गुरुवार, 21 अगस्त 2014

जूलर्स भी खूब काट रहे हैं ''टटलू''

क्‍या आप स्‍वर्ण आभूषण या सोने के सिक्‍के आदि खरीदने के शौकीन हैं, क्‍या आप सोने में निवेश करते हैं ताकि वह बुरे वक्‍त में कभी आपके काम आ सके?
यदि ऐसा है तो यह खबर विशेष रूप से आपके ही लिए है क्‍योंकि आपका यह शौक या आपकी निवेश करने की आदत आपके लिए भारी घाटे का सौदा भी हो सकता है।
यूं तो राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली से मात्र 146 किलोमीटर दूर स्‍थित विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जिला एक लंबे समय से चांदी के आभूषणों और चांदी के सिक्‍के बनाने के लिए मशहूर है लिहाजा यहां चांदी की खपत बड़ी मात्रा में होती है किंतु अब यह जिला स्‍वर्णाभूषणों की खपत का भी बड़ा बाजार है।
दरअसल जब से कृष्‍ण की पावन जन्‍मभूमि पर रियल एस्‍टेट के कारोबारियों ने अपने पैर फैलाने शुरू किए हैं, तब से यहां कालेधन का प्रवाह तेजी के साथ बढ़ा है। काले धन का यह प्रवाह रियल एस्‍टेट के साथ-साथ सर्राफे के कारोबारियों को भी मुफीद है क्‍योंकि जब किसी के पास कालाधन बढ़ता है तो उसके लिए गोल्‍ड में निवेश करना आसान होता है।
इसके अलावा आम भारतीयों की सोच भी यही है कि गोल्‍ड पर निवेश किया गया पैसा सामाजिक प्रतिष्‍ठा बढ़ाने के अलावा आड़े वक्‍त में काम आने का सबसे अच्‍छा ज़रिया बनता है।
कालेधन के प्रवाह तथा लोगों की इस सोच का अब इस धार्मिक जनपद के अधिकांश ज्‍वैलर्स जमकर लाभ उठा रहे हैं और धर्म के दोगुने करने तक से परहेज नहीं कर रहे।
इस कारोबार से ही जुड़े सूत्रों के अनुसार चूंकि हैसियत बढ़ाने या निवेश करने के लिए सोना खरीदने वाले लोग बहुत ही मुश्‍किल से अपने सोने को रीसेल करते हैं इसलिए ज्‍वैलर्स द्वारा की जाने वाली धोखाधड़ी एवं बेईमानी का खुलासा नहीं हो पाता।
बेईमानी का खुलासा न हो, इसके लिए अधिकांश ज्‍वैलर्स अपने ग्राहकों को इस तरह की सलाह भी देते हैं कि यदि कभी आपको अपना सोना बेचने की जरूरत पड़ जाए तो आप हमारे पास चले आइए। हम आपसे सिर्फ मेकिंग का पैसा काटेंगे, सोने का पूरा पैसा वापस दे दिया जायेगा।
ज्‍वैलर्स का अपने ग्राहकों के प्रति दिखाया गया यह प्रेम या अतिरिक्‍त सुविधा देने का दिखावा ही सामान बेचने के साथ किए गये छल की पूरी कहानी का राज है। ज्‍वैलर्स जानते हैं कि सौ में से नब्‍बे ग्राहक ऐसे होते हैं जो जरूरत पड़ने पर सोना कभी वहां नहीं बेचने जाते, जहां से उसे खरीदते हैं क्‍यों कि ऐसा करने में वह खुद की प्रतिष्‍ठा व संपन्‍नता प्रभावित होती महसूस करते हैं।
यही कारण है कि ज्‍यादातर ज्‍वैलर्स सोने के टंच में धोखाधड़ी करते हैं और उसमें भारी लाभ कमाते हैं।
सरकार ने सर्राफा बाजार में की जाने वाली इस धोखाधड़ी को बंद करने तथा स्‍वर्ण आभूषणों की गुणवत्‍ता के लिए ''हॉलमार्क'' की व्‍यवस्‍था की लेकिन अब ज्‍वैलर्स ने उसमें भी ग्राहक को ठगने का रास्‍ता निकाल लिया है।
अब अगर शुद्ध सोने की गारंटी देने वाला हॉलमार्क ही नकली हो तो ग्राहक किस पर भरोसा करेगा?
