सोमवार, 27 जनवरी 2014

...तो भाई द्वारा बहन को दिया गया तोहफा है विवादित जमीन

नई दिल्‍ली। 
कांग्रेस उपाध्यक्ष और अगला पीएम बनने की रेस में शामिल राहुल गांधी ने हरियाणा में अपनी वह जमीन बहन प्रियंका गांधी को तोहफे में दे दी थी, जो उनके जीजा रॉबर्ट वॉड्रा के प्लॉट के ठीक बराबर में है। यह मामला करीब छह साल पुराना है। राहुल ने हरियाणा में पलवल जिले के हसनपुर गांव में 3 मार्च 2008 को छह एकड़ जमीन खरीदी थी, जिसके लिए 26.47 लाख रुपए अदा किए गए।
इसी दिन रॉबर्ट वॉड्रा ने हसनपुर में खेती की जमीन खरीदी थी। यह करीब नौ एकड़ थी और इसके लिए उन्होंने 36.90 लाख रुपए चुकाए। 2012 में राहुल ने यह प्रियंका को तोहफे में दे दी।
तोहफे की इस बात का खुलासा ऐसे वक्‍त हुआ है, जब इसी साल हरियाणा में खरीदी गई वॉड्रा की प्रॉपर्टी विवादों में घिर गई थी। यह विवाद रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनी डीएलएफ के साथ एक डील को लेकर खड़ा हुआ था।
राहुल गांधी ने 26 जुलाई 2012 को यह जमीन अपनी बहन को तोहफे में दी थी और तीन महीने बाद अक्टूबर में हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने वॉड्रा के कुछ अन्य प्लॉट का म्यूटेशन रद्द कर दिया।
हुड्डा की अगुवाई वाली हरियाणा की कांग्रेस सरकार ने वॉड्रा और डीएलएफ के बीच हुई डील को 'निजी ट्रांजेक्‍शन' करार दिया था।
यह दिलचस्प है कि हसनपुर की जमीन के लिए एक ही पावर ऑफ अटॉर्नी धारक महेश सिंह नागर के जरिए राहुल गांधी और रॉबर्ट वॉड्रा के लिए दो अलग-अलग सेल डीड तैयार की गई थीं।
12 अगस्‍त 2012 में लोकसभा सचिवालय को सौंपे एक दस्तावेज में राहुल गांधी ने कहा, "मैंने 51 कनाल की खेती की जमीन अपनी बहन ‌प्रियंका गांधी वॉड्रा को दी और इसके लिए पैसे का कोई लेन-देन नहीं हुआ।"
इसमें आगे लिखा है, "क्योंकि यह भाई की तरफ से एक बहन को दिया गया तोहफा है इसलिए कृषि जमीन के ट्रांसफर को लेकर किसी तरह की रकम पर कोई गौर नहीं किया गया।"
सचिवालय में 2013 में दिए गए एक और डिक्‍लेरेशन के मुताबिक राहुल ने गुड़गांव की सिग्नेचर टावर्स-2 में दो कमर्शियल प्रॉपर्टी खरीदीं। अक्टूबर 2010 में 1.44 करोड़ रुपए और 5.36 करोड़ रुपए में इनकी बुकिंग की गई थी।
उन्होंने कुल अब तक दो किस्त जमा कराई हैं। हालांकि, इसमें प्रॉपर्टी का साइज नहीं बताया है। राहुल ने गुड़गांव की प्रॉपर्टी खरीदने से पहले दिल्ली के साकेत स्थित मेट्रोपोलेटिन मॉल अपनी दो दुकान 5.28 करोड़ रुपए में बेच दी। उन्होंने 2006 में ये दुकान खरीदी थीं।
राहुल लोकसभा के उन 20 सांसदों में शामिल हैं, जिन्होंने 15वीं लोकसभा के दौरान इस तरह का हलफनामा देने के बाद अपनी संपत्ति और देनदारी को अपडेट किया। पहले शपथपत्र में उन्होंने हसनपुर की जमीन की जानकारी दी थी।
-एजेंसी

शिकागो की महर्षि यूनिवर्सिटी से 163 वैदिक पंडित लापता

शिकागो। 
उत्तर भारत के गांवों से वैदिक पंडित के रूप में प्रशिक्षित किए जाने के लिए लाए गए कम से कम 163 किशोर अमेरिका में पिछले एक वर्ष से लापता हैं। इन किशोरों को महर्षि महेश योगी द्वारा स्थापित दो संस्थानों द्वारा प्रशिक्षित किया जाना था। शिकागो से प्रकाशित होने वाली साप्ताहिक पत्रिका "हाइ इंडिया" के ताजा अंक में प्रकाशित एक रपट के मुताबिक, 1,050 भारतीय किशोरों को आयोवा के फायरफील्ड स्थित महर्षि वैदिक सिटी और महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट लाया गया था, जिनमें से करीब 163 का पिछले एक वर्ष से अता-पता नहीं है। लापता किशोरों में कुछ की उम्र मात्र 19 वर्ष है।
वैदिक सिटी और यूनिवर्सिटी, दोनों संस्थानों को महर्षि महेश योगी के परिवार के लोग चलाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इन संस्थाओं का प्रबंधन करने वालों ने लापता लोगों की तलाश करने की भी जहमत नहीं उठाई है।
यहां तक कि भारतीय मूल के आध्यात्मिक गुरू द्वारा स्थापित अनगिनत शिक्षण केंद्रों में से एक ग्लोबल काउंट्री ऑफ वर्ल्‍ड पीस (जीसीडब्ल्यूपी) को भी "विश्व शांति पेशेवर" कहे जाने वाले इन वैदिक अध्येताओं की दुर्दशा या लापता होने के बारे में कुछ भी नहीं पता है। शिक्षण केंद्र के अधिकारियों ने बताया, ""या तो आव्रजन उद्देश्य के लिए या फिर अपने अमरीकी सपनों को पूरा करने के लिए वे यहां से निकल भागे।""
-एजेंसी

रविवार, 26 जनवरी 2014

उत्‍सव किसका... 'गण' का... या 'तंत्र' का ?

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
अगर सन्, संवत्, तारीख और कलेण्‍डर की बात करें तो देश आज अपना 65 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। पर यदि बात करें उपलब्‍धियों की तो साढ़े छ: दशक का कालखण्‍ड बहुत से सवाल खड़े करता है। संभवत: यही वजह है कि आज के दिन भी जब कोई कुछ लिखने या याद करने बैठता है तो उसके हिस्‍से में उपलब्‍धियां इतनी कम आती हैं कि वह न चाहते हुए उदासी का अहसास कराए बिना नहीं रह पाता। वह खुद को गौरवान्‍वित महसूस करना चाहता है और देशवासियों को आशावान रहने का संदेश देना चाहता है परंतु ऐसा भी नहीं कर पाता।
शायद इसीलिए आज के अखबारों में गणतंत्र को लेकर जितने भी लेख समाज के विभिन्‍न वर्गों से आए बुद्धिजीवियों ने लिखे हैं, उनमें गणतंत्र दिवस की खुशी कम और एक किस्‍म की टीस अधिक महसूस होती है।
कहने को एक विशेष वर्ग इसे बुद्धिजीवियों की नकारात्‍मक सोच या उपलब्‍धियों को कम आंकने की प्रवृत्‍ति कहकर खारिज कर सकता है परंतु ऐसा है नहीं।
यूं भी 'शिखर' किसी का हो, वहां से धरातल की सच्‍चाई का अंदाज लगा पाना कठिन होता है और यही दिक्‍कत है हमारे शासक वर्ग की। वह बाढ़ की विभीषिका को भी हेलीकॉप्‍टर में बैठकर देखता है। वह नुकसान का आंकलन आंकड़ों से करता है, न कि नुकसान उठाने वालों के बोझ से।
सत्‍ता के शीर्ष पर किसी न किसी रूप में जमे रहकर जब उपलब्‍धियों को आंका जाता है तो उसमें कहीं न कहीं सत्‍ता का सुख खु़द-ब-खु़द समाहित होता है जबकि ज़मीनी हकीकत उससे कहीं बहुत अधिक तल्‍ख़ होती है।
कड़वा सच यह है कि सारा देश जैसे आधा गिलास भरा और आधा गिलास खाली के तर्क-वितर्क में उलझा है। ईमानदारी से कोई यह कहने को तैयार नहीं कि बेशक आधा गिलास भरा है पर आधा गिलास खाली भी है और खाली गिलास को भरने की जरूरत इसलिए है क्‍योंकि 65 सालों में इसे भर जाना चाहिए था, क्‍योंकि हमारी जरूरत है उसका जल्‍द से जल्‍द भरा जाना।
जब हम बात करते हैं भ्रष्‍टाचार, दुराचार, अनाचार, गरीबी, भुखमरी, अव्‍यवस्‍थाओं एवं कुव्‍यवस्‍थाओं की तो तुलनात्‍मक अध्‍ययन करने लगते हैं दूसरे मुल्‍कों का, उदाहरण देने लगते हैं वहां व्‍याप्‍त समस्‍याओं का लेकिन जब बात आती है तरक्‍की की तो हम अपनी परेशानियों का रोना लेकर बैठ जाते हैं। तब हम तुलनात्‍मक अध्‍ययन करते हैं विपक्षी पार्टियों के कार्यकाल से, उदाहरण देने लगते हैं उनकी ख़ामियों का और यह साबित करने का प्रयास करते हैं कि किस तरह हम अपने प्रतिद्वंदी से हर मायने में श्रेष्‍ठ हैं। प्रतिस्‍पर्धा तो हो रही है लेकिन अच्‍छाई के लिए नहीं, बुराई के लिए।
कौन नहीं जानता कि गणतंत्र दिवस और स्‍वतंत्रता दिवस एक रस्‍म अदायगी बनकर रह गए हैं। इनके आयोजनों में वह खुशी नहीं है जो होनी चाहिए। मन से शायद ही कोई अब इन राष्‍ट्रीय पर्वों को मनाता हो क्‍योंकि गण से तंत्र इतनी दूर हो गया जितना आसमान दूर है ज़मीन से।
2013 में गण ने तंत्र को झकझोरा जरूर और उसी के परिणामस्‍वरूप पांच राज्‍यों के चुनाव परिणामों ने एक कंकड़ उछालकर सत्‍ता की राजनीति में ख़लल डाल दिया लेकिन इतना काफी नहीं है।
काफी होता तो शह और मात के लिए षड्यंत्रों का खेल पूरी शिद्दत से न खेला जाता। 65 सालों की तुलना एक महीने से भी कम समय के शासन से नहीं की जाती। 'सबक सीखने' को 'एंज्‍वाय' नहीं किया जाता।
इस सबके बावजूद गण के पास तंत्र के अधीन रहने के सिवा चारा क्‍या है। तंत्र की खुशी में खुश होने के अतिरिक्‍त वह कर क्‍या सकता है। 2014 के लोकसभा चुनाव सामने हैं। यह भी एक उत्‍सव है। देखना यह है कि इस बार का यह उत्‍सव आने वाले राष्‍ट्रीय पर्वों को एक गिनती बनाए रखता है या फिर सही मायनों में गौरवान्‍वित करने का, खुशी मनाने का अवसर प्रदान करता है। जय हिंद! जय भारत!

बुधवार, 22 जनवरी 2014

अफसोस..... मुलायम हैं कि मानते ही नहीं

डॉ. राममनोहर लोहिया के समाजवाद की परिभाषा को परिवारवाद में समाहित कर देने वाले समाजवादी पार्टी के मुखिया मास्‍टर मुलायम सिंह यादव, अब उसे व्‍यक्‍तिवाद तक सीमित करने में लगे हैं। कभी साइकिल से सैफई की गलियों को नापने वाले मुलायम अब अपनी महत्‍वाकांक्षा पूरी करने पर इस कदर आमादा हैं कि उन्‍हें दिन-रात पीएम की कुर्सी के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा। वह जहां जाते हैं, वहीं कहने लगते हैं कि बेटे को तो सीएम बना दिया अब बाप को क्‍या बनाओगे। ऐसा लगता है जैसे मुलायम ने केवल मांगने की आदत डाल ली है और देना पूरी तरह भूल चुके हैं।
कांग्रेस को सहारा देते-देते कांग्रेसी कल्‍चर का रंग उनके ऊपर इस कदर चढ़ा है कि आज वह कांग्रेसियों की ही भाषा बोलते हैं। वही क्‍यों, उनके पुत्र और उत्‍तर प्रदेश जैसे विशाल सूबे के मुखिया अखिलेश भी अब कांग्रेसी जुबान बोलने से परहेज नहीं करते। वह कांग्रेसी रहनुमाओं की तरह प्रदेश की जनता को यह बताने लगे हैं कि उन्‍होंने दिया क्‍या-क्‍या है, यह नहीं गिनाते कि लिया कितना है।
बेशक, सीबीआई के भय से मुक्‍ति की चाहत ने मुलायम के समाजवाद को सांप्रदायिकता की आड़ में कांग्रेस की ढपली बजाने पर मजबूर किया हो परंतु जनता हर समझौते का हिसाब मांगती है।
यही कारण है कि आज कांग्रेस के साथ खड़े होकर पैदा किया गया सांप्रदायिकता के भय का भूत भी काम नहीं आ रहा। अल्‍पसंख्‍यक समुदाय को सारा खेल समझ में आ चुका है। उसे मुलायम के समाजवाद की परिभाषा भी समझ में आ गई है और उसकी सांप्रदायिकता का मतलब भी।
खुद को ठगा हुआ महसूस करने वाला अल्‍पसंख्‍यक समुदाय अब मौकापरस्‍ती के मायने समझाने को 2014 के चुनावों की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है।
कहते हैं कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती लेकिन जो भरे सावन में अंधा हुआ हो, उसका इलाज भी किया जाए तो क्‍या। उसे तो चारों ओर वोटों की लहलहाती फसल ही दिखाई देगी।
उत्‍तर प्रदेश अपने अब तक के सर्वाधिक बुरे दौर से गुजर रहा है। कानून-व्‍यवस्‍था ही नहीं, सब-कुछ बदहाल है। लगता है जैसे सरकार नाम की कोई चीज है ही नहीं और समाजवादी पार्टी, कोई पार्टी न होकर एक ऐसे परिवार का नाम है जो यूपी को अपनी निजी जागीर तथा जनता को अपना गुलाम समझ बैठा है।
यह तो तय है कि 2014 का लोकसभा चुनाव राजनीति की कोई नई इबारत लिखेगा और राजनीतिज्ञों को नया सबक सिखायेगा लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई आमूल-चूल परिवर्तन होने जा रहा है।
भाजपा अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह ने सही कहा है कि जनता अब सत्‍ता नहीं, व्‍यवस्‍था परिवर्तन चाहती है। यदि राजनाथ सिंह या भाजपा ने इसे एक राजनीतिक जुमले की तरह नहीं उछाला है और वाकई उन्‍हें जनआकांक्षा व जनभावना समझ में आ चुकी है तब तो ठीक, अन्‍यथा भाजपा के हाथ सत्‍ता भले ही आ जाए लेकिन जनाधार हासिल नहीं होगा।
फिर वही होगा, जिसका डर आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सता रहा है। जिस तरह मनमोहन को डर है कि इतिहास उनके प्रति बेरहम न हो जाए, उसी तरह भाजपा के भी इतिहास बन जाने का ही भय पैदा हो जायेगा।
रही बात मुलायम की महत्‍वाकांक्षा और उनके सपनों में समा चुकी पीएम पद की कुर्सी की, तो उसका अहसास उन्‍हें तुरंत हो जायेगा बशर्ते वह परिवार से बाहर झांककर देख लें।
अपने समाजवाद को उन्‍होंने इतना ओछा कर दिया है कि यूपी में सत्‍ता का आधा कार्यकाल पूरा नहीं हुआ और वह बुरी तरह हांफने लगा है।
आश्‍चर्य की बात यह है कि कभी प्राइमरी के मास्‍टर रहे मुलायम सिंह, आज प्रदेश की प्राथमिकता को समझने के लिए तैयार नहीं हैं और देश की कमान संभालने को बेताब हैं। प्रधानमंत्री बनने की चाहत ने उन्‍हें कहीं का नहीं छोड़ा।
समय बीतता जा रहा है, दुंदुभि बजने को है परंतु सत्‍ता मद में चूर मुलायम सिंह समाजवाद को इतना सूक्ष्‍म कर चुके हैं जिसे देख पाने में संभवत: माइक्रोस्‍कोप भी मदद न कर पाए। समाजवाद का उनके द्वारा तैयार किया गया नया कलेवर और उनके द्वारा ही गढ़ी गई नई परिभाषा उनके सपनों को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा है। अफसोस...... इस सब के बाद भी मुलायम हैं कि मानते ही नहीं।   

