मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

राष्‍ट्रपति भवन व संसद भवन की जमीन का मुआवजा मांगा

नई दिल्ली। 
जिस जगह पर राष्ट्रपति भवन संपदा, संसद भवन व अन्य सरकारी दफ्तर बने हैं, उस जमीन का मुआवजा किसानों को न मिलने के दावे वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. याचिका में कहा गया है कि मालचा गांव के किसानों से वर्ष 1911-12 में उस वक्त जमीन का अधिग्रहण किया गया था, जब कोलकाता से बदल कर नई दिल्ली को राजधानी बनाया गया था. किसानों की तरफ से एडवोकेट डा. सूरत सिंह का कहना है कि मुआवजा राशि 2217 रुपए दस आना और ग्यारह पैसा दी जानी थी जो नहीं दी गई.
न्यायमूर्ति बीडी अहमद व आईएस मेहता की बेंच के समक्ष पेश मामले में उप राज्यपाल, भूमि एवं वन विभाग, शहरी विकास मंत्रालय को भी नोटिस जारी कर 23 मार्च तक जवाब मांगा है. किसानों की तरफ से एडवोकेट डा. सूरत सिंह ने अपनी जिरह में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए कहा कि वर्ष 1911-12 के दरमियान मालचा गांव के करीब 150 किसानों की 1700 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गई थी.
कहा गया कि इसी जमीन पर राष्ट्रपति भवन संपदा, संसद भवन व अन्य सरकारी दफ्तर बनाए गए. बेंच को बताया गया कि नए भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के मुताबिक अगर फैसला पांच साल या इससे पहले हुआ है और मुआवजा या जमीन का कब्जा नहीं लिया गया है तो माना जाएगा कि जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है. कहा गया कि यह कानून एक जनवरी 2014 से प्रभावी हुआ है.
यह भी बताया गया कि वर्ष 1911-12 के आदेश संख्या 30 के जरिए मालचा गांव की 1700 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी. सज्जन सिंह व अन्य की याचिका के अनुसार भुगतान रजिस्टर में दर्ज उनके पूर्वज शादी को जमीन के बदले 2217 रुपए, दस आना व ग्यारह पैसा मुआवजा मिलना था, जो कि अदा नहीं किया गया. याचिका में मांग है कि उनको मुआवजा दिलवाया जाए. 
-एजेंसी

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

रेप केस: उपमन्‍यु के घर फरारी का नोटिस चस्‍पा -एक पत्र ने भी किया अफवाहों का बाजार गर्म

पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु पर एमबीए की एक छात्रा के साथ बलात्‍कार किये जाने के आरोप में कल पुलिस ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए कोर्ट से सीआरपीसी की धारा 82 के तहत कार्यवाही करा ली है। पुलिस ने कल ही उपमन्‍यु के घर पर उसकी फरारी संबंधी सूचना का नोटिस भी चस्‍पा कर दिया है।
पीड़िता के अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार रेप के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के फरार हो जाने तथा पुलिस की गिरफ्त में न आने पर कल इस मामले की आई. ओ. महिला सब इंस्‍पेक्‍टर रीना ने संबंधित न्‍यायालय से सीआरपीसी की धारा 82 के तहत कार्यवाही किये जाने की अनुमति लेकर आरोपी के घर उसका नोटिस चस्‍पा कर दिया।
इस प्रक्रिया के बाद भी यदि उपमन्‍यु पुलिस अथवा कोर्ट के समक्ष हाजिर नहीं होता है तो पुलिस उसे फरार मानते हुए सीआरपीसी की धारा 83 के तहत उसकी चल-अचल संपत्‍ति कुर्क करने का आदेश ले सकती है।
सामान्‍य तौर पर 82 के बाद 83 की कार्यवाही करने के लिए पुलिस 30 दिन का समय लेती है किंतु यह समय निर्धारित नहीं है। यदि पुलिस को ऐसा लगता है कि आरोपी इस बीच में अपनी चल-अचल संपत्‍ति बेच सकता है तो वह 83 की कार्यवाही करने का आदेश कभी भी लेकर उसकी चल-अचल संपत्‍ति कुर्क कर सकती है।
उल्‍लेखनीय है कि उपमन्‍यु के खिलाफ न्‍यायालय ने गैर जमानती वारंट (NBW) पहले से जारी किया हुआ है।
चूंकि यह मामला यूपी जर्नलिस्‍ट एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्‍यक्ष, ब्रज प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष, मथुरा की छावनी परिषद् के पूर्व उपाध्‍यक्ष का तमगा प्राप्‍त तथा अधिवक्‍ता सहित बसपा की टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके एक प्रभावशाली पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु से ताल्‍लुक रहता है लिहाजा तरह-तरह की अफवाहों का बाजार भी इस बीच गर्म है।
पहले इस आशय की अफवाह उड़ी की भारी-भरकम रकम देकर उपमन्‍यु ने पीड़िता के परिवार से समझौता कर लिया है, और अब कल से एक नई अफवाह यह उड़ी कि इस मामले की तफ्तीश (जांच) को डीजीपी ने गैर जनपद (फिरोजाबाद) स्‍थानांतरित कर दिया है।
हद तो तब हो गई जब तफ्तीश चेंज होने के संबंध में पुलिस महानिदेशक उत्‍तर प्रदेश के कार्यालय से जारी दर्शाया हुआ डीजीपी आनंद लाल बनर्जी के तथाकथित हस्‍ताक्षरयुक्‍त वाला एक पत्र भी सोशल मीडिया पर तैरने लगा।
आगरा परिक्षेत्र की पुलिस उपमहानिरीक्षक श्रीमती लक्ष्‍मी सिंह के नाम से संबोधित इस पत्र में लिखा है कि हनुमान नगर निवासी सेना के पूर्व सूबेदार त्रिभुवन उपमन्‍यु के संलग्‍न पत्र का अवलोकन करें जो माननीय मुख्‍यमंत्री के कार्यालय से मुकद्दमा अपराध संख्‍या 944/2014 धारा 376 व 506 के संबंध में प्रेषित है और निष्‍पक्ष विवेचना गुण-दोष के आधार पर जनपद फिरोजाबाद से कराये जाने के संबंध में है।
पत्र में यह भी लिखा है कि उपरोक्‍त प्रकरण वादी के बताये गये तथ्‍यों के अनुसार संदिग्‍ध प्रतीत हो रहा है।
जांच स्‍थानांतरित करने के लिए जिन सज्‍जन पूर्व सूबेदार त्रिभुवन उपमन्‍यु के नाम का उल्‍लेख उक्‍त पत्र में किया गया है, बताया जाता है कि वह आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के सगे भाई हैं।
इस संबंध में जानकारी की गई तो पता लगा कि प्रथम तो प्रतिवादी पक्ष के किसी प्रार्थना पत्र पर जांच स्‍थानांतरित करने का कोई प्रावधान नहीं है और दूसरे इसी पत्र में यह भी लिखा है कि उपरोक्‍त प्रकरण वादी के बताये गये तथ्‍यों के अनुसार संदिग्‍ध प्रतीत हो रहा है  जबकि विरोधाभासी है क्‍योंकि इस मामले में पीड़िता खुद 'वादी' है।
इस सबके अलावा पत्र में डीआईजी को उनके व्‍यक्‍तिगत नाम से संबोधित किया जाना, बिना जांच के ही एक संगीन अपराध को संदिग्‍ध बताया जाना तथा पत्र की तारीख 22 को काटकर हाथ से 18 किया जाना आदि तमाम ऐसे कारण हैं जो पत्र को किसी सुनियोजित साजिश का हिस्‍सा साबित करते हैं।
हालांकि इस पत्र के आधार पर कल पूरे दिन अफवाहों का बाजार तो गर्म रहा ही, साथ ही यह दावा करने वालों की भी खासी संख्‍या सामने आती रही जिन्‍होंने कहा कि उनकी डीआईजी से बात हो चुकी है और उन्‍होंने जांच फिरोजाबाद स्‍थानांतरित किये जाने की पुष्‍टि कर दी है।
इतना सब-कुछ हो जाने तथा सोशल मीडिया पर भी प्रसारित होने के बावजूद आश्‍चर्यजनक रूप से पुलिस इस मामले में चुप्‍पी साधे रही जबकि यह एक संगीन साइबर क्राइम की श्रेणी में आता है।
इस तरह पुलिस विभाग के गोपनीय पत्र का मजमून तैयार करके उसे प्रसारित करना तथा उसके लिए प्रदेश के डीजीपी कार्यालय तथा डीजीपी के नाम व हस्‍ताक्षरों का इस्‍तेमाल करना अपने आप में बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है परंतु पुलिस ने ऐसा करने वाले का पता तक लगाना जरूरी नहीं समझा।
यूं तो इस रेप केस को लेकर पुलिस के कुछ आला अधिकारियों का रवैया शुरू से काफी लचीला रहा है परंतु अब ऐसे किसी पत्र को प्रसारित करने के मामले में भी पूरी तरह उदासीन बने रहना साइबर क्राइम को बढ़ावा देने से कम नहीं माना जा सकता।
जो भी हो, अब देखना यह है कि पुलिस इस मामले में आरोपी पत्रकार को गिरफ्त में ले पाती है अथवा ऐसी तरह-तरह की अफवाहों के बीच उसे कोर्ट में सरेंडर करने का मौका देती है ताकि सांप मर जाए और लाठी भी सही सलामत रहे।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

सोमवार, 22 दिसंबर 2014

हद कर दी आपने हुड्डा साहब, एक वकील की फीस 6 करोड़

चंडीगढ़। 
हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा की अगुवाई वाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने 6 करोड़ रुपये से ज्यादा की फीस पर सीनियर वकील केटीएस तुलसी की सेवाएं लीं। हरियाणा सरकार ने तुलसी की सेवा ऐसे समय में ली, जब उस पर 82,000 करोड़ रुपये का बकाया था। इस बात का खुलासा एक व्यापक पड़ताल से हुआ है। हरियाणा के एडवोकेट जनरल ऑफिस में 200 से ज्यादा लॉ ऑफिसर थे, इसके बावजूद राज्य सरकार ने मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट में हुई हिंसा के दोषियों के खिलाफ ट्रायल में केटीएस तुलसी को स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया गया। तुलसी की नियुक्ति जुलाई 2012 में की गई।
500 से ज्यादा डॉक्युमेंट्स का आंकलन करके पता लगाया गया कि हुड्डा ने तुलसी के फीस शेड्यूल को सेटल किए बगैर उनकी नियुक्ति की। 'भारी भरकम खर्च' को देखते हुए नौकरशाहों ने तुलसी की सेवाएं बंद करने की सलाह भी दी, लेकिन उनकी सेवाएं बनाए रखी गईं। हुड्डा सरकार ने बिना किसी देरी के न केवल तुलसी को 5.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया, बल्कि विधानसभा चुनावों से पहले उनके लंबित बिलों का भुगतान करने की भी कोशिश की। केटीएस तुलसी के पेंडिंग बिल्स करीब 65 लाख रुपये के थे।
हालांकि, अब मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने तत्काल प्रभाव से तुलसी की सर्विसेज बंद करने और लंबित बिलों की जांच करने का फैसला किया है। राज्य सरकार तुलसी की जगह पर 'रीजनबल फीस' लेने वाले एक सीनियर क्रिमिनल लॉयर को इंगेज करेगी। तुलसी की सर्विसेज लेने के तीन महीने से ज्यादा समय के बाद उनके फीस शेड्यूल (इसमें उनके तीन सहायक वकील भी थे) को फाइनल किया गया।
हालांकि, राज्य के एडवोकेट जनरल हवा सिंह हुड्डा ने 24 अगस्त 2012 को सरकार से कहा था कि फीस शेड्यूल को पहले से तय किया जाए। उन्होंने कहा था कि अगर पहले से फीस तय नहीं की गई, तो इसे स्वीकार करना कठिन हो जाता है। तत्कालीन एडवोकेट जनरल ने राज्य को यह भी सलाह दी थी कि तुलसी से सुनवाई की प्रभावी तरीकों के फीस बिल देने को कहा जाए।
तत्कालीन मुख्यमंत्री ने तुलसी और उनके तीन सहायक वकीलों के फीस शेड्यूल को एक ही दिन मंजूरी दी है। तुलसी पर किए जाने वाले खर्च का मामला एक आरटीआई से सामने आया है। गुड़गांव के रहने वाले एक शख्स ने जनवरी 2013 में सूचना के अधिकार के तहत तुलसी और उनके जूनियर पर किए गए खर्च का ब्योरा मांगा था। मई 2013 में गृह सचिव ने ऑफिशल फाइल पर एक नोट लिखा, जिसमें भारी खर्च बचाने के लिए यह केस पब्लिक प्रॉसीक्यूटर्स को देने की बात कही गई थी।

