शनिवार, 5 नवंबर 2011

BHRASHT INDIA: लोकतंत्र के तानाशाह

BHRASHT INDIA: लोकतंत्र के तानाशाह

लोकतंत्र के तानाशाह

श्रीश्री को लेकर दिग्‍गी के ड्रामे का सच

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

एक थे 'ए' राजा और एक हैं 'डी' राजा

हमारे देश में एक थे ''ए'' राजा और एक हैं ''डी'' राजा। बेचारे ''ए'' राजा इन दिनों तिहाड़ की शोभा बढ़ा रहे हैं लेकिन ''डी'' राजा को रखने में तिहाड़ ने भी असमर्थता जाहिर कर दी है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक ''डी'' राजा का अपनी जुबान पर लगाम न रह पाने के कारण सरकार ने तिहाड़ के अधिकारियों के समक्ष उन्‍हें दिवाली गिफ्ट बतौर पेश करने का प्रपोजल दिया था जिसे तिहाड़ के अधिकारियों ने यह कहकर ठुकरा दिया कि ''डी'' राजा एक मेंटल केस हैं इसलिए उनकी जगह जेलखाना नहीं, शफाखाना है। तिहाड़ वालों ने सरकार को इस आशय की सलाह भी दी है कि एक इमारत में एक ही राजा रह सकता है। हमारे यहां ''ए'' राजा हैं लिहाजा ''डी'' राजा को कहीं अन्‍यत्र ले जाया जाए।
तिहाड़ के अधिकारियों ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए दलील दी है कि ''डी'' राजा यूं तो किसी राजघराने से ताल्‍लुक रखते हैं परन्‍तु इन दिनों वह साधु-संत और फकीरों से प्रतिस्‍पर्धा करने में लगे हैं जो उनके दिमागी दिवालियेपन की पहली निशानी है। फकीर ने उन्‍हें दिमाग का इलाज कराने का मशविरा दिया तो उन्‍होंने फकीर से ही कह डाला कि हम और तुम दोनों साथ चलते हैं।
बात यहां तक रहती तो ठीक थी लेकिन अचानक उन्‍होंने एक दिन फकीर को प्रेम पत्र लिख मारा। उस पत्र में सीख दी कि आपका तो मैं सम्‍मान करता हूं लेकिन आपके चेले ठीक नहीं हैं।
इस पत्र ने साबित कर दिया कि ''डी'' राजा की जुबान ही उनके नियंत्रण से बाहर नहीं है, दिमाग पर भी जोर नहीं रहा इसलिए वह जिनके खिलाफ अनर्गल बातें बोलते रहते हैं, उन्‍हें ही प्रेम पत्र लिख मारते हैं।
वैसे गोपनीयता बनाये रखने का शपथ पत्र लेकर सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी लीक की है कि ''डी'' राजा को सरकार व उनकी पार्टी के ही कुछ तत्‍व एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत निरंकुश बना रहे हैं ताकि एक तीर से कई निशाने साधे जा सकें।
उनकी योजना है कि यदि ''डी'' राजा इसी प्रकार और कुछ दिन बोलते रहे तो अंतत: सरकार तथा पार्टी दोनों को मानना पड़ेगा कि उनके दिमाग में कहीं न कहीं व कुछ न कुछ कैमिकल लोचा है। तब वह लोग भी कुछ नहीं बोलेंगे जो आज उनकी जुबान चलवाने में अहम् भूमिका निभा रहे हैं।
ऐसे में सरकार की कानूनन जिम्‍मेदारी बन जायेगी कि वह ''डी'' राजा को कैप्‍चर कर मेंटल हॉस्‍पीटल शिफ्ट कर दे।
