शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

बंगाल बिटुमिन फैक्‍ट्री में छापामारी...या नाटक

मथुरा। 
राष्‍ट्रीय राजमार्ग स्‍थित बंगाल बिटुमिन कंपनी में कल दोपहर वाणिज्‍य कर विभाग के प्रवर्तन दल ने छापा मारने के बाद जिस तरह कानूनी औपचारिकता पूरी की है, उसे लेकर तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं। छापे की कार्यवाही और उसके बाद अपनाई गई प्रक्रिया पर सबसे बड़ा सवाल तो यही खड़ा होता है कि वाणिज्‍य कर विभाग के प्रवर्तन दल की यह कथित छापेमारी बंगाल बिटुमिन कंपनी के मालिक को बचाने के लिए थी या उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने के लिए, क्‍योंकि पूरी कार्यवाही को देखकर कहीं से ऐसा नहीं लगता कि प्रवर्तन दल किसी के खिलाफ ठोस कार्यवाही करने जा रहा है।
वाणिज्‍य कर विभाग की मंशा का पता पहले तो इसी बात से लगता है कि उसने बंगाल बिटुमिन कंपनी के मालिक कृष्‍ण कुमार नागपाल निवासी बी-116, सरिता विहार, अपोलो हॉस्‍पीटल के निकट नई दिल्‍ली की कोसी में ही स्‍थित दूसरी ऑयल कंपनी पर साथ के साथ छापा क्‍यों नहीं मारा जबकि कंपनी मालिक द्वारा वहां भी इसी तरह के सारे गोरखधंधे किए जाते हैं। ऐसा संभव हो नहीं सकता कि कोसी के अजीजपुर में स्‍थित 'बिंग बैन' नामक इस ऑयल कंपनी की वाणिज्‍य कर विभाग के प्रवर्तन दल को जानकारी ही न रही हो।
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार सन् 1990 में नेशनल हाईवे नंबर दो पर किलोमीटर स्‍टोन 110 के निकट छाता में स्‍थापित बंगाल बिटुमिन फैक्‍ट्री के मालिक कृष्‍ण कुमार नागपाल की कोसी के अजीजपुर में  'बिंग बैन' ऑयल कंपनी सहित एक फैक्‍ट्री करनाल में करनाल ब्रॉडवेज बिटुमिन के नाम से है जबकि एक अन्‍य फैक्‍ट्री नोएडा में भी है।
करनाल की बिटुमिन फैक्‍ट्री में मथुरा के अलावा पानीपत रिफाइनरी से भी तेल का बड़ा खेल किया जाता है।
बताया जाता है कि सेटिंग की मंशा के चलते बिटुमिन फैक्‍ट्री के मालिक को राहत देने के लिए वाणिज्‍य कर विभाग में शामिल प्रवर्तन दल के अधिकारियों ने फैक्‍ट्री को सील न करके केवल कंटेनर्स को सील करने की औपचारिकता निभाई, और वो भी फैक्‍ट्री में पाये गये सभी कंटेनर्स को सील करना जरूरी नहीं समझा।
सूत्रों के मुताबिक छापे के वक्‍त बंगाल बिटुमिन फैक्‍ट्री के अंदर बिटुमिन से भरे करीब 20 कंटेनर मौजूद थे किंतु प्रवर्तन दल ने सबको छापे में शामिल नहीं किया और ना ही बरामद कंटेनर्स के अंदर मिले माल की कीमत का सही आंकलन किया गया।
इस धंधे से जुड़े दूसरे लोगों का कहना है कि बिटुमिन से भरे एक टेंकर की कीमत ही करीब 10 लाख रुपए बैठती है, फिर यह कैसे हो सकता है कि जो कंटेनर पकड़े गये हैं, उनमें मिले माल की कीमत कम हो जाए।
सूत्रों की मानें तो मथुरा जनपद के छाता-कोसी क्षेत्र में ही बंगाल बिटुमिन जैसी करीब एक दर्जन फैक्‍ट्रियां हैं और इन सबकी जानकारी वाणिज्‍य कर विभाग तथा इलाका पुलिस को भली प्रकार है।
सच तो यह है कि उक्‍त सभी फक्‍ट्रियां वाणिज्‍य कर विभाग, इलाका पुलिस तथा प्रभावशाली राजनीतिक हस्‍तियों के संरक्षण में ही संचालित हो रही हैं और इनसे अरबों रुपये के राजस्‍व की चोरी हर महीने की जाती है।