सफेदपोशों की काली जमात के बीच SSP साहिबा

मथुरा। 
ड्यूटी की खातिर हर वक्‍त 'खाक' में मिलने की प्रेरणा देने वाली 'खाकी वर्दी' को अपने बदन पर सजाकर रौब गांठने वाले पुलिस अफसर ही जब उसकी इज्‍जत से खिलवाड़ करने पर आमादा हो जाएं तो उसका इकबाल कायम कैसे रहेगा और कैसे कानून का राज स्‍थापित होगा?  
यह प्रश्‍न यूं तो कोई नए नहीं हैं, और हर उस घटना के बाद उठते हैं जिसमें पुलिस की भूमिका संदिग्‍ध प्रतीत होती है परंतु जहां जिले की कमान संभाले बैठे पुलिस कप्‍तान की ही भूमिका साफ-साफ पक्षपाती प्रतीत होती हो, वहां ऐसे किसी प्रश्‍न की अहमियत काफी बढ़ जाती है।
यह अहमियत तब और बढ़ जाती है जब मामला बलात्‍कार जैसे घृणित आपराधिक कृत्‍य का हो तथा आरोपी एक तथाकथित पत्रकार या यूं कहें कि हाईप्रोफाइल 'लाइजनर' हो जबकि पुलिस की कमान महिला पुलिस अधिकारी के हाथ में हो।
कमलकांत उपमन्‍यु पर बलात्‍कार का आरोप लगने के बाद कहने को तो कई ऐसे सफेदपोश लोग उसके पक्ष में सक्रिय हो गये जो किसी न किसी रूप में उसके रैकेट का हिस्‍सा हैं, परंतु इसमें सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण भूमिका यदि कोई अदा कर रहा है तो वह हैं जिले की महिला पुलिस कप्‍तान मंजिल सैनी।
बेशक मंजिल सैनी तक पहुंचने व उनसे रूबरू होकर सवाल-जवाब करने की हिमाकत हर कोई नहीं कर सकता लेकिन जानना सब चाहते हैं कि आखिर कमलकांत उपमन्‍यु से उनका ऐसा कौन सा रिश्‍ता है, जिसे निभाने के लिए उन्‍होंने न केवल अपने बदन पर सजी खाकी वर्दी की इज्‍जत से खिलवाड़ करने में हिचक नहीं दिखाई बल्‍कि एक सामर्थ्‍यवान महिला होने के बावजूद एक लड़की के प्रति होने वाली स्‍वाभाविक संवेदना को भी महसूस नहीं किया।
3 दिसंबर को पीड़ित लड़की द्वारा पहली बार पुलिस को अपना प्रार्थना पत्र सौंपे जाने से लेकर अब तक 19 दिन गुजर गए लेकिन अब तक कप्‍तान साहिबा नित-नये तरीके निकालकर आरोपी पत्रकार को बचने और पीड़िता व उसके परिवार पर समझौते के लिए दबाव बनाने का पूरा मौका दे रही हैं।
देखा जाए तो इस तरह वह खुद एक आपराधिक कृत्‍य की भागीदार बन रही हैं और आगे जाकर उन्‍हें इसके लिए सक्षम व्‍यक्‍ति के सामने जवाब देना पड़ सकता है लेकिन फिलहाल तो उपमन्‍यु के प्रति उनकी अतिरिक्‍त सहानुभूति, उनकी ड्यूटी एवं कानून से परे जा चुकी है।
आम जनता की बात यदि छोड़ भी दें तो उनके अपने महकमे और यहां तक कि प्रशासनिक अधिकारियों के बीच भी उनकी आरोपी को लेकर बरती जा रही यह अतिरिक्‍त सहानुभति खासी चर्चा का विषय है।
आश्‍चर्य की बात है कि न्‍यूज़ चैनल आजतक की टीम द्वारा अपने कार्यक्रम 'वारदात' के लिए जब उनसे इस बावत बातचीत की गई तो वह आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के प्रति सम्‍मानजनक व आदरसूचक शब्‍दों का इस्‍तेमाल करती नजर आईं।
यही कारण है कि 19 दिन बाद तक एक ओर जहां आरोपी पत्रकार पुलिस की पकड़ से दूर है वहीं दूसरी ओर सारी जरूरी कानूनी प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद भी आरोपी के गुर्गे लगातार पीड़िता व उसके परिवार पर समझौते के लिए दबाव बनाने तथा उन्‍हें लोभ-लालच देकर बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं।
वह हर रोज लोगों के बीच एक नई अफवाह फैलाते हैं। कभी कहते हैं इतनी रकम लेकर पीड़िता के पिता ने समझौता कर लिया है और कभी कहते हैं कि आरोपी पत्रकार उपमन्‍यु, रेप पीड़िता से शादी करने जा रहा है।
ताज्‍जुब तो तब होता है जब इन अफवाहों की मौखिक पुष्‍टि खुद को बुद्धि का पुतला मानने वाले पत्रकार भी करते हैं और अपने आप को कानून का विशेषज्ञ समझने वाले परंतु उपमन्‍यु छाप कुछ अधिवक्‍ता भी। उपमन्‍यु के दरबारी बहुत से नेता भी इसमें शामिल हैं।
उन्‍हें यह तक नहीं पता कि अब यह केस जिस मुकाम पर जा पहुंचा है, वहां सुलह-समझौते का फिलहाल कोई रास्‍ता नहीं बचा। जो संकरा सा और बेहद जटिल रास्‍ता बचा भी है तो उसके लिए आरोपी पत्रकार उपमन्‍यु को पहले कोर्ट में ट्रायल फेस करना होगा। जाहिर है कि इसके लिए पहले या तो उसकी गिरफ्तारी होगी या फिर उसे न्‍यायालय में समर्पण करना होगा।
कुल मिलाकर अब उपमन्‍यु के लिए अपने स्‍तर पर अथवा अपने रैकेट का हिस्‍सा रहे तथाकथित उद्योगपतियों, बिल्‍डरों, पत्रकारों, नेताओं, शिक्षा माफियाओं व सफेदपोशों के स्‍तर से निपटा पाना संभव नहीं रहा।
संभव है तो यह कि वह अब उसी अंदाज में इस केस का सामना करे जिस अंदाज में ''आजतक'' के कैमरे का किया था।
उसके गुर्गे और उसके यहां इकठ्ठी होने वाली सफेदपोश चापलूसों की जमात को भी यह बात अब समझ लेनी चाहिए कि जुडीशियरी की दलाली करके, अधिकारियों के साथ बैठकर चाय-नाश्‍ता करके, पैसे के बल पर समाजसेवी का ठप्‍पा लगाकर तथा अपने पेशेगत कर्म का सौदा करके बेशक वह काफी समय से कानून को चकमा देते आ रहे हैं किंतु अब उनके चेहरों से भी नकाब उतरने का समय शुरू हो चुका है।
2014 की विदाई और 2015 का आगमन उनके अब तक के कारनामों का लेखा-जोखा सामने लाने को तैयार है।
बस देखना यह है कि किसका हिसाब-किताब पहले सामने आता है और किसका नंबर बाद में लगता है।
मंजिल सैनी तो आज या कल इस जनपद से रुखसत होंगी ही, और हर अधिकारी मंजिल सैनी हो नहीं सकता।
निश्‍चित ही अब इस जनपद में आने वाले अधिकारी तथाकथित सभ्रांत और सफेदपोशों की जमात का हिस्‍सा बनने से पहले एक बार सोचने पर मजबूर जरूर होंगे।
वह जरूर जानना चाहेंगे कि कुछ खास लोग एक जगह एकत्र होकर क्‍यों उनके जैसे पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को चाय-नाश्‍ते के साथ मिठाई सर्व करते हैं और क्‍यों फिर चुपके से उनकी क्‍लिपिंग बनवा लेते हैं।
ऐसी क्‍लिपिंग जो आज सोशल मीडिया का हिस्‍सा बनकर कई अधिकारियों एवं सफेदपोशों के बीच नापाक रिश्‍ते का सच तो सामने ला ही रही है, साथ ही तमाम उसी तरह के सवाल भी खड़े कर रही है जिस तरह के सवाल बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु, एसएसपी मंजिल सैनी सहित उन लोगों को लेकर उठ रहे हैं जिन्‍हें एक गरीब परिवार की पढ़ी-लिखी लड़की का दर्द कतई महसूस नहीं हुआ लेकिन आरोपी का सच सामने आने की चिंता पहले दिन से सताने लगी थी।
बहरहाल, तमाम दबावों के बाद भी कानून काफी हद तक अपना काम कर चुका है और लोगों में इस आशय का संदेश देने में सफल रहा है कि सफेदपोशों की काली जमात का सच भी देर-सबेर सामने जरूर आयेगा।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष  

गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

BSNL के GM का घर और दफ्तर सील

नोएडा। 
नोएडा में आज एक बार फिर छापेमारी के बाद हड़कंप मच गया। इस बार छापा भारतीय संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के महाप्रबंधक (जीएम) के घर और कार्यालय में मारा गया है। यह छापेमारी केंद्रीय अन्‍वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की दो विशेष टीम कर रही हैं।
नोएडा के सेक्टर 19 स्थित बीएसएनएल जीएम के ऑफिस में आज सीबीआई की टीम ने छापा मारा। इस दौरान सीबीआई की करीब पांच लोगों की टीम ने ऑफिस के सभी विभागों के कंप्यूटर स्कैन कर डाटा कॉपी कर लिए।
बीसएसएनएल के सूत्रों के मुताबिक सीबीआई टीम खासतौर पर टेंडर संबंधी फाइलों की जांच-पड़ताल कर रही है। सीबीआई टीम को विभाग के कई कामों में घपलेबाजी की आशंका है।
बीएसएनएल महाप्रंबंधक आदेश कुमार गुप्ता के ऑफिस के साथ ही उनके नोएडा सेक्टर-39 स्थित निवास पर भी छापा मारा गया। वहां सीबीआई की दूसरी टीम पहुंची।
सूत्रों के मुताबिक सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी ने फोन पर सीबीआई टीम को निर्देश दिए हैं कि फाइलों की जांच-पड़ताल के दौरान आदेश कुमार गुप्ता को घर से बाहर बिठाकर रखा जाए। ताकि वह जांच को प्रभावित न कर सकें।
इस बाबत आदेश कुमार गुप्ता को घर के बाहर बैठाकर पूछताछ की जा रही है। जबकि उनके घर पर किसी भी आने-जाने पर रोक लगा दी गई है। मामले पर जब अमर उजाला ने सीबीआई अफसरों बातचीत करनी चाही, तो उन्होंने इसे फाइलों की जांच-पड़ताल संबंधी छापेमारी बताया।

बुधवार, 17 दिसंबर 2014

किशनी से लेकर कृष्‍ण के धाम तक...

