रविवार, 10 नवंबर 2013

दंगा पीड़ितों पर दबाव: मुआवजा लो लेकिन घर मत जाओ

लखनऊ 
मुजफ्फरनगर के दर्जनों दंगा पीड़ितों ने कल लखनऊ में विरोध मार्च निकाला। उनका कहना था कि उन पर 5 लाख मुआवजे के बदले अपनी जमीन-जायदाद को छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा है, और अपने गांव वापस लौटने से मना किया जा रहा है। वहीं अधिकारियों का कहना है कि पीड़ितों को आर्थिक मदद इसीलिए दी जा रही है ताकि वह कहीं भी बस सकें।
दंगा पीड़ित सलीम अहमद ने बताया कि 'जिला प्रशासन हम पर एक हलफनामा साइन करने के लिए दबाव बना रहा है, जिसमें लिखा हुआ है कि आर्थिक मदद पाने के बाद हमें राहत कैंपों को तो छोड़ना होगा मगर हम अपने गांव वापस नहीं लौट सकते।' सलीम अहमद 50 अन्य लोगों के साथ अपनी मांगों को सरकार के सामने रखने लखनऊ आए थे।
गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर दंगे उत्तर प्रदेश के इतिहास के सबसे भयावह दंगों में से एक थे। इन दंगों में 65 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 60,000 लोग बेघर हो गए थे। दंगों से प्रभावित हजारों लोग कैंपों में बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं। कई लोग सरकार की मदद से असंतुष्ट हैं और उन्हें 5 लाख रुपयों की सहायता कम लग रही है। अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ एक राहत कैंप में रह रहे एक दंगा पीड़ित ने बताया, 'मेरी बीवी के साथ गैंगरेप किया गया और हमारा घर जला दिया गया। मुआवजे के अलावा सरकार को हमें घर और नौकरी भी देनी चाहिए।'
एक और दंगा पीड़ित का कहना था कि उसकी पत्नी के साथ रेप करने वालों ने केस वापस लेने के लिए धमकाया था। पीड़ित महिला ने कहा कि 'हमने दंगों में अपना सब कुछ गंवा दिया। हमें पांच लोगों के परिवार का पालन-पोषण करना है, जिनमें दो बच्चे भी हैं।' एक अन्‍य दंगा पी़ड़ित ने कहा कि घर खो देने के अलावा उसके दो बच्चे भी दंगों के दौरान अपंग हो गए, जिसे कि पैसों से सही नहीं किया जा सकता। कुछ दंगा पीड़ितों ने बताया कि उनके घर वाले अब तक गायब हैं।
वकील असद हयात, जिन्होंने दंगों की सीबीआई जांच के लिए जनहित याचिका दायर की है, ने कहा कि सरकार ने सिर्फ 9 गांवों के परिवारों के लिए मुआवजे का ऐलान किया है जबकि 162 गांवों के परिवार कैंपों में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि 'कुछ लोगों को अचल संपत्ति के नुकसान के लिए मुआवजे मिल रहे हैं मगर पीड़ितों के चुनाव और उनको मुआवजा देने के लिए कोई ढंग का नियम नहीं है। न सिर्फ यह रकम कम है, बल्कि अभी भी बहुत सारे पीड़ितों की पहचान होनी बाकी है।'
रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम, राजीव यादव के साथ सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय के नेतृत्व में इन दंगा पीड़ितों की जनसुनवाई के लिए जयशंकर प्रसाद सभागार में शनिवार को कार्यक्रम आयोजित किया था। इस कार्यक्रम के लिए प्रशासन से अनुमति भी ले ली गई थी लेकिन कार्यक्रम शुरू होता इससे पहले उन्हें बताया गया कि प्रशासन ने कार्यक्रम की अनुमति निरस्त कर दी और इसके बदले उन्हें एक विरोध मार्च निकालने की अनुमति दी थी।
-एजेंसी

हद कर दी आपने: पद्म पुरस्‍कारों के लिए भी सिफारिशें

नई दिल्ली 
इस देश में भाई-भतीजावाद किस कदर हावी है और किस तरह लोग अपनी प्रतिष्‍ठा व मान-मर्यादा का भी ख्‍याल रखे बिना अपनों के लिए सिफारिशें करते हैं, इसका ताजा उदाहरण है इस वर्ष पद्म पुरस्कारों के लिए की गई सिफारिशों की सूची। गृह मंत्रालय की ओर से एक आरटीआई आवेदन के जवाब में सार्वजनिक की गई 1300 नामों की सिफारिशें करने वाली सूची के अनुसार कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा, केन्‍द्रीय मंत्री राजीव शुक्ला, सांसद टी. सुब्बरामी रेड्डी, शास्त्रीय गायक पंडित जसराज आदि ने इस पुरस्कार के लिए कई-कई नामों की सिफारिशें की थीं।
भारत रत्न से सम्मानित पार्श्व गायिका लता मंगेशकर ने पद्म पुरस्कारों के लिए जिन नामों की सिफारिश की थी उनमें उनकी बहन ऊषा मंगेशकर, पार्श्व गायक सुरेश वाडेकर और सामाजिक कार्यकर्ता राजमल पारख का नाम था। पद्म विभूषण से सम्मानित सरोद वादक उस्ताद अमजद अली ने छह नामों की सिफारिश की थी जिनमें उनके बेटों अमान और अयान के साथ हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक कौशिकी चक्रवर्ती, तबला वादक विजय घाटे, कला प्रोत्साहक सूर्य कृष्णमूर्ति उर्फ नटराज कृष्णमूर्ति और सितार वादक निलाद्री कुमार के नाम सम्मलित थे। पूर्व सपा नेता अमर सिंह ने लोकसभा सदस्य जयाप्रदा को यह पुरस्कार देने की सिफारिश की थी।
हालांकि, इस साल घोषित पद्म पुरस्कारों की सूची में ऊषा मंगेशकर, अमान या अयान जगह नहीं बना पाए। विख्यात शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने पद्म पुरस्कारों के लिए नौ नाम, राजीव शुक्ला ने पांच, मोतीलाल वोरा ने आठ, गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने रंगमंच से जुडे दो लोगों, विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने दो और कांग्रेस सांसद विजय दरडा ने तीन नामों की सिफारिश की थी।
-एजेंसी
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