जी हां, आपको आसानी से यकीन आए या न आए परंतु पूरी तरह सच है यह बात कि जूलरी बाजार में अवैध हॉलमार्किंग का धंधा भी जोरों पर है और मथुरा जैसी धार्मिक नगरी के ज्‍वैलर्स इस गोरखधंधे से बेहिसाब पैसा अर्जित कर रहे हैं।
इसके लिए लो कैरेट सोने पर हायर फिटनेस नंबर डलवाने या ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआईएस) के लाइसेंस के बिना ही अपनी जूलरी पर हॉलमार्किंग करवाने का खेल बड़े पैमाने पर खेला जा रहा है।
फर्जी तरीके से कराई गई ज्यादातर हॉलमार्किंग में मुहरों की संख्या 5 से कम रखी जाती है जबकि असली हॉलमार्किंग में पूरी 5 मोहरें अंकित रहती हैं।
चांदनी चौक, दरीबा कलां, कूचा महाजनी, करोलबाग के जूलरी बाजारों में पैठ रखने वाले एक बुलियन एक्सपर्ट ने नकली हॉलमार्किंग वाले गहनों के कुछ पीस दिखाते हुए बताया, 'बीआईएस रजिस्टर्ड सेंटर से कराई गई हॉलमार्किंग के तहत गहनों के हर पीस पर 5 तरह के मार्क छापे जाते हैं। पहला बीआईएस का लोगो, दूसरा फिटनेस नंबर यानी कैरेट का संकेत, तीसरा मार्किंग सेंटर का लोगो, चौथा वर्ष कोड और पांचवां बेचने वाले जूलर का लोगो या ट्रेड मार्क।
फर्जीवाड़ा दो तरह से होता है। एक, हॉलमार्किंग तो असली होती है लेकिन रजिस्टर्ड जूलर मार्किंग सेंटर वालों को पैसे खिलाकर लो कैरेट सोने पर एक दो नंबर ज्यादा कैरेट का निशान छपवा लेते हैं। दूसरा, बीआईएस रजिस्ट्रेशन के बिना ही आधा-अधूरा हॉलमार्किंग करा ली जाती है, जिसमें अनिवार्य 5 चिह्नों की जगह 3 या 4 चिह्न ही रखे जाते हैं। यह सिर्फ ग्राहक को इम्प्रेस करने के मकसद से होता है, उसे कोई सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता।'
हॉलमार्किंग फिटनेस नंबर हर कैरेट के लिए अलग-अलग होता है। मसलन 23 कैरेट सोने के लिए 958, 22 कैरेट के लिए 916, 21 कैरेट के लिए 875, 18 कैरेट के लिए 750, 17 कैरेट के लिए 708, 14 कैरेट के लिए 585, 9 कैरेट के लिए 375 तथा 8 कैरेट के लिए 333
जानकार बताते हैं कि कैरेट में एकाध नंबरों का फर्क तब तक नहीं पकड़ा जा सकता, जब तक ग्राहक उसकी किसी लैब में जांच नहीं कराए। आम तौर पर लोग हॉलमार्किंग और सर्टिफिकेट से ही संतुष्ट होते हैं पर अंतर ज्यादा होने से बायबैक स्कीमों और पुरानी जूलरी को बेचते समय यह विवाद बन सकता है। फर्जीवाड़े का बड़ा धंधा बिना रजिस्ट्रेशन के ही 3 या 4 मार्क लगवाकर ग्राहकों को गुमराह करने वालों का है।
दिल्ली में 23 हॉलमार्क सेंटर बीआईएस की ओर से हॉलमार्किंग के लिए अधिकृत हैं और हॉलमार्किंग के लिए रजिस्टर्ड जूलर्स की तादाद 1 हजार से ज्यादा नहीं है लेकिन यहां कुल जूलर्स की संख्या 50,000 से ज्यादा है, जिनमें 5 हजार बड़े बुलियन डीलर हैं। इसकी एक वजह यह है कि हॉलमार्किंग कानूनी तौर से अनिवार्य नहीं है। यह जूलर पर निर्भर करता है कि वह अपनी जूलरी की हॉलमार्किंग कराए या नहीं। बीआईएस कानून के मुताबिक हॉलमार्किंग या जूलरी की किसी भी शिकायत पर जिम्मेदारी हॉलमार्किंग सेंटर की नहीं बल्कि जूलर की होगी और उसी के खिलाफ मामला दर्ज होगा।
चूंकि हॉलमार्किंग सिर्फ रिटेल जूलर्स के लिए है, थोक कारोबारियों को इसकी इजाजत नहीं है इसलिए रिटेल जूलर्स के लिए फर्जीवाड़ा करना और सहज हो जाता है।
इस धोखाधड़ी का एक बड़ा कारण यह भी है कि स्‍वर्णाभूषणों की खरीद में अधिकांशत: लोग कालेधन का ही इस्‍तेमाल करते हैं और इसलिए उसकी खरीद का बिल नहीं लेते। जब बिलिंग नहीं होती तो जूलर्स के लिए वक्‍त पर ग्राहक से पल्‍ला झाड़ने में भी कोई दिक्‍कत नहीं होती।
संभवत: इसीलिए धर्म नगरी में अधर्म और बेईमानी के इस कारोबार को आज इतना परवान चढ़ा दिया है कि जगह-जगह जूलरी शोरूम खुल गए हैं और शहर का कोई इलाका ऐसा नहीं जहां सर्राफा कारोबारी न हों जबकि कुछ वर्षों पूर्व तक इनका अपना एक अलग मार्केट हुआ करता था।
आश्‍चर्य की बात तो यह है कि स्‍वर्ण और डायमंड पर भी अब इसके कारोबारी बाकायदा छूट देते हैं तथा समय-समय पर स्‍कीम निकाल कर सेल लगाते हैं।
है ना चकित करने वाला कारोबार। और उससे भी अधिक चकित करती है लोगों की वह सोच जो आंख बंद करके अपनी जेब कटवाती है और किसी से कोई शिकायत तक नहीं करती।
-LegendNews exclusive
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