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

ऑपरेशन ब्लूस्टार में थैचर की भूमिका पर जांच के आदेश

लंदन। 
1984 में इंदिरा गांधी की ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना में माग्रेट थैचर सरकार की भूमिका पर ब्रिटिश पीएम ने जांच के आदेश दिए हैं.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने अपने कैबिनेट सचिव को इस दावे से जुड़े तथ्य पेश करने को कहा है, जिसमें वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना में माग्रेट थैचर की सरकार द्वारा मदद करने की बात कही गई है.
लेबर सांसद टॉम वाटसन और लॉर्ड इंद्रजीत सिंह ने हाल ही में गोपनीयता की सूची से हटाए गए दस्तावेजों के आधार पर इस स्पष्टीकरण की मांग की है. इन दस्तावेजों में ऐसे संकेत मिले हैं कि ब्रिटेन की विशेष वायु सेवा (एसएएस) के अधिकारियों को स्वर्ण मंदिर पर धावा बोलकर अंदर छिपे आतंकियों को निकालने की योजना में भारत की मदद करने के लिए भेजा गया था. इस अभियान में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे.
ब्रिटिश सरकार के प्रवक्ता ने सोमवार रात जारी बयान में कहा, ‘‘इन घटनाओं से बड़ी संख्या में जानें गईं और इन दस्तावेजों के कारण पैदा होने वाली वाजिब चिंताओं को हम समझते हैं. प्रधानमंत्री ने कैबिनेट सचिव से कहा है कि वह इस मामले को तत्काल देखें और तथ्य पेश करें.’’
प्रवक्ता ने आगे कहा, ‘‘प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री को प्रकाशन से पहले इन दस्तावेजों के बारे में पता नहीं था. विदेशी सरकारों की ओर से सलाह के किसी भी अनुरोध का आंकलन सावधानीपूर्वक मंत्रियों की निगरानी और उचित कानूनी सलाह से किया जाता है.’’
जिन दस्तावेजों की यहां बात की जा रही है, उन्हें लंदन स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार ने 30 साल के गैर-गोपनीयता नियम के तहत नए साल पर एक श्रृंखला के रूप में जारी किया था.
अमृतसर में हुई इस घटना से करीब चार माह पहले यानी 23 फरवरी 1984 की तारीख वाले एक पत्र पर लिखा था, ‘अति गोपनीय और निजी’. इस दस्तावेज के अंदर लिखा था, ‘‘भारतीय प्रशासन ने हाल ही में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से सिख चरमपंथियों को निकालने की योजना पर ब्रिटेन से सलाह मांगी है.’’
‘‘विदेश मंत्री ने भारत के इस अनुरोध पर सकारात्मक प्रतिक्रिया करने का फैसला किया. प्रधानमंत्री के समझौते के अनुसार एसएएस के एक अधिकारी ने भारत की यात्रा की और एक योजना का खाका तैयार किया जिसे श्रीमती गांधी ने अपनी सहमति दे दी. विदेश मंत्री का मानना है कि भारत सरकार इस योजना को जल्द ही अंजाम दे सकती है.’’
ब्रिटेन में नेटवर्क ऑफ सिख आग्रेनाइजेशंस के निदेशक लार्ड सिंह ने कहा, ‘‘ये दस्तावेज सबित करते हैं कि सिखों पर हमेशा संदेह किया गया. स्वर्ण मंदिर में धावे की योजना महीनेभर पहले बनायी गयी थी, यहां तक कि भारत सरकार सप्ताहभर पहले तक दावा करती रही कि ऐसी कोई योजना नहीं थी.’’
उन्होंने कहा, ‘‘वास्तविक तथ्यों की पुष्टि के लिए एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय जांच की जरूरत को लेकर मैं पहले ही भारतीय उच्चायोग के जरिए भारत सरकार से संपर्क कर चुका हूं. अब मैं हाउस ऑफ लार्डस में इस मुद्दे को उठाऊंगा.’’
कुछ दस्तावेजों को ‘स्टॉप डीपोर्टेशंस’ ब्लॉग पर फिर से पेश किया गया है जो ब्रिटेन की आवजन नीति पर केंद्रित हैं और अभियान पर श्रीमती गांधी को सलाह देने के लिए थैचर द्वारा एसएएस अधिकारी भेजे जाने का दावा करते हैं.
वेस्ट ब्रोमविच ईस्ट के सांसद वाटसन ने कहा, ‘‘मैंने आज (सोमवार) सुबह ही दस्तावेज देखे तथा मुझे बताया गया है कि कुछ और को दबा कर रखा गया है. यह ठीक नहीं है. इंदिरा गांधी सरकार के साथ ब्रिटिश सैन्य मिलीभगत के बारे में स्पष्टीकरण मांगा जाना अनुचित नहीं होगा.’’
उन्होंने ब्रिटेन के विदेश मंत्री विलियम हेग को पत्र लिखा है और मुद्दे को हाउस ऑफ कामंस में उठाने की उनकी योजना है.
ऑपरेशन ब्लूस्टार के पांच महीने के बाद इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी.
-एजेंसी

......और कितने भीष्‍म

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष) आज मकर संक्रांति है। इस दिन का यूं तो हिंदू धर्म में तमाम कारणों से विशेष महत्‍व है लेकिन इनमें एक बड़ा कारण यह भी है कि शरशैया पर लेटे हुए किंतु इच्‍छा मृत्‍यु का वरदान प्राप्‍त भीष्‍म पितामह ने आज ही के दिन को अपनी मृत्‍यु के लिए चुना था।
इससे पूर्व महाभारत युद्ध की समाप्‍ति के बाद सभी मृतकों को तिलांजलि देकर जब भगवान श्रीकृष्‍ण पांचों पाण्‍डवों सहित हस्‍तिनापुर लौटे तो शरशैया पर लेटे पितामह भीष्‍म ने श्रीकृष्‍ण को रोक कर उनसे पूछा-
"हे मधुसूदन, मेरे कौन से कर्मों का फल है जो मैं इस तरह शरशैया पर पड़ा हुआ हूँ?''
पितामह के प्रश्‍न पर मुस्‍कुराते हुए श्रीकृष्‍ण ने एक प्रतिप्रश्‍न किया। कृष्‍ण ने पितामह से जानना चाहा कि आपको अपने पूर्व जन्‍मों का कुछ स्‍मरण है?
इस पर पितामह का जवाब था- हे मधुसूदन! मुझे अपने पूरे सौ पूर्व जन्‍मों का स्‍मरण है, साथ ही यह भी याद है कि मैंने इन जन्‍मों में कभी किसी व्‍यक्‍ति का अहित नहीं किया।
श्रीकृष्‍ण फिर मुस्‍कुराये और बोले- लेकिन इन सौ वर्षों से ठीक पहले वाले जन्‍म में जब आप एक राज्‍य के युवराज थे, आपने शिकार खेलते हुए अपने घोड़े की पीठ पर आ गिरे गिरगिट को वाण की नोंक द्वारा उठाकर फेंक दिया था। वह गिरगिट एक बेरिया के पेड़ पर जा गिरा और बेरिया के कांटे उसके शरीर में धंस गए। उस स्‍थिति में वह गिरगिट पूरे 18 दिन जीवित रहा और ईश्‍वर से प्रार्थना करता रहा कि जिस तरह मैं तड़प-तड़प कर मृत्‍यु को प्राप्‍त हो रहा हूं, ठीक इसी तरह की मृत्‍यु को यह युवराज भी प्राप्‍त हो।
श्रीकृष्‍ण ने पितामह को बताया कि गिरगिट का यह श्राप आपके पुण्‍यकर्मों की वजह से कभी फलीभूत नहीं हुआ, लेकिन जब सक्षम होते हुए भी हस्‍तिनापुर की राजसभा में आप द्रोपदी का चीरहरण होते देखते रहे, दुर्योधन व दु:शासन को रोकने की जगह आप मूकदर्शक बने रहे तो आपके समस्‍त पुण्‍यकर्म क्षीण हो गए और उसी क्षण से गिरगिट का श्राप आपके ऊपर फलीभूत होने लगा।
पितामह, प्रत्‍येक मनुष्‍य को अपने कर्मों का फल कभी न कभी अवश्‍य भोगना पड़ता है। प्रकृति सर्वोपरि है, इसका न्याय सर्वोपरि और प्रिय है। इसलिए पृथ्वी पर निवास करने वाले प्रत्येक प्राणी व जीव जन्तु तक को अपने कर्मों के अनुसार उसका फल भोगना अवश्‍यम्‍भावी है।
महाभारत के युद्ध से उपजी इस कथा को अनेक लोग जानते होंगे लेकिन आज मकर संक्राति के दिन इसे उल्‍लिखित करने का उद्देश्‍य राजनीति के वर्तमान दौर से इसे जोड़ने तथा राजनीतिज्ञों को एक संदेश के रूप में स्‍मरण कराना है।
2014 के लोकसभा चुनावों से आमजन को बहुत उम्‍मीदें हैं। लोगों को लगता है कि संभवत: इन चुनावों के उपरांत एक लंबे समय से चले आ रहे राजनीति के संक्रमण काल को विराम मिलेगा और देश विकासशीलता के स्‍थाई दौर से बाहर निकलकर विकास के मार्ग पर चलेगा।
बहरहाल, भविष्‍य का तो कुछ पता नहीं परंतु वर्तमान को देखकर जरूर ऐसा लगता है कि जैसे एक-दो नहीं तमाम भीष्‍म पितामह मूकदर्शक बन देश का चीरहरण होते देख रहे हैं।
आश्‍चर्य की बात यह है कि आज के इन भीष्‍म पितामहों को न तो अपने शरशैया पर पड़े होने का भान है और ना अपने इसी जन्‍म के कर्मों का। ज़ाहिर है कि ऐसे में उनसे उनके पूर्व जन्‍मों के कर्मों का हिसाब रखने की कोई अपेक्षा करना तो पूरी तरह बेमानी है।
आश्‍चर्य की बात यह भी है कि जाति, धर्म एवं संप्रदाय के नाम पर राजनीति करने वाले, महाभारत जैसे धर्मयुद्ध की इस कथा से कोई सबक लेते मालूम नहीं पड़ते जबकि उन्‍होंने किसी एक गिरगिट को जाने-अनजाने में नहीं, जानबूझकर पूरे देश की आम जनता को बेरिया के कांटों पर ला पटका है। वह अभिशप्‍त है तिल-तिलकर मरने के लिए लेकिन उसकी आह तक सुनाई नहीं दे रही।
ऐसा लगता है कि श्रीकृष्‍ण के समय में होने वाला महाभारत भले ही अठारह अक्षौहणी सेना के मारे जाने पर समाप्‍त हो गया हो किंतु देश की स्‍वतंत्रता के लिए 1857 से शुरू हुआ महाभारत आज तक जारी है। 15 अगस्‍त 1947 को हुए युद्धविराम से जिस स्‍वतंत्रता का आभास कराया गया था, वह एक सुनियोजित छल था। उस दिन से हुआ तो सिर्फ इतना कि गोरों का स्‍थान उन काले अंग्रेजों ने ले लिया जो दिखते तो अपने जैसे हैं पर उनके क्रिया-कलाप किसी मायने में फिरंगियों से कम नहीं। उनकी सूरतें बेशक फिरंगियों से नहीं मिलतीं परंतु सीरतें हूबहू वैसी ही हैं।
संभवत: इसीलिए आज के शासकों को न तो भीष्‍मपितामह की कथा याद है और न श्रीकृष्‍ण व उनके बीच हुए संवाद। उन्‍हें याद हैं तो केवल वो तौर तरीके जिनका इस्‍तेमाल कर फिरंगियों ने सैकड़ों साल इस देश को गुलाम बनाए रखा और इसकी धन संपदा लूटकर ले गये।
खैर, इन्‍हें महाभारत याद न सही......श्रीकृष्‍ण और पितामह भीष्‍म के बीच का संवाद स्‍मरण न सही....लेकिन आमजन को याद भी है और उन्‍हें उस पर पूरा भरोसा भी है।
उन्‍हें श्रीकृष्‍ण द्वारा पितामह भीष्‍म से कहे गए उन अंतिम शब्‍दों पर अक्षरश: यकीन है कि  प्रत्‍येक मनुष्‍य को अपने कर्मों का फल कभी न कभी अवश्‍य भोगना पड़ता है। प्रकृति सर्वोपरि है, इसका न्याय सर्वोपरि और प्रिय है।
संक्रांति का पर्व यह स्‍मरण कराने तथा आमजन की आस्‍था को अडिग बनाये रखने के लिए काफी है कि जाने-अनजाने में किये गये कर्मों का भी फल भोगना पड़ता है लिहाजा आज नहीं तो कल देश के शासकों से प्रकृति इन 66 सालों का हिसाब मांगेगी जरूर।
गिरगिट का श्राप फलीभूत होने की शुरूआत तो हो चुकी है, बस उसका अंजाम तक पहुंचना बाकी है।

