मंगलवार, 27 अगस्त 2013

नए सिरे से परिभाषित हो ''यदा यदा हि धर्मस्‍य.....

(कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी विशेष)
एक और कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, एक और कृष्‍ण जन्‍मोत्‍सव.... लेकिन सब-कुछ प्रतीकात्‍मक।
बस एक परंपरा है जिसे निभाते चले जा रहे हैं यंत्रचालित ढंग से। पांच हजार से भी सौ-दो सौ साल पहले श्रीकृष्‍ण का जन्‍म हुआ था। कुछ लोग इस बार के जन्‍म को उनका 5125 वां जन्‍मोत्‍सव बता रहे हैं।
जो भी हो।
श्रीमद्भगवतद्वगीता के अध्‍याय 4 में कहा गया है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
अर्थात्
जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब-तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं। सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनः स्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं।
अब सवाल यह पैदा होता है कि धर्म की हानि और अधर्म के आगे बढ़ने का पैमाना क्‍या है?
धर्म की पुनर्स्‍थापना, सज्‍जनों की रक्षा एवं दुष्‍टों के नाश का उचित समय आखिर कौन सा होता है?
जिन कारणों से कौरव-पाण्‍डवों के बीच महाभारत जैसा भीषण युद्ध हुआ और जिन परिस्‍थितियोंवश श्रीकृष्‍ण भी इस युद्ध को रोक पाने में असफल रहे, उससे तो आज के हालात कहीं बहुत अधिक बदतर हैं।
महाभारत से पूर्व एक द्रोपदी का चीरहरण रोकने कृष्‍ण दौड़े चले आये थे लेकिन अब वही कृष्‍ण देशभर में हो रहे चीरहरणों पर चुप्‍पी साधे क्‍यों बैठे हैं?
पाण्‍डवों को उनके हिस्‍से का राजपाठ तो दूर, सुई की नोक के बराबर जमीन तक देने को राजी न होना महाभारत होने का दूसरा बड़ा कारण बना परंतु क्‍या आज भी यही सब नहीं हो रहा?
घर-घर में बैठे कौरव आज भी पाण्‍डवों का हक मार रहे हैं और उनके खून से होली खेल रहे हैं लेकिन अब कोई कृष्‍ण किसी की मदद करने नहीं आता।
तो क्‍या महाकाव्‍य महाभारत के 'भीष्‍म पर्व' को अब 'मृतप्राय:' और श्रीमद्भागवत को कथावाचकों के लिए 'वैभवपूर्ण एवं विलासितापूर्ण जीवन' का 'माध्‍यमभर' मान लिया जाए।
क्‍या मान लिया जाए कि इन धर्मग्रंथों में जो कुछ लिखा गया, जो कुछ कहा गया और जो संदेश इनके द्वारा दिया गया है, वह सब छलावा है।
यदि नहीं, तो कोई कृष्‍ण आकर धर्म की पुनर्स्‍थापना का शंखनाद क्‍यों नहीं करता?
कैसे कोई कृपालु, कोई आसाराम, कोई प्रकाशानंद जैसा गीदड़ किसी के भरोसे को तोड़कर अपनी हवस मिटाने में कामयाब हो जाता है?
कैसे कोई उपदेशक अपने ही उपदेशों को निजी जिंदगी में तार-तार करता दिखाई देता है और मठ, मंदिर, आश्रम एवं दूसरे धार्मिक स्‍थल पापकर्मों को अंजाम देने के सुविधाजनक अड्डे बने हुए हैं।
हे कृष्‍ण! क्‍या ये जरूरी नहीं कि या तो अब धर्म की हानि एवं अधर्म के बढ़ने की कोई सीमा निर्धारित हो या फिर गीता में दर्ज 'यदा-यदा हि धर्मस्‍य... को नए सिरे से परिभाषित किया जाए।
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रविवार, 25 अगस्त 2013

दिल्‍ली हाईकोर्ट की टिप्‍पणी या खतरे की घंटी?

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
दिल्‍ली हाईकोर्ट ने राष्‍ट्रीय राजधानी में 20 अगस्‍त की बारिश के कारण हुए जलभराव को लेकर एमसीडी के अधिकारियों से पूछा-  आपको मालूम है कि हम क्‍या कर सकते हैं ?
जब एक अधिकारी ने कहा कि अदालत का आदेश न मानने पर हमें जेल भेजा जा सकता है तो एक्‍टिंग चीफ जस्‍टिस बी. डी. अहमद और जस्‍टिस विभू बाखरू की बैंच ने इन अधिकारियों से यह भी पूछा- कभी सोचा है कि पब्‍लिक क्‍या कर सकती है  ?
अधिकारियों की चुप्‍पी पर न्‍यायाधीशों ने कहा- कोर्ट के कारण ही आप पब्‍लिक के गुस्‍से से बचे हुए हैं। नहीं तो पब्‍लिक आपका क्‍या हाल करेगी, भगवान ही जाने।
अदालत ने यहां तक कह दिया कि समय रहते नहीं सुधरे तो वह दिन दूर नहीं जब जनता आपको दौड़ा-दोड़ाकर पीटेगी।
अदालतों की भी अपनी एक मर्यादा होती है लिहाजा न्‍यायाधीश उस मर्यादा का सम्‍मान करते हुए टीका-टिप्‍पणी करते हैं।
दिल्‍ली हाईकोर्ट के न्‍यायाधीशों ने जो कुछ कहा, उसे सिर्फ सांकेतिक माना जा सकता है अन्‍यथा उनके इतना कुछ कहने पर मजबूर होने का मतलब बहुत गंभीर है।
कड़वा सच भी यही है कि देश के वर्तमान हालात बेहद निराशाजनक, हताश करने वाले और विस्‍फोटक हो चुके हैं।

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

बिन मांगी एक निजी (गैर सरकारी) राय

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
हाल ही में सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने एक बहुत पते की बात कही है। मनीष तिवारी का सुझाव है कि अखिल भारतीय स्‍तर पर पत्रकारों के लिए एक परीक्षा आयोजित कराई जाए और फिर बार काउंसिल अथवा मेडीकल क्षेत्र की तरह उन्‍हें लाइसेंस जारी किए जाएं।
मनीष तिवारी ने यह सुझाव भी दिया है कि इस काम को शिषण संस्‍थाओं की बजाय मीडिया उद्योग करे तो बेहतर होगा।
सूचना प्रसारण मंत्री कहते हैं कि इस प्रक्रिया से मीडिया उद्योग में आने वालों का स्‍तर सुधारा जा सकता है।
दो दिन पहले दिए गये इस सुझाव के बारे में मुझे अभी तक यह पता नहीं लग पाया है कि उनका यह सुझाव बाहैसियत सूचना प्रसारण मंत्री आया है अथवा ये उनकी निजी राय है।
कांग्रेस के किसी प्रवक्‍ता ने भी फिलहाल यह स्‍पष्‍ट नहीं किया है कि मनीष तिवारी ने ये सुझाव किस हैसियत से दिया है।

रविवार, 18 अगस्त 2013

मथुरा के मठाधीशों की मायावी दुनिया का सच

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष) राजनीति का अपराधीकरण तो एक लंबे समय से चर्चा में है और उसे लेकर न्‍यायपालिका भी चिंतित है पर राजनीति का एक अन्‍य नापाक गठजोड़ न चर्चा में है, न उसके लिए कोई चिंतित है जबकि वह देश व समाज की बर्बादी का बड़ा कारण बना हुआ है।   जी हां! यह गठजोड़ है तथाकथित धर्मगुरुओं एवं राजनीति का। इस नापाक गठजोड़ की गहराई का अंदाज यदि लगाना हो तो भगवान कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली मथुरा और उसके आस-पास आकर देखिये। वृंदावन, महावन, कोकिलावन, गोवर्धन, गोकुल, नंदगांव, बरसाना, बल्‍देव आदि अनेक स्‍थानों पर चारों ओर राजनीति और धर्म के नापाक गठजोड़ से उपजा धंधा फलता-फूलता नजर आयेगा। कहते हैं कि किसी भी पापकर्म के लिए धर्म और धार्मिक स्‍थानों से बड़ी कोई आड़ नहीं होती। तथाकथित धर्मगुरू इस आड़ का आधार होते हैं। फिर मथुरा तो विश्‍व पटल पर अपनी विशिष्‍ट धार्मिक छवि के कारण ही पहचाना जाता है और उसकी इस छवि के अनुरूप यहां नामचीन धर्मगुरुओं, संत-महंतों, भागवताचार्यों एवं मठाधीशों की लंबी फेहरिस्‍त है। धर्म की आड़ में कई दशकों से जड़ जमाये बैठे ये धंधेबाज कानून-व्‍यवस्‍था को खुली चुनौती दे रहे हैं और इनके द्वारा अर्जित अकूत संपत्‍ति बड़े विवादों का कारण बनी हुई है लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा क्‍योंकि इस संपत्‍ति में राजनेताओं की साइलेंट हिस्‍सेदारी है। बात शुरू करते हैं

