मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

कैसे कोई बन जाता है कमलकांत उपमन्‍यु?

मथुरा। 
पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ दर्ज हुआ यौन उत्‍पीड़न का मामला भले ही अभी पुलिस की जांच का मोहताज हो किंतु इस मामले से एक बात जरूर स्‍पष्‍ट हो जाती है कि कैसे किसी अखबार का एक मामूली सा संवाद्दाता देखते-देखते करोड़ों का आसामी बन जाता है और कैसे पुलिस, प्रशासन, बड़े मीडियाकर्मी, व्‍यापारी, उद्योगपति, नेता एवं तथाकथित समाजसेवी न सिर्फ उसकी चाटुकारिता में दिन-रात एक कर देते हैं बल्‍कि एकतरफा हिमायत लेकर उसे बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
सबसे पहले बात करें यदि एसएसपी मंजिल सैनी की तो उन्‍होंने पीड़िता के भाई पर एफआईआर दर्ज कराने के लिए तहरीर देने वाले नटवर नगर निवासी शिव कुमार शर्मा से यह तक पूछना जरूरी नहीं समझा कि कमलकांत उपमन्‍यु से उसका क्‍या वास्‍ता है और क्‍यों वह अपनी तहरीर में इस बात का जिक्र कर रहा है कि उक्‍त लोग कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ रेप की एफआईआर कराने का षड्यंत्र रच रहे हैं। उन्‍हें कैसे पता लगा कि कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ साजिश के लिए वह उनके द्वारा एफआईआर कराने का इंतजार कर रहे हैं।
यदि मान लिया जाए कि कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ दुराचार जैसे गंभीर मामले में एफआईआर दर्ज कराने की ऐसी कोई साजिश रची जा रही थी तो उससे कमलकांत उपमन्‍यु क्‍यों अनभिज्ञ थे और क्‍यों उन्‍होंने खुद इस बावत कोई प्रार्थनापत्र पुलिस को नहीं दिया। वो भी तब जबकि शिव कुमार शर्मा को उनके खिलाफ रची जा रही साजिश का पता लग चुका था।
शिव कुमार शर्मा द्वारा दिए गये इस प्रार्थना पत्र पर एसएसपी ने 2 दिसंबर के दिन ही एसओ हाईवे को इस आशय के आदेश दे दिये थे कि वह जांच कर कार्यवाही करें तो फिर एफआईआर तब क्‍यों दर्ज की गई जब कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न का मामला दर्ज किया जा चुका था।
यहां एक सवाल यह और खड़ा होता है कि जब एसएसपी ने शिव कुमार शर्मा के प्रार्थना पत्र पर जांच के आदेश देकर कार्यवाही करने का लिखित आदेश दिया था और ऐसा ही आदेश कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न के आरोप संबंधी दिये गये प्रार्थना पत्र पर 3 दिसंबर को दिया गया था तो फिर दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कैसे कर ली गई। वो भी कई दिनों के अंतर से। यदि शिव कुमार शर्मा की तहरीर में लगाये गये आरोप सही थे तो कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न का केस कैसे दर्ज कर लिया गया और यदि कमलकांत उपमन्‍यु के ऊपर लगाये गये आरोप जांच के बाद सही पाये जाने पर एफआईआर दर्ज हुई है तो अब तक 164 में पीड़िता के बयान तथा उसका मