मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

सुनो लखनऊ....कि तुम बदनाम क्‍यूं हो

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
दिल्‍ली किसकी....जो सत्‍ता में हो उसकी। लखनऊ किसका..जो सत्‍ता पर काबिज हो उसका। कभी बसपा का तो कभी सपा का, कभी भाजपा का तो कभी भाजपा और बसपा का संयुक्‍त। आम जनता की न दिल्‍ली कभी हुई और ना लखनऊ।
जिसकी लाठी...उसकी भैंस।
पर यहां तो ऐसी कहावतों के मायने भी बदल रहे हैं। जिसके हाथ में लाठी है, भैंस उसे सींग दिखा रही है।
जो बहिनजी सत्‍ता से बेदखल हैं, वह खुलेआम सत्‍ताधारियों को गुण्‍डों की जमात कहकर धमका रही हैं। कह रही हैं कि सत्‍ता में आने दो, एक-एक की हड्डी-पसली तुड़वा दूंगी। जो सपाई सत्‍ता में हैं, वह लगभग मिमियाते हुए जवाब दे रहे हैं... समझ लो तुम जब सत्‍ता में आओगी तब आओगी लेकिन हम तो सत्‍ता में हैं। हम चाहें तो अभी जेल भिजवा सकते हैं।

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