रविवार, 25 अगस्त 2013

दिल्‍ली हाईकोर्ट की टिप्‍पणी या खतरे की घंटी?

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
दिल्‍ली हाईकोर्ट ने राष्‍ट्रीय राजधानी में 20 अगस्‍त की बारिश के कारण हुए जलभराव को लेकर एमसीडी के अधिकारियों से पूछा-  आपको मालूम है कि हम क्‍या कर सकते हैं ?
जब एक अधिकारी ने कहा कि अदालत का आदेश न मानने पर हमें जेल भेजा जा सकता है तो एक्‍टिंग चीफ जस्‍टिस बी. डी. अहमद और जस्‍टिस विभू बाखरू की बैंच ने इन अधिकारियों से यह भी पूछा- कभी सोचा है कि पब्‍लिक क्‍या कर सकती है  ?
अधिकारियों की चुप्‍पी पर न्‍यायाधीशों ने कहा- कोर्ट के कारण ही आप पब्‍लिक के गुस्‍से से बचे हुए हैं। नहीं तो पब्‍लिक आपका क्‍या हाल करेगी, भगवान ही जाने।
अदालत ने यहां तक कह दिया कि समय रहते नहीं सुधरे तो वह दिन दूर नहीं जब जनता आपको दौड़ा-दोड़ाकर पीटेगी।
अदालतों की भी अपनी एक मर्यादा होती है लिहाजा न्‍यायाधीश उस मर्यादा का सम्‍मान करते हुए टीका-टिप्‍पणी करते हैं।
दिल्‍ली हाईकोर्ट के न्‍यायाधीशों ने जो कुछ कहा, उसे सिर्फ सांकेतिक माना जा सकता है अन्‍यथा उनके इतना कुछ कहने पर मजबूर होने का मतलब बहुत गंभीर है।
कड़वा सच भी यही है कि देश के वर्तमान हालात बेहद निराशाजनक, हताश करने वाले और विस्‍फोटक हो चुके हैं।

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