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

GM (बेस्‍ट) के यहां मिलीं लाखों पोर्न सीडी

मुंबई। 
मुंबई पुलिस ने आज बृहन्‍न मुंबई इलेक्ट्रिक सप्‍लाई एंड ट्रांस्पोर्ट (बेस्ट) अंडरटेकिंग के जीएम के फ्लैट से दो लाख पोर्न सीडी बरामद की हैं। फ्लैट से अज्ञात महिला को भी गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने बताया कि फ्लैट बेस्ट के जनरल मैनेजर ओम प्रकाश गुप्ता (आईएएस) का है। फ्लैट शहर के ओशिवारा इलाके में स्थित है। पुलिस इस बात का पता लगाने में लगी है कि कहीं गुप्ता ने फ्लैट किराए पर तो नहीं दिया था।
-एजेंसी

महामहिम ने मांगी डिनर में 17 डिशेज

लखनऊ। 
लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में लंबी-चौड़ी स्पीच देने के उपरांत उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने लखनऊ के राजभवन में एक शाही फरमाइश की है। खबर है कि उपराष्ट्रपति ने 17 अलग-अलग तरह की मछली की डिशेज डिनर में परोसने की फरमाइश की है। इसके अलावा, वह नवाबी टुंडे के कबाब भी खाना चाहते हैं।
इसके लिए पूरा राजभवन महकमा लग गया है और चर्चा जोरों पर है कि लखनऊ में हामिद अंसारी की यह ट्रिप इस डिनर से हमेशा के लिए यादगार बना देनी है।
इसके पहले, आज दोपहर शाही अंदाज में उपराष्ट्रपति ने लखनऊ में एंट्री की। वो दिल्ली से लखनऊ पहुंचे। फिर, राजभवन होते हुए वह तीन बजे लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शिरकत करने के लिए पहुंच गए।
वहां मेधावी छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत करने के साथ-साथ उन्हों शिक्षा के भविष्य, इसमें संभावनाएं और नए प्रयोगों पर बात की।
उन्होंने स्टुडेंट्स के साथ अपने जीवन के कुछ खास लम्हे साझा किए और उन्हें तरक्की की राह पर चलने की सलाह दी।
-एजेंसी

जनहित की नई परिभाष गढ़ रही सपा: मंत्री से रेप केस वापस लेंगे CM

लखनऊ। 
सरकार ने अब स्टैंप एवं पंजीयन राज्य मंत्री मनोज कुमार पारस पर चल रहे रेप के मुकद्दमे को वापस लेने का फैसला किया है। न्याय विभाग के विशेष सचिव रंगनाथ पांडेय ने बिजनौर के डीएम को पत्र लिखकर कहा है कि सरकार जनहित में इस मुकद्दमे को वापस लेना चाहती है। बिजनौर कोर्ट में चल रहे इस मुकद्दमे की कार्यवाही पर हाईकोर्ट ने स्टे लगा रखा है।
न्याय विभाग के विशेष सचिव रंगनाथ पांडेय की ओर से डीएम को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि थाना नगीना, जिला बिजनौर में दर्ज इस मुकद्दमे के तथ्यों और उपलब्ध आख्या पर विचार के बाद सरकार ने जनहित व न्यायहित में वापस लेने का फैसला लिया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि राज्यपाल ने भी इस मुकद्दमे के अभियोजन को वापस लेने के लिए लोक अभियोजनक को न्यायालय में प्रार्थना पत्र पेश करने की अनुमति दे दी है।
कोर्ट में दाखिल किया प्रार्थना-पत्र
पत्र मिलने के बाद बिजनौर के सहायक लोक अभियोजक ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत कोर्ट में अर्जी दाखिल कर दी है। अर्जी में कहा गया है कि जनहित में सरकार ने केस वापस लेने का फैसला किया है। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि अदालत में मुकद्दमों का भार ज्यादा है, ऐसे में इस तरह के मामलों को न्यायहित में वापस लिया जाना चाहिए।
2006 में लगा था आरोप
नगीना के विधायक और मंत्री मनोज कुमार पारस पर आरोप लगा था कि एक दलित महिला को अपने घर बुलाकर 8 दिसंबर, 2006 को 3 सहयोगियों के साथ रेप किया था। महिला को राशन की दुकान आवंटित कराने का लालच दिया गया था। तब राज्य में एसपी की सरकार थी। महिला ने काफी प्रयास किया पर उसका केस दर्ज नहीं हुआ। 19 दिसंबर, 2006 को महिला ने सीजेएम कोर्ट में अर्जी दी तो 15 जनवरी, 2007 को उसका केस दर्ज किया गया। मंत्री और उसके सहयोगियों पर गैंग रेप, एससी-एसटी ऐक्ट दर्ज है। बिजनौर कोर्ट ने मंत्री के खिलाफ कुर्की के आदेश जारी किए तो मंत्री ने हाई कोर्ट से इस पर स्टे ले लिया।
इस मुद्दे पर विक्टिम की वकील ऐश्वर्य चैधरी ने कहा, 'सरकार इतने गंभीर मामले में भी मंत्री को संरक्षण दे रही है, साथ ही कानून का भी उल्लंघन कर रही है। अभी यह मामला हाईकोर्ट से स्टे है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुसार इस मामले को तब तक वापस नहीं लिया जा सकता जब तक कि इसमें पीड़ित महिला की अनुमति न हो।'
बिजनौर के डीएम ने कहा, 'शासन से इस मामले का एक पत्र जरूर मिला है लेकिन उस पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। इस पर विचार किया जा रहा है।'
-एजेंसी

बुधवार, 8 जनवरी 2014

ये रहे हमारे नीरो और उनकी बांसुरी

लखनऊ। 
यूपी के मुजफ्फरनगर दंगों को अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता है। दंगा पीड़ित अभी भी मुसीबतों से भरी जिंदगी जीने को मजूबर हैं। कंपकंपा देने वाली ठंड में वह बिना बुनियादी सुविधाओं के खुले आसमान में रहने पर मजबूर हैं। इनको राहत देने की बजाय उत्तर प्रदेश सरकार के आठ राज्य मंत्री और नौ विधायक पांच देशों की स्टडी यात्रा पर निकले हैं। गौरतलब है कि सरकार मुजफ्फरनगर दंगों में अव्यवस्था को लेकर आलोचना झेल रही है। समूह में एक भाजपा और आरजेडी विधायक के साथ राजस्व मंत्री अंबिका चौधरी भी शामिल हैं।
यूपी के नेताओं का दल 18 दिन विदेश में रहेगा। राज्य की कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन के सदस्य मंत्री और विधायक टर्की, नीदरलैंड, यूके, ग्रीस और यूएई की सरकारी खर्च पर यात्रा करेंगे। यह यात्रा एक तरह से सवैतनिक छुटि्टयों की तरह होती है। यात्रा का उद्देश्‍य दूसरे देशों की पार्लियामेंट्री टेक्नीक्स सीखना होता है।
मंत्रियों और विधायकों का यह दल आज सुबह इस्तांबुल के लिए रवाना हुआ। समाजवादी सरकार ने यात्रा के लिए करीब एक करोड़ रूपए मंजूर किए हैं। दल शहरी विकास मंत्री आजम खान के नेतृत्व में गया है। मुजफ्फरनगर जिले का चार्ज भी इन्ही के पास है।
सिंतबर 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के हजारों पीड़ित अब भी घर से बाहर राहत शिविरों में रह रहे हैं। कड़कड़ाती ठंड में बिना बुनियादी सुविधाओं और ठंड के बचने के कपड़ों के बिना जिंदगी जूझ रहे हैं। राज्य सरकार पीड़ितों को जबर्दस्ती अपने घरों में वापस भेजने के लिए दबाव बना रही है। सरकार ने आलोचना से बचने के लिए यह कदम उठाया है।
यात्रा करने वाले समूह में विवादित मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैय्या भी शामिल हैं। हाल में राजा भैया पर एक पुलिस अधिकारी की हत्या का आरोप लगा था। जिसके बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। आठ महीने के बाद उन्हें अखिलेश के कैबिनेट में दोबारा से शामिल कर लिया गया था।
-एजेंसी

425 करोड़ के घोटाले में बोमन ईरानी का बेटा!

