रविवार, 7 सितंबर 2014

प्रशासन बाखबर...मथुरा में भी स्‍लीपर माड्यूल्स!

भारत में अल-कायदा की सक्रियता बढ़ाने को लेकर उसके सरगना अल ज़वाहिरी का वीडियो सामने आने के बाद पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश के जिन जिलों पर पुलिस, खुफिया एजेंसियों और एटीएस की निगाहें केंद्रित हुई हैं, उनमें विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा का भी नाम है।
मथुरा की भौगोलिक स्‍थिति भी कुछ ऐसी है जिसका लाभ अपराधी तत्‍वों को हमेशा से मिलता रहा है। राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली से यह मात्र 146 किलोमीटर दूर है तो हरियाणा एवं राजस्‍थान की सीमाएं इससे लगी हुई हैं। इसके एक ओर राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर दो है तो दूसरी ओर ताज एक्‍सप्रेस-वे बन चुका है जिसने वाहनों की रफ्तार को काफी बढ़ा दिया है।
मथुरा की इस भौगोलिक स्‍थिति का अब तक आपराधिक तत्‍व जमकर लाभ उठाते रहे हैं और इसीलिए यह धार्मिक जिला पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश की प्रमुख क्राइम बेल्‍ट में शुमार किया जाता है किंतु अल-कायदा की धमकी ने पुलिस, खुफिया एजेंसियों तथा एटीएस के अधिकारियों की चिंता बढ़ा दी है।
मथुरा में विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक इमारत कृष्‍ण जन्‍मभूमि है और यहां से मात्र 52 किलोमीटर दूर आगरा में विश्‍व के आकर्षण का केंद्र ताजमहल खड़ा है। इन दोनों इमारतों की सुरक्षा पर सरकार का बेहिसाब पैसा खर्च होता है, साथ ही भारी संख्‍या में सुरक्षा बल तैनात रहते हैं।
मथुरा में प्रमुख आतंकी संगठनों के स्‍लीपर माड्यूल्स की मौजूदगी का पता समय-समय पर लगता रहा है और देश में हुईं कई आतंकी वारदातों के सूत्र भी किसी न किसी रूप में मथुरा से जुड़े हैं लेकिन आज तक कोई ठोस प्रमाण सामने नहीं आया।
इस संबंध में जानकारी करने पर इस आशय की सूचनाएं जरूर मिलती रही हैं कि मथुरा को आतंकी संगठनों के स्‍लीपर माड्यूल्स एक शरण स्‍थली के रूप में इस्‍तेमाल करते हैं और इसलिए इसे किसी वारदात के लिए नहीं चुनते। कई राज्‍यों से इसकी सीमाओं के लगने का लाभ वह अपने सहज आवागमन तथा छुपने के आसान ठिकाने के रूप में करते हैं।
पूर्व में सिमी की मथुरा में अच्‍छी-खासी गतिविधियां रही हैं और उससे जुड़े लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है।
इस संबंध में मेरठ मंडल के कमिश्‍नर की रिपोर्ट गौर करने लायक है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश से अनेक पाकिस्‍तानी नागरिक लापता हैं और बहुत से बांग्‍लादेशी यहां रह रहे हैं।
कमिश्‍नर मेरठ ने समुदाय विशेष के उन खास लोगों पर नजर रखने एवं उनकी पुख्‍ता जानकारी करने को कहा है जो पिछले कुछ समय में अचानक सुविधा संपन्‍न हुए हैं या बहुत कम समय के अंदर उनके स्‍टैंडर्ड ऑफ लिविंग में बदलाव आया है। ऐसे लोगों की आमदनी के स्‍त्रोत पता करने के आदेश भी कमिश्‍नर मेरठ ने दिए हैं।
भले ही यह आदेश कमिश्‍नर मेरठ मंडल के हों किंतु मथुरा में वर्ग विशेष के अंदर ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं हैं जिनकी आमदनी का कोई प्रत्‍यक्ष स्‍त्रोत न होते हुए उनके रहन-सहन में बड़ा बदलाव देखा जा सकता है।