आगरा से प्रकाशित दैनिक जागरण अखबार के सातवें पृष्‍ठ पर बॉटम में एक खबर छपी है। इस सिंगल कॉलम खबर का शीर्षक है- दुष्‍कर्म के बाद मुकद्दमे का इंतजार, थाने में बैठी किशोरी।
खबर के अनुसार विधवा और गूंगी-बहरी अपनी मां के साथ किशनी थाना क्षेत्र के गांव ढकरोई में रह रही एक पंद्रह वर्षीय किशोरी को गांव के ही 45 वर्षीय सरविंद उर्फ पुलंदर बाथम ने तब अपनी हवस का शिकार बना डाला जब वह शौच के लिए खेत पर गई थी।
मंगलवार सुबह 7 बजे की गई इस वारदात का मुकद्दमा लिखाने थाने पहुंची किशोरी के प्रार्थना पत्र पर पुलिस ने जांच के आदेश दे दिये लेकिन मुकद्दमा दर्ज नहीं किया। मुकद्दमा दर्ज होने के इंतजार में पीड़िता देर शाम तक थाने पर ही बैठी थी।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि कस्‍बा किशनी, मैनपुरी जिले का हिस्‍सा है और वहां से सांसद हैं सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पौत्र तेज प्रताप सिंह यादव। वही तेज प्रताप सिंह यादव जिनका रिश्‍ता कल ही राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव की पुत्री राजलक्ष्‍मी के साथ तय हुआ है।
समाजवादी कुनबे के सबसे लाड़ले सदस्‍य की कांस्‍टीट्यूएन्‍सी में पुलिस का यह हाल है तो जाहिर है कि सूबे के अन्‍य जनपदों की पुलिस का इससे अलग कुछ होने से रहा।
फिर कृष्‍ण की नगरी मथुरा में तो समाजवादी पार्टी बदहाल है। यहां से न उसका कोई सांसद है और न विधायक। लाख प्रयास के बावजूद मुलायम के नेतृत्‍व वाला समाजवादी कुनबा यहां अपना खाता तक खोल पाने में कभी सफल नहीं हुआ।
समाजवादी पार्टी के लिए ऐसे सूखाग्रस्‍त क्षेत्र में यदि एमबीए की छात्रा से बलात्‍कार की वारदात का मुकद्दमा तीन दिन तक जांच कराने के बाद लिखा गया, तो इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई।
ऊपर से यहां तो लड़की जिस व्‍यक्‍ति के खिलाफ बलात्‍कार के आरोप की तहरीर लेकर गई थी, वह तमाम तमगों से विभूषित था।
वह उत्‍तर प्रदेश जर्नलिस्‍ट एसोसिएशन का प्रदेश उपाध्‍यक्ष, ब्रज प्रेस क्‍लब का अध्‍यक्ष, स्‍थानीय छावनी परिषद् का पूर्व उपाध्‍यक्ष होने के साथ-साथ पत्रकार था... वकील था... और पता नहीं क्‍या-क्‍या था। साथ में बसपा की टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुका था।
मथुरा की महिला एसएसपी मंजिल सैनी स्‍वयं उसके निजी कार्यक्रम का हिस्‍सा बनने उसके निवास तक पहुंच चुकी थीं।
उसे समाज के तमाम सफेदपोश सभ्रांत उद्योगपति, व्‍यापारी, नेता, बिल्‍डर, ब्‍यूरोक्रेट्स और पत्रकारों से न केवल चरित्र प्रमाण पत्र प्राप्‍त था बल्‍कि वह उसके दरबार की शोभा बढ़ाया करते थे। उसके यहां हर दिन हाजिरी लगाना बहुत से तथाकथित सभ्रांतजनों का शगल था।
कृष्‍ण का धाम जिन नेताओं के कारण समाजवादी पार्टी की पहचान बना हुआ है, वह भी बलात्‍कार के आरोपी की खुलेआम पैरवी कर रहे थे और एसएसपी से मुलाकात करके बता रहे थे कि पत्रकार को साजिश का शिकार बनाया जा रहा है।
दूसरी पार्टियों का भी कोई नेता उसके खिलाफ मुंह खोलने की जुर्रत नहीं कर सकता था क्‍योंकि सब आये दिन उसके लिए राग दरबारी का गायन करते रहे थे। अधिकांश पत्रकार तो हर दिन उसकी चौखट चूमने ऐसे जाया करते थे जैसे द्वारिकाधीश मंदिर की मंगला या शयन आरती करने बहुत से उनके भक्‍त बेनागा जाते हैं।
इन हालातों में मंजिल सैनी यदि बलात्‍कार के आरोपी को लेकर किसी मंजिल तक फिलहाल नहीं पहुंच पाईं हैं, तो उन्‍हें दोष देना भी किसी साजिश का हिस्‍सा लगता है। एफआईआर तो कोई भी किसी के खिलाफ लिखा सकता है।
मंजिल सैनी ने तो उसके बाद बहुत कुछ करवा दिया। कई दिन बाद ही सही लेकिन पीड़िता का मेडीकल कराया, 161 के बयान कराये, उससे पहले खुद उससे सफाई मांगी, उसके अगले दिन कोर्ट में 164  के बयान कराये।
बाकी रह गई गिरफ्तारी...तो वह होती रहेगी। तब तक आरोपी को पीड़िता और उसके परिजनों से जबरन सुलह-सफाई कराने का अवसर देने में क्‍या हर्ज है।
इसके लिए पीड़िता के परिजनों पर एक नहीं, दो-दो मुकद्दमे कायम किये गये। सुलह-सफाई के लिए वो उपलब्‍ध रहें इसलिए गिरफ्तारी उनकी भी नहीं की गई।
एसएसपी महोदया भी आखिर हैं तो सामाजिक प्राणी, वह भी समाज का हिस्‍सा हैं और इसीलिए मानती हैं कि जो काम समाज के तथाकथित ही सही पर सभ्रांत तत्‍वों द्वारा समझौता करके संपन्‍न करा लिया जाता है, वह कानून नहीं कर पाता।
समझौते के लिए समय की दरकार होती है, इसलिए समय अफरात में दिया जा रहा है। यूं भी उनके पास समय की कमी होती तो वह निजी कार्यक्रमों का हिस्‍सा बनने नहीं जातीं।
रहा सवाल ''आजतक'' जैसे राष्‍ट्रीय चैनल का... तो उसने अपने कार्यक्रम ''वारदात'' में 'कानून का रेप' जैसे शीर्षक वाली सनसनीखेज रिपोर्टिंग करके क्‍या कर लिया। एसएसपी महोदया को न गिरफ्तारी करनी थी, न की।
करें भी क्‍यों...जब किशनी से लेकर कृष्‍ण के धाम तक समाजवादी पुलिस का रवैया आम आरोपियों के लिए एक समान है तो खास आरोपियों के साथ खास व्‍यवहार करना कैसे गुनाह हो सकता है।
मथुरा में बलात्‍कार की शिकार लड़की के 3 तारीख के प्रार्थना पत्र पर 6 तारीख को मुकद्दमा दर्ज करा दिया, 11 तारीख को 161 के बयान तथा मेडीकल करवा दिया, 12 तारीख को 164 के बयान कराकर अपना कर्तव्‍य पूरा कर दिया। उसी दिन पीड़िता के बयानों की कोर्ट से नकल लेने के लिए एप्‍लीकेशन डाल दी। 15 तारीख को नकल हासिल कर ली।
इतना कुछ कर डाला सिवाय एक गिरफ्तारी के, तो इसमें इतनी हायतौबा मचाने वाली क्‍या बात है।
जब लड़की करीब डेढ़ साल तक यौन उत्‍पीड़न सहने के बाद एफआईआर करा सकती है तो पुलिस उसकी जांच के लिए साल-छ: महीने का समय नहीं ले सकती। इसमें गलत क्‍या है।
और फिर बिना जांच के ऐसे कैसे किसी सभ्रांत पत्रकार को गिरफ्तार किया जा सकता है। जांच होती किसलिए है। जांच में कोई आंच आरोपी पर नहीं आई तो पुलिस किसे मुंह दिखायेगी।
तभी तो कृष्‍ण का धाम हो या तेजू भैया की किशनी...बिना जांच के रेप जैसे संगीन आरोप की एफआईआर दर्ज नहीं की जाती।
एक जांच एफआईआर से पहले और एक जांच एफआईआर के बाद...यही है सच्‍चा समाजवाद और इसी को कहते हैं समाजवादी सरकार का इकबाल।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

सोमवार, 15 दिसंबर 2014

उपमन्‍यु तो मुखौटा, असली चेहरे सामने आना बाकी

मथुरा। 
किसी भी मामले का पूरा सच सामने लाने के लिए उस पर चढ़े मुखौटे का हटना जरूरी होता है। मुखौटे हमेशा सच्‍चाई को छुपाने में बड़ी भूमिका अदा करते हैं। मुखौटों को मोहरा बनाकर खेल खेलने वाले जानते हैं कि यदि एक बार सच्‍चाई सामने आ गई तो वो कहीं के नहीं रहेंगे इसलिए वो मुखौटों को बेनकाब होने से बचाने की कोशिश में अपना सब-कुछ दांव पर लगा देते हैं।
कमलकांत उपमन्‍यु पर बलात्‍कार के आरोप की पुष्‍टि एक लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद संभव है, और इस प्रक्रिया का हिस्‍सा चाहे-अनचाहे पीड़िता को भी बनना होगा। जाहिर है कि इस प्रक्रिया के पूरे होने में समय भी अच्‍छा-खासा जाया होगा किंतु इस बीच एक  बात जरूर खुलकर सामने आ गई कि कमलकांत उपमन्‍यु सिर्फ एक मुखौटा है और उसके पीछे एक-दो नहीं, तमाम चेहरे छिपे हैं। वो चेहरे जिनका सच यदि सामने आ गया तो कमलकांत उपमन्‍यु के अनेक संस्‍करण सामने खड़े दिखाई देंगे।
यही कारण है कि अब ये चेहरे कमलकांत उपमन्‍यु को बचाने के लिए ऐड़ी से चोटी तक का जोर लगा रहे हैं, बिना यह सोचे-समझे कि जिस समाज का वह हिस्‍सा हैं वही समाज उन पर थूक रहा है।
इनमें से कोई बिना उद्योग के उद्योगपति का तमगा प्राप्‍त है तो कोई लगभग अंगूठा टेक होते हुए शिक्षाविद् है, कोई पत्रकारिता की आड़ में मीडिया माफिया है तो कोई राजनीति के चोले में प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त गुण्‍डा है। जो सब-कुछ होते हुए कुछ नहीं हैं लिहाजा समाजसेवी का तमगा लगाकर चलते हैं, वो भी इसमें शामिल हैं। पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारी हैं, बिल्‍डर हैं, सत्‍ता के दलाल हैं, भूमाफिया हैं, धर्म की दुकान चलाने वाले तथाकथित साधु-संतों से लेकर कथावाचक तक हैं, और जुडीशियरी को अपनी जेब में रखकर चलने का दावा करने वाले सफेदपोश लाइजनर भी हैं। बहुत लंबी लिस्‍ट है ऐसे लोगों की। यह लिस्‍ट कितनी लंबी हो सकती है, इसका अंदाज उन फोटोग्राफ्स को देखकर लगाया जा सकता है जिन्‍हें कमलकांत उपमन्‍यु ने अपने कार्यालय और सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक व गूगल प्‍लस की वॉल पर सजा रखा है।
नि:संदेह इनमें से कई चेहरे ऐसे भी हैं जिन्‍हें कमलकांत उपमन्‍यु ने अपने साथ खड़ा करके फोटो खिंचवाने पर बाध्‍य कर दिया और कई चेहरे ऐसे भी हैं जिनके लिए उसके साथ फोटो खिंचवाना मजबूरी था परंतु अधिकांश चेहरे उस कॉकस का हिस्‍सा हैं जिसका खुद कमलकांत एक मुखौटा था, या यूं कहें कि एक इकाई भर है।
कमलकांत उपमन्‍यु तो अपनी ही उस हवस का शिकार बन गया जिसे उसने महत्‍वाकांक्षाओं को पूरा करने का माध्‍यम बनाया था। अन्‍यथा वह अकेला नहीं है, एक पूरा रैकेट है जो बहुत लंबे समय से अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहा है।
बेशक इस रैकेट के अपने तर्क हैं और इसमें शामिल तत्‍व यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि कमलकांत उपमन्‍यु को साजिश का शिकार बनाया जा रहा है किंतु ऐसे बेहिसाब तर्क हर उस शख्‍स के पास होते हैं जो कानून के शिकंजे में फंस जाता है।
आसाराम बापू हो या कथित संत रामपाल, नित्‍यानंद हो या पत्रकार तरुण तेजपाल...सबके पास अपने पक्ष में कहने को काफी कुछ होता है। यहां तक कि आतंकवादी और नक्‍सली भी अपने पक्ष में अनगिनित तर्क गढ़ लेते हैं और खुद को जायज ठहराने का पूरा प्रयास करते हैं परंतु सच्‍चाई को छिपा पाना संभव नहीं होता।
साम, दाम, दण्‍ड तथा भेद से अपने कर्मों पर पर्दा डालने की कोशिश अंत तक हर आरोपी करता है और यही उपमन्‍यु के मामले में भी किया जा रहा है।
वर्षों से एकत्र ताकत के बल पर यह कोशिश कितने दिन और जारी रहती है, इसका पता तो बाद में ही लगेगा किंतु नजीता बदल पाना अब संभव शायद ही हो क्‍योंकि कानूनी प्रक्रिया एक ठोस मुकाम हासिल कर चुकी है।
ये बात दीगर है कि दुराचार के मामले में 164 के बयान दो दिन पहले ही पूरे हो जाने के बाद आज उनकी नकल आईओ को लेनी थी लेकिन समाचार लिखे जाने तक आईओ नकल लेने कोर्ट नहीं पहुंची जबकि इस बावत प्रार्थना पत्र उसने शुक्रवार के दिन ही लगा दिया था।
पीड़िता के अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत ने बताया कि जब आईओ रीना से ऐसा किये जाने की वजह जानना चाही तो उसने यह कहकर फोन काट दिया कि मैं कुछ कहने अथवा बताने की स्‍थिति में नहीं हूं।
प्रदीप राजपूत ने कहा कि पुलिस का यह व्‍यवहार अप्रत्‍याशित है और वह इसके खिलाफ कोर्ट में अलग से आज शाम को ही प्रार्थना पत्र देंगे ताकि कोर्ट अपने स्‍तर से कार्यवाही आगे बढ़ा सके।
पूरे घटनाक्रम पर प्रदीप राजपूत का भी यही कहना है कि यदि इस मामले की जांच किसी निष्‍पक्ष एजेंसी से कराई जाए तो ऐसे-ऐसे चेहरे बेनकाब होंगे जिन्‍हें अब तक समाज में प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त है और जो सभ्रांत होने का लबादा ओढ़े घूम रहे हैं। जो शेर की खाल में भेड़िये तो हैं ही, साथ ही एक कमलकांत उपमन्‍यु के फंसने पर अनेक कमलकांत उपमन्‍यु पैदा करने का माद्दा रखते हैं क्‍योंकि उन्‍हें अपने धंधे को सुचारू रुप से चलाने के लिए किसी न किसी कमलकांत उपमन्‍यु की दरकार हमेशा रहती है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