मुंबई। 
मुंबई पुलिस बहुस्तरीय मार्केटिंग फर्म क्यूनेट के नेतृत्व में करीब 425 करोड़ रुपए के घोटाले में अभिनेता बोमन ईरानी के बेटे की कथित भूमिका की जांच में जुटी है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि इस घोटाले में बोमन के बेटे ने कथित रूप से ‘बड़ी रकम’ हासिल की। पिछले साल अगस्त में क्यूनेट के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने वाले शिकायतकर्ता गुरुप्रीत सिंह आनंद ने आज जांच एजेंसी मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में दो पन्नों की शिकायत के साथ गुहार लगाई। इस शिकायत में इस योजना में अभिनेता बोमन ईरानी के बेटे दानिश की कथित संलिप्तता की जानकारी दी गई है।
लिखित शिकायत में उन्होंने आरोप लगाया कि दानिश ने अपने पिता बोमन के साथ इस योजना का प्रचार प्रसार किया। हालांकि पुलिस के अनुसार, अभिनेता इस योजना में शामिल नहीं हैं। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त राजवर्धन सिन्हा ने कहा कि बोमन ईरानी की क्यूनेट मामले में कोई भूमिका नहीं है। उनके बेटे दानिश ने क्यूनेट के जरिए बड़ी रकम कमाई और हम उनकी भूमिका की जांच कर रहे हैं।
पुलिस अब दानिश के बैंक खातों की जानकारी हासिल करने में जुटी है। गुरुप्रीत ने आरोप लगाया कि बोमन ईरानी और पूर्व विश्व बिलियर्ड्‍स चैंपियन माइकल फरेरा ने प्रचार कार्यक्रमों में भाग लिया था।
उन्होंने कहा कि बोमन और माइकल जैसे लोग क्यूनेट के साथ जुड़े थे जिससे कई लोग इसके प्रति आकर्षित हुए। इसलिए, इस संबंध में उनके खिलाफ भी अभियोजन चलाया जाना चाहिए और यही कारण है कि मैं उनका खुलासा करना चाहता हूं।
-एजेंसी

7141 की आबादी वाले गांव को 334 करोड़ के प्रॉजेक्ट्स

लखनऊ। 
उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में भले ही मूलभूत सुविधाएं न हों लेकिन सत्ताधारी यादव परिवार के गांव सैफई पर सरकार की मेहरबानी जमकर बरस रही है। सैफई महोत्सव पर राज्य के खजाने से करोड़ों रुपये फूंकने की खबरों के बीच एक खबर यह भी है कि सूबे में पिछले 21 महीनों के दौरान समाजवादी पार्टी की सरकार ने सैफई को 334 करोड़ रुपये के प्रॉजेक्ट्स दिए हैं।
सैफई, इटावा जिले का एक गांव है और जसवंत नगर विधानसभा व मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है। इस गांव की कुल आबादी 7141 है। जसवंत नगर से राज्य के पीडब्ल्यूडी मंत्री शिवपाल यादव विधायक हैं और मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव सांसद हैं। मुलायम के मुख्यमंत्री रहते भी सैफई का जमकर ख्याल रखा गया था। सैफई को सबडिवीजन बनाया गया और रूरल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज व रिसर्च, एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और हवाई पट्टी का तोहफा मिला था।
अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद फिर से सैफई के लिए खजाना खोल दिया गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां पांच करोड़ रुपये की लागत से एक स्पोर्ट्स कॉलेज बनाए जाने की योजना है। कक्षा छह से कक्षा 12 तक के लड़कों के लिए यह कॉलेज 71.25 एकड़ में बनाया जाएगा। इसमें वे सारी सुविधाएं होंगी, जो एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्पोर्ट्स कॉलेज में होती हैं।
इसके अलावा 3.11 करोड़ की लागत से एक टूरिजम कॉम्प्लेक्स बनाए जाने की योजना है। पर्यटन सचिव संजीव सरन बताते हैं कि उन्हें इस प्रॉजेक्ट के ज्यादा डीटेल्स याद नहीं है, क्योंकि यह काफी छोटा प्रॉजेक्ट है। 42 करोड़ रुपये की लागत से एक ट्रॉमा और बर्न सेंटर बनाया जा रहा है। इस सेंटर के निर्माण की जिम्मेदारी पिछले साल उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को दी गई थी।
103.21 करोड़ रुपये की लागत से अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं के लिए स्विमिंग पूल्स बनाए जाने का फैसला कैबिनेट ने नवंबर 2012 में लिया था। इस कॉम्प्लेक्स में एक प्रैक्टिस पूल, एक मेन पूल और एक डाइविंग पूल होगा। साथ ही इस कॉम्प्लेक्स में एक प्रशासनिक ब्लॉक, एक जिम, एक वीआईपी गैलेरी और तैराकों के रहने के लिए भी जगह होगी। पिछले महीने ही यहां स्पोर्ट्स डायरेक्टर के पद पर तैनात एक आईएएस ऑफिसर को काम में हो रही देरी की वजह से सस्पेंड कर दिया गया था।
चार करोड़ रुपये 2012 में सैफई हवाई पट्टी लाइट्स की रिपेयरिंग और रखरखाव के लिए पीडब्ल्यूडी को आवंटित किए गए थे। साथ ही 90 लाख रुपये हवाई पट्टी की दीवार की मरम्मत के लिए दिए गए। 26 करोड़ रुपये की लागत से अपना बाजार बनाए जाने की योजना है। इसमें दुकानें, ऑफिस, कैफेटेरिया और किचन बनाए जाएंगे। ये किसानों के लिए एक लोकल मंडी की तरह होगा। इसको यूपी मंडी परिषद् द्वारा बनाया जाना है। 150 करोड़ की लागत से सैफई और मैनपुरी के बीच दो लेन की सड़क को चार लेन का बनाया जा रहा है।
-एजेंसी

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

दंगों की सीडी दिखाकर धन बटोर रही थी तीस्‍ता शीतलवाड़

अहमदाबाद। 
गुजरात दंगों से जुड़े गुलबर्ग सोसायटी पीड़ितों की जिस शिकायत पर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता शीतलवाड़ व अन्य के तहत आईपीसी व आईटी एक्ट की धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है, उसकी तफ्तीश में खुलासा हुआ है कि तीस्ता व तनवीर जाफरी ने 2007 से 2012 की अवधि में अलग-अलग कार्यक्रमों की सीडी तैयार की थी। ये सीडी सूरत में तैयार की गईं। ये सीडी तनवीर जाफरी ने अमरीका में रहने वाले कुछ लोगों को भेजीं। इन्हें अमरीका में बड़े-बड़े सेमिनार में दिखाया गया और फंड जमा किया गया। 2002 के गुजरात दंगा पीड़ितों से जुड़े अमरीका में होने वाले कार्यक्रमों में पूर्व डीजीपी आर. बी. श्रीकुमार एवं फादर सेड्रिक प्रकाश भी अमरीका जाते थे। तनवीर गुलबर्ग कांड में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहजान जाफरी का बेटा है।
गुलबर्ग सोसायटी के दंगा पीड़ित फिरोज पठान ने रविवार शाम को गुजरात में धोखाधड़ी का मुकद्दमा दर्ज कराया था। इसमें तीस्ता के अलावा उनके पति जावेद आनंद, तनवीर जाफरी, गुलबर्ग सोसायटी के चेयरमैन सलीम संधी एवं सचिव फिरोज गुलजार को आरोपी बनाया है। सभी पर दंगा पीड़ितों के नाम पर विदेशों से चंदा उगाकर निजी काम के लिए खर्च करने का आरोप है।
प्रकरण दर्ज कर क्राइम ब्रांच ने मामले की तफ्तीश शुरू कर दी है। जांच एजेंसी सूत्रों के अनुसार तीस्ता व अन्य लोग पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत गुलबर्ग सोसायटी सहित गुजरात के आठ दंगा प्रभावित इलाकों के पीड़ितों के फोटो-वीडियो लेते थे। इन्हें सीजेपी एवं सबरंग नामक वेबसाइट पर इंटरनेट के जरिए प्रकाशित किया जाता था। इन फोटो-वीडियों के माध्यम से विदेशों में रहने वाले लोगों से फंड की गुहार लगाई जाती थी। इसके चलते करोड़ो रुपए का फंड बैंक में जमा हुआ। यह धन निजी उपयोग में खर्च कर दिया गया। इसके अलावा अलग-अलग नाम से संस्थाएं बनाई, इनके नाम-पते एक ही रखे गए। धर्म के नाम पर गलत गतिविधि चलाई गई।
तीस्ता व अन्य के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत करने वाले दंगा पीड़ित फिरोज पठान को आरटीआई के तहत जानकारी मिली कि तीस्ता एंड कंपनी ने 2009 से 2011 के दौरान 1.51 करोड़ रुपए विदेश-स्थानीय लोगों से जमा किए। सीजेपी एवं सबरंग ट्रस्ट के नाम पर क्रमश: 63 व 88 लाख रुपए का चंदा जुटाया। क्राइम ब्रांच सूत्रों के अनुसार इस धन का उपयोग सोसायटी (गुलबर्ग) के सदस्यों के लिए अभी तक नहीं किया गया।
मामले में शिकायतकर्ता फिरोज सहित सात लोगों के बतौर गवाह पुलिस ने बयान दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा अन्य छह लोगों को बतौर गवाह समन भेजा है। सायबर एक्ट की धारा भी मामले में जोड़ी गई है। सूत्रों के अनुसार जल्द ही क्राइम ब्रांच का एक दल तफ्तीश के लिए मुंबई भी जाने वाला है। आईटी एक्ट की धारा-72(ए) के तहत भी मामला दर्ज किया है। रविवार शाम को आईपीसी 420 व 120 (बी) सहित धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया था।
-एजेंसी