दरअसल ''डी'' राजा की समस्‍या यह है कि वह अति महत्‍वाकांक्षी हैं। अपनी महत्‍वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उन्‍होंने चमचत्‍व का अचूक नुस्‍खा अपनाया है क्‍योंकि वह बेचारे अब सिर्फ नाम के राजा रह गये हैं। असली रानी और असली युवराज तो कोई और हैं और उनकी मर्जी के बिना पार्टी में कोई पत्‍ता तक नहीं हिल सकता।
जाहिर है कि ''डी'' राजा की जुबान भी उनकी मर्जी के बिना हिल पाना संभव नहीं है। जुबान क्‍या, वो खुद भी नहीं हिल सकते।
वो अपनी हिली हुई और कुछ खिसकी हुई खोपड़ी का प्रदर्शन तक रानी एवं युवराज के कहने पर करते हैं। आप इसे यूं समझ सकते हैं कि वह रानी व युवराज के जमूरे हैं।
रानी कहती है- जमूरे, अब जुबान के बेलगाम होने का प्रदर्शन करो तो वह तत्‍काल शुरू हो जाते हैं। फिर रानी कहती है- जमूरे, अब जुबान को लगाम दो और या तो कोई चिठ्ठी लिखो या फिर ट्वीट करो। जब बुड्ढा फकीर ट्वीट कर सकता है तो तुम क्‍यों नहीं। तुम कोई जाहिल और गंवार नहीं हो। राजा हो राजा। गुजरे जमाने के ही सही, हो तो राजा।
तुम ए राजा नहीं हो, तुम डी राजा हो। अभी ए राजा का नम्‍बर आया है, डी और ए के बीच में बी व सी आते हैं इसलिए तुम्‍हें ए राजा का मुकाम हासिल करने में अभी वक्‍त लगेगा। डॉन्‍ट वरी, बी हैप्‍पी।
जमूरे, अभी हम जैसा कहें और जो कहें वो करते रहो। किसी की बातों पर ध्‍यान मत दो। सिर्फ और सिर्फ हमारे संकेतों को फॉलो करो। तिहाड़ के अधिकारी ही नहीं, देश की जनता भी तुम्‍हारी बुद्धि पर तरस खाये तो खाने दो क्‍योंकि तुम्‍हारा भला इसी में है।
तुम ए राजा नहीं हो, तुम डी राजा हो। हर वक्‍त इस बात का ध्‍यान रखो। ध्‍यान रखो कि जब तक दूसरों के लिए समस्‍या बने रहोगो तुम्‍हें सब झेलते रहेंगे लेकिन जिस दिन हमारे लिए समस्‍या बन जाओगे, हम तुम्‍हें तिहाड़ के अधिकारियों की सलाह पर शफाखाना भिजवा देंगे। शफाखाना भी सामान्‍य नहीं, विशेष होगा।
और हां जमूरे, हाल ही में तुम्‍हारे द्वारा एक आध्‍यात्‍मिक गुरू के खिलाफ की गई टिप्‍पणी पार्टी के काफी काम आयेगी। उसके लिए तुम दिवाली तोहफे के हकदार हो।
दिवाली बीत चुकी है लेकिन निश्‍चिंत रहो, तुम्‍हें तुम्‍हारा तोहफा मिल जायेगा। सब्र का फल मीठा होता है। जैसे लॉलीपॉप। समझ गये ना ?
अब अपनी जुबानी जंग जारी रखो और संकेत ग्रहण करने के लिए हमारी ओर एकटक देखते रहो।
ध्‍यान रहे कि चमचत्‍व ही राजनीति का सार है। उम्‍दा चमचा अपने दिल, दिमाग ओर जुबान का इस्‍तेमाल अपने आका की मर्जी के बिना नहीं करता। फिर चाहे कोई दिमाग पर सवालिया निशान ही क्‍यों न लगाये।
जय हिंद, जय भारत !