राजनीतिक दबाव में वाणिज्‍य कर विभाग तथा इलाका पुलिस इनके खिलाफ कार्यवाही न करके खाओ और खाने दो की सर्वसुलभ नीति अख्‍तियार करना ज्‍यादा उचित समझते हैं।
कल  की छापामार कार्यवाही के पीछे का कारण सुविधा शुल्‍क बढ़वाना और बाकी फैक्‍ट्री मालिकानों को इस आशय की चेतावनी देना था कि यदि बात नहीं मानी गई तो शिकंजा कसा जा सकता है तथा जरूरत पड़ी तो पूरा भांडा भी फोड़ा जा सकता है।
यही कारण है कि छापेमारी के उपरांत न तो बंगाल बिटुमिन फैक्‍ट्री के मालिक का नाम जाहिर किया गया और न उस पूरे माल का जो मौके पर मौजूद था।
वाणिज्‍य कर विभाग की नीयत यदि नेक होती तो वह कृष्‍ण कुमार नागपाल की कोसी के अजीजपुर में स्‍थित बिंगबैन ऑयल फैक्‍ट्री सहित दिल्‍ली के सरिता विहार स्‍थित निवास पर भी एकसाथ छापेमारी करता क्‍योंकि वहां से काले तेल के धंधे का पूरा कच्‍चा चिठ्ठा हासिल हो सकता था।
जहां तक सवाल फैक्‍ट्रियों का है तो यहां का सारा गोरखधंधा के. के. नागपाल और उसके जैसे तमाम दूसरे धंधेबाज अपने कारिंदों से ही करवाते रहे हैं ताकि वह खुद कभी कानून की गिरफ्त में न आ सकें।
बाकी काम तो फिर चांदी का जूता उन अधिकारियों से करवा ही देता है जो हर समय ऐसे धंधेबाजों पर अपनी गिद्ध दृष्‍टि इसीलिए गढ़ाये रहते हैं कि पर्याप्‍त शुकराना न देने की चूक को छापेमारी की चेतावनी से जाहिर कराया जा सके।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

रविवार, 7 सितंबर 2014

प्रशासन बाखबर...मथुरा में भी स्‍लीपर माड्यूल्स!

भारत में अल-कायदा की सक्रियता बढ़ाने को लेकर उसके सरगना अल ज़वाहिरी का वीडियो सामने आने के बाद पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश के जिन जिलों पर पुलिस, खुफिया एजेंसियों और एटीएस की निगाहें केंद्रित हुई हैं, उनमें विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा का भी नाम है।
मथुरा की भौगोलिक स्‍थिति भी कुछ ऐसी है जिसका लाभ अपराधी तत्‍वों को हमेशा से मिलता रहा है। राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली से यह मात्र 146 किलोमीटर दूर है तो हरियाणा एवं राजस्‍थान की सीमाएं इससे लगी हुई हैं। इसके एक ओर राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर दो है तो दूसरी ओर ताज एक्‍सप्रेस-वे बन चुका है जिसने वाहनों की रफ्तार को काफी बढ़ा दिया है।
मथुरा की इस भौगोलिक स्‍थिति का अब तक आपराधिक तत्‍व जमकर लाभ उठाते रहे हैं और इसीलिए यह धार्मिक जिला पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश की प्रमुख क्राइम बेल्‍ट में शुमार किया जाता है किंतु अल-कायदा की धमकी ने पुलिस, खुफिया एजेंसियों तथा एटीएस के अधिकारियों की चिंता बढ़ा दी है।
मथुरा में विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक इमारत कृष्‍ण जन्‍मभूमि है और यहां से मात्र 52 किलोमीटर दूर आगरा में विश्‍व के आकर्षण का केंद्र ताजमहल खड़ा है। इन दोनों इमारतों की सुरक्षा पर सरकार का बेहिसाब पैसा खर्च होता है, साथ ही भारी संख्‍या में सुरक्षा बल तैनात रहते हैं।
मथुरा में प्रमुख आतंकी संगठनों के स्‍लीपर माड्यूल्स की मौजूदगी का पता समय-समय पर लगता रहा है और देश में हुईं कई आतंकी वारदातों के सूत्र भी किसी न किसी रूप में मथुरा से जुड़े हैं लेकिन आज तक कोई ठोस प्रमाण सामने नहीं आया।