सोमवार, 6 जनवरी 2014

तुम याद तो जरूर रहोगे मनमोहन

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)


 'मैं, ..............ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।'
'मैं, ........ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि जो विषय संघ के मंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा, उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक्‌ निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूँगा।'
यह मात्र आठ-दस लाइनें नहीं हैं। यह संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित नियमों के तहत ली जाने वाली वो शपथ है जिसे प्रत्‍येक मंत्री अपना पदभार ग्रहण करने से पहले लेता है।
अब जरा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के 3 जनवरी 2014 के उस व्‍याख्‍यान पर गौर कीजिए जो उन्‍होंने पूर्व निर्धारित संवाद्दाता सम्‍मेलन में दिया था।
वह कहते हैं कि- मैं उम्‍मीद करता हूं कि इतिहास मेरे प्रति उदारता बरतेगा और मीडिया की तरह मेरे कार्यों का कठोर आंकलन नहीं करेगा।
थोड़ी देर के लिए दलगत राजनीति को पूरी तरह तिलांजलि देकर सिर्फ कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली उस यूपीए सरकार पर नज़र डाली जाए जिसके बतौर मुखिया प्रधानमंत्री लिखा-पढ़ी में मनमोहन सिंह थे.............. तो क्‍या उन्‍हें इतिहासकारों से ऐसी कोई उम्‍मीद रखनी चाहिए?
क्‍या मनमोहन सिंह को देश की वह जनता कभी माफ कर सकती है जिसका दलगत राजनीति से न कभी कोई वास्‍ता था और ना शायद कभी रहेगा। राजनीति अथवा राजनीतिक दल तो उस जनता लिए केवल अपने एक ऐसे 'अधिकार' तक सीमित हैं जिसे वह चुनावों के दौरान मतदान या मताधिकार के रूप में इस्‍तेमाल करती है। वह भी इस उम्‍मीद में कि संभवत: इस बार व्‍यवस्‍था परिवर्तन हो सके। संभवत: उसे किसी स्‍तर पर महसूस हो कि वाकई सरकार को उसने चुना है। अन्‍यथा कड़वा सच यही है कि उसके मतदान करने या न करने से सरकारों के बनने पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मतदान का प्रतिशत कितना ही कम क्‍यों न हो, सरकार तो तब भी बना ही ली जाती है और उसी को बहुमत मान लिया जाता है।
यहां 'मतदान' अथवा 'मताधिकार' जैसे शब्‍दों पर गौर फरमाना जरूरी हो जाता है। यह दोनों ही शब्‍द भ्रमित करते हैं। यदि जनप्रतिनिधियों के चुनाव की प्रक्रिया मतदान से है तो यह कैसा 'दान' है जिसे जनता अनिच्‍छा से देने के लिए अभिशप्‍त है। वह पात्र या कुपात्र का चयन न करके मात्र उन प्रत्‍याशियों में से किसी एक को चुनने के लिए बाध्‍य है जिसे राजनीतिक दलों ने अपनी इच्‍छानुसार थोपा है। और यदि यह प्रकिया हमें अधिकार देती है और मताधिकार से चुनाव होता है तो यह कैसा अधिकार है जिसे देने के बाद हमारे हाथ में कुछ नहीं रह जाता। सिवाय हाथ मलते रहने के।
चुनाव प्रक्रिया के एक नये अधिकार 'नोटा' की बात करें तो उससे भी फिलहाल जनता के हाथ कुछ नहीं आने वाला। हां, इतना अवश्‍य है कि वह किसी को वोट न देकर अपनी बेबसी दर्शा सकती है। वैसे यह काम जनता पहले भी मतदान न करके करती रही है।
बहरहाल, संवैधानिक पद ग्रहण करने से पूर्व ली जाने वाली शपथ से लेकर मतदान अथवा मताधिकार तक....सब-कुछ जैसे आमजन को भ्रमित करने का तरीका बनकर रह गया है और इसी का लाभ स्‍वतंत्र भारत के छद्म भाग्‍यविधाता उठाते रहे हैं। चूंकि कांग्रेस ही किसी न किसी तरह अधिक समय तक शासक रही है इसलिए आमजन को धोखे में रखने का काम उसी के खाते में जाता है।
इन हालातों में जहां तक सवाल मनमोहन सिंह की इतिहासकारों से अपेक्षा का है तो उस पर यही कहना मुनासिब होगा कि या तो वह आत्‍ममुग्‍धता के शिकार हैं या फिर उस तथाकथित ईमानदारी के जिसका ढिंढोरा पीटकर देश के दस कीमती साल कांग्रेस ने बर्बाद कर दिए। इतिहास और आमजन का वश चले तो वह उन्‍हें शायद याद रखना भी पसंद न करें। ऐसा क्‍यों है.....इसका जवाब खुद मनमोहन सिंह को मिल सकता है बशर्ते वह सोनिया-राहुल की छाया के प्रभाव से बाहर आकर यदि 5 मिनट के लिए भी आत्‍मचिंतन करने में बिता सकें।
रही बात उनके द्वारा नरेन्‍द्र मोदी को देश के लिए विनाशकारी बताने की तो ऐसा कहकर उन्‍होंने अपनी बुद्धिमान होने की छवि को ही प्रभावित किया है। उन्‍होंने जाते-जाते यह साबित कर दिया कि वह एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो मन, वचन तथा कर्म से सोनिया-राहुल के बंधक है और उसकी अपनी कोई सोच है ही नहीं।
नरेन्‍द्र मोदी देश के लिए क्‍या साबित होंगे, इसका निर्णय तो आने वाला समय करेगा लेकिन अगर बात करें इस साल होने जा रहे चुनावों की तो वह नि:संदेह बहुत महत्‍वपूर्ण होंगे।
महत्‍वपूर्ण इसलिए नहीं कि सत्‍ता में कोई परिवर्तन संभावित है, महत्‍वपूर्ण इसलिए कि अब व्‍यवस्‍था में परिवर्तन की जन आकांक्षा दिखाई देने लगी है। मोदी आयें या केजरीवाल ही क्‍यों न आ जाएं.....अब जनता यह चाहती है कि किसी संवैधानिक पद के लिए ली गई शपथ और 'मतदान' अथवा 'मताधिकार' का इस्‍तेमाल जाया न हो। वह चाहती है कि लोकतंत्र की आड़ में उसके साथ 66 सालों से लगातार की जा रही धोखाधड़ी बंद हो। संवैधानिक पद की शपथ तथा मताधिकार का महत्‍व उसकी मूल भावना के अनुरूप हो।
इन चुनावों के बाद भी अगर जनता को ऐसा महसूस हुआ कि उसकी चुनी हुई सरकार और उसके द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों की नीयत नेक रास्‍ता अख्‍त़ियार करने को तैयार नहीं है तो आने वाला समय ऐसा इतिहास लिखेगा जिसकी किसी राजनीतिक दल या किसी नेता ने कल्‍पना तक नहीं की होगी।
इस करवट लेते समय की चूंकि मनमोहन सिंह आखिरी कड़ी हैं इसलिए उनका जिक्र तो जरूर होगा परंतु उस तरह नहीं जिस तरह वह सोचे बैठे हैं।
कठपुतलियों को लोग याद तो रखते हैं लेकिन सिर्फ और सिर्फ इसलिए कि वह तमाशा दिखाने के काम आती हैं। इसलिए नहीं कि उनमें कोई गतिशीलता या क्रियाशीलता होती है........ सब जानते हैं कि कठपुतलियों की क्रियाशीलता और गतिशीलता उन उंगलियों की मोहताज होती है जिनकी डोर पर्दे के पीछे छिपी दूसरी उंगलियों से बंधी रहती है।

