शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

क्‍या कुछ बदल पाई LoC के कांटों की बाड़?

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
अभी-अभी एक रिपोर्ट पढ़ी। इस रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की वित्तीय राजधानी कराची में आपराधिक समूह रोजाना 83 करोड़ रुपये का काला कारोबार करते हैं। रिपोर्ट कहती है कि अवैध वसूली, लूट, अपहरण, सड़कों पर होने वाले अपराध और अवैध पार्किंग तथा अवैध बिजली कनेक्शन देने जैसे कई काम हैं जो इस शहर की अवैध अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान कर रहे हैं।

शहर के विभिन्न हिस्सों में हर रोज करीब एक करोड़ रुपये की वसूली होती है जबकि पांच करोड़ रुपये का अपहरण उद्योग है। शहर में अवैध पार्किंग के जरिये 24 लाख रुपये की उगाही होती है। इसके अलावा रेहड़ी, पटरी और फेरी वाले रोजाना 82 लाख रुपये पुलिस, अपराधियों और ठेकेदारों को देते हैं।
शहर में विभिन्न स्थानों पर 55,000 से अधिक फेरीवाले, खोमचे, स्टॉल आदि लगते हैं। पानी माफिया भी यहां सक्रिय है। यह यहां प्रतिदिन 27 करोड़ 20 लाख गैलन पानी अवैध तरीके से बेचते हैं। इससे 10 करोड़ रुपये की कमाई होती है।
शहर में 15,000 नशीले पदार्थ बेचने वाले और जुआघर हैं, इनमें 15 करोड़ रुपये प्रतिदिन का कारोबार होता है। कराची में भूमाफिया ने 30 हजार एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा किया हुआ है जिससे हर साल सरकार को 7 अरब रुपये का नुकसान हो रहा है।
शहर में वाहनों की चोरी शीर्ष पर है। मोबाइल फोन, नकदी, आभूषण और दूसरे कीमती सामान की रोजाना 52 लाख रुपये की लूट की जाती है। पुलिस को यहां रोजाना 21 करोड़ रुपये की रिश्वत मिलती है।
अब ज़रा गौर फरमाइए आज मथुरा के अखबारों की उन खबरों पर जो व्‍यापारी नेता मुरारी अग्रवाल के हवाले से छापी गई हैं।
युवा व्‍यापारी नेता मुरारी अग्रवाल ने सवाल उठाया है कि पुलिस के एक सिपाही से लेकर तमाम बड़े पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी आखिर मथुरा में ही तैनाती क्‍यों चाहते हैं।
व्‍यापारी नेता के अनुसार इसकी बड़ी वजह स्‍थानीय नेताओं की निष्‍क्रियता के चलते सही कार्यों के लिए भी अधिकारी एवं कर्मचारियों को आसान रिश्‍वत मिल जाना और गलत कार्यों के लिए भारी रिश्‍वत मिलने से उपजी छवि है।
हो सकता है कि किसी स्‍तर पर मुरारी अग्रवाल का यह प्रश्‍न राजनीतिक हो, लेकिन  इसकी सच्‍चाई में कोई शक नहीं है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्‍तान की वित्‍तीय राजधानी कराची से मथुरा की तुलना नहीं की जा सकती। कराची की तुलना भारत की वित्‍तीय राजधानी मुंबई से करना ज्‍यादा मुनासिब होगा परंतु यहां हम हांडी के पूरे चावल न देखकर एक दाने से आंकलन का सर्वमान्‍य तरीका आजमा रहे हैं।
अब सवाल यह पैदा होता है कि क्‍या भारत की वर्तमान स्‍थितियों और पाकिस्‍तान के हालातों में कोई अंतर है?
जो पढ़ा और सुना गया, उसके अनुसार तो कोई फर्क नहीं है।
भारत में भी आम आदमी उतना ही परेशान है जितना संभवत: पाकिस्‍तान में। भारत के नेताओं की मानसिकता और पाकिस्‍तानी नेताओं की मानसिकता अपनी जनता के बावत कोई बहुत अलग नजर नहीं आती। रिश्‍वत और अधिकारों के दुरुपयोग को लेकर दोनों देशों के सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी भी एक जैसी सोच रखते दिखाई देते हैं।