उपमन्‍यु केस: पुलिस को कराने पड़े 164 के बयान

मथुरा। 
ऐसा लगता है कि एमबीए की छात्रा का यौन शोषण करने के आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के तथाकथित शुभचिंतक या तो बेहद मूर्ख हैं या फिर इतने अधिक चालाक कि वह उसके शुभचिंतक बनकर ही उसे पूरी तरह बर्बाद कर देना चाहते हैं ताकि फिर वह कभी पनप ही न सके।
उपमन्‍यु के इन शुभचिंतकों ने पहले तो जैसे ही यह भनक लगी कि पीड़ित लड़की पुलिस में जाने की तैयारी कर रही है, उसके परिजनों पर पेशबंदी में एफआईआर दर्ज कराने की सलाह दे डाली। फिर यह एफआईआर उपमन्‍यु के अपने ही चेलों से करवा दी ताकि जवाबदेही भी उसी की रहे।
हद तो तब हो गई जब उन्‍हीं शुभचिंतकों ने यह प्रचार भी कर दिया कि एफआईआर उपमन्‍यु को बचाने के लिए कराई गई है और इसीलिए एफआईआर के लिए दी गई तहरीर में उपमन्‍यु के खिलाफ साजिश रचे जाने का जिक्र भी कर दिया।
इन्‍हीं शुभचिंतकों ने एक अखबार की खबर में उपमन्‍यु के खिलाफ लिखे गये मुकद्दमे को क्रॉस केस घोषित करके रही-सही कसर पूरी कर दी ताकि वह आगे भी किसी से यह तक कह न सके कि पीड़िता के परिजनों पर मुकद्दमा कायम कराने में उसका कोई हाथ नहीं था।
अब खबर आई है कि उपमन्‍यु के पक्ष में उनके शुभचिंतकों ने करीब 3 सैकड़ा शपथपत्र इस आशय के एसएसपी को दिलवाये हैं कि उसे फंसाया गया है और वह तो बहुत इन्‍नोसेंट व्‍यक्‍ति है। इन शपथ पत्रों में एक शपथ पत्र पीड़िता के परिवार से ताल्‍लुक रखने वाली उस महिला का भी है जो पहले वीडियो कैमरे के सामने उपमन्‍यु पर बेहद घृणित आरोप लगा चुकी है। अब उसके शपथ पत्र की कितनी अहमियत होगी, इसका अंदाज उपमन्‍यु के शुभचिंतकों को छोड़कर कोई भी व्‍यक्‍ति लगा सकता है।
शपथपत्र दिलवाने वाले अक्‍ल के इन दुश्‍मनों ने इतना भी नहीं सोचा कि इस तरह तो वह लड़की व उसके परिजनों द्वारा कही जा रही उन बातों को तस्‍दीक ही कर रहे हैं कि कमलकांत उपमन्‍यु बेहद पॉवरफुल व्‍यक्‍ति है और वह कुछ भी करवा सकता है।
घोर आश्‍चर्य की बात है कि उपमन्‍यु के इन शुभचिंतकों में वकील भी हैं और पत्रकार भी, उद्योगपति भी हैं और टेक्‍नीकल एजुकेशन हब के मालिकान भी। वह खुद भी अपने आप को पत्रकार के साथ-साथ वकील लिखने लगा है।
घोर बुद्धिमानों की फौज और उसके मुखिया कमलकांत उपमन्‍यु ने 300 शपथपत्र एसएसपी को दिलवाने से पहले यह तो विचार किया होता कि इसी तरह यदि कोई दुराचार के आरोप से बच सकता तो तथाकथित संत आसाराम बापू भी आज जेल की सलाखों के पीछे नहीं होता।
आसाराम बापू तो अपने पक्ष में तीन लाख शपथपत्र दिलवा सकता था और जरूरत पड़ती तो यह संख्‍या 30 लाख भी हो सकती थी।
अक्‍ल के दुश्‍मन इन शुभचिंतकों को क्‍या यह नहीं मालूम कि इस तरह के चरित्र प्रमाण पत्रों को कोर्ट भी कोई मान्‍यता नहीं देतीं और इनका यही मैसेज जाता है कि आरोपी वाकई बहुत ताकतवर तथा धूर्त है।
एक ऐसे ही दूसरे तथाकथित संत रामपाल को अपनी निजी फौज और अनुयायी खड़े करके कानून से बड़ा साबित करना कितना मंहगा साबित हुआ, क्‍या यह भी उपमन्‍यु के शुभचिंतक भूल गये।
उपमन्‍यु की आस्‍तीन के सांपों को क्‍या वाकई यह नहीं मालूम कि उनका हर ऐसा कदम उपमन्‍यु के लिए नई मुसीबत बन रहा है क्‍योंकि इससे पीड़िता के आरोपों की पुष्‍टि होती जा रही है।
जहां तक सवाल एसएसपी मंजिल सैनी का अब तक उपमन्‍यु के पक्ष में खड़ी दिखाई देने का है तो वह भी उपमन्‍यु तथा स्‍वयं उनके अपने लिए परेशानी का सबब साबित होगा क्‍योंकि कोर्ट में केस जाने के बाद बहुत से प्रश्‍नों का जवाब उन्‍हें भी देना पड़ सकता है।
बताया जाता है कि बलात्‍कार जैसे गंभीर मामले में एसएसपी की उपमन्‍यु के प्रति अतिरिक्‍त सहानुभूति का इल्‍म शासन को भी हो चुका है और इसीलिए वह आज कोर्ट में 164 के तहत पीड़िता के बयान दर्ज कराने पर बाध्‍य हुई हैं अन्‍यथा कल तक तो वह दो-तीन दिन बाद बयान कराने की जिद पर अड़ी हुई थीं।
शासन के सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार कल जैसे ही खबरों तथा अन्‍य माध्‍यमों से सेक्रेट्री होम तथा डीजीपी को सारे घटनाक्रम का पता लगा वैसे ही उन्‍होंने जवाब तलब कर जल्‍द से जल्‍द बयान कराने और उसके बाद गिरफ्तारी सुनिश्‍चित करने को कहा जिससे पीड़िता या उसके परिवार पर दबाव बनाने का रास्‍ता बंद हो।
उल्‍लेखनीय है कि कल जब पीड़िता 161 के तहत अपने बयान दर्ज कराने एसएसपी ऑफिस पहुंची थी तो उसने एसएसपी से अपनी जान को खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी, हालांकि एसएसपी ने उसके बाद भी उसे मात्र एक महिला सिपाही के साथ मेडीकल कराने जिला अस्‍पताल भेज दिया और कोर्ट में भी उसकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया।
बहरहाल, अब देखना यह है कि 161 के बयान, मेडीकल तथा अब 164 के बयान भी पूरे हो जाने के बाद एसएसपी मंजिल सैनी का अगला कदम क्‍या होता है... और क्‍या वह अब भी यही कहती रहेंगी कि जांच पूरी होने दीजिए, अगर उपमन्‍यु के खिलाफ लगाये गये आरोपों की पुष्‍टि होती है तो कार्यवाही जरूर होगी।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

मंत्री बनते ही 500 गुना बढ़ गई इनकी दौलत!

लखनऊ। 
मंत्री बनने के बाद गायत्री प्रसाद प्रजापति अरबपति हो गए। उनकी संपत्ति 500 गुना से ज्यादा हो गई है। लोकायुक्त के पास की गई एक शिकायत में कहा गया है कि भूतत्व और खनिकर्म मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति ने जब विधानसभा चुनाव में नामांकन किया था तब उनकी संपत्ति 1.81 करोड़ रुपये थी। लोकायुक्त ने भी इसकी पुष्टि शुक्रवार को कर दी।
मंत्री बनने के बाद उन्होंने 942.57 करोड़ रुपये की संपत्ति खड़ी कर ली है। साक्ष्य के रूप में अमेठी, लखनऊ सदर और मोहनलालगंज में प्रजापति द्वारा अपने, अपने परिवारीजनों, रिश्तेदारों और करीबियों के नाम से जमीन की रजिस्ट्री के दस्तावेज लगाए गए हैं। लोक आयुक्त कार्यालय ने शिकायत दाखिल किए जाने की पुष्टि की है।
शिकायत प्रतापगढ़ के ओम शंकर द्विवेदी ने की है। शिकायत के साथ हाईकोर्ट के वकील अजय प्रताप सिंह राठौर ने अपना वकालतनामा लगाया है। उन्होंने 1725 पन्ने साक्ष्य के रूप में पेश किए हैं। शिकायतकर्ता के वकील का दावा है कि अभी तो केवल अमेठी, लखनऊ सदर व मोहनलालगंज में ही खरीदी गई जमीनों की रजिस्ट्री शिकायत के साथ संलग्न की गई है। जैसे-जैसे अन्य संपत्तियों का पता चलेगा, लोक आयुक्त को जानकारी दी जाएगी।
इस मामले को लेकर गायत्री प्रसाद प्रजापति ने अपनी सफाई पेश की है। प्रजापति का कहना है कि ये उनके राजनैतिक विरोधियों की साजिश है। लोग दूसरों की संपत्ति को भी मेरी बताकर आरोप लगा रहे हैं। अगर ये आरोप सही साबित हुए तो मैं राजनीति से सन्यास ले लूंगा।
शिकायतकर्ता का कहना है कि प्रजापति खुद तो एपीएल कार्डधारक हैं ही, जिनके नाम उन्होंने जमीनें खरीदी हैं, उनमें से भी कई एपीएल कार्डधारक हैं जिनकी सालाना आय 24 हजार रुपये से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। ऐसे में सवाल यह है कि इनके पास जमीनें खरीदने का पैसा कहां से आया?
लोक आयुक्त न्यायामूर्ति एन.के. मेहरोत्रा ने बताया कि भूतत्व एवं खनिकर्म मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति की शिकायत मिली है। दस्तावेज काफी हैं, अभी इसे देखा नहीं है। शिकायत का परीक्षण करने के बाद ही इस बारे में कु छ कहा जा सकता है।

