का श्रेय जाता है और जिससे आज भी बड़ी संख्‍या में वो लोग जुड़े हैं जिनके संस्‍कार तमाम लोगों को प्रेरणा देते हैं। 
-Legend News 

सोमवार, 3 जुलाई 2023

मथुरा में कोर्ट के आदेश से केनरा बैंक के 8 अधिकारी और कर्मचारियों पर भ्रष्‍टाचार की FIR दर्ज


 एक ओर जहां केंद्र सरकार व उसका वित्त मंत्रालय भरसक इस कोशिश में लगा है कि न तो बैंकों पर NPA यानी नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स का बोझ बढ़े और न बैंकें किसी उद्योगपति या व्‍यापारी के सामने ऐसी स्‍थितियां उत्पन्न करें कि वह चाहते हुए भी ऋण की अदायगी कर पाने में खुद को असहाय महसूस करने लगे। लेकिन ऐसा हो रहा है, और लगातार हो रहा है क्‍योंकि बैंकें तथा उसके अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी बैंक की बजाय निजी हित साधने में लग जाते हैं। वह उन परिस्‍थितियों का लाभ उठाकर निजी स्‍वार्थ पूरा करने की कोशिश करते हैं जबकि वह चाहें तो सेटलमेंट करके लोन लेने वाले के साथ-साथ बैंक को भी बंधनमुक्त करने का काम कर सकते हैं। 

बैंक अधिकारी एवं कर्मचारियों की ऐसी ही बदनीयती का एक मामला उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद से सामने आया है, जिसके बाद कोर्ट ने संबंधित बैंक के 8 अधिकारी/कर्मचारियों के खिलाफ गंभीर आपराधिक धाराओं में FIR दर्ज करने के आदेश दिए और अब पुलिस फिलहाल इसकी जांच कर रही है। 
केनरा बैंक की महोली रोड शाखा से जुड़े इस मामले में CJM मथुरा के आदेश पर हाईवे थाना पुलिस ने 17 जून 2023 की रात 8 बजे बैंककर्मियों क्रमश: हिमांशु मित्तल, जीके मेहरा, बी. अनंतराव, नईम अख्‍तर, बीएस सत्यार्थी, पंकज, सीजी पासवान तथा पुनीत गौड़ के खिलाफ IPC की धारा 420, 467, 468, 471, 384, 504, 506 और 120 बी के तहत केस दर्ज कर विवेचना शुरू कर दी है। 
इस संबंध में वादी श्रीमती नीलिमा खंडेलवाल पत्‍नी श्री उमेश खंडेलवाल डायरेक्‍टर WIC-CHEM (P) LTD. निवासी C-38 इंडस्‍ट्रियल एरिया, साइट A, थाना हाईवे जिला मथुरा द्वारा दायर प्रकीर्ण वाद संख्‍या 746/2023 के अनुसार उन्‍होंने और उनके पति उमेश खंडेलवाल ने सिंडीकेट बैंक (सम्‍प्रति केनरा बैंक) की महोली रोड शाखा से 74 लाख 50 हजार रुपए का लोन लिया था। इस लोन के लिए नीलिमा व उमेश खंडेलवाल द्वारा कंपनी की जमीन, बिल्‍डिंग एवं मशीनरी दृष्‍टिबंधक की गई। 
नीलिमा व उमेश खंडेलवाल के अनुसार कुछ समय तक तो उन्‍होंने ऋण की किश्‍तें बैंक को नियमित रूप से अदा कीं किंतु फिर कारोबार में मंदी के चलते वह किश्‍तें देने में असमर्थ रहे। 
इसके लिए उन्‍होंने बैंक से अतिरिक्‍त ऋण की मांग की किंतु बैंक ने यह कहते हुए अतिरिक्‍त ऋण देने से इंकार कर दिया कि प्रोजेक्‍ट की लैंण्‍ड वैल्‍यूएशन काफी कम है। 
ऐसी स्‍थिति में नीलिमा व उमेश खंडेलवाल ने बैंक के सामने लोन के एकमुश्‍त समाधान का प्रस्‍ताव रखा जिसे बैंक ने 1 मार्च 2011 को स्‍वीकार करते हुए 1 करोड़ 6 लाख रुपए चुकाने पर सहमति दे दी, किंतु जब इन्‍होंने एकमुश्‍त लोन चुकाने की व्‍यवस्‍था की तो बैंक के उक्त कर्मचारी समाधान से पहले 10 लाख रुपए की नाजायज मांग करने लगे। 
नीलिमा व उमेश खंडेलवाल का आरोप है कि समाधान की कोशिश में लगे उनके पुत्र अनुराग खंडेलवाल से उक्त बैंक कर्मचारियों ने चौथ वसूली के रूप में कुछ रकम ले भी ली और जब उन्‍होंने इसका विरोध किया तो बैंक के वैल्‍यूअर हिमांशु मित्तल से एक फर्जी मूल्‍यांकन रिपोर्ट तैयार करवा कर हमारा उत्‍पीड़न किया जाने लगा। 
इन लोगों द्वारा इसके बाद इस आशय की धमकी दी जाने लगी कि यादि हमारी मांग पूरी नहीं की जाती तो बैंक से तय रकम की जगह फर्जी मूल्‍यांकन को आधार बनाकर आपसे अधिक रकम की वसूली की जाएगी। 
नीलिमा व उमेश खंडेलवाल का कहना है कि बैंक कर्मचारियों की बदनीयती और नाजायज मांग के मद्देनजर वो न्‍यायालय की शरण में जाने पर मजबूर हुए अन्‍यथा वो आज भी बैंक के साथ पूर्व में हुए एकमुश्‍त समाधान के समझौते पर कायम हैं तथा बैंक का पूरा पैसा चुकाने की नीयत रखते हैं। 
इस संबंध में 'लीजेण्‍ड न्‍यूज़' ने बैंक के वर्तमान सीनियर मैनेजर को फोन करके बैंक का पक्ष जानने की कोशिश की तो उनका कहना था कि वो कुछ समय पहले ही यहां आए हैं इसलिए उन्‍हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है। 
उनका कहना था कि वैसे भी ऐसे मामलों में अपना पक्ष रखने के लिए बैंक का लीगल सेल अधिकृत होता है इसलिए मैं कुछ कहने में असमर्थ हूं। 
बहरहाल, एक बात तय है कि यदि बैंक कर्मचारी चाहते तो संभवत: यह मामला कोर्ट तक नहीं पहुंचता और कानूनी पचड़े में पड़ने की बजाय बैंक की रकम भी अदा हो सकती थी। 
-Legend News 