रविवार, 5 जनवरी 2014

चंदे के करोड़ों रु. हड़प गई तीस्‍ता सीतलवाड़: FIR दर्ज

अहमदाबाद। 
नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुहिम चलाने वालीं सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ पर धोखाधड़ी के एक मामले में FIR दर्ज की गई है। उन पर गुलबर्ग सोसाइटी मेमोरियल के नाम पर जमा की गई राशि का इस्तेमाल निजी इस्तेमाल करने के लिए करने का आरोप है।
तीस्ता सीतलवाड़ जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। 2002 के गुजरात दंगों के बाद वह नरेंद्र मोदी का काफी मुखर विरोध करती रही हैं। 2002 में गुलबर्ग सोसाइटी को जला दिया गया था। सीतलवाड़ ने उस सोसाइटी के लिए एक मेमोरियल बनाने के वास्ते देश-विदेश से चंदा जमा करने का अभियान छेड़ा था। इस अभियान के तहत करोड़ों रुपये जमा हुए।
आरोप है कि इस पैसे से तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद के निजी खातों में एफडी करवा ली गई। अहमदाबाद पुलिस ने जांच के बाद इस मामले में FIR दर्ज कर ली। सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 120 और 406 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
-एजेंसी

शनिवार, 4 जनवरी 2014

इस कदर घबराए हुए थे... कि पहले की थी मॉक कॉफ्रेंस

नई दिल्ली। 
बतौर प्रधानमंत्री दस साल के कार्यकाल में तीसरी बार मीडिया से रूबरू होने से पहले पीएम मनमोहन सिंह को रिहर्सल करवाई गई थी। यूपीए-2 के कार्यकाल में उनकी दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस के तैयारी के लिए मनमोहन ने सचिवालय के अधिकारियों के साथ रिहर्सल की थी। रिहर्सल के दौरान सचिवालय के अधिकारियों ने मनमोहन से सौ सवाल पूछे और उन्होंने जवाब दिया। पीएम मनमोहन अपने आपको रिहर्सल के माध्यम से मीडिया से रूबरू होने के लिए तैयार करके आए थे।
पहले हुई मॉक कॉन्फ्रेंस
सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए पूरी तैयारी करवाई गई थी। उन्होंने सचिवालय के साथ मॉक प्रेस कॉन्फ्रेंस करवाई थी। सचिवालय के अधिकारियों ने मॉक कॉन्फ्रेंस में पीएम से वे सवाल पूछे जो मीडिया पूछ सकती है। पीआईबी और डीएवीपी के 80 से ज्यादा अधिकारियों को मॉक कॉन्फ्रेंस की जिम्मेदारी गई थी। पीएम की प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिम्मेदारी सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी को मिली हुई थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस के प्रबंधन का काम तिवारी ही देख रहे थे।
-एजेंसी

दिल्‍ली मेट्रो पर 10 तक हो सकता है 26/11 जैसा हमला

नई दिल्‍ली। 
अब तक आतंकवादियों की नज़रों से बची दिल्ली मेट्रो पर आतंकी साया मंडराने लगा है. दिल्ली मेट्रो पर आतंकवादी 26/11 जैसा हमला कर सकते हैं. मिलिट्री इंटेलिजेंस के सूत्रों के मुताबिक नए साल में दस दिन के भीतर आतंकवादी दिल्ली मेट्रो को अपना निशाना बना सकते हैं. मिलिट्री इंटेलिजेंस ने मेट्रो सिक्योरिटी को अलर्ट भेजकर कहा है कि कुछ आतंकी संगठन 10 जनवरी तक मेट्रो में 26/11 जैसे आतंकी हमले को अंजाम दे सकते हैं.
सीआईएसएफ को मिली खुफिया जानकारी के अनुसार मेट्रो में आतंकी हमले का अलर्ट 31 दिसंबर को मिला था.
चेतावनी के अनुसार 2014 में 10 जनवरी तक आतंकवादी कभी भी दिल्‍ली मेट्रो को अपना निशाना बना सकते हैं.
आतंकवादियों की इस धमकी के बाद दिल्‍ली मेट्रो की सुरक्षा पहले से और अधिक बढ़ा दी गई है.
एनसीआर में 140 स्टेशन पर पांच हजार से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात हैं.
इसके बाद हर मेट्रो स्‍टेशन में आने वाले यात्रियों पर कड़ी नज़र रखी जा रही है. मेट्रो ट्रेन और स्टेशन पर संदिग्ध मुसाफिरों से पूछताछ और सामान की गहन तलाशी का अभियान चलाया जा रहा है.
-एजेंसी

टू-व्‍हीलर्स पर रखकर ही करोड़ों के सेब बेच लिए वीरभद्र ने

नई दिल्‍ली। 
रिश्वत लेने के आरोपों से घिरे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की परेशानियां और बढ़ने वाली हैं। उनके खिलाफ जांच में यह बात सामने आई है कि अपने बगान के करोड़ों रुपये के सेब की उन्होंने टू-वीलर्स और तेल टैंकर से ढुलाई करवा ली। यह ठीक वैसा ही हास्यास्पद मामला है, जिस तरह से बिहार में चारा घोटाले की जांच में यह बात सामने आई थी कि सांड़ों को स्कूटर से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया था।
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने एक बार फिर वीरभद्र सिंह के उस दावे की जांच में तेजी ला दी है, जिसमें उन्होंने 3 सालों में बागवानी से होने वाली आय 6.56 करोड़ रुपये दिखाई थी। एक इंग्लिश न्यूज़ पेपर ने लिखा है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने वीरभद्र सिंह और इंश्योरेंस एजेंट आनंद चौहान को अलग-अलग नोटिस भेजे हैं। नोटिस में वीरभद्र सिंह की बागवानी से हुई आय के बारे में सवाल उठाए गए हैं।
कहा जाता है कि आनंद चौहान ही मुख्यमंत्री के श्रीखंड वाले बागानों की देखरेख करता था। जून 2008 में वीरभद्र और आनंद चौहान ने एक एमओयू साइन किया था। इस एमओयू के तहत चौहान को वीरभद्र के बागान की देखभाल करनी थी। यह भी तय किया गया था कि चौहान को बागान से होने वाली आमदनी वीरभद्र और उनके परिवार की तरफ से एलआईसी या म्यूचुअल फंड्स में इन्वेस्ट करनी होगी।
चौहान ने क्लेम किया है कि उसने वीरभद्र सिंह के बागान के सेब यूनिवर्सल ऐपल असोसिएट के चुन्नीलाल को बेचे हैं। चुन्नीलाल नाम के शख्स ने टैक्स अथॉरिटीज़ को उन 18 गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन नंबर दिए हैं, जिनकी मदद से वीरभद्र के बागानों से सेब ढोए गए थे। जब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इन नंबरों की जांच की तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। मालूम हुआ कि इनमें से दो नंबर- HP 06 0768 और HP 06 1123 तो स्कूटर के हैं। एक अन्य नंबर HP 63 4975 तेल टैंकर का है। एक नंबर तो ऐसा है जो किसी को अलॉट ही नहीं हुआ। इनमें से कुछ नंबर ऐसे 'ट्रिपर' वीकल्स के हैं, जो यूज नहीं किए गए।
ऐसे में एक ऑफिशल ने आरोप लगाया, 'इन नंबरों को देखकर साफ लगता है कि चुन्नीलाल को कोई सेब नहीं बेचे गए। इसका मतलब है कि वीरभद्र सिंह ने बागवानी से जो आमदनी दिखाई है, वह झूठी है।'
इसी हफ्ते की शुरुआत में राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर वीरभद्र सिंह पर रिश्वत लेने और केंद्रीय इस्पात मंत्री रहते हुए एक स्टील कंपनी से पैसे लेने का आरोप लगाया था। 2 मार्च, 2012 को वीरभद्र सिंह ने 3 फाइनैंशल इयर्स के लिए इनकम टैक्स रिटर्न्स फाइल किए थे। उन्होंने बताया था कि बगवानी के जरिए उन्हें 2009-10 में 2.12 करोड़, 2010-11 में 2.80 करोड़ और 2011-12 में 1.55 करोड़ की आमदनी हुई है। उन्होंने क्लेम किया था कि 105 बीघा में फैले सेब के बागान से उन्हें आमदनी हुई है इसलिए वह इनकम टैक्स रिटर्न्स में रिविज़न करना चाहते हैं।
अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने साल 2010-11 में हुई वीरभद्र सिंह की आमदनी का आंकलन करने का काम दोबारा शुरू कर दिया है। हालांकि वीरभद्र सिंह के करीबियों का कहना है कि उनकी जानकारी में ऐसी कोई बात नहीं आई है।
-एजेंसी

