बुधवार, 25 दिसंबर 2013

..तो मिलकर मलाई खा रहा है पूरा सिंधिया परिवार

ग्‍वालियर। 
इसे क्या कहा जाए कि एक महल, तीन मंत्री। खट्टा, मीठा और नमकीन। यह तीनों के स्वभाव हैं और तीनों की राजनीति का तरीका भी। एक तल्ख राजनीति करता है तो दूसरा मीठा बनकर फायदा उठाता है। जबकि तीसरे की अपनी विरासत है और वह नमकीन होकर भी लोगों की पसंद में शुमार है।
यह कहानी है, सिंधिया परिवार की और उनके महल की। जहां अलग विचारधारा और सोच के लोग मिलते हैं, लेकिन अंदरखाने सबकी सोच और विचाारधारा एक ही है। हर कोई अपनी अलग विरासत संभालने का दावा करता है। सबके उसूल हैं, लेकिन हर उसूल के पीछे मंशा एक ही है। सत्ता में काबिज रहना और रसूखदार बनकर राजनीति करते रहना।
ग्वालियर का महल, सिंधिया खानदान का ठिकाना है। कहने को यह महल एक है, लेकिन विजयराजे सिंधिया और माधवराव सिंधिया के जमाने से ही महल के कई दरवाजे हो गए थे। माधवराव सिंधिया के हिस्से में जयविलास पैलेस आया था तो विजयाराजे सिंधिया रानी महल में रहती थीं, दोनों के दरवाजे भी अलग थे। इतने अलग कि कभी एक दूसरे का सामना करने की भी नौबत न आए। अब इन्हीं दरवाजों से नए दौर की राजनीति निकल रही है।
जयविलास पैलेस के हिस्से की राजनीति खुद माधवराव के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संभाल ली है। तो वहीं विजयाराजे सिंधिया के हिस्से की राजनीति संभालने का दावा यशोधरा और वसुंधरा करती हैं। वसुंधरा, राजस्थान की राजनीति में हैं। ऐसे में उनका महल और प्रदेश की राजनीति में ज्यादा दखल नहीं है। लेकिन कभी भी वह महल आती हैं तो वह रानी महल के दरवाजों से प्रवेश पाती हैं। अब विरासत की अपनी लड़ाई है।
कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी राजनीति कर रहे हैं और केंद्र में मंत्री हैं। तो वहीं भाजपा में एक बहस है, विरासत की। भाजपा किसी एक चेहरे को विजयाराजे सिंधिया का प्रतिनिधि मानने को तैयार नहीं है। तभी तो विजयाराजे के भाई ध्यानेंद्र सिंह और भाभी माया सिंह भी महल कोटे से लगातार राजनीति कर रहे हैं। अभी भी यशोधरा कैबिनेट में मंत्री बनीं तो दूसरे गुट ने तुरंत माया सिंह का नाम कैबिनेट मंत्री के तौर पर आगे कर दिया। माया को मंत्रालय भी मिल गया और रूतबा भी। ऊपर से ग्वालियर में खड़े होकर राजनीति करने का मौका भी।
घुटने हमेशा पेट में ही आते हैं
एक कहावत है कि घुटने हमेशा पेट की तरफ ही झुकते हैं। मतलब, बाहर से कितने भी अलग दिखने वाले एक परिवार के लोग हमेशा अंदर से एक ही होते हैं। महल में भले ही भाजपा और कांग्रेस दो पार्टियां हों, लेकिन अंदरखाने सब एक हैं। यही वजह है कि सिंधिया परिवार में कोई भी एक दूसरे के खिलाफ न तो प्रचार करता है और ही बात करता है। भले ही कितनी बातें इनके विवाद की कहीं और सुनी जाएं, लेकिन कभी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया, यशोधरा, वसुंधरा और माया सिंह ने एक दूसरे के बारे में कुछ नहीं बोला है।
-एजेंसी

कांग्रेस का इतिहास और आम आदमी पार्टी की सरकार....

नई दिल्ली। 
दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से आम आदमी पार्टी सरकार बनाने जा रही है। छह महीने तक कांग्रेस सरकार नहीं गिरा पायेगी परंतु उसके बाद क्या होगा यह तो भविष्य के गर्त में छिपा है लेकिन कांग्रेस के इतिहास पर नजर डालें तो साफ होता है कि आम आदमी पार्टी की सरकार भी शायद ही ज्यादा दिनों तक चल पाए।
देशभर में कांग्रेस के समर्थन से कुल नौ सरकारें (राज्यों और केन्द्र) बनीं। इनमें से ज्यादातर सरकारें एक साल के भीतर ही गिर गईं।
सिर्फ एक महीने तक पीएम रहे चरण सिंह
कांग्रेस का सबसे पहला शिकार बने थे चौधरी चरण सिंह। चरण सिंह सिर्फ एक महीने तक ही प्रधानमंत्री पद पर रहे। उनका कार्यकाल जुलाई 1979 से जनवरी 1980 तक रहा। उन्होंने पांच महीने तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।
4 महीने में गिर गई चंद्रशेखर की सरकार
कांग्रेस का दूसरा शिकार बने थे चंद्रशेखर। चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। 10 नवंबर 1990 को चंद्रशेखर देश के आठवें प्रधानमंत्री बने। मार्च 1991 को कांग्रेस ने चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस ले लिया। चंद्रशेखर चार महीने ही प्रधानमंत्री पद पर रह पाए। उन्होंने भी तीन महीने तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।
10 महीने तक पीएम रहे देवेगौड़ा
चंद्रशेखर के बाद कांग्रेस का तीसरा शिकार हुए एच. डी. देवगौड़ा। वे सिर्फ 10 महीने तक ही प्रधानमंत्री पद पर रह पाए। देवेगौड़ा जून 1996 में प्रधानमंत्री बने। अप्रेल 1997 में कांग्रेस ने उनके नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार से समर्थन वापस ले लिया। उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी हुआ करते थे।
सात माह तक चली गुजराल की सरकार
देवेगौड़ा के बाद आईके गुजराल देश के प्रधानमंत्री बने। गुजराल अप्रैल 1997 से मार्च 1998 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। कांग्रेस ने उनके नेतृत्व वाली सरकार से भी समर्थन वापस ले लिया। गुजराल कुल सात महीने तक ही पीएम पद पर रहे। उन्होंने चार महीने तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।
मुलायम, सोरेन, कोड़ा को भी गिराया
मुलायम सिंह, शिबू सोरेन और मधु कोड़ा ने कांग्रेस के समर्थन से अपने अपने प्रदेश में सरकारें बनाईं लेकिन तीनों ज्यादा वक्त तक मुख्यमंत्री पद पर नहीं रह पाए। मुलायम सिंह पहली बार सिर्फ 15 माह तक मुख्यमंत्री पद पर रहे। उनका कार्यकाल दिसंबर 1989 से जून 1991 तक रहा। मुलायम ने 3 महीने तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। इसके बाद मुलायम सिंह फिर मुख्यमंत्री बने। इस बार वे 18 महीने तक सीएम पद पर रहे। उनका कार्यकाल दिसंबर 1993 से जून 1995 तक रहा। इसी तरह शिबू सोरेन पहली बार सिर्फ 10 दिन तक और दूसरी बार पांच महीने तक झारखण्ड के मुख्यमंत्री पद पर बने रहे। मधु कोड़ा 23 माह तक झारखण्ड के मुख्यमंत्री रहे। वे सितंबर 2006 में मुख्यमंत्री बने और अगस्त 2008 तक इस पद पर रहे।
-एजेंसी
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