चुनाव से ठीक पहले श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल के पदाधिकारी पर 'यौन शोषण' के आरोपों की एंट्री, समाज सकते में


 मथुरा की प्रतिष्‍ठित सामाजिक संस्‍था 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' के आगे 'श्री' जोड़कर खड़ी कर दी गई 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' वैसे तो विभिन्न कारणवश एक लंबे समय से विवादों के घेरे में है किंतु ताजा मामला कल यानी 28 जून को होने जा रहे इसके 'प्रबंधतंत्र' के चुनाव से जुड़ा है। 

दरअसल, चुनाव से ठीक पहले सामने आए एक शिकायती पत्र ने न केवल 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' को सकते में डाल दिया है बल्‍कि अग्रवाल समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। 
27 अप्रैल 2023 के इस पत्र में एक महिला कर्मचारी ने बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के प्रबंधतंत्र से जुड़े एक व्‍यक्‍ति पर 'यौन शोषण' करने की कोशिश जैसे अत्यंत गंभीर आरोप लगाए हैं। जिस व्‍यक्‍ति पर ये आरोप लगाए गए हैं, वह भी चुनाव मैदान में है। 
आश्‍चर्यजनक यह है कि बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के वर्तमान चेयरमैन को संबोधित इस महिला कर्मचारी के पत्र का पिछले दो माह में कोई संज्ञान नहीं लिया गया, जिस कारण महिला कर्मचारी काम छोड़कर जाने पर बाध्‍य हुई लेकिन अब जबकि चुनाव होने थे, तो अचानक वह पत्र सार्वजनिक कर दिया गया जिससे प्रबंधतंत्र और उससे जुड़े लोगों की मंशा पर सवाल खड़े होना स्‍वाभाविक है।
  