इसके अलावा पिछले कुछ समय में बड़ी तेजी के साथ एक समुदाय विशेष की रुचि मीडिया, राजनीति एवं सामाजिक सेवा को लेकर बढ़ी है। मीडिया में तो इनकी संख्‍या चौंकाने वाली है।
आश्‍चर्य की बात यह है कि जिला प्रशासन भी इस मामले में निष्‍क्रिय पड़ा हुआ है। उसने कभी यह तक जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर वो किस अखबार, न्‍यूज़ चैनल अथवा वेब पत्रकारिता से जुड़े हैं और कहां उनके समाचारों का प्रकाशन या प्रसारण होता है।
कहने को हर जिले की तरह मथुरा में भी एक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग कायम है और उसमें अधिकारी व कर्मचारी भी मौजूद हैं किंतु वह अपनी जिम्‍मेदारी सिर्फ तथाकथित चंद बड़े अखबारों एवं कथित बड़े पत्रकारों की चाटुकारिता तक सीमित रखते हैं। जिले की बात तो छोड़िए, शहर में जिला मुख्‍यालय पर भी कितने पत्रकार सक्रिय हैं और वह किन-किन संस्‍थानों के लिए कार्य करते हैं, इसकी कोई जानकारी सूचना विभाग के पास नहीं मिल सकती।
इसी प्रकार बहुत से तत्‍व सामाजिक संगठनों की आड़ लेकर तो बहुत से राजनीतिक संगठनों से जुड़े होने का हवाला देकर अपनी गतिविधियों को बेरोकटोक अंजाम दे रहे हैं।
अलग-अलग रंगों में रंगे और भिन्‍न-भिन्‍न संस्‍थाओं के इन तथाकथित नुमाइंदों में एक बड़ी समानता है। समानता यह है कि सब का मकसद किसी न किसी तरह पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों के नजदीकी बनाना, उनके साथ उठना-बैठना एवं उनकी प्रत्‍येक गतिविधि की जानकारी रखना है।
इन हालातों में एक स्‍वाभाविक प्रश्‍न यह उठता है कि आखिर यह क्‍यों पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों के इर्द-गिर्द बने रहते हैं, क्‍यों यह उनकी हर गतिविधि पर बारीक नजर रखते हैं ?
एक सवाल यहां यह और खड़ा होता है कि बुद्धि के पुतले समझे जाने वाले पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों के मन में क्‍या इन्‍हें एवं इनकी गतिविधियों को लेकर कोई सवाल पैदा नहीं होता ?
क्‍या कभी कोई इस आशय की शंका खड़ी नहीं होती कि जब इनके समाचार कहीं प्रकाशित या प्रसारित नहीं होते तो यह क्‍यों सारे दिन कलक्‍ट्रेट पर मंडराते रहते हैं?
क्‍या वह कभी नहीं सोचते कि इन लोगों की आमदनी का ज़रिया क्‍या है और किस तरह यह अपने अच्‍छे-खासे खर्चे पूरे करते हैं।
यदि कोई सामाजिक सेवा में लगा है अथवा उसने कोई एनजीओ बना रखा है तो उसके लिए हर वक्‍त अधिकारियों के पास बने रहना क्‍यों जरूरी है?
नि:संदेह ऐसे तत्‍व दूसरे समुदायों में भी हैं और उनकी भी गतिविधियां कम संदिग्‍ध नहीं हैं परंतु फिलहाल जिस तरह का खतरा मंडरा रहा है और अल-कायदा जैसा आतंकी संगठन ऐलान कर चुका है, उसके मद्देनजर आतंक के स्‍लीपर माड्यूल्स की घुसपैठ बड़ा खतरा बन सकती है।
बेहतर होगा कि इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद का पुलिस-प्रशासन समय रहते चेत जाए और कमिश्‍नर मेरठ की तरह गंभीरता पूर्वक ऐसे तत्‍वों पर पैनी नजर रखते हुए कार्यवाही रिपोर्ट जारी करे अन्‍यथा कबूतर के आंख बंद कर लेने से बिल्‍ली उसे अपना शिकार बनाने में परहेज नहीं करेगी। वह शिकार के लिए उचित समय और माहौल का इंतजार भले ही कर ले, परंतु उसकी फितरत बदलने वाली नहीं है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष
 
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