इस संबंध में जानकारी करने पर इस आशय की सूचनाएं जरूर मिलती रही हैं कि मथुरा को आतंकी संगठनों के स्‍लीपर माड्यूल्स एक शरण स्‍थली के रूप में इस्‍तेमाल करते हैं और इसलिए इसे किसी वारदात के लिए नहीं चुनते। कई राज्‍यों से इसकी सीमाओं के लगने का लाभ वह अपने सहज आवागमन तथा छुपने के आसान ठिकाने के रूप में करते हैं।
पूर्व में सिमी की मथुरा में अच्‍छी-खासी गतिविधियां रही हैं और उससे जुड़े लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है।
इस संबंध में मेरठ मंडल के कमिश्‍नर की रिपोर्ट गौर करने लायक है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश से अनेक पाकिस्‍तानी नागरिक लापता हैं और बहुत से बांग्‍लादेशी यहां रह रहे हैं।
कमिश्‍नर मेरठ ने समुदाय विशेष के उन खास लोगों पर नजर रखने एवं उनकी पुख्‍ता जानकारी करने को कहा है जो पिछले कुछ समय में अचानक सुविधा संपन्‍न हुए हैं या बहुत कम समय के अंदर उनके स्‍टैंडर्ड ऑफ लिविंग में बदलाव आया है। ऐसे लोगों की आमदनी के स्‍त्रोत पता करने के आदेश भी कमिश्‍नर मेरठ ने दिए हैं।
भले ही यह आदेश कमिश्‍नर मेरठ मंडल के हों किंतु मथुरा में वर्ग विशेष के अंदर ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं हैं जिनकी आमदनी का कोई प्रत्‍यक्ष स्‍त्रोत न होते हुए उनके रहन-सहन में बड़ा बदलाव देखा जा सकता है।
इसके अलावा पिछले कुछ समय में बड़ी तेजी के साथ एक समुदाय विशेष की रुचि मीडिया, राजनीति एवं सामाजिक सेवा को लेकर बढ़ी है। मीडिया में तो इनकी संख्‍या चौंकाने वाली है।
आश्‍चर्य की बात यह है कि जिला प्रशासन भी इस मामले में निष्‍क्रिय पड़ा हुआ है। उसने कभी यह तक जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर वो किस अखबार, न्‍यूज़ चैनल अथवा वेब पत्रकारिता से जुड़े हैं और कहां उनके समाचारों का प्रकाशन या प्रसारण होता है।
कहने को हर जिले की तरह मथुरा में भी एक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग कायम है और उसमें अधिकारी व कर्मचारी भी मौजूद हैं किंतु वह अपनी जिम्‍मेदारी सिर्फ तथाकथित चंद बड़े अखबारों एवं कथित बड़े पत्रकारों की चाटुकारिता तक सीमित रखते हैं। जिले की बात तो छोड़िए, शहर में जिला मुख्‍यालय पर भी कितने पत्रकार सक्रिय हैं और वह किन-किन संस्‍थानों के लिए कार्य करते हैं, इसकी कोई जानकारी सूचना विभाग के पास नहीं मिल सकती।
इसी प्रकार बहुत से तत्‍व सामाजिक संगठनों की आड़ लेकर तो बहुत से राजनीतिक संगठनों से जुड़े होने का हवाला देकर अपनी गतिविधियों को बेरोकटोक अंजाम दे रहे हैं।
अलग-अलग रंगों में रंगे और भिन्‍न-भिन्‍न संस्‍थाओं के इन तथाकथित नुमाइंदों में एक बड़ी समानता है। समानता यह है कि सब का मकसद किसी न किसी तरह पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों के नजदीकी बनाना, उनके साथ उठना-बैठना एवं उनकी प्रत्‍येक गतिविधि की जानकारी रखना है।
इन हालातों में एक स्‍वाभाविक प्रश्‍न यह उठता है कि आखिर यह क्‍यों पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों के इर्द-गिर्द बने रहते हैं, क्‍यों यह उनकी हर गतिविधि पर बारीक नजर रखते हैं ?