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

IPL स्‍पॉट फिक्‍सिंग: धोनी ही हैं संदिग्‍ध Individual No 2

मुंबई। 
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में मुख्य संदिग्ध गुरुनाथ मयप्पन टीम इंडिया और आईपीएल टीम चेन्नई सुपर किंग्स के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के होटल के कमरे में रोज जाते थे। मामले की जांच कर रही मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट में जिस ‘Individual No 2’ का जिक्र है, वह कोई और नहीं बल्कि कप्तान धोनी हैं।
बता दें कि 5000 पन्नों की मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है। सिर्फ जस्टिस मुद्गल द्वारा तैयार 29 पेज की सिनॉप्सिस संबंधित लोगों को दी गई है। इसमें क्रिकेटर्स के नाम का जिक्र नंबर से है।
जस्टिस मुकुल मुद्गल की ओर से अप्वाइंट किए गए जांच कर्ता बीबी मिश्रा की चार महीने लंबी चली जांच की रिपोर्ट में पता चला है कि ‘Individual No 2’ के कमरे में सीधी पहुंच रखने वाला कोई एक शख्स था, तो वे थे गुरुनाथ मयप्पन। धोनी बीसीसीआई की एंटी करप्शन यूनिट की पाबंदियों की वजह से हर रोज सभी से उस होटल के बिजनेस सेंटर में मिलते थे, जहां टीम ठहरी होती थी। हालांकि, जांचकर्ताओं ने पाया कि मयप्पन धोनी के कमरे तक सीधी पहुंच रखते थे। वह रोजाना, यहां तक कि आईपीएल 6 के मैचों के दौरान भी धोनी से सीधे संपर्क में होते थे।
होटल स्टाफ से पूछताछ में हुआ खुलासा
कई टीम अधिकारी, खिलाड़ी और होटल स्टाफ से पूछताछ के बाद जांचकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। मयप्पन की धोनी के कमरे तक सीधी पहुंच सिर्फ इस वजह से थी क्योंकि उन्हें चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक के तौर पर सभी से मिलाया गया था।
कोर्ट में दी थी अजीबोगरीब दलील
सुप्रीम कोर्ट में आईपीएल फिक्सिंग मामले में चल रही सुनवाई में बीसीसीआई के निर्वाचित प्रमुख और मयप्पन के रिश्तेदार एन श्रीनिवासन के वकील ने दलील दी थी कि मयप्पन को सट्‌टेबाजी में बड़ा नुकसान हुआ है। वकील के मुताबिक, अगर मयप्पन के पास अंदर की खबर होती तो उन्हें नुकसान नहीं होता लेकिन मुद्गल कमेटी के लिए जांच करने वाले मिश्रा की रिपोर्ट में पता चला है कि धोनी और मयप्पन रोजाना दो से तीन बार मिलते थे। मुद्गल कमेटी ने भले ही यह पाया हो कि मयप्पन वास्तव में सीएसके के अधिकारी थे और सट्‌टेबाजी में शामिल थे, श्रीनिवासन और टीम सीएसके ने जोर देकर कहा था कि मयप्पन का टीम के मामलों से कोई मतलब नहीं है और उन्हें टीम स्ट्रैटिजी की कोई जानकारी नहीं है।
-एजेंसी

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

अपने ही बिछाये जाल में फंस गये उपमन्‍यु !

मथुरा। 
लगता है कि पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु अपने ही बिछाये हुए जाल में फंस गये हैं। उपजा के प्रद्रेश उपाध्‍यक्ष, ब्रज प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष तथा मथुरा की छावनी परिषद् के पूर्व अध्‍यक्ष कमलकांत उपमन्‍यु ने पेशबंदी के लिए जिन लोगों का इस्‍तेमाल कर यौन उत्‍पीड़न पीड़िता के परिजनों पर दो मुकद्दमे कायम कराये हैं, उन दोनों के वादी उनके अपने ही चेले हैं और इसीलिए उन्‍होंने अपनी तहरीर में उपमन्‍यु के ऊपर बलात्‍कार का मुकद्दमा दर्ज कराने की साजिश का ज़िक्र किया।
उपमन्‍यु के बिछाये हुए जाल का खुलासा किसी और ने नहीं, फोटो खिंचाने के उनके उस जुनून ने ही कर दिया जिसके चलते वह हर दिन प्रमुख अखबारों की सुर्खियों का हिस्‍सा बनते रहे।
अब ज़रा इस खबर के साथ लगे फोटो पर गौर कीजिए। फोटो में चश्‍मा लगाये कमलकांत उपमन्‍यु के दाईं ओर (नीले घेरे में) खड़े व्‍यक्‍ति का नाम शिव कुमार शर्मा है और उसके बगल में लाल घेरे के अंदर खड़े व्‍यक्‍ति का नाम मुकेश शर्मा है। नटवर नगर निवासी ये दोनों वही लोग हैं जिन्‍होंने बलात्‍कार पीड़िता के परिजनों पर मुकद्दमे दर्ज कराये हैं।
ये फोटो तब का है जब कमलकांत के साथ ये दोनों लोग कहीं बाहर घूमने गये थे।
जाहिर है कि कमलकांत उपमन्‍यु का न केवल इनसे पुराना याराना है बल्‍कि इतने घनिष्‍ठ संबंध हैं कि साथ आना-जाना भी लगा रहता है। इस बात की पुष्‍टि इनके वो दूसरे फोटो भी करते हैं जिसमें शिव कुमार शर्मा की पुत्री व अन्‍य परिजन कमलकांत के साथ उत्‍तरांचल के एक धार्मिक स्‍थल की यात्रा करने गये थे और वहां धार्मिक क्रिया-कलापों एवं दान-पुण्‍य में सहभागिता करते दिखायी दे रहे हैं।
ऐसे में शिव कुमार शर्मा तथा मुकेश शर्मा द्वारा यौन उत्‍पीड़न की शिकार युवती के परिजनों पर अलग-अलग एफआईआर दर्ज कराने तथा उनमें कमलकांत उपमन्‍यु को किसी साजिश में फंसाने की आशंका ज़ाहिर करने का मकसद कोई भी समझ सकता है।
ये बात अलग है कि जो बात कोई सामान्‍य से सामान्‍य बुद्धि वाला व्‍यक्‍ति भी समझ सकता है, उसे न तो जिले की पुलिस कप्‍तान मंजिल सैनी ने समझा और न उनकी उस पुलिस ने जिसे जांच कर कार्यवाही करने का आदेश दिया गया था। स्‍पष्‍ट है कि कोई जांच की ही नहीं गई और बिना जांच किये ही पीड़िता के परिजनों पर दोनों मुकद्दमे दर्ज कर लिये गये।
उल्‍लेखनीय है कि इनमें से पहला मुकद्दमा भैंस बांधने को लेकर मारपीट करने का है तो दूसरा मुकद्दमा एक नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ करने तथा शिकायत करने पर तेजाब फेंककर जला देने की धमकी देने का है।
इन मुकद्दमों का सच और उसके पीछे छिपा मकसद सामने आने के बाद अब पीड़िता की तहरीर पर एसएसपी मंजिल सैनी की कथित जांच का सच भी सामने आ गया है और उस उद्देश्‍य का भी खुलासा हो गया है जिसके लिए वह यौन उत्‍पीड़न की शिकार युवती को न्‍याय दिलाने में अब तक हील-हुज्‍जत कर रही हैं।
पुलिस कप्‍तान साहिबा क्‍या अब भी यह कहेंगी कि कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने में उन्‍होंने अनावश्‍यक देरी नहीं की और पीड़िता के परिजनों पर दो-दो मुकद्दमे दर्ज कराने के पीछे एकमात्र मकसद उन्‍हें भयभीत करना तथा कमलकांत उपमन्‍यु को उन पर दबाव बनाने के लिए मौका देना ही था।
आश्‍चर्य होता है इस बात पर कि एक युवा महिला पुलिस अधिकारी किसी दूसरी युवती के साथ हुए अत्‍याचार को लेकर इतनी संवेदनाहीन हो जाए और आरोपी को बचाने के लिए उसका पूरा-पूरा साथ दे।
यही नहीं, एफआईआर दर्ज हो जाने के बावजूद अब तक न तो पीड़िता के बयान दर्ज़ कराये गये और न मेडीकल कराना जरूरी समझा।
पीड़िता के अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत का कहना है कि इस नये खुलासे के बाद भी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु की गिरफ्तारी न होना साफ करता है कि जांच अधिकारी व इलाका पुलिस एसएसपी के दबाव में है और इस कारण उसे पीड़ित पक्ष पर दबाब बनाने का पूरा अवसर मिल रहा है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

कैसे कोई बन जाता है कमलकांत उपमन्‍यु?