'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' के कल होने जा रहे चुनाव में बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के चेयरमैन पद पर शहर के दो प्रसिद्ध अधिवक्ता आमने-सामने हैं। 
इनमें से एक हैं बार एसोसिएशन के पूर्व अध्‍यक्ष उमाशंकर अग्रवाल जो फौजदारी के मशहूर वकील हैं, और दूसरे हैं अरविंद अग्रवाल जो टैक्‍स बार एसोसिएशन मथुरा में प्रेक्‍टिस करते हैं और आयकर के सीनियर वकीलों में शुमार हैं। 
वाइस चेयरमैन के पद पर कन्‍हैया अग्रवाल (कोषदा ज्‍वैलर्स) तथा नितिन मित्तल (सर्राफा व्‍यवसायी) खड़े हैं। 
श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल से जुड़े तमाम लोग इस बात की पुष्‍टि करते हैं कि इस प्रतिष्‍ठित सामाजिक संस्‍था में कुछ मछलियां ऐसी प्रवेश कर चुकी हैं जिनके कारण न केवल संस्‍था व समाज कलंकित हो रहा है बल्‍कि प्रबंधतंत्र की अन्‍य शिक्षण संस्‍थाओं पर पकड़ भी ढीली हुई है। 
उनका मानना है कि संस्‍था से जुड़े अधिकांश लोग संस्‍थानों की उन्‍नति चाहते हैं लेकिन कुछ तत्‍व ऐसे हैं जिन्‍हें सिर्फ और सिर्फ 1000 करोड़ रुपए से अधिक की वो संपत्ति दिखाई देती है जिससे संस्‍थाएं संचालित होती हैं। 
ये तत्‍व निजी स्‍वार्थ में इस संपत्ति को खुर्द-बुर्द करना चाहते हैं और इसीलिए किसी भी तरह संस्‍थाओं के महत्‍वपूर्ण पदों पर काबिज होने की कोशिश में लगे रहते हैं। 
गौरतलब है कि टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग मथुरा जनपद को अग्रवाल समाज द्वारा दी गई सबसे पहली और बड़ी सौगात है किंतु आज कुछ तत्‍वों के कारण समाज अपनी कई संस्‍थाओं से लगभग हाथ धो बैठा है। 
मूल संस्‍था है 'अग्रवाल शिक्षा मंडल'
बताया जाता है कि 1926 में रजिस्‍टर्ड 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' ही अग्रवाल समाज की देन है और यही मूल संस्‍था है किंतु कुछ लोगों ने षड्यंत्र पूर्वक 1961 में 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' के नाम से एक अलग संस्‍था रजिस्‍टर्ड करवा ली और इस आशय का प्रचार कर दिया कि दोनों में कोई फर्क नहीं है। 
इसे तथ्‍यहीन बताते हुए 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' के पदाधिकारियों ने एक ओर जहां आपत्ति दर्ज कराई वहीं दूसरी ओर मामले को हाई कोर्ट तक ले गए क्‍योंकि दोनों संस्‍थाओं का रजिस्‍ट्रेशन नंबर अलग-अलग है। इलाहाबाद हाई कोर्ट में फिलहाल यह मामला लंबित है। 
क्या अवैध हैं 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' के चुनाव? 
इस संबंध में अग्रवाल शिक्षा मंडल के पदाधिकारियों का साफ-साफ कहना है कि हाईकोर्ट में मामला पेंडिंग होने के कारण 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' की आड़ में कराए जा रहे चुनाव अवैध होने के साथ-साथ कोर्ट की अवमानना भी हैं। 
अग्रवाल शिक्षा मंडल के पदाधिकारी इन चुनावों को भी कोर्ट में चुनौती देने का मन बना चुके हैं। उनका कहना है कि यदि समाज सेवा ही इन चुनावों का उद्देश्‍य है तो फिर इसके लिए इतनी मारामारी तथा षड्यंत्र क्यों रचे जा रहे हैं। 
क्‍यों एक महिला कर्मचारी द्वारा की गई यौन शोषण जैसी गंभीर शिकायत को दो महीने तक दबाए रखा गया और क्‍यों अब सार्वजनिक किया गया, वो भी तब जबकि आरोपी भी चुनाव मैदान में है। 
ऐसे में बड़ा व महत्‍वपूर्ण सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या पीड़ित महिला को 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' न्‍याय दिला पाएगा, और यदि आरोपी पदाधिकारी चुनाव जीतकर फिर से प्रबंधतंत्र में शामिल हो जाता है तो क्या बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी जैसे एक प्रतिष्‍ठित शिक्षण संस्‍थान की साख पर दाग लगाने का काम उसके द्वारा फिर नहीं किया जाएगा। या उसे संरक्षण देने वाले भी खुद उसी के नक्‍शेकदम पर चलने लगेंगे, चाहे अन्‍य महिला कर्मचारी भी काम छोड़ने पर मजबूर ही क्यों न हों। 
सवाल और भी बहुत हैं लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं, क्‍योंकि फिलहाल श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल चुनाव कराने में व्‍यस्‍त है। 
-Legend News 

 
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