एक सवाल यहां यह और खड़ा होता है कि बुद्धि के पुतले समझे जाने वाले पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों के मन में क्‍या इन्‍हें एवं इनकी गतिविधियों को लेकर कोई सवाल पैदा नहीं होता ?
क्‍या कभी कोई इस आशय की शंका खड़ी नहीं होती कि जब इनके समाचार कहीं प्रकाशित या प्रसारित नहीं होते तो यह क्‍यों सारे दिन कलक्‍ट्रेट पर मंडराते रहते हैं?
क्‍या वह कभी नहीं सोचते कि इन लोगों की आमदनी का ज़रिया क्‍या है और किस तरह यह अपने अच्‍छे-खासे खर्चे पूरे करते हैं।
यदि कोई सामाजिक सेवा में लगा है अथवा उसने कोई एनजीओ बना रखा है तो उसके लिए हर वक्‍त अधिकारियों के पास बने रहना क्‍यों जरूरी है?
नि:संदेह ऐसे तत्‍व दूसरे समुदायों में भी हैं और उनकी भी गतिविधियां कम संदिग्‍ध नहीं हैं परंतु फिलहाल जिस तरह का खतरा मंडरा रहा है और अल-कायदा जैसा आतंकी संगठन ऐलान कर चुका है, उसके मद्देनजर आतंक के स्‍लीपर माड्यूल्स की घुसपैठ बड़ा खतरा बन सकती है।
बेहतर होगा कि इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद का पुलिस-प्रशासन समय रहते चेत जाए और कमिश्‍नर मेरठ की तरह गंभीरता पूर्वक ऐसे तत्‍वों पर पैनी नजर रखते हुए कार्यवाही रिपोर्ट जारी करे अन्‍यथा कबूतर के आंख बंद कर लेने से बिल्‍ली उसे अपना शिकार बनाने में परहेज नहीं करेगी। वह शिकार के लिए उचित समय और माहौल का इंतजार भले ही कर ले, परंतु उसकी फितरत बदलने वाली नहीं है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष
 

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

मथुरा में भी मौजूद हैं कई रंजीत उर्फ रकीबुल

नेशनल शूटर तारा शाहदेव से जुड़ा कथित लव जिहाद संबंधी मामला सामने आने के बाद रांची (झारखंड) पुलिस ने भले ही उसके पति रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन खान को गिरफ्तार कर लिया किंतु यदि इस दिशा में और आगे बढ़ा जाए तो देश का कोई राज्‍य, कोई जिला और कोई नगर ऐसा नहीं बचेगा जहां रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन खान जैसे लोग मौजूद न हों।
फिलहाल यदि हम बात करें विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जिला और भगवान श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली का गौरव प्राप्‍त मथुरा की तो यहां एक-दो नहीं, कई रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन खान मिल जायेंगे।
रंजीत सिंह कोहली को तो इस मुकाम तक पहुंचने के लिए न केवल अपना धर्म बदलना पड़ा बल्‍कि छद्म नामों और कामों का भी सहारा लेना पड़ा किंतु मथुरा में मौजूद रंजीत सिंहों को कभी ऐसा करने तक की जरूरत नहीं पड़ी। वह ताल ठोक कर अपने असली नाम और काम के बूते ही वह सब कर रहे हैं जो रंजीत सिंह कोहली कर रहा था।
