मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

भारत में यूएस डिप्‍लोमेट्स के 'गे' पार्टनर को अरेस्‍ट करें

नई दिल्ली। 
अमेरिका में भारतीय राजनयिक देवयानी के साथ हुई बदसलूकी के विरोध में भारत का रुख कड़ा हो गया है। वहीं मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी भी इस मामले में पूरी तरह से सरकार के साथ है। बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि भारत सरकार को भारत में रह रहे अमेरिकी राजनयिकों के समलैंगिक साथियों को गिरफ्तार कर लेना चाहिए क्योंकि ये डिप्लोमेटिक कोड ऑफ कंडक्ट का साफ उल्लंघन है।
सिन्हा ने कहा कि दुनिया का कोई भी मित्र देश राजनयिकों के साथ इस तरह का सुलूक नहीं करता जैसा अमेरिका ने न्यूयॉर्क में भारत के काउंसलेट जनरल की हेड के साथ किया। अमेरिकी प्रशासन की इस कार्यवाही की निंदा करने के लिए शब्द पर्याप्त नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में धारा 377 को सही ठहराया है जिसके तहत भारत में समलैंगिक यौन संबंध अपराध करार दिए गए हैं। सिन्हा ने कहा कि भारत में रह रहे अमेरिकी राजनयिकों को भी किसी तरह की छूट नहीं दी जानी चाहिए और उन पर भी यहां का कानून लागू होना चाहिए।
सिन्हा ने कहा कि मुझे पता चला है कि भारत में रह रहे कई अमेरिकी राजनयिकों के समलैंगिक पार्टनर हैं, जिन्हें वीजा मिला हुआ है और जो यहीं रह रहे हैं। भारत सरकार को धारा 377 के तहत उनके वीजा रद्द कर देने चाहिए और उनके समलैंगिक साथियों को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर देना चाहिए क्योंकि वे भारत के कानून का उल्लंघन कर रह हैं।
-एजेंसी

नौकरशाहों के खिलाफ अभियोजन में मंजूरी जरूरी नहीं

नई दिल्‍ली। 
सीबीआई को अदालती निगरानी वाले भ्रष्टाचार के बावत वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ अभियोजन में केन्द्र सरकार की मंजूरी की कोई जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि इसने एजेंसी को मजबूत किया है जिससे वह सरकार से पूर्व मंजूरी लिए बिना अधिकारियों के खिलाफ जांच कर सकती है.
न्यायमूर्ति आर. एम. लोधा की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने केन्द्र की मंजूरी के इंतजार के बगैर कोलगेट में कथित रूप से संलिप्त नौकरशाहों के खिलाफ अभियोजन के लिए सीबीआई का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.
खंडपीठ ने कहा, ‘जब कोई मामला भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत अदालत की निगरानी में हो तो दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन (डीएसपीई) कानून की धारा 6ए के तहत मंजूरी आवश्यक नहीं है.’
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के सभी मामलों में वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ जांच के लिए आवश्यक मंजूरी के केंद्र के रख पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इस प्रकार का वैधानिक प्रावधान कोलगेट जैसे मामलों मे अदालती निगरानी वाली जांच में न्यायिक शक्ति को कम करेगा.
उसने केंद्र के इस दावे को दरकिनार कर दिया था कि डीएसपीई कानून की धारा 6ए के तहत संयुक्त सचिव स्तर के दर्जे या उससे ऊपर के दर्जे के अधिकारियों के खिलाफ जांच करने के लिए सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी की आवश्यकता होती है.
-एजेंसी
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