मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

आखिर कब तक धैर्य रखेंगे हम?

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
क्‍या भारत अराजकता और गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है?
क्‍या देश की कानून-व्‍यवस्‍था पूरी तरह ध्‍वस्‍त होने के कगार तक जा पहुंची है?

हो सकता है कि पहली नजर में आपको यह प्रश्‍न बेमानी लगें... लेकिन गौर करें कि क्‍या इनमें थोड़ी सी भी सच्‍चाई है।
गौर करने को इसलिए कह रहा हूं क्‍योंकि आज हमारे पास देश की किसी भी समस्‍या पर गौर करने के लिए वक्‍त ही कहां है।
हम सब 'उसकी कमीज, मेरी कमीज से ज्‍यादा सफेद क्‍यों' के फेर में उलझे हुए हैं... या एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत उलझा दिए गये हैं।
यकीन न हो तो थोड़ा सा वक्‍त निकाल कर अपने चारों ओर नजरें घुमाकर देखिए। बहुत कम समय में पता लग जायेगा कि तरक्‍की की आड़ में हमें 'स्‍टेटस' की एक ऐसी दौड़ का हिस्‍सा बना दिया गया है जो कब और कहां जाकर खत्‍म होगी, कोई बताने वाला नहीं।
मास्‍टर से लेकर डॉक्‍टर तक और नेता से लेकर अभिनेता तक, वही सफल कहलाता है जिसने अच्‍छा पैसा कमाया हो। हर योग्‍यता का मापदण्‍ड सिर्फ और सिर्फ पैसा है।

बलात्कार के एक लाख अभियुक्त 'बाइज़्ज़त बरी'

नई दिल्‍ली। पिछले साल दिसंबर में एक छात्रा के साथ चलती बस में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद से भारत में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों पर लंबी बहस जारी है.
बलात्कार विरोधी एक नए कानून से लेकर बलात्कारियों को मौत की सज़ा दी जाए या नहीं, इस पर अभी भी पूर्ण रूप से सहमति नहीं बन सकी है.
लेकिन इस सब के बीच हैं आंकड़ों का सच, जो बताते हैं कि भारत में महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अपराधों के अलावा अभियुक्तों के विरुद्ध पुख्ता सबूत न होने की वजह से भी उनकी रिहाई हो जाती है.
अपराधों का लेखा-जोखा रखने वाली संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 2001 से लेकर 2010 तक दर्ज किए गए बलात्कार के मामलों में मात्र 36,000 अभियुक्तों के खिलाफ ही अपराध साबित हो सके.

अवैध है कोयला ब्लॉकों के आवंटन की प्रक्रिया:बनर्जी

नई दिल्ली। संसद की स्थाई समिति ने वर्ष 1993 और 2010 के बीच आवंटित कोयला ब्लॉकों के आवंटन की प्रक्रिया को अवैध करार देते हुए सभी आवंटन को तत्काल निरस्त करने और इस संबंध में निर्णय लेने वालों के विरुद्ध कार्रवाई किए जाने की सिफारिश की है।
संसद की कोयला एवं इस्पात संबंधी स्थाई समिति की रिपोर्ट को आज दोनों सदनों में पेश किए जाने के बाद समिति के अध्यक्ष कल्याण बनर्जी ने कहा कि वर्ष 1993 से 2010 के बीच कोयला ब्लॉकों का आवंटन अपारदर्शी तरीके से किया गया। किसी पारदर्शी प्रक्रिया को अपनाए बगैर कुछ लोगों को निजी लाभ के लिए कोयला ब्लॉकों का आवंटन कर दिया गया और प्राकृतिक संसाधन के आवंटन से सरकार को कोई राजस्व भी नहीं मिला।
बनर्जी ने सरकार पर शक्ति का पूरी तरह से दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकोर मनमाने ढंग से इस तरह का निर्णय नहीं ले सकती है। समिति का मानना है कि कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए पूरी निर्णय प्रक्रिया की जांच की जानी चाहिए और उन सभी लोगों को दोषी ठहराया जाना चाहिए जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस प्रक्रिया से जुड़े थे।