एक एनजीओ संचालित करने वाले रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन खान की अब तक जितनी असलियत सामने आई है, उससे निष्‍कर्ष यह निकलता है कि वह शासन-प्रशासन व सत्‍ता का एक हाई प्रोफाइल दलाल था जिसे आज की भाषा में लाइजनर कहा जाने लगा है।
वह न्‍यायपालिका के कई उच्‍च अधिकारियों से संपर्कों के बल पर अपने यहां फाइलें मंगवाकर केसेज का निर्णय तय कराता था। वह जमानत दिलवाने से लेकर सजा से बचाने तक की ताकत रखता था और इसके लिए शराब, लड़कियां, पैसा, गाड़ियां तथा जिस अधिकारी की जो मांग होती थी, वह पूरी करता था। उसने इन सब कामों के लिए कई ऑफिस बना रखे थे और गाड़ियों का पूरा बेड़ा उसके पास था। उसके निजी ताल्‍लुकात जिन लोगों से थे, उनमें न्‍यायिक अधिकारियों के अलावा पुलिस व प्रशासन के आला अफसर तथा मंत्रिगणों की अच्‍छी-खासी फेहरिस्‍त थी। उसके घर की हर रात रंगीन होती थी और हर दिन महफिल सजती थी।
अब ज़रा अपने दिमाग पर जोर डालिये और फिर सोचिए कि जो कुछ रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन खान अपना धर्म परिवर्तन करके या नकाब पहनकर अब तक रांची में कर रहा था, क्‍या मथुरा में मौजूद रंजीत सिंह कोहली वही काम बिना धर्म परिवर्तन किए नहीं कर रहे।
क्‍या यहां ऐसे रंजीत सिंह कोहलियों की कमी है जो शराब, शबाब, पैसा और गाड़ियां उपलब्‍ध कराकर यही सब-कुछ नहीं करते।
गौरतलब है कि रंजीत सिंह कोहली के बारे में अब तक यह पता नहीं लग पाया है कि लव जिहादी है या नहीं, अलबत्‍ता इतना जरूर सामने आ चुका है कि उसने धर्म परिवर्तन किया था और वह शासन-सत्‍ता में बैठे लोगों से संबंधों तथा उन्‍हें मुहैया कराई जाने वाली सुविधाओं के बल पर लोगों के काम कराता था।
यही काम मथुरा के कई लोग कर रहे हैं और उनमें से कई की गिनती तो संभ्रांत व प्रतिष्‍ठित लोगों में होती है। उनके नाम पब्‍लिक के बीच बड़ी इज्‍ज़त के साथ लिए जाते हैं।
इन लोगों में से कोई मीडियाकर्मी है तो कोई मिठाई विक्रेता। कोई होटल स्‍वामी है तो कोई ओटोमोबाइल क्षेत्र का बड़ा कारोबारी। कोई बड़ा शिक्षा व्‍यवसाई है तो कोई रियल एस्‍टेट के क्षेत्र में बड़ा नाम रखता है। प्रत्‍यक्ष में इनमें से किसी का कोई भी काम हो लेकिन इनका असली काम वही है जो रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन खान कर रहा था।
आश्‍चर्य की बात यह है कि इनके प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष कामों की शौहरत पूरे जिले की जनता के साथ-साथ प्रदेश और राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली सहित कई दूसरे राज्‍यों तक फैली है लेकिन क्‍या मजाल कि कभी इनकी कोई जांच भी किसी ने की हो।