....फिर तो नेहरूजी पर भी दर्ज हो मुकद्दमा

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

प्रायोजित है जाट आंदोलन !


















क्‍या प्रदेश का एक प्रमुख नौकरशाह है आंदोलन का सूत्रधार 
केन्‍द्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर काफूरपुर (मुरादाबाद) से शुरू हुआ जाट आंदोलन क्‍या किसी के द्वारा प्रायोजित है ?
क्‍या इस आंदोलन के जरिये विभिन्‍न राजनीतिक दल उत्‍तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में अपना मकसद पूरा करना चाहते हैं ?
क्‍या जाट आंदोलन की आड़ में राजनीतिक पार्टियों द्वारा शतरंज की ऐसी बिसात बिछाई गई है जिसमें जीत या हार का पता तो यूपी के विधानसभा चुनावों के बाद ही मालूम हो सकेगा लेकिन खेल का रुख चुनावों से पहले ही स्‍पष्‍ट हो जायेगा ?
इन प्रश्‍नों के उत्‍तर तलाशने पर मालूम पड़ता है कि यह सभी बातें सही हैं और आरक्षण की मांग को लेकर जाटों द्वारा शुरू किये गये आंदोलन का सूत्रधार उत्‍तर प्रदेश का एक प्रमुख नौकरशाह है। यह नौकरशाह एक राजनीतिक दल के इशारे पर जाट आंदोलन को प्रायोजित कर रहा है और इसका सीधा मकसद आगामी विधानसभा चुनावों में इस दल को जाट वोटों का लाभ दिलाना है।
प्रदेश में कद्दावर हैसियत वाले इस नौकरशाह ने कुछ समय पूर्व ताज एक्‍सप्रेस वे के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन के समुचित मुआवजे की मांग को लेकर शुरू हुए किसान आंदोलन को भी हवा देने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी लेकिन तब उसे अपने मकसद में पर्याप्‍त सफलता नहीं मिली। एक तरह से तब उसका यह दांव उल्‍टा पड़ गया और जिस राजनीतिक दल के लिए उसने यह कवायद की थी, उसे कोई लाभ मिलता नजर नहीं आया लिहाजा अब उसने जाट आंदोलन की कमान संभाल ली।
यह बात अलग है कि जाट आंदोलन की गेंद केन्‍द्र सरकार के पाले में डालने की कोशिश के कारण इस नौकरशाह का खेल समय रहते अन्‍य राजनीतिक दलों की समझ में आ गया और उन्‍होंने भी अपने-अपने स्‍तर से मोहरे चलने प्रारम्‍भ कर दिये हैं। यही कारण है कि एक ओर यूपी की सत्‍ता पर काबिज बसपा ने बाकायदा जाट आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान किया तो दूसरी ओर सपा व भाजपा ने जाटों की मांग को जायज ठहराते हुए उन्‍हें हरसंभव सहयोग का वचन दे डाला। राष्‍ट्रीय लोकदल तो जाट वोटों पर अपने पेटेंट का दावा करता ही है।
बताया जाता है कि केन्‍द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्‍बरम् द्वारा आंदोलनकारी जाटों को बातचीत के लिए जो बुलावा भेजा था और कल बातचीत करके 3 दिन का समय मांगा है, उसके पीछे भी वोटों की राजनीति तथा शह और मात के खेल में बाजी मार लेने की मंशा है, हालांकि आंदोलन स्‍थगित न करा पाने से उनकी मंशा को झटका लगा है।
राजनीतिक गलियारों से ही प्राप्‍त जानकारी के अनुसार जाट आंदोलनकारियों को केन्‍द्रीय गृहमंत्री का बातचीत के लिए निमंत्रण मिलने और कांग्रेस की इसे लेकर बनाई गई रणनीति पर बसपा, सपा, भाजपा व रालोद सबकी नजर थी लिहाजा जैसे ही ऐसा लगा कि आंदोलनकारी जाट केन्‍द्रीय गृहमंत्री की बातों में आकर कहीं आंदोलन स्‍थगित न कर दें, सबने अपनी-अपनी गोटियां चलनी शुरू कर दीं नतीजतन जाट आंदोलन जारी रहा।
उधर कांग्रेस भी इस मामले में फूंक-फंक कर कदम रख रही है और बसपा सहित सभी दूसरे राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर बारीक नजर रखे हुए है। बताया जाता है कांग्रेस ने इस मामले में अभी अपने पूरे पत्‍ते बेशक खोले नहीं है लेकिन उसने कुछ ऐसी योजना बना ली है जिसके बाद न सिर्फ जाट आंदोलन को लेकर खेला जा रहा शह और मात का खेल खत्‍म हो जायेगा बल्‍िक जातिगत आरक्षण की आड़ में विभिन्‍न पार्टियों द्वारा श्रेय लेने की गुंजाइश भी नहीं रहेगी।
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार अगर जाट आंदोलन आसानी से नहीं रुकता और विभिन्‍न राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना मकसद पूरा करने के लिए उसे हवा देती रहीं तो कांग्रेस इस बार सभी सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रस्‍ताव ला सकती है।
सूत्रों के मुताबिक प्रत्‍यक्ष में जाट आंदोलन को लेकर कुछ भी न बोलने वाले राहुल गांधी भी इस योजना पर अंदर ही अंदर ठोस कार्य कर रहे हैं और पूरी तरह सक्रिय हैं।
दरअसल महंगाई और भ्रष्‍टाचार जैसे मुद्दों पर घिरी कांग्रेस के पास अब कोई दूसरा ऐसा रास्‍ता नहीं बचा जिसके सहारे वह खुद को नई मुसीबतों से बचा सके, साथ ही यूपी के विधानसभा चुनावों में प्रतिद्वंदी पार्टियों को टक्‍कर दे सके।
सूत्रों की मानें तो बहुत जल्‍दी कांग्रेस इस मुद्दे पर अपने पत्‍ते खोल देगी ताकि जाट आंदोलन बहुत लम्‍बा न खिंचे और बसपा, भाजपा, सपा तथा रालोद जैसी पार्टियों को उन्‍हीं के अपने इस हथियार से चित्‍त किया जा सके। 
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