रविवार, 15 दिसंबर 2013

जूते गांठकर जीवन यापन कर रहा है पूर्व विधायक का बेटा

बिलासपुर। 
कहते हैं कि राजनीति में आने वाले लोगों के पीछे लक्ष्मी खुद-ब-खुद चली आती हैं, लेकिन 1957 में हिमाचल प्रदेश असेंबली में विधायक रह चुके सरदारू राम को ऐसा नहीं लगता है. सरदारू राम ने अपना जीवन सादगी से जिया. मोची बनकर काम करते हुए उनका निधन हो गया था. उनके निधन के बाद उनके बेटे मीनू राम भी मोची के तौर पर काम करते हैं और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं.
मीनू राम ने बताया, 'अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए मैं करीब 50 सालों से जूते सी रहा हूं. यही एकमात्र विरासत मेरे विधायत पिता छोड़कर गए हैं. हमारे लिए सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं है न ही कोई पेंशन मिलती है.'
65 साल के मीनू राम ने बताया कि शिमला से करीब 135 किमी की दूरी पर बिलासपुर की भगेड़ चौक पर वो बैठते हैं और रोज करीब कुछ सौ रुपये कमा लेते हैं. सरदारू राम ने 1957 में विधायक के तौर पर शपथ ली थी लेकिन 1962 में अपनी सीट से हारने के बाद उन्हें वापस मोची बनना पड़ा था.
मीनू राम के दो बेटे और दो भाई हैं. चारों मजदूरी करते हैं. ये परिवार कच्चे मकान में रहता है जिसे सरदारू राम ने बनवाया था. 1957 में झंडूटा चुनाव-क्षेत्र से जीतकर सरदारू राम स्टेट असेंबली में पहुंचे थे. लेकिन 1962 में हारने के बाद उनके पास अपने पुराने काम पर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.
सरदारू राम की मृत्यु 1972 में हुई और विधायक के परिवार को मिलने वाली पेंशन के अभाव में उन्हें अपने बेटे को अपना काम सौंप कर जाना पड़ा. आज हिमाचल प्रदेश के 68 विधायकों में से 44 करोड़पति हैं जबकि बाकी भी पैसों में खेल रहे हैं. ब्रिज बिहारी लाल बुतैल राज्य के सबसे अमीर विधायक हैं जिनके पास करीब 169 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी है.
-एजेंसी

गुजरात दंगों में PMO से हुए पत्राचार का नहीं होगा खुलासा

नई दिल्ली। 
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने 2002 में हुए गुजरात दंगों के 11 साल बाद भी उस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुए पत्र व्यवहार का खुलासा करने से इंकार कर दिया है. पीएमओ ने एक आरटीआई आवेदन का जवाब देते हुए पारदर्शिता संबंधी खंड 8-1(एच) का हवाला दिया जो उस सूचना को देने से छूट देता है जिससे अपराधियों के खिलाफ जांच या संदेह या अभियोग की प्रक्रिया बाधित हो.
इस जवाब ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या मोदी और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी के बीच हुए पत्र व्यवहार में दंगाइयों या सामूहिक हत्या के जिम्मेदार लोगों के बारे में कोई जानकारी है.
आरटीआई आवेदन में पीएमओ और गुजरात सरकार के बीच 27 फरवरी 2002 से 30 अप्रैल 2002 तक राज्य की कानून-व्यवस्था को लेकर हुए सभी पत्र व्यवहार की प्रतियों की मांग की गई थी.
आवेदन में वाजपेयी और मोदी के बीच उस दौरान हुए पत्र व्यवहार की भी प्रतियां मांगी गई थीं, जब राज्य में माहौल तनावपूर्ण था.
देश के शीर्ष कार्यालय ने सूचना देने से इंकार करते हुए इसके पीछे के कारण के बारे में जानकारी नहीं दी जबकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि इस खंड के तहत सूचना देने से इंकार करने का अकाट्य कारण बताया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति रवींद्र भट्ट ने कहा था कि यह साफ है कि जांच प्रक्रिया की मौजूदगी मात्र को सूचना देने से इंकार करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है. सूचना रखने वाले प्राधिकरण को संतोषजनक कारण बताना चाहिए कि जानकारी को उजागर करने से जांच प्रक्रिया कैसे बाधित होगी.
-एजेंसी
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