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

गुलाम' ही हैं हम अब भी, और गुलाम ही रहेंगे..

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष) 
आज की शुरूआत एक कहानी से करते हैं। कहानी कुछ यूं है- रास्‍ते से गुजरते किसी व्‍यक्‍ति को एक ही स्‍थान पर हाथियों का झुण्‍ड दिखाई दिया। उत्‍सुकतावश वह रुक गया तो उसने देखा कि सारे हाथी थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पेड़ों के किनारे खड़े हैं। गौर करने पर पता लगा कि हर हाथी का एक-एक पैर उस रस्‍सी से बंधा है जो रस्‍सी पेड़ से बंधी है।
राहगीर ने इधर-उधर नजरें घुमाईं तो उसे एक व्‍यक्‍ति भी दिखाई दिया। यह व्‍यक्‍ति इन हाथियों का महावत था।
राहगीर ने महावत से पूछा- क्‍यों भाई! ये इतना बलशाली जीव जो चाहे तो एक झटके में पेड़ को उखाड़ दे, एक मामूली रस्‍सी से कैसे बंधा है ?
इस पर महावत का जवाब था- मैं इन हाथियों की देखभाल इनके बचपन से कर रहा हूं। तब मैं इनकी उम्र को देखकर इनके एक-एक पैर में रस्‍सी बांध दिया करता था और ये उसी से बंधे रहते थे।
अब बेशक ये बड़े हो चुके हैं और इनमें अपार ताकत है लेकिन एक रस्‍सी से बंधे रहने की इनकी सोच नहीं बदली।
ये अब भी यही सोचते हैं कि इस रस्‍सी को तोड़ना इनके वश की बात नहीं। सच तो यह है कि यह रस्‍सी या पेड़ से नहीं, अपनी सोच से बंधे हैं।
अब न तो ये आजाद होने की कोशिश करते हैं और ना ही बंधनमुक्‍त होना चाहते हैं।
इन्‍होंने अपने जीवन को एक मामूली सी रस्‍सी के हवाले कर दिया है

रविवार, 11 अगस्त 2013

कंडम बुलेटप्रूफ जैकेट्स के कारण मारे गए भारतीय जवान

नई दिल्‍ली। जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर की सरला पोस्ट पर पाकिस्तान के हमले को लेकर चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हमला भारतीय सेना के यूनिट और ब्रिगेड लेवल पर कमांड और कंट्रोल के फेल होने के कारण हुआ था। सैनिकों ने जो बुलेट प्रूफ जैकेट पहन रखे थे, वे काम नहीं कर रहे थे।
तीन जवानों को काफी नजदीक से छाती में गोलियां मारी गई थीं। सूत्रों के मुताबिक या तो जवानों ने स्टैण्डर्ड बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहन रखे थे या जैकेट काम नहीं कर रहे थे। चौथे जवान को आंखों के बीच गोलियां मारी गईं थीं। पांचवें जवान को हाथ और पैरों में गोलियां मारी गईं थीं। बहुत ज्यादा गोलियां लगने के कारण उसकी मौत हुई।