कैग ने फिर खोली मनरेगा में बड़ी लूट

नई दिल्ली। नैशनल ऑडिटर कैग ने अपनी रिपोर्ट में यूपीए सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा में फर्जीवाड़े की पोल खोली है। संसद में मंगलवार को पेश रिपोर्ट के मुताबिक, करीब सभी राज्यों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के क्रियान्वयन में भारी अनियमितताएं बरती गईं हैं। मनरेगा के फंड का इस्तेमाल उन कामों के लिए किया गया, जो इसके दायरे में नहीं आते हैं। कैग के मुताबिक, मनरेगा के 13,000 करोड़ रुपये की बंदरबांट हुई और इसका लाभ भी सही लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है।
कैग ने 14 राज्यों में ऑडिट के दौरान पाया कि सवा चार लाख जॉब कार्ड्स में फोटो नहीं थे, यानी वे फर्जी थे। 1.26 लाख करोड़ रुपये के 129 लाख प्रॉजेक्ट्स को मंजूरी दी गई, लेकिन इनमें से सिर्फ 30 फीसदी में ही काम हुआ। ऑडिटर ने यह भी पाया कि 2,252 करोड़ रुपये ऐसे प्रॉजेक्ट्स के लिए आवंटित कर दिए गए, जो नियम के मुताबिक मनरेगा के तहत नहीं आते हैं।

अकेली दिल्‍ली की ही है 6000 करोड़ की पॉर्न इंडस्‍ट्री

राजधानी में दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा पॉर्न बाजार असान तरीकों और महज चंद रूपयों में लोगों को पॉर्न की लत लगा रहा है। हैरत की बात तो यह है कि यहां मोबाइल में पॉर्न वीडियो लेने के लिए इंटरनेट कनैक्शन की भी जरूरत नहीं है।
दिल्ली पुलिस के मुताबिक यही पॉर्न पांच वर्षीय "गुडि़या" की जिंदगी तबाह करने का जिम्मेदार है। पुलिस ने हाल ही यह खुलासा किया था कि गुडिया के गुनहगारों ने यह दरिंदगी दिखाने से पहले मोबाइल पर पॉर्न वीडियो देखा था।
यहां धड़ल्ले से बिकता है पॉर्न
दरअसल दिल्ली के पालिका बाजार से लेकर गफ्फार मार्केट और नेहरू पैलेस तक पॉर्न आसानी से उपलब्ध है। इस बाजार को शिखर तक पहुंचाने में बड़ा किरदार निभाया है टेक्नोलॉजी ने। इन बाजारों में पॉर्न ढूंढने के लिए किसी अच्छी दुकान को तलाशने की जरूरत नहीं है और ना ही यहां यह "माल" किसी सीडी या डीवीडी में बिकता है।
यहां पॉर्न वीडियो की तलाश खत्म होती है इन बाजारों में फुटपाथ पर थड़ी लगाकर बैठे सौदागरों पर। इनके पास प्लाईवुड के टेबल पर एक लैपटॉप और ग्राहकों की सुविधा के लिए कुछ स्टूल या कुर्सियां होती हैं, लेकिन इनकी इस थड़ी के सामान से कहीं ज्यादा "माल" होता है इनके इस लैपटॉप में।
लैपटॉप से मोबाइल में बेहिचक ट्रांसफर होता पॉर्न
यहां ग्राहकों के मोबाइल फोन में लैपटॉप से वीडियो ट्रांसफर किए जाते हैं, बेशक इसके लिए ग्राहकों से पैसे भी लिए जाते हैं। एक समाचार पत्र के मुताबिक हाई डेफिनीशन से लेकर लो क्वालिटी क्लिप्स के लिए ग्राहक 150 रूपए से 450 रूपए तक अदा करते हैं।
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