आज भले ही रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन खान के ताल्‍लुकातों की वजह से कोई हाईकोर्ट का रजिस्‍ट्रार निलंबित हो गया हो, किसी मंत्री को अपनी सफाई में प्रेस कांफ्रेंस बुलानी पड़ी हो, कई माननीय न्‍यायाधीशों से पूछताछ की जा रही हो और कई उप पुलिस अधीक्षकों को नोटिस भेजकर जवाब तलब किया गया हो परंतु इससे सबक कोई नहीं लेता।
मथुरा में सक्रिय रंजीत सिंह कोहलियों की लाइफ स्‍टाइल पर गौर फरमायेंगे तो स्‍पष्‍ट हो जायेगा कि उनके क्रिया-कलापों तथा रंजीत सिंह के क्रिया-कलापों में आश्‍चर्यजनक रूप से कितनी समानता है।
मथुरा के रंजीत सिहों की भी रातें रंगीन होती हैं। उनके भी यहां हर दिन महफिल सजती हैं। इन रातों को रंगीन करने और महफिलों को गुलजार करने वाला कोई न कोई शासन-सत्‍ता का बड़ा नाम या पुलिस-प्रशासन का बड़ा अधिकारी ही होता है।
इनके ऊंचों ताल्‍लुकातों को बाकायदा अच्‍छा-खासा मीडिया कवरेज मिलता है और उस पर चर्चाएं होती हैं। उनकी तथाकथित तरक्‍की के कसीदे पढ़े जाते हैं।
क्‍या मजाल कि मथुरा में पोस्‍टिंग पर आने वाला किसी भी विभाग का कोई बड़ा अधिकारी या किसी भी दल का कोई बड़ा नेता, इनकी चौखट चूमे बिना वापस चला जाए। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई इस काम को ढोल बजाकर यानि प्रचार-प्रसार करके अंजाम दे रहा है तो कोई गोपनीय तरीके से, अलबत्‍ता लाइजनिंग का खेल जारी है।
मजे की बात एक और है कि लाइजनर्स के हाथों की कठपुतली बनने वाले अधिकारी, नेता, मंत्री और माननीय का तमगा प्राप्‍त दूसरे लोग तब तक कुछ सोचने व समझने को तैयार नहीं होते जब तक किसी रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन खान का भांडा नहीं फूट जाता। वह सब-कुछ जानते व समझते हुए उनके यहां बेखौफ आते-जाते हैं और उनके साथ फोटो भी खिंचवाते हैं जिससे उनका मकसद पूरा हो सके।
पुलिस भी ऐसे लोगों पर तभी शिकंजा कसती है जब अपनी जान बचाने की नौबत आ जाए और राजनीतिक दबाव इस कदर बढ़ जाए कि कार्यवाही करने के अलावा कोई रास्‍ता ही न बचे अन्‍यथा वह खुद ऐसे तत्‍वों की ताबेदारी करने में पीछे नहीं रहती।
बहरहाल, आज नहीं तो कल.....कल नहीं तो कभी और..रंजीत सिंह कोहलियों का नंबर आता जरूर है। आज वह बेशक ताकतवर दिखाई देते हों और ऐसा महसूस कराते हों कि शासन-सत्‍ता एवं पुलिस-प्रशासन के उच्‍च अधिकारी उनके इर्द-गिर्द घूमते हैं लेकिन भविष्‍य में इसी तरह मिमियाते व गिड़गिड़ाते नजर आते हैं जैसे हर रंजीत सिंह कोहली को गिड़गिड़ाना पड़ता है। फिर चाहे वह झारखंड की राजधानी रांची में बैठकर लाइजनिंग कर रहा हो अथवा कृष्‍ण की जन्‍मभूमि मथुरा में बैठकर। कभी न कभी कोई तारा शाहदेव ऐसे तत्‍वों के पाप का घड़ा फोड़ने का ज़रिया बन ही जाती है।
- Legend News EXCLUSIVE
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