विकास नहीं, विनाश करा रहा है MVDA

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
क्‍या वाकई विकास प्राधिकरण की इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद के विकास में कोई भूमिका है या ये अथॉरिटी विकास की आड़ में विनाश का ऐसा खेल रच रही है जो सरकार से ज्‍यादा अधिकारियों के लिए मुफीद साबित हो रहा है ?
मथुरा-वृंदावन में तिराहों-चौराहों सहित सभी प्रमुख सड़कों के दोनों ओर निगाहें डालने से तो किसी को भी यह मुगालता हो सकता है कि कृष्‍णकालीन यह जिला तरक्‍की के नित नए आयाम स्‍थापित कर रहा होगा लेकिन हकीकत यह है कि शहर के विकास से कई गुना अधिक विकास मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में तैनात अधिकारियों का हो रहा है और शहरी विकास के नाम पर विनाश की ऐसी इबारत लिखी जा रही है जिसके दुष्‍परिणाम भविष्‍य में अत्‍यंत भयानक साबित होंगे।

PMO ने सेना के हाथ बांध रखे हैं

नई दिल्‍ली। एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री कार्यालय ने सेना के हाथ बांध रखे हैं। सीनियर कमांडरों के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से लागू किए गए नियमों के कारण ही पाकिस्तान की फौज के हाथों हमारे सैनिक मारे गए हैं। कमांडरों का कहना है कि मौजूदा सेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह प्रैक्टिकली पीएमओ के निर्देशों का पालन करते हैं जबकि सार्वजनिक रूप से वे टफ स्टैण्ड लेते हुए दिखाई देते हैं।
सूत्रों के मुताबिक इन दिनों रक्षा मंत्रालय के बाबू टेक्‍टीकल डिसीजन ले रहे हैं जबकि फैसले फील्ड कमांडरों पर छोड़ देने चाहिए। ऑपरेशन मामलों में रक्षा मंत्रालय का हस्तक्षेप खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। कमांडरों के मुताबिक पाकिस्तान के सैनिक हमेशा हम पर ताना कसते हैं कि यह दिल्ली का हुकूम है। इस कारण हमारे सैनिक पाकिस्तान की उकसावे की कार्यवाही का कोई जवाब नहीं देते।
जून 2012 के बाद नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सीमा पार की घटनाओं में बढ़ोत्‍तरी हुई है। जून 2012 में ही जनरल बिक्रम सिंह ने जनरल वीके सिंह से सेना की कमान अपने हाथ में ली थी। हालांकि एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि पिछले एक साल में जवाबी कार्यवाही में जो डाइल्यूशन हुआ है उसमें जनरल बिक्रम सिंह की कोई गलती नहीं है। एक अनुशासित सिपाही होने के नाते जनरल सिंह के पास राजनीतिक और नौकरशाही नेतृत्व की ओर सी दी गई नीति का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जिन कमांडरों ने प्रो एक्टिव स्टैंस लिया उनको करियर में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है जबकि पाकिस्तान के मामले में ठीक इसका उल्टा है।
-एजेंसी