अवैध वसूली, लूट, अपहरण, सड़कों पर होने वाले अपराध और अवैध पार्किंग तथा अवैध बिजली कनेक्शन, रेहड़ी, पटरी और फेरी वालों से उगाही, पानी माफिया, ड्रग्‍स माफिया, भूमाफिया का बोलबाला, वाहन चोरी आदि इनमें से कौन सा अपराध है जो भारत के कोने-कोने में नहीं होता।
पता नहीं कि पाकिस्‍तान में शिक्षा माफिया, तेल माफिया और मीडिया माफिया कितने सक्रिय हैं, अलबत्‍ता भारत में इनकी भी कोई कमी नहीं।
धर्म माफिया निश्‍चित तौर पर पाकिस्‍तान में गहरी जड़ें जमाये हुए हैं लेकिन भारत में भी इनकी जड़ें कम गहरी नहीं।
क्षेत्रफल के हिसाब से भारत व पाकिस्‍तान में एक बड़ा अंतर अवश्‍य है परंतु इस अंतर से किसी मुल्‍क के राजनेताओं और अधिकारी एवं कर्मचारियों की सोच में कोई परिवर्तन आता हो, ऐसा कहीं नहीं है।
फिर भारत और पाकिस्‍तान तो सन् 47 से पहले एक ही मुल्‍क हुआ करते थे लिहाजा दोनों मुल्‍कों का डीएनए किसी न किसी स्‍तर पर जाकर जरूर मिलता होगा।
कौन नहीं जानता कि पाकिस्‍तान के राष्‍ट्रपति का जन्‍म भारत के आगरा में हुआ था और तानाशाह परवेज मुशर्रफ दिल्‍ली की नाहरवाली हवेली में पैदा हुए थे।
इसी प्रकार भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पाकिस्‍तान के पंजाब प्रांत की पैदाइश हैं और विपक्षी पार्टी भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्‍ण आडवाणी उसी कराची के सिंध प्रांत में जन्‍मे हैं, जिसके काले कारोबार का जिक्र हमने ऊपर किया है।
ये तो चंद उदाहरण भर हैं, अन्‍यथा एक अन्‍य तानाशाह जनरल जिया उल हक से लेकर पाकिस्‍तान की सत्‍ता में रहे तमाम नेताओं ने भारत की जमीं पर अपनी आंखें खोलीं और अनेक भारतीय राजनेताओं का जन्‍म पाकिस्‍तान में हुआ।
ऐसे में देश बंटने और स्‍वतंत्रता मिलने के बाद पैदा हुई भारत की पीढ़ी का नजरिया कहीं न कहीं अलग तो होना ही था।
यही नजरिया आज सीमा के उस पार लोगों को परेशान किये हुए है और इसी के कारण सीमा के इस ओर लोग बेचैन हैं।
चूंकि दोनों ओर की गवर्नेंस का भी ताल्‍लुक फिरंगियों से विरासत में मिले तौर-तरीकों से है और आज तक वह उन्‍हीं तरीकों को अपनाये हुए हैं लिहाजा मौलिक सोच में कोई फर्क नहीं आ पाया।
यही वजह है कि कराची हो या मुंबई, दिल्‍ली हो या इस्‍लामाबाद सभी जगह हालात एक जैसे मालूम होते हैं।
जहां तक मथुरा के व्‍यापारी नेता मुरारी अग्रवाल के सवालों का तो ऐसे ही सवाल देशभर को परेशान कर रहे हैं।
हर शहर में आम शख्‍़स परेशान हैं, बशर्ते उसका संबंध राजनीति और राजनेता से न हो।
एक और आम चुनाव सामने आ खड़े हुए हैं पर उनके बाद भी कुछ बदलेगा, इसकी उम्‍मीद ना के बराबर है।
मथुरा हो या मुंबई, मनमोहन हों या मोदी, कांग्रेस हो या भाजपा, क्‍या फर्क पड़ता है।
एलओसी पर कांटों की बाड़ लगा देने से जिस प्रकार दो मुल्‍क अलग हो जाते हैं, काश उसी प्रकार नेताओं की सोच भी इस बाड़ से अलग हो गई होती। कम से कम 66 सालों बाद हम तो वहां खड़े न होते जहां पाकिस्‍तान भी खड़ा है।
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