सोमवार, 21 जुलाई 2014

कांग्रेस सरकार के कारनामों पर काटजू ने किया बड़ा खुलासा

नई दिल्‍ली। 
मद्रास हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। उन्हें सीधे तौर पर तमिलनाडु में डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर नियुक्त कर दिया गया था। डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर इस जज के कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के विभिन्न पोर्टफोलियो वाले जजों ने कम-से-कम आठ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं। लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने अपनी कलम की ताकत से एक ही झटके में सारी प्रतिकूल टिप्पणियों को हटा दिया और यह जज हाईकोर्ट में अडिशनल जज बन गए। वह तब तक इसी पद पर थे, जब नवंबर 2004 में मैं मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनकर आया।
इस जज को तमिलनाडु के एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता का समर्थन प्राप्त था। मुझे बताया गया कि ऐसा इसलिए था क्योंकि डिस्ट्रिक्ट जज रहते हुए इस नेता को जमानत दी थी।
इस जज के बारे में भ्रष्टाचार की कई रिपोर्ट्स मिलने के बाद मैंने भारत के चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी को इस जज के खिलाफ एक गुप्त आईबी जांच कराने की गुजारिश की। कुछ हफ्ते बाद जब मैं चेन्नै में था तो चीफ जस्टिस के सेक्रेट्री ने मुझे फोन किया और बताया कि जस्टिस लोहाटी मुझसे बात करना चाहते हैं। चीफ जस्टिस लाहोटी ने कहा कि मैंने जो शिकायत की थी वह सही पाई गई है। आईबी को इस जज के भष्टाचार में शामिल होने के बारे में पर्याप्त सबूत मिले हैं।
अडिशनल जज के तौर पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने वाला था। मुझे लगा कि आईबी रिपोर्ट के आधार पर अब हाईकोर्ट के जज के तौर पर काम करने से रोक दिया जाएगा लेकिन असल में हुआ यह कि इस जज को एडिशनल जज के तौर पर एक और साल की नियुक्ति मिल गई जबकि इस जज के साथ नियुक्त किए गए छह और एडिशनल जजों को स्थायी कर दिया गया।
मैंने बाद में इस बात को समझा कि यह आखिर हुआ कैसे। सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली होती है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जज होते हैं जबकि हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए तीन सबसे सीनियर जजों की कॉलेजियम होती है।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के तीन सबसे सीनियर जज थे, देश के चीफ जस्टिस लाहोटी, जस्टिस वाईके सभरवाल और जस्टिस रूमा पाल। सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद जज के तौर आगे न नियु्क्त किए जाने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी।
उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी। कांग्रेस इस गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन उसके पास लोकसभा में पर्याप्त बहुमत नहीं था और इसके लिए वह अपनी सहयोगी पार्टियों के समर्थन पर निर्भर थी। कांग्रेस को समर्थन देने वाली पार्टियों में से एक पार्टी तमिलनाडु से थी जो इस भ्रष्ट जज को समर्थन कर रही थी। तीन सदस्यीय जजों की कॉलेजियम के फैसले का इस पार्टी ने जोरदार विरोध किया।
मुझे मिली जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उस समय संयुक्त राष्ट्र आमसभा की बैठक में भाग लेने के लिए न्यूयॉर्क जा रहे थे। दिल्ली एयरपोर्ट पर मनमोहन सिंह को तमिलनाडु की पार्टी के मंत्रियों ने कहा कि जब तक आप न्यूयॉर्क से वापस लौटेंगे उनकी सरकार गिर चुकी होगी क्योंकि उनकी पार्टी अपना समर्थन वापस ले लेगी। (उस जज को अडिशनल जज के तौर पर काम जारी न रखने देने के लिए)
यह सुनकर मनमोहन परेशान हो गए लेकिन एक सीनियर कांग्रेसी मंत्री ने कहा कि चिंता मत करिए वह सब संभाल लेंगे। वह कांग्रेसी मंत्री इसके बाद चीफ जस्टिस लाहोटी के पास गए और उनसे कहा कि अगर उस जज को एडिशनल जज के पद से हटाया गया तो केंद्र सरकार के लिए संकट की स्थिति पैदा हो जाएगी। यह सुनकर जस्टिस लाहोटी ने उस भ्रष्ट जज को एडिशनल जज के तौर पर एक साल का एक और कार्यकाल देने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखा। (मुझे इस बात का आश्चर्य है कि क्या उन्होंने इसके लिए कॉलेजियम के बाकी दो सदस्यों से भी राय ली) इस तरह की परिस्थितयों में उस जज को एडिशनल जज के तौर पर और एक साल का कार्यकाल मिल गया।
उसके बाद चीफ जस्टिस बने वाईके सभरवाल ने उस जज को एक कार्यकाल और दे दिया। उनके उत्तराधिकारी चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन ने उस जज को स्थायी जज के तौर पर नियुक्त करते हुए किसी और हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।
मैंने इन सब बातों का एक साथ उल्लेख करके यह दिखाने की कोशिश की सिद्धांत के उलट सिस्टम कैसे काम करता है। सच तो यह है कि आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के बाद इस जज को एडिशनल जज के रूप में काम करने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए थी।
(मार्कंडेय काटजू वर्तमान में वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन हैं)
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