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

ना इधर-उधर की तू बात कर, ये बता कि काफिला क्यूं लुटा

नई दिल्‍ली। 
"हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, ना जाने कितने सवालों की आबरू रखी।" कुछ इस शायराना अंदाज में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोलगेट मामले में विपक्ष के पूछे सवालों का जवाब दिया था और आज दस साल में तीसरी बार मनमोहन खुद प्रेस कांफ्रेंस कर कई अहम सवालों का जवाब दे रहे हैं।
आखिर अब ऎसा क्या हो गया, जो उन्हें अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ रही है। आईए जानते हैं कि वो क्या मजबूरियां हैं जिनके चलते उनको सालों की चुप्पी तोड़नी पड़ रही है।
दिसंबर 2013 में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जनता ने सिरे से नकार दिया। कांग्रेस को राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में मुंह की खानी पड़ी। पार्टी की थोड़ी सी लाज केवल मिजोरम में बची, जहां उनकी सरकार फिर से सत्ता में आई।
इन चार राज्यों हुई दुर्गती ने कांग्रेस की आंखे खोल दी। जनता ने अपना गुस्सा कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखाकर जाहिर किया। चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस को अहसास हो गया कि जनता ने पार्टी को पूरी तरह से नकार दिया है, अगर अब कोई कोशिश नहीं हुई तो लोकसभा चुनाव में और भी बुरे परिणामों से दो-चार होना पड़ सकता है। माना जा रहा है कि मनमोहन सिंह की चुप्पी और अन्य कांग्रेस नेताओं का बड़बोलापन भी हार का एक बड़ा कारण रहा।
इन चार राज्यों के चुनाव में यह भी सामने आया कि कांग्रेस को अगर डूबने से बचाना है, तो परम्परा को तोड़ते हुए चुनाव से पहले प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करना होगा। फिलहाल कांग्रेस के पास केवल एक नाम है जिसको लेकर पार्टी आशान्वित है। वह नाम है कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का।
मनमोहन को अपनी पारी समेटने और राहुल गांधी की नई पारी के आगाज के लिए चुप्पी तोड़ने की जरूरत पड़ी। इससे पहले भी मनमोहन राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का संकेत यह कहकर दे चुके हैं कि वे राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने का तैयार हैं।
मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के अब तक के कार्यकाल में मंहगाई ने जमकर आम आदमी के सब्र की परीक्षा ली। खुद मनमोहन और वित्तमंत्री की लाख कोशिशों के बावजूद मंहगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती रही। मंहगाई फैक्टर ने न केलव कांग्रेस को दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में सबक सिखाया, वल्कि संकेत भी दे दिए कि लोकसभा चुनाव मे भी इतिहास दोहराया जा सकता है।
जब शायरी में किया जवाब-तलब
पिछले वर्ष मार्च में मनमोहन सिंह ने संसद में कुछ इस तरह से विपक्ष को खरी-खरी सुनाई-
"हमको है उनसे वफा की उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है।"
इस बार विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ये दिया जवाब-
"कुछ तो मजबूरियां रही होंगी यूं कोई बेवफा नहीं होता।"
इसके बाद सुषमा ने फिर शायरना अंदाज में कहा-
"तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं,
जिंदगी और मौत के तो दो ही रास्ते हैं,
एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं।"

कुछ वर्ष पहले विकीलिक्स मामले पर संसद में डिबेट के दौरान मनमोहन सिंह ने आलम इकबाल का लिखा शेर सुषमा स्वराज पर निशाना साधते हुए कहा-
"माना की तेरे दीद के काबिल नहीं हूं मैं,
तुम मेरा शौक तो देख, मेरा इंतजार तो कर।"

मनमोहन इस शायरी को पढ़ते हुए मुस्कुराते रहे और सदन में ठहाके गूंज उठे।
सुषमा ने भी मुस्कुराते हुए इकबाल का ही एक शेर पढ़ा-
"ना इधर-उधर की तू बात कर, ये बता कि काफिला क्यूं लुटा,
हमें रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है..."

-एजेंसी

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

केंद्रीय गृहमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र से चल रहा था सिमी का अड्डा

नई दिल्‍ली। 
महाराष्ट्र के सोलापुर में प्रतिबंधित संगठन सिमी के मॉडयूल का खुलासा होने के बाद खुफिया एजेंसियां परेशान है। परेशान इसलिए है क्योंकि सोलापुर गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का निर्वाचन क्षेत्र है। मध्य प्रदेश पुलिस ने 25 दिसंबर को सिमी के पांच संदिग्धो को गिरफ्तार किया था। इसके बाद 31 दिसंबर को चार और संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया। खुफिया एजेंसियां इनके सोलापुर से लिंक को नजदीकी से ट्रेक कर रही है। सूत्रों के मुताबिक इन्होंने अपने ठिकाने पर भारी मात्रा में विस्फोटक जमा कर रखा था।
यह ठिकाना उस स्थान से नजदीक था जहां शिंदे पिछले हफ्ते दौरे पर जाने वाले थे। दो लोगों को सोलापुर से गिरफ्तार किया गया था जबकि एक्टिविस्ट शहर का रहने वाला था। इससे संदेह पैदा होता है कि प्रतिबंधित संगठन वहां अपना ठिकाना बना रहा था। सूत्रों के मुताबिक संदिग्ध शिंदे को निशाना बनाने की कोशिश में थे। सूत्रों के मुताबिक शिंदे नियमित रूप से अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाते रहते हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले भी शिंदे सोलापुर के क्षेत्रों में जाएंगे। 25 दिसंबर को सूचना के आधार पर मध्य प्रदेश के आतंक निरोधी दस्ते ने सोलापुर के निवासी खालिद अहमद को गिरफ्तार किया था। इसके बाद चार और लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इनमें अबू फैजल शामिल था,जो खंडवा में जेल तोड़ने का मास्टर माइंड बताया जा रहा है। अहमद से पूछताछ के बाद सोलापुर से दो और गिरफ्तारियां हुई थी। इनकी पहचान सादिक और उमर हाफिज के रूप में हुई थी।
जांचकर्ताओं के मुताबिक संदिग्धों को सोलापुर में स्थित ठिकाने से भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद हुई है। जिस मकान में ये संदिग्ध छिपे हुए थे वहां से 100 डेटोनेटर.70 जिलेटिन की छडियां और तीन जिंदा बम बरामद हुए थे। सूत्रों के मुताबिक मॉडयूल के लीडर अबू फैजल के तहरीक ए तालिबान ऑफ पाकिस्तान से संबंध है। फैजल तालिबान के कुछ नेताओं के संपर्क में था,जो कसाब को दी गई फांसी का बदला लेने के लिए बड़ी हस्तियों का निशाना बनाना चाहते थे।
-एजेंसी

वहां दंगा पीड़ित खदेड़े जा रहे थे, यहां हो रही थी आतिशबाजी

लखनऊ। 
उत्‍तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में एक तरफ जहां दंगा पीडि़तों को कड़कड़ाती ठंड के बीच राहत शिविरों से खदेड़ दिया गया, वहीं प्रदेश सरकार ने सैफई में महोत्‍सव नए साल पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। मंगलवार रात नए साल के स्‍वागत में सैफर्इ महोत्‍सव के दौरान करीब 1 करोड़ रुपए की आतिशबाजी की गई। यही नहीं, नए साल के कार्यक्रम में बॉलीवुड सिंगर जावेद अली और कॉमेडियन राजू श्रीवास्‍तव को भी बुलाया गया था। इनके अलावा लोगों के मनोरंजन के लिए काफी संख्‍या में मुंबई से कलाकारों को भी बुलाया गया था।
इससे पहले सैफई महोत्‍सव की शुरूआत में प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर नाच-गाने का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में बॉलीवुड की कई मशहूर हस्तियों ने शिरकत की थी। उस समय महोत्‍सव में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, उनके बेटे और प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव अपने परिवार के साथ मौजूद थे। इटावा जिले में मुलायम सिंह यादव के पैतृक गांव सैफई में 26 दिसंबर से शुरू हुआ यह महोत्‍सव 14 जनवरी तक चलेगा। इस महोत्‍सव में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव सोमवार शाम तक रहे।
इस सर्द भरे मौसम में सरकार इन पीडि़तों को कैम्‍पों से हटाकर उन्‍हें उनके मूलनिवास स्‍थान पहुंचा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों के 483 पीड़ितों को राहत कैम्प से हटा दिया है। उन्हें प्रभावित इलाके की खाली पड़ी इमारतों में शिफ्ट कर दिया गया है। मुजफ्फरनगर जिले में अब कोई और राहत शिविर नहीं शेष बचा है जबकि पड़ोसी शामली में चार शिविर हैं। जिला मजिस्ट्रेट कौशल राज शर्मा के अनुसार, दिन में 420 परिवारों को यहां से भेजा गया जबकि शेष 63 परिवारों को शाम को सुरक्षित स्थान पर भेजा गया। उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव प्रवीण कुमार ने भी शिविरों का दौरा किया। कुमार शामली के चार शिविरों में गए और यहां चिकित्सा सुविधाओं से जुड़ी व्यवस्था का जायजा लिया। जिला मजिस्ट्रेट ने कहा कि यहां से जाने वाले परिवारों को 10 दिनों का राशन प्रदान किया गया। इसके साथ ही इन्हें चिकित्सा सुविधा और सुरक्षा भी प्रदान की जाएगी। अगस्त में दंगा भड़कने के बाद से लोई के राहत शिविरों में 510 परिवार रह रहे हैं।
गौरतलब है कि विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मुजफ्फरनगर और उसके आसपास हुए दंगों में 225 लोगों के विरुद्ध चार्जशीट पेश की है। एसआईटी का गठन उत्‍तर प्रदेश सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों की जांच के लिए किया था। एसआईटी एडिशनल एसपी मनोज झा ने बताया कि दंगों के 28 मामलों में 225 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है जबकि अन्य मामलों में 28 शिकायतों का पता नहीं लगाया जा सका है।
-एजेंसी
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