मथुरा। 
पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ दर्ज हुआ यौन उत्‍पीड़न का मामला भले ही अभी पुलिस की जांच का मोहताज हो किंतु इस मामले से एक बात जरूर स्‍पष्‍ट हो जाती है कि कैसे किसी अखबार का एक मामूली सा संवाद्दाता देखते-देखते करोड़ों का आसामी बन जाता है और कैसे पुलिस, प्रशासन, बड़े मीडियाकर्मी, व्‍यापारी, उद्योगपति, नेता एवं तथाकथित समाजसेवी न सिर्फ उसकी चाटुकारिता में दिन-रात एक कर देते हैं बल्‍कि एकतरफा हिमायत लेकर उसे बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
सबसे पहले बात करें यदि एसएसपी मंजिल सैनी की तो उन्‍होंने पीड़िता के भाई पर एफआईआर दर्ज कराने के लिए तहरीर देने वाले नटवर नगर निवासी शिव कुमार शर्मा से यह तक पूछना जरूरी नहीं समझा कि कमलकांत उपमन्‍यु से उसका क्‍या वास्‍ता है और क्‍यों वह अपनी तहरीर में इस बात का जिक्र कर रहा है कि उक्‍त लोग कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ रेप की एफआईआर कराने का षड्यंत्र रच रहे हैं। उन्‍हें कैसे पता लगा कि कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ साजिश के लिए वह उनके द्वारा एफआईआर कराने का इंतजार कर रहे हैं।
यदि मान लिया जाए कि कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ दुराचार जैसे गंभीर मामले में एफआईआर दर्ज कराने की ऐसी कोई साजिश रची जा रही थी तो उससे कमलकांत उपमन्‍यु क्‍यों अनभिज्ञ थे और क्‍यों उन्‍होंने खुद इस बावत कोई प्रार्थनापत्र पुलिस को नहीं दिया। वो भी तब जबकि शिव कुमार शर्मा को उनके खिलाफ रची जा रही साजिश का पता लग चुका था।
शिव कुमार शर्मा द्वारा दिए गये इस प्रार्थना पत्र पर एसएसपी ने 2 दिसंबर के दिन ही एसओ हाईवे को इस आशय के आदेश दे दिये थे कि वह जांच कर कार्यवाही करें तो फिर एफआईआर तब क्‍यों दर्ज की गई जब कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न का मामला दर्ज किया जा चुका था।
यहां एक सवाल यह और खड़ा होता है कि जब एसएसपी ने शिव कुमार शर्मा के प्रार्थना पत्र पर जांच के आदेश देकर कार्यवाही करने का लिखित आदेश दिया था और ऐसा ही आदेश कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न के आरोप संबंधी दिये गये प्रार्थना पत्र पर 3 दिसंबर को दिया गया था तो फिर दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कैसे कर ली गई। वो भी कई दिनों के अंतर से। यदि शिव कुमार शर्मा की तहरीर में लगाये गये आरोप सही थे तो कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न का केस कैसे दर्ज कर लिया गया और यदि कमलकांत उपमन्‍यु के ऊपर लगाये गये आरोप जांच के बाद सही पाये जाने पर एफआईआर दर्ज हुई है तो अब तक 164 में पीड़िता के बयान तथा उसका मेडीकल क्‍यों नहीं कराया गया जिससे जांच आगे बढ़ सके।
एसएसपी मंजिल सैनी अब भी यह कैसे कह रही हैं कि पत्रकार पर यौन उत्‍पीड़न के आरोपों की जांच के बाद आगे कार्यवाही की जायेगी।
क्‍या एसएसपी किसी को यह बताने का कष्‍ट करेंगी कि कितने मामलों में वह या उनकी पुलिस एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद जांच के उपरांत कार्यवाही करने की सुविधा देती है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि एसएसपी महोदया ही इस पूरे प्रकरण में एक तीर से दो शिकार करने का खेल, खेल रही हों ताकि सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे क्‍योंकि एसएसपी से आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु की निकटता तो उसके द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर उनके साथ लगाये गये उन फोटोग्राफ से साबित हो जाती है जिसमें एसएसपी उसके साथ उसके घर में पूजा करती दिखाई दे रही हैं।
अब रहा सवाल मीडिया जगत का, जो पहले तो इस पूरे प्रकरण पर चुप्‍पी साधे बैठा था लेकिन कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद जब अमर उजाला ने खबर प्रकाशित की तो उसने एकतरफा रिपोर्टिंग करके एक ओर जहां नैतिकता को पूरी तरह ताक पर रख दिया वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के उन आदेश-निर्देशों की खुली अवहेलना करनी शुरू कर दी जो यौन उत्‍पीड़न के केस में दिये हुए हैं।
आगरा से प्रकाशित प्रमुख अखबार हिंदुस्‍तान ने तो यह लिखकर कि ''क्रॉस केस में उपजा उपध्‍यक्ष को फंसाने पर एसएसपी ने जताया रोष,'' अपना व एसएसपी दोनों का मकसद साफ कर दिया है। हिंदुस्‍तान अखबार एक पक्षीय रिपोर्टिंग करने के चक्‍कर में यह तक भूल गया कि उसने इस तरह की खबर लिखकर पीड़िता सहित उसके पूरे परिवार की पहचान उजागर कर दी और इससे लड़की व उसके परिवार को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। साथ ही उसकी यह रिपोर्टिंग सर्वोच्‍च न्‍यायालय के आदेश-निर्देशों की अवहेलना तथा अवमानना की श्रेणी में आती है।
मथुरा से प्रकाशित एक अन्‍य दैनिक कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस ने तो नैतिकता व पत्रकारिता के नियमों सहित कानून को भी धता बताते हुए ''दूसरे पक्ष पर भी छेड़छाड़ व मारपीट के दो मुकद्दमे'' शीर्षक से बॉक्‍स के अंदर एक खबर प्रकाशित की है। इस तरह उसने तो पीड़ित लड़की के भाई को दूसरा पक्ष ही बता डाला है।
गौरतलब है कि यौन उत्‍पीड़न की शिकार किसी युवती अथवा महिला की पहचान सार्वजनिक नहीं की जा सकती और इसलिए खबर में उनके काल्‍पनिक नाम-पते लिखे जाते हैं लेकिन इन अखबारों ने पीड़िता के भाई व पिता का नाम तथा पता लिखकर उसकी व उसके पूरे परिवार की पहचान उजागर कर दी है। 
इस संबंध में पूछे जाने पर पीड़िता के अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत ने कहा कि वह पीड़िता और उसके परिवार की पहचान उजागर करने वाले अखबारों के संपादक, ब्‍यूरो प्रमुख एवं संवाद्दाताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने जा रहे हैं क्‍योंकि उनकी इस हरकत से पीड़िता व उसके परिवार को जान-माल का खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है। विशेष रूप से अखबारों की यह हरकत इसलिए पीड़िता व उसके परिवार को बड़ी हानि पहुंचा सकती है क्‍योंकि अब तक आरोपी पत्रकार पुलिस की गिरफ्त से बाहर है और वह तथा उसके दबंग गुर्गे पीड़िता के परिवार पर लगातार समझौता करने का दबाव बना रहे हैं।
अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत ने बताया कि वह इस संबंध में एसएसपी से भी मिलकर शिकायत करेंगे और पूछेंगे कि पीड़िता व उसके परिवार की पहचान उजागर करने वाले अखबारों के खिलाफ क्‍या कदम उठाने जा रही हैं।
कुल मिलाकर अखबारों की रिपोर्टिंग तथा पुलिस के रवैये से निश्‍चित तौर पर एक बात तो साफ हो जाती है कि यौन उत्‍पीड़न के आरोप में कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो जाने के कारण पुलिस और मीडिया ही नहीं, शहर के कई उद्योगपति, व्‍यापारी, नेता और अन्‍य तमाम तथाकथित सभ्रांत तत्‍व अपनी-अपनी रोटी सेक रहे हैं। कोई उपमन्‍यु का हिमायती बनकर अपना मकसद पूरा कर रहा है तो कोई उसके विरोध में खड़ा होकर। जैसे पूरा शहर दो खेमों में बंटकर रह गया है।
एक खेमे की मानें तो कमलकांत उपमन्‍यु को जीरो से हीरो बनाने में शहर के ऐसे ही तथाकथित सभ्रांत और विभिन्‍न व्‍यवसायों से जुड़े सफेदपोश माफियाओं का हाथ रहा है जिन्‍होंने उसे अपने लिए हथियार के रूप में इस्‍तेमाल किया तथा उसकी कमजोरियों का फायदा उठाया।
इस खेमे की मानें तो यह मामला सिर्फ एक लड़की के यौन उत्‍पीड़न या कमलकांत उपमन्‍यु तक सीमित नहीं है। इसकी यदि निष्‍पक्ष जांच हो तो सफेदपोश अपराधियों का बहुत बड़ा रैकेट सामने आ सकता है। ऐसा रैकेट जिसमें पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर जुडिशियरी के दलाल और भूमाफिया व शिक्षा माफिया तक शामिल हैं। ऐसे-ऐसे लोग इस रैकेट का हिस्‍सा हैं जिन्‍होंने अपने ही परिवार की महिलाओं तक को नहीं छोड़ा और उन्‍हें अपने काम कराने का जरिया बना रखा है।
दूसरा खेमा कहता है कि कमलकांत उपमन्‍यु की शौहरत व कम समय में अर्जित की गई दौलत को देखकर कुछ लोग उससे ईर्ष्‍या रखते हैं और इसी ईर्ष्‍या के चलते उसे निशाना बनाया गया है।
इन सबके अलावा एक वर्ग ऐसा भी है जो जानना चाहता है कि बिना किसी बिजनेस के आखिर कमलकांत उपमन्‍यु करोड़ों का आसामी कैसे बन गया और उसकी आमदनी का जरिया क्‍या है।
इन लोगों का स्‍वाभाविक प्रश्‍न यह भी है कि क्‍या जर्नलिज्‍म वाकई इतनी दौलत कमाने का माध्‍यम बन सकती है, वो भी तब जबकि कोई किसी ऐसे अखबार का मात्र रिपोर्टर हो जिसकी जिले में सैंकड़ों प्रतियां भी सर्कुलेट न होती हों।
यह लोग चाहते हैं कि वह और उससे जुड़े तमाम लोगों का सच एक बार सामने जरूर आए ताकि इस तिलिस्‍मी दुनिया से वह भी वाकिफ हों। वह जान सकें कि क्‍यों अखबार किसी खास पत्रकार को हर दिन कवरेज देते रहे हैं और क्‍यों वह पत्रकार समाज के हर ताकतवर वर्ग को अपनी ताबेदारी में खड़ा दिखाना चाहता है। आखिर क्‍या है ऐसा कि मंजिल सैनी जैसी महिला एसएसपी हो या बी चंद्रकला जैसे महिला डीएम, जिले का प्रभार संभालने के साथ उसके निजी कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए उसकी चौखट के अंदर तक जा पहुंचती हैं। यह जानते व समझते हुए कि उनकी नौकरी उन्‍हें यह सब करने की इजाजत नहीं देती।
यह जानते हुए कि महिला अधिकारी होने के नाते उनकी इस मामले में कुछ अतिरिक्‍त जिम्‍मेदारी बनती है और उनकी गतिविधियों पर उनके अधीनस्‍थों सहित जनपद भर के लोगों की नजर टिकी होती है।
कमलकांत उपमन्‍यु या पीड़िता के भाई पर लगे आरोपों का सच देर-सबेर सामने आयेगा ही, लेकिन इस पूरे प्रकरण में कोई न कोई सूत्रधार ऐसा अवश्‍य है जिसका बेनकाब होना सबके हित में जरूरी हो गया है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

सोमवार, 8 दिसंबर 2014

पत्रकार उपमन्‍यु के खिलाफ बलात्‍कार का केस दर्ज

मथुरा। 
उत्‍तर प्रदेश जर्नलिस्‍ट एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्‍यक्ष, ब्रज प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष तथा छावनी परिषद् मथुरा के पूर्व उपाध्‍यक्ष पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु पर एमबीए पास एक लड़की ने अपने साथ दुराचार तथा यौन उत्‍पीड़न सहित अपने परिचितों को जान से मारने की धमकी देने जैसे संगीन आरोप लगाये हैं।
पीड़ता का आरोप है कि कमलकांत उपमन्‍यु वर्ष 2013 में उसके घर के पास ही जब अपना एक दूसरा घर बनवा रहा था तब उसने उसके परिवार से संबंध बना लिये। इसके बाद वह उनके साथ जयपुर घूमने चला गया और वहीं उसने सर्वप्रथम अप्राकृतिक यौन संबंध स्‍थापित किये तथा मुंह खोलने पर पूरे परिवार को बर्बाद करने की धमकी दी।



पीड़िता के अनुसार इसके बाद उसके साथ तब से लेकर अब तक कमलकांत उपमन्‍यु खुद तो जबरन दुराचार करता ही रहा, इसके अतिरिक्‍त अन्‍य लोगों से भी संबंध बनवाने की कोशिश करने लगा। 
कमलकांत उपमन्‍यु के हनुमान नगर स्‍थित घर के निकट ही रहने वाली इस लड़की के अनुसार अपने साथ काफी समय तक हुए इस अत्‍याचार की तहरीर उसने 3 दिसंबर की दोपहर को ही एसएसपी ऑफिस पहुंचकर दे दी थी। तहरीर देने के बाद एसएसपी मंजिल सैनी ने उन्‍हें शाम को मिलने के लिए कहा और जब वह शाम को पहुंची तो उसकी तहरीर पर जांच के आदेश कर दिए।
लड़की और उसके परिजनों का कहना है कि जांच के नाम पर पुलिस ने कमलकांत उपमन्‍यु को मेरे ऊपर हर तरह से दबाव बनाने, मुझे डराने व धमकाने तथा तहरीर वापस लेने के लिए बाध्‍य करने का पूरा अवसर दिया किंतु जब मैंने पुलिस की इस हरकत से राष्‍ट्रीय महिला आयोग को अवगत कराया तथा उन्‍हें एसएसपी मंजिल सैनी तथा पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु की निकटता के साक्ष्‍य उपलब्‍ध कराते हुए शिकायती पत्र भेजा और न्‍याय न मिलने की स्‍थिति में संसद पर आत्‍मदाह कर लेने का एसएमएस प्रसारित किया तब 6 दिसंबर की शाम बमुश्‍किल कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ थाना हाईवे में आईपीसी की धारा 376 व 506 मुकद्दमा अपराध संख्‍या 944/ 2014 के तहत एफआई आर दर्ज की गई।
पीड़ित लड़की के अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत ने इस संबंध में बताया कि खुद एक महिला होने के बावजूद एसएसपी मंजिल सैनी द्वारा कमलकांत उपमन्‍यु को लगातार बचाने के प्रयासों की वजह उनके कमलकांत से निकट संबंध होना बताया जाता है।
उन्‍होंने बताया कि बहुजन समाज पार्टी की ओर से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके कमलकांत उपमन्‍यु ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक की अपनी प्रोफाइल वॉल पर जो सैंकड़ों फोटो लगा रखे हैं, उनमें एसएसपी मंजिल सैनी को भी उसके साथ खड़े हुए तथा उसके निजी पारिवारिक कार्यक्रम में शिरकत करते हुए देखा जा सकता है।
अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत ने बताया कि पीड़ता ने कमलकांत उपमन्‍यु व एसएसपी की निकटता साबित करने वाले वह फोटो मीडिया को भी प्रकाशित करने के उद्देश्‍य से भेजे हैं ताकि आमजनता को पता लग सके कि क्‍यों एक महिला एसएसपी एक युवती के साथ दुराचार के आरोपी का खुलेआम पक्ष लेकर उसे बचा रही हैं।
अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत का कहना है कि कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज भले ही कर लिया गया है किंतु पुलिस अब तक उसके घर दबिश देने भी नहीं पहुंची जिस कारण वह खुलेआम अपने हनुमान नगर स्‍थित घर पर न केवल पंचायत कर रहा है बल्‍कि लड़की व उसके परिजनों को बदनाम करने में लगा है।
उन्‍होंने बताया कि कल भी पूरे दिन लड़की के घर पर कमलकांत उपमन्‍यु की ओर से कई नेता और पत्रकार समझौते के लिए दबाव डालने पहुंचे थे और जब लड़की के परिवार ने समझौता करने से स्‍पष्‍ट इंकार कर दिया तो ऊंच-नीच समझाने की आड़ में धमकी देकर चले आए।
एडवोकेट प्रदीप राजपूत ने यह भी बताया कि वह आज इस बारे में एसएसपी से मिलकर उन्‍हें अवगत करायेंगे, साथ ही जल्‍द से जल्‍द पीड़ित लड़की के सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने, उसका मेडिकल करवाने तथा आरोपी को शीघ्र गिरफ्तार करने की मांग करेंगे।
इस संबंध में आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई पर उनसे संपर्क स्‍थापित नहीं हो सका।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

शनिवार, 6 दिसंबर 2014

अब कोर्ट सामने लायेगा JSR के पूरे खेल का सच!

मथुरा। 
जेएसआर ग्रुप की कॉलोनियों अशोका सिटी और अशोका हाइट्स में एक अदद फ्लैट का सपना देखने वाले तथा इनमें निवेश करके दस-बीस लाख रुपए कमा लेने की उम्‍मीद पाले बैठे लोगों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। ग्रुप के साइलेंट हिस्‍सेदार संजय देशवानी के साथ हुई घटना का नतीजा भले ही अभी पुलिस की जांच का मोहताज हो किंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि अशोका सिटी तथा अशोका हाइट्स का निर्माण भ्रष्‍टाचार में आकंठ डूबी व्‍यवस्‍था के तहत हुआ और इसका नतीजा अच्‍छा नहीं निकलने वाला।
जेएसआर ग्रुप के प्रोजेक्‍ट की पैमाइश का आदेश तो कमिश्‍नर आगरा मण्‍डल ने डीएम मथुरा को दे ही दिया है लेकिन अभी बहुत कुछ होना बाकी है।
इस बहुत-कुछ में अशोका सिटी एवं अशोका हाइट्स के निर्माण को लेकर बरती गई अनियमितताएं तो शामिल हैं ही, साथ ही आटे में नमक की जगह नमक में आटा मिलाकर बड़ा खेल करने का भी खुलासा होगा।
नि:संदेह इस पूरे खेल का पर्दाफाश होने पर न सिर्फ जेएसआर ग्रुप के हिस्‍सेदारों की बदनीयती सामने आयेगी बल्‍कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अधिकारी एवं कर्मचारियों का ऐसा काला चिठ्ठा भी सार्वजनिक होगा कि वो अपने निजी आर्थिक हित साधने के लिए जनहित को किस प्रकार ताक पर रखकर आंखें बंद किए रहते हैं।
जेएसआर ग्रुप की इमारतों के निर्माण में मनमानी किये जाने की शिकायतें लगातार एमवीडीए के अधिकारियों को मिल रहीं थीं और समाचारों के माध्‍यम से भी इसकी सूचना प्राप्‍त होती रही परंतु हर शिकायत तथा हर समाचार को प्राधिकरण की भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था ने अपने हित साधने का जरिया बना लिया। जितनी शिकायतें बढ़ती गईं और जितने समाचार प्रकाशित हुए, उतनी ही अधिकारियों की डिमांड में इजाफा होता गया।
इस तरह जेएसआर ग्रुप की कॉलोनियों में मकान खरीदने वालों तथा निवेशकों को इस हाल तक पहुंचाने के लिए एमवीडीए कम जिम्‍मेदार नहीं है क्‍योंकि उसने कभी किसी को इन कॉलोनियों के निर्माण की असलियत बताना मुनासिब नहीं समझा अन्‍यथा जिन प्रोजेक्‍ट्स के भूखंडों की पैमाइश अब कमिश्‍नर के आदेश पर कराने की तैयारी हो रही है, क्‍या उनकी पैमाइश तभी नहीं हो जानी चाहिए थी जब इनका निर्माण शुरू हुआ था तथा बराबर शिकायतें सामने आ रही थीं।
जब इन इमारतों की लंबाई बढ़ रही थी और जब इनमें पार्किंग की व्‍यवस्‍था, ग्रीनरी तथा दूसरी जरूरी सुविधाओं को दरकिनार कर केवल कंक्रीट के कबूतरखाने तैयार किये जा रहे थे, तब एमवीडीए क्‍यों सो रहा था।
आज हाल यह है कि एमवीडीए में किसी अधिकारी से कोई जेएसआर ग्रुप की इन इमारतों के बावत जानकारी करने का प्रयास करता है तो उसे सांप सूंघ जाता है। वह कुछ भी बताने को तैयार नहीं होता। किसी मीडिया पर्सन द्वारा सवाल पूछे जाने पर अधिकारी पहले तो उसे टालने का प्रयास करते हैं और अगर बात बनती नहीं दिखती तो फिर फोन उठाना ही बंद कर देते हैं। आरटीआई का जवाब देना तो एमवीडीए अपनी तौहीन समझता है। यदि मजबूरीवश किसी आरटीआई का जवाब देना ही पड़ जाए तो आधी-अधूरी अथवा अस्‍पष्‍ट सूचना देकर जानकारी मांगने वाले को गुमराह कर दिया जाता है।
जेएसआर ग्रुप के साइलेंट पार्टनर संजय देशवानी के बेटे केशव देशवानी द्वारा किये गये खुलासे से तो यह भी जाहिर होता है कि जेएसआर ग्रुप के हिस्‍सेदारों ने अपने प्रोजेक्‍ट के अवैध फ्लैट्स को बेचने के लिए वो दुस्‍साहस किया है जो अब तक शायद ही किसी बिल्‍डर ने किया हो। फ्लैट बुक कराने वालों को बैंक से फाइनेंस कराने के लिए इन लोगों ने बैंक के कुछ कर्मचारियों से सांठगांठ करके वहां प्रोजेक्‍ट का फर्जी नक्‍शा तक दाखिल करा रखा है।
ऐसे में जिन लोगों ने बैंक से अपने फ्लैट के लिए कर्ज ले लिया है और जो सपनों के घर में शिफ्ट होने का इंतजार कर रहे हैं, उनके सामने बड़ी मुसीबत खड़ी होने वाली है।
केशव देशवानी का कहना अगर पूरी तरह सच है तो बात केवल अवैध निर्माण की न होकर इतने बड़े घोटाले की है जिसमें बिल्‍डर तथा एमवीडीए के साथ-साथ कुछ बैंकें, आर्किटेक्‍ट और यहां तक कि चार्टर्ड एकाउंटेंट की भी बड़ी भूमिका सामने आयेगी।
बताया जाता है कि भ्रष्‍टाचार और घोटालों की बुनियाद पर खड़ी इन इमारतों के पूरे खेल का पर्दाफाश कराने के लिए कुछ निवेशक तथा फ्लैट मालिक न्‍यायालय में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
यदि ऐसा होता है तो निश्‍चित ही पूरा सच सामने आयेगा लेकिन इस सच की आंच में बहुत से लोग झुलस सकते हैं।
यह भी संभव है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह ग्रेटर नोएडा व नोएडा में निर्माणाधीन करीब 20 हजार फ्लैट्स को पूरी तरह अवैध मानते हुए उन्‍हें ध्‍वस्‍त करने के आदेश दे दिए, उसी तरह कहीं जेएसआर के अवैध निर्माण को ध्‍वस्‍त करने का आदेश भी न दे दिया जाए।
गौरतलब है कि ग्रेटर नोएडा व नोएडा में जिन फ्लैट्स को गिराने के आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं, उनका निर्माण तो जेपी, अजनारा एवं आम्रपाली जैसे नामचीन ग्रुप ने कराया था। फिर जेएसआर ग्रुप की तो हैसियत ही क्‍या है।
ये बात अलग है कि जब तक जिसका भी चमड़े का सिक्‍का चलता रहता है, तब तक वह न किसी की सुनने को तैयार होता है और न मानने को। जिस समय कानून सही मायनों में शिकंजा कसने लगता है, उस समय दिन में तारे नजर आते भी देर नहीं लगती।
जेएसआर ग्रुप में फ्लैट लेने वालों तथा निवेशकों को भी संभवत: कानून का ही सहारा है।
और हां, संजय देशवानी के साथ कुछ हुआ हो या न हुआ हो परंतु जो कुछ अब तक अखबारों की सुर्खियां बना है, उसने बहुत से लोगों के कान जरूर खड़े कर दिए हैं।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष  

गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

संजय का अब तक पता नहीं, पुलिस ने गठित की टीम, JSR के सबसे बड़े हिस्‍सेदार थे संजय-कन्‍हैया

मथुरा। 
2 दिसंबर की रात को होडल से लौटते वक्‍त लापता हुए जेआरएस ग्रुप के निदेशक संजय देशवानी का फिलहाल कोई पता न तो पुलिस को लग पाया है और ना ही संजय के परिजनों को कहीं से कोई सूचना मिली है।
इस बीच संजय के पुत्र केशव देशवानी द्वारा ग्रुप के ही छ: अन्‍य हिस्‍सोदारों को हत्‍या के उद्देश्‍य से अपहरण की आशंका में नामजद कराये जाने के बाद कल एसएसपी मंजिल सैनी तथा एसपी सिटी सिटी ने सभी आरोपियों को तलब कर देर रात तक पूछताछ की।
बताया जाता है कि पूछताछ के दौरान ग्रुप के हिस्‍सेदार सभी आरोपियों ने संजय के बारे में कोई भी जानकारी होने से इंकार किया।
ग्रुप के एक हिस्‍सेदार और आरोपी नवीन कात्‍याल ने एसपी सिटी को बताया कि 2 दिसंबर की शाम संजय उनके पास होडल आए थे और उसके बाद बस से लौटने की कहकर चले गये।
नवीन कात्‍याल के मुताबिक संजय देशवानी अपने कपड़े के कारोबार से होडल आने-जाने में बस का इस्‍तेमाल किया करते थे, अपनी कार का प्रयोग वह बहुत जरूरी होने पर ही करते थे।
पुलिस के सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार फिलहाल सभी नामजदों को पुलिस ने इस हिदायत के साथ छोड़ दिया है कि वह पुलिस को सहयोग करें तथा अपने स्‍तर से संजय का पता लगाने की कोशिश करें ताकि जल्‍द से जल्‍द इस मामले का पटाक्षेप हो सके।
इसके अलावा पुलिस ने संजय देशवानी का पता लगाने के लिए अपनी एक टीम गठित की है जो उनकी कॉल डीटेल तथा उनके अन्‍य व्‍यापारिक संबंधों के आधार पर उनका पता लगाने में जुटी है।
जहां तक सवाल संजय देशवानी और कन्‍हैया खत्री का जेएसआर ग्रुप में हिस्‍सेदारी को लेकर है तो ग्रुप के ही लोगों ने उनकी 50 प्रतिशत हिस्‍सेदारी होने की पुष्‍टि की है।
यही हिस्‍सेदारी संजय व कन्‍हैया ने ग्रुप के अन्‍य हिस्‍सेदारों को सरेंडर की थी और जिसे पैसों के अभाव में उन्‍होंने जयंती लाला के नाम से मशहूर जयंती अग्रवाल को बेच दी।
दरअसल, पूरे जेएसआर ग्रुप में जयंती लाला से पहले कुल सात हिस्‍सेदार हुआ करते थे।
इनमें सबसे बड़ी 25-25 प्रतिशत की हिस्‍सेदारी संजय देशवानी तथा कन्‍हैया खत्री के नाम थी जबकि नवीन कात्‍याल, सतपाल नागपाल, विजय गोयल तथा विकेश गोयल 10-10 प्रतिशत के भागीदार थे। इन सब के अलावा 10 प्रतिशत की हिस्‍सेदारी होडल के ही डीड रायटर (लिखिया) नरेश बंसल की थी जिनका अब तक इस पूरे घटनाक्रम में कहीं नाम नहीं आया है।
ग्रुप के सूत्र बताते हैं संजय व कन्‍हैया की हिस्‍सेदारी खरीदने के बाद जयंती लाला इस ग्रुप के सबसे बड़े शेयर होल्‍डर हो गये और अधिकांश फैसलों में उनका दखल हो गया।
सूत्रों के अनुसार जयंती लाला ने संजय व कन्‍हैया की कुल 50 प्रतिशत हिस्‍सेदारी में से साढ़े सैंतीस प्रतिशत का भुगतान कर दिया है और अब केवल साढ़े बारह प्रतिशत भुगतान शेष है।
ग्रुप के लोगों ने इस तरह की अफवाहों का खण्‍डन किया कि संजय ने अशोका सिटी के कुछ फ्लैटस का सौदा किया था और उनकी एडवांस रकम संजय ने ले रखी थी।
ग्रुप के ही लोगों का कहना था कि संजय या कन्‍हैया के पास ग्रुप की कोई रकम शेष नहीं है अलबत्‍ता जयंती लाला को उनका साढ़े बारह प्रतिशत शेष भुगतान करना है जो किसी कारणवश तय समय पर नहीं हो पाया और जिसे लेकर गलतफहमी पैदा हुई।
ग्रुप के लोगों की मानें तो उन्‍हें संजय के परिजनों से पूरी सहानुभूति है और वह चाहते हैं कि शीघ्र से शीघ्र संजय की सकुशल वापसी हो जाए।
उधर संजय के साथी और ग्रुप के दूसरे बड़े हिस्‍सेदार रहे कन्‍हैया खत्री ने बताया कि उन्‍हें अथवा संजय के परिजनों को अब तक संजय का कोई पता कहीं से नहीं लग पाया है और न इस संबंध में कोई सूचना मिली है। उनका कहना था कि पुलिस को कहीं से कोई सूचना मिली हो तो उसकी जानकारी फिलहाल हमारे पास नहीं है।
उनका कहना था कि सुबह सीओ सिटी अनिल यादव ने मुझे और संजय के पुत्र केशव को फोन पर कोतवाली आने के लिए सूचित किया था लिहाजा हम वहीं जा रहे हैं।
जेएसआर ग्रुप में हुए इस अप्रत्‍याशित घटनाक्रम को लेकर पुलिस, संजय के परिजन, कन्‍हैया खत्री तथा ग्रुप के बाकी हिस्‍सेदार तो परेशान हैं हीं, वो लोग भी काफी परेशान हैं जिन्‍होंने ग्रुप के किसी प्रोजेक्‍ट में निवेश कर रखा है या फ्लैट्स बुक करा रखे हैं।
उनकी परेशानी का कारण यह है कि उन्‍हें कोई पूरी सच्‍चाई बताने वाला नहीं है और वह छन-छन के आ रहीं तरह-तरह की खबरों पर ही निर्भर हैं।
उन्‍हें डर है कि ग्रुप के बीच कोई बड़ा विवाद होने की स्‍थिति में उनका पैसा न फंस जाए अथवा जिस एक अदद आशियाने का सपना देखा था, वह सपना बन कर ही न रह जाए।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष     

JSR ग्रुप के निदेशक संजय देशवानी के अपहरण में ग्रुप के जयंती लाला सहित 6 हिस्‍सेदार नामजद

मथुरा। 
रियल एस्‍टेट कंपनी जेएसआर ग्रुप के निदेशक संजय देशवानी के कल रात से गायब होने के मामले में आज नया मोड़ तब आ गया जब उनके पुत्र केशव देशवानी ने कंपनी के ही आधा दर्जन हिस्‍सेदारों के खिलाफ अपने पिता को अगवा करने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करा दी।
आज सुबह केशव देशवानी ने जेएसआर ग्रुप के एक बड़े हिस्‍सेदार जयंती लाला, उनके बेटे हेमंत, विजय गोयल, विकेश गोयल, नवीन कात्‍याल तथा सतपाल नागपाल को कोतवाली में तहरीर देकर नामजद कराया।
ग्रुप के एक अन्‍य हिस्‍सेदार कन्‍हैया खत्री ने इस बारे में लीजेण्‍ड न्‍यूज़ को जानकारी देते हुए बताया कि मैंने और संजय ने कुछ समय पूर्व होडल निवासी तथा ग्रुप के पार्टनर विजय गोयल, विकेश गोयल, नवीन कात्‍याल तथा सतपाल नागपाल को अपना हिस्‍सा सरेण्‍डर किया था। इन लोगों ने हमारे हिस्‍से की कुछ रकम देने के बाद शेष भुगतान समय-समय पर करते हुए दिसंबर 2014 तक पूरा भुगतान करने का वायदा किया था किंतु फिर भुगतान देने में आनाकानी करने लगे।
कन्‍हैया खत्री के मुताबिक उन्‍होंने जब इस बारे में अपने स्‍तर से जानकारी की तो मालूम हुआ कि विजय गोयल, विकेश गोयल, नवीन कात्‍याल तथा सतपाल नागपाल ने हमारा हिस्‍सा जयंती लाला को बेच दिया है।
कन्‍हैया ने बताया कि जब हमने जयंती लाला से संपर्क किया तो उन्‍होंने और उनके लड़के हेमंत ने हमें धमकियां देना शुरू कर दिया और दोबारा तकादा करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी।
कन्‍हैया खत्री का कहना था कि इसके बाद मुझे व संजय देशवानी को लगातार प्रत्‍यक्ष व अप्रत्‍यक्ष रूप से धमकियां मिलने लगीं और हमारा पीछा किया जाने लगा जिसकी जानकारी संजय ने अपने परिजनों से भी की और अपने साथ कुछ अनहोनी होने का अंदेशा जताया।
कन्‍हैया के अनुसार जयंती लाला न केवल आर्थिक रूप से काफी सक्षम हैं बल्‍कि राजनीतिक रूप से भी काफी प्रभावशाली हैं और प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक हस्‍तियों से उनके गहरे ताल्‍लुकातों की जानकारी सभी को है।
उन्‍होंने कहा कि जयंती लाला के प्रभाव का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो व्‍यक्‍ति कभी एक सरकारी विभाग में मामूली सा कर्मचारी हुआ करता था आज वह करोड़पति नहीं, अरबपतियों की सूची में शामिल किया जाता है।
जयंती लाला ने जेएसआर ग्रुप की हिस्‍सेदारी के अलावा कई अन्‍य कारोबारों में भी अच्‍छा खासा पैसा निवेश कर रखा है जिसमें रियल एस्‍टेट के अतिरिक्‍त विभिन्‍न सरकारी विभागों के ठेके लेना भी शामिल है।
इस बारे में लीजेण्‍ड न्‍यूज़ ने जयंती लाला और उनके पुत्र से अपना पक्ष रखने के लिए संपर्क करने का काफी प्रयास किया लेकिन किसी से संपर्क नहीं हो सका।
ग्रुप के एक अन्‍य हिस्‍सेदार तथा संजय देशवानी के अपहरण में आरोपी बनाये गये होडल निवासी नवीन कात्‍याल से जब इस पूरे प्रकरण की जानकारी चाही तो उन्‍होंने बताया कि संजय व कन्‍हैया का हिस्‍सा हमसे जयंती लाला ने खरीदा था और कुछ रकम का भुगतान करने के बाद शेष पूरी रकम किश्‍तों में दिसंबर 2014 तक चुका देने का वायदा किया था किंतु समय पर भुगतान नहीं किया गया लिहाजा हम संजय एवं कन्‍हैया को शेष रकम का भुगतान नहीं कर पाए।
नवीन कात्‍याल ने बताया जयंती लाला के रुख को देखकर हम दो लोगों यानि मैंने तथा सतपाल नागपाल ने भी अपनी हिस्‍सेदारी बेचने का मन बना लिया और काफी समय से ग्रुप के प्रोजेक्‍ट्स पर आना-जाना छोड़ दिया।
जब इस बात की जानकारी जयंती लाला को हुई तो उन्‍होंने हमसे कहा कि आप लोगों का हिस्‍सा भी मैं खरीद लूंगा, लेकिन आप दिसंबर माह तक रुक जाएं।
नवीन कात्‍याल ने बताया कि हम दोनों हिस्‍सेदार तो दिसंबर में जयंती लाला द्वारा संजय व कन्‍हैया के हिस्‍से की शेष रकम का भुगतान किये जाने तथा फिर हमारा हिस्‍सा खरीदने का इंतजार कर रहे थे किंतु इससे पहले यह घटना हो गई।
नवीन कात्‍याल का कहना था कि हमारा नाम एफआईआर में केवल इसलिए लिखाया गया है क्‍योंकि हम संजय व कन्‍हैया का भुगतान जयंती लाला से समय पर नहीं करा सके।
कात्‍याल का कहना था कि हम तो फिलहाल दो तरफ से फंसे हुए हैं। एक तरफ जयंती लाला से संजय व कन्‍हैया का हिसाब कराना है और दूसरी ओर अपनी हिस्‍सेदारी भी समाप्‍त करनी है।
उधर संजय के लापता होने के बाद दर्ज कराई गई एफआईआर में अपहरण व हत्‍या की आशंका जताये जाने के बाद एसएसपी ने सभी छ: आरोपियों को पूछताछ के लिए तलब किया है और बताया जाता है समाचार लिखे जाने तक उनसे पूछताछ चल रही थी।
दूसरी ओर संजय के बेटे केशव तथा कन्‍हैया खत्री ने पुलिस को जानकारी दी है कि जयंती लाला के लड़के हेमंत ने उन्‍हें भी जान से मारने की धमकी दी है।
गौरतलब है जेएसआर ग्रुप शुरू से किसी न किसी कारण विवादों में रहा है। इसके द्वारा खड़ी की गई अशोका हाइट्स और निर्माणाधीन प्रोजेक्‍ट अशोका सिटी में अवैध फ्लैट्स व टावर बनाये जाने का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि अब एक हिस्‍सेदार के लापता होने की खबर आ गई।
बताया जाता है जयंती लाला ने जेएसआर ग्रुप के अवैध निर्माण को अपने रसूख के बल पर वैध करा लेने के भरोसे से इस प्रोजेक्‍ट में हाथ डाला था किंतु वह संभवत: अपने मकसद में सफल नहीं हो पाए। ऐसी भी चर्चा है कि कमिश्‍नर आगरा मंडल की जिन अवैध निर्माणों को लेकर त्‍यौरियां चढ़ी हुई हैं और वह जिनके खिलाफ कार्यवाही अमल में लाना चाहते हैं, उनमें से एक जेएसआर ग्रुप का अशोका सिटी नामक प्रोजेक्‍ट भी है।
इस मामले में काफी समय से ग्रुप व एमवीडीए के अधिकारियों की अंडर टेबिल बातचीत जारी थी किंतु उसमें संभवत: पूरी सफलता नहीं मिल सकी।
सच्‍चाई जो भी हो, लेकिन इतना जरूर है कि इस धार्मिक जनपद में रियल एस्‍टेट का कारोबार अवैध निर्माण के साथ-साथ आपराधिक गतिविधियों की ओर भी बढ़ने लगा है।
कोषदा बिल्‍कॉन के दो हिस्‍सेदारों में हुआ विवाद आज तक खत्‍म होने का नाम नहीं ले रहा और उसमें नित-नये आरोप-प्रत्‍यारोप लगाये जा रहे हैं। दोनों ओर से कई एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं और कई प्रार्थनापत्र विभिन्‍न विभागों में लंबित हैं।
यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब रियल एस्‍टेट के धंधे में इस्‍तेमाल किये जाने वाले हथकंडे, उनके अपने कारोबारियों के लिए ही गले का फंदा बन जायेंगे और यह विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद इस मामले में भी पहचाना जाने लगेगा।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष 
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