बुधवार, 3 जुलाई 2013

डराता भी है बांके बिहारी का वृंदावन

(लीजेण्ड न्यूज़ विशेष)
घर-घर में पूज्यनीय तुलसी के पौधे का एक नाम वृंदा भी है और उसकी बहुतायत के कारण मथुरा से मात्र 10 किलोमीटर दूर स्थित श्रीकृष्ण की एक क्रीड़ास्थली को वृंदावन कहते हैं। अर्थात तुलसी वन, तुलसी का वन।
इसके अलावा भी वृंदावन की अनेक खासियतें हैं। तमाम पहचान हैं। जैसे बांके बिहारी, तटिय स्थान, इस्कॉन, निधि वन, कुंज गलियां, यमुना का तट, नामचीन साधु-संतों के आश्रम, मठ, आदि-आदि।

वृंदावन की इन तमाम विशेषताओं से लोग परिचित हैं और इसलिए यहां हर समय भीड़ का दबाव बना रहता है। लेकिन वृंदावन में बहुत कुछ ऐसा भी है जिससे यहां आने वाले दर्शनार्थी और पर्यटक तब तक अनजान रहते हैं, जब तक कि उनका उससे वास्ता नहीं पड़ता।
वृंदावन के इस दूसरे रूप का साक्षात्कार करने वाले या तो उसे अपना लेते हैं या फिर खुद उसका हिस्सा बन जाते हैं।
कुछ सामर्थ्यवान बाहरी लोगों और कुछ वृंदावनवासियों के बीच कायम हो चुकी इसी जुगलबंदी का परिणाम है कि आज वृंदावन एक ऐसे वीभत्स रूप में डेवलप हो रहा है जिसे जान लेने व समझ लेने वाला आम आदमी इतना भयभीत हो जाता है कि फिर सोचने-समझने की शक्ति ही खो बैठता है।
वृंदावन के इस दूसरे रूप में छिपे हैं सत्ता के गलियारों तक अपनी अच्छी-खासी पकड़ रखने वाले भूमाफिया, पुलिस प्रशासन की नाक के बाल बन चुके धर्म के ठेकेदार, नशीले पदार्थों के तस्कर, क्रिकेट के बुकी, एमसीएक्स के धंधेबाज और हर किस्म के लाइजनर।

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