सोमवार, 5 अगस्त 2013

कोषदा बिल्‍डकॉन का प्रोजेक्‍ट 'मंदाकिनी' गैरकानूनी

दिल्‍ली के निवेशक ने लगाए गंभीर आरोप
प्रोजेक्‍ट 'मंदाकिनी' को गैर कानूनी बताया (लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
यदि आप भगवान कृष्‍ण की क्रीड़ास्‍थली वृंदावन में 'कोषदा बिल्‍डकॉन प्रा. लि.' के मल्‍टी स्‍टोरी आलीशान रिहायशी प्रोजेक्‍ट 'मंदाकिनी' के निवासी बनने का सपना पाले हुए हैं तो थोड़ा ठहर जाइए।
अगर आपने इस प्रोजेक्‍ट में पैसा लगा रखा है तो संभल जाइए क्‍योंकि 'मंदाकिनी' आपको बहाकर भी ले जा सकती है और डुबो भी सकती है।
इस आशय की चेतावनी 'कोषदा बिल्‍डकॉन प्रा. लि.' के ही एक निवेशक द्वारा दी जा रही है।
जैन रियल्टर्स प्रा. लि. के निदेशक अजय कुमार जैन पुत्र श्री सुरेश चन्द्र जैन ने इस मामले में बाकायदा कोर्ट के आदेश से दि. 25 जुलाई 2013 को 'कोषदा बिल्‍डकॉन प्रा. लि.' के मालिकानों श्याम सुन्दर बंसल पुत्र श्री गोपाल दास बंसल निवासी-मकान नंबर 2255, भक्तिधाम भरतपुर गेट मथुरा, गौरव अग्रवाल पुत्र श्री माधव प्रसाद अग्रवाल  निवासी मकान नंबर 1684 गली ख्याला, मण्डी रामदास मथुरा, नरेन्द्र किशन गर्ग पुत्र श्रीराम गर्ग निवासी मकान नंबर जी 6 किशना अपार्टमेंट, मसानी तिराहा, मथुरा तथा कोषदा बिल्डकॉन प्रा. लि. कोषदा हाउस तिलक द्वार, मथुरा (उ॰प्र॰) के खिलाफ थाना कोतवाली वृंदावन में एफआईआर दर्ज कराई है।
मुकद्दमा अपराध संख्‍या 503/13 पर धारा 380, 384, 387, 392, 406, 409, 417, 420, 423, 424, 427, 448, 451, 452, 456, 467, 506, 120 B आईपीसी के तहत दर्ज इस मामले में दिल्‍ली निवासी अजय जैन ने जो आरोप कोषदा बिल्‍डकॉन प्रा. लि. के मालिकानों एवं कंपनी पर लगाए हैं उनके अनुसार उक्‍त लोग जनवरी 2011 में चार-पांच अन्‍य लोगों के साथ उनसे मिलने पहुंचे।

रविवार, 4 अगस्त 2013

माई-बाप! अहसानमंद हैं हम आपके

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
लोकतंत्र  क्षत-विक्षत हो चुका है। लोक से तंत्र पूरी तरह कट गया है। क्षत-विक्षत लोकतंत्र पर राजनीति अट्टहास कर रही है। राजनीतिज्ञों का सर्वाधिक वीभत्‍स और डरावना चेहरा जनता के सामने है।
उसे समझ में नहीं आ रहा कि वह आखिर करे तो करे क्‍या।
दिन-रात भ्रष्‍टाचार की जुगाली करने वाले सत्‍तापक्ष और उस जुगाली का ढिंढोरा पीटने वाले विपक्षियों में कहीं कोई अंतर नजर नहीं आ रहा।
यही पता नहीं लग रहा कि भ्रष्‍टाचार की जुगाली का ढिंढोरा पीटने का मकसद अपनी बारी आने का इंतजार करना भर है या जनता की आंखों में धूल झोंकना।
जिस प्रकार अपने वेतन-भत्‍ते और सुख-सुविधाओं को बढ़ाने के लिए हर पक्ष के माननीय एकस्‍वर में बोलने लगते हैं, ठीक उसी प्रकार अब जनसूचना अधिकार सहित दागी नेताओं के मामले में कोर्ट के आदेश को ताक पर रखने की तैयारी है। न अपील, न दलील। सीधे कानून बना दो जिससे न रहेगा बांस और न फिर कभी बज पायेगी बांसुरी।
2G घोटाला, कोलगेट स्‍कैम, आदर्श सोसायटी घोटाला, कॉमनवेल्‍थ घोटाला, महंगाई, रुपये का रसातल में जाना, पड़ोसी देशों का हमलावर होना, विदेश नीति की दुर्गति, कालाधन आदि को दरकिनार कर एकबार फिर लोकसभा चुनावों का शंख समय से पहले फूंक दिया गया है। सबको पता है कि 2014 से पहले चुनाव नहीं होंगे पर माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि जैसे इसी साल चुनाव होने हों। माहौल बनाने में सबकी मिली-भगत है। समय जो चाहिए। किसी को और लूट करने के लिए तो किसी को इशारों-इशारों में यह समझाने के लिए कि जितना मौका हम दे रहे हैं, उतना ही आगे हमें मिलना चाहिए। 
दरअसल इसके पीछे भी सबकी अपनी राजनीति है और सबके अपने स्‍वार्थ। मुंह पर लगी कीचड़ दिखाने वाले से तो अब बड़ी बेशर्मायी के साथ कह दिया जाता है  कि 'बुरी नजर वाले, तेरा मुंह काला' और पिछवाड़े पर लगी कालिख दिखाई नहीं देती। दूसरों को दिखती है तो दिखती रहे। बदबू आती है तो मुंह फेरकर चले जाएं।
आम आदमी का पेट भरने के लिए देश के भाग्‍य विधाताओं को प्रतिमाह एक हजार रुपये की आमदनी पर्याप्‍त लगती है और खुद का पेट अरबों रुपये डकार जाने के बावजूद नहीं भर पा रहा।
लोकतंत्र के एक खंभे न्‍यायपालिका को जनता से मिले अपने विशेषाधिकार का इस्‍तेमाल कर कमजोर किया जा रहा है और कागजी खंभे मीडिया को कागज के ही नोटों से खरीदकर कागजी घोड़ा बना दिया गया है।
यही कारण है कि आम आदमी को, जो मीडिया सत्‍ता के खिलाफ दिन-रात चीखता और चिल्‍लाता हुआ दिखाई देता है, वह एक्‍चुअली मिमिया रहा होता है। उसकी लाउड आवाज हकीकत में शुकराना अदा करने के लिए होती है ताकि ऊंचाई पर बैठे आकाओं को ठीक से सुनाई दे जाए।
यूं भी ऊपर से फेंके गए सिक्‍के जब जमीन से उठाए जाते हैं तो बताना भी पड़ता है कि माई-बाप हम इनके लिए आपके अहसानमंद हैं।
वैसे भूखी-नंगी जनता के सामने भी फूड सीक्‍यूरिटी बिल का चारा डालने की व्‍यवस्‍था कर ली गई है जिससे चुनावों के दौरान वह पेट पकड़ कर रोने न लगे और मध्‍यमवर्ग के लिए एफडीआई के चमचमाते नियोन साइन लगवाने का रास्‍ता साफ कर दिया गया है ताकि वह उसकी रोशनी को दीवाली की आहट समझ दिवाला निकलने का अहसास तक न कर पाये।
शायद हर शासक जानता है कि अवाम मुगालते में जीने की आदी होती है। वह मुगालते में ही जीना चाहती है क्‍योंकि उससे उसे अपने दुख कम लगने लगते हैं।
संभवत: इसीलिए हर युग के शासकों ने अवाम के कानों में मुगालते के तहत जीने का मंत्र कुछ इस तरह फूंका कि वही उसे हकीकत लगता है।
मुगालते में जीने की आदी जनता अब भी इस मुगालते में है कि देश स्‍वतंत्र हो चुका है लिहाजा वह 65 सालों से स्‍वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मना रही है जबकि झण्‍डा आज भी फिरंगियों की कार्बन कापियां ही फहरा रही हैं।
आम जनता तब उनके झण्‍डे के नीचे खड़े होकर स्‍तुतिगान करती थी और अब इनके झण्‍डे के नीचे खड़े होकर स्‍तुतिगान कर रही है। 
कहने को वोट का अधिकार है और चुनी हुई सरकार है लेकिन यह चुनाव एक ऐसी मजबूरी है जिसका विकल्‍प कोई नहीं। भ्रष्‍ट और भ्रष्‍टतम में से किसी एक को चुनना है।
मतदान 40 प्रतिशत हो या चार प्रतिशत, सरकार तो बन ही जाती है। एक को बहुमत नहीं मिला तो न सही, एक दर्जन मिलकर एक हो सकते हैं। संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि सत्‍ता के लिए दर्जन-दो दर्जन दल मिलकर सबसे बड़ा दल होने की औपचारिकता पूरी न कर पाएं। संविधान में यह भी नहीं लिखा कि चुनाव से पहले गठबंधन करना जरूरी है। फिर चुनावों में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होकर भी चुनावों के बाद एक होकर कुर्सी पर काबिज होने से कौन रोक रहा है।
कभी यूपीए के नाम से कभी एनडीए के नाम से। कभी कांग्रेस के पास, कभी भाजपा के पास। एक सर्किल है जिसमें वोट रूपी झुनझुना पकड़कर मतदाता को गोल-गोल घूमना है। उसके पास चुनाव नहीं, चंद चेहरे हैं। ऐसे चेहरे जिनकी सूरतें बेशक नहीं मिलतीं, पर सीरतें हूबहू हैं। उनका डीएनए एक है।
इसी महीने देश एक और स्‍वतंत्रता दिवस मनायेगा। राष्‍ट्रगान और राष्‍ट्रगीत के साथ देशभर में झण्‍डे फहराये जायेंगे। स्‍कूल में बच्‍चों को बताया जायेगा कि ये हमारा राष्‍ट्रीय पर्व है। इस दिन हमें स्‍वतंत्रता मिली थी।
लेकिन ये बताने वाला कोई नहीं होगा कि 15 अगस्‍त सन् 1947 से लेकर अब तक देश उस स्‍वतंत्रता की बाट जोह रहा है जिसके सपने संजोए थे।
ये भी कोई नहीं बतायेगा कि आज देश को फिर एक इतनी बड़ी लड़ाई लड़नी है जितनी बड़ी लड़ाई पहले कभी नहीं लड़ी गई।
क्‍या कोई स्‍कूल, कोई कॉलेज ऐसा बचा है जो देश के भविष्‍य को यह बता सके कि 65 सालों की स्‍वतंत्रता के बावजूद उसका अपना भविष्‍य असुरक्षित है क्‍योंकि कि नेताओं का भविष्‍य सुरक्षित है।
क्‍या उन्‍हें कोई ऐसी शिक्षा देगा कि विकल्‍पहीन चुनाव और मजबूरी का मतदान व्‍यवस्‍था परिवर्तन नहीं करा सकता। व्‍यवस्‍था परिवर्तन के लिए पर्याप्‍त विकल्‍प जरूरी हैं और संपूर्ण स्‍वतंत्रता के लिए स्‍वाभिमान जरूरी है। तलवे चाटने वाली मानसिकता न तो स्‍वाभिमान सुरक्षित रख पाती है और ना स्‍वतंत्रता।
कोई फर्क नहीं पड़ेगा इस बात से कि 2014 के चुनाव, सत्‍ता किसके हाथ में सौंपते हैं। कोई अंतर नहीं आयेगा इससे कि सत्‍ता पर कोई एक दल काबिज होता है या बहुत सारे दलों से मिलकर बनी दलदल। सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। चोर-चोर मौसेरे भाई।
जनसूचना अधिकार जैसा कानून आड़े आने लगा तो उसकी जड़ों में सब मिलकर मठ्ठा डालने को तैयार हैं और कोर्ट का आदेश चुनाव लड़ने में बाधक बना तो सब एकसाथ मिलकर उसका गला घोंटने पर सहमत हैं। इन मामलों में न कोई पक्ष, न विपक्ष। सब-कुछ निष्‍पक्ष। न अल्‍पमत, न बहुमत। सब-कुछ सर्वसम्‍मत। ताकि सनद रहे और वक्‍त जरूरत काम आये।

..तो इसलिए नीतीश की तारीफों के पुल बांध रहे हैं 'शत्रु'

नई दिल्‍ली। भाजपा की चुनाव अभियान समिति के प्रमुख नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बयान देकर सुर्खियों में आए शत्रुघ्न सिन्हा के जदयू से हाथ मिलाने की खबर है। पटना साहिब से भाजपा सांसद सिन्हा को जदयू लोकसभा टिकट दे सकती है या उन्हें राज्यसभा में भेज सकती है। सिन्हा की उनके चुनाव क्षेत्र में लोकप्रियता घट रही है ऎसे में भाजपा उन्हें शायद ही टिकट दें। कहा जा रहा है कि टिकट कटने की संभावना के चलते ही सिन्हा बार-बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ कर रहे हैं और मोदी पर निशाना साध रहे हैं। एक समाचार पत्र के मुताबिक सिन्हा बराबर नीतीश कुमार के संपर्क में हैं।

शनिवार, 3 अगस्त 2013

स्‍टिंग में सामने आया दुर्गाशक्‍ति के निलंबन का सच

नई दिल्ली। गौतमबुद्ध नगर की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल को सस्पेंशन के पीछे रेत माफिया का हाथ है इसका एक और पुख्ता सबूत मिला है। ग्रेटर नोएडा में समाजवादी पार्टी के बड़े नेता और यूपी एग्रो के चेयरमैन नरेंद्र भाटी के भाई कैलाश भाटी ने इस दावे को और पुख्ता कर दिया है। कैलाश के मुताबिक, हमने दुर्गा की शिकायत सीधे मुख्यमंत्री से की थी। दुर्गा ने उनकी रेत से भरी कई गाड़ियां और डंपर थाने में बंद करवा दिए थे।
यही नहीं, कैलाश भाटी ने कहा कि दुर्गा का सस्पेंशन पार्टी के लिए सियासी फायदे का सौदा साबित होगा। कैलाश भाटी भी ग्रेटर नोएडा में एसपी के सीनियर नेता हैं।

दिल्‍ली में ही लगा रखा है अमेरिका ने अपना जासूसी सर्वर

लंदन। अमेरिका ने साइबर वर्ल्ड की जासूसी करने के लिए पुरी दुनिया में लगभग 700 सर्वर्स लगा रखे हैं। इनमें से एक सर्वर भारत में भी है। ब्रिटिश अखबार गार्जियन के मुताबिक दिल्ली के नजदीक किसी स्थान पर इसके लगे होने की आशंका जताई गई है। गार्जियन ने सीआईए के पूर्व कर्मचारी एडवर्ड स्नोडेने द्वारा दिए गए दस्तावेजों के आधार पर यह दावा किया है। दरअसल स्नोडेन ने ही अमेरिकी और ब्रिटिश जासूसी कार्यक्रम का सनसनीखेज ब्योरा प्रेस को लीक किया था।
अखबार के मुताबिक अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी द्वारा संचालित एक्सकीस्कोर जासूसी कार्यक्रम के 2008 के एक प्रशिक्षण सामग्री में वो नक्शा भी शामिल था, जिसमें विश्वभर में लगे सर्वर्स की जानकारी थी।
गार्जियन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक एनएसए अपने एक्सकीस्कोर कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए ही दुनिया भर में इंटरनेट पर जारी किसी भई किस्म की गतिविधियों पर नजर रखती है।
-एजेंसी

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

सरकारी न्‍याय का 'आदर्श घोटाला': जांच में 3 पूर्व मुख्यमंत्रियों को क्लीन चिट!

मुंबई। काफी चर्चा में रहे मुंबई के आदर्श घोटाले की जांच कमीशन की रिपोर्ट तैयार हो गई है। इसे शुक्रवार को महाराष्ट्र विधानसभा में पेश किया जा सकता है। बताया जा रहा है कि रिपोर्ट में इस घोटाले के आरोपी तीन पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे और अशोक चव्हाण को क्लीनचिट दे दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन अफसरों को निलंबित किया गया है, वे ही इस पूरे घोटाले के जिम्मेदार हैं।
जांच रिपोर्ट के मुताबिक, निलंबित किये गए अफसर जयराज और प्रदीप व्यास को कानून और कानून की खामियों के बारे में पूरी जानकारी थी।
विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कमीशन की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि

संसद की सर्वोच्‍चता के नाम पर अपनी हिफाजत की तैयारी

नई दिल्ली। राजनीति में आपराधिकरण रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय के हाल के फैसलों पर सभी राजनीतिक दलों ने चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से जल्द से जल्द जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन संबंधी विधेयक लाने की मांग की है। संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने संसद के मानसून सत्र से पहले बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के बाद आज संवाददाताओं से कहा कि सभी दलों में इन निर्णयों को लेकर चिंता है और सबने इस स्थिति का समाधान तथा संसद की सर्वोच्चता बरकरार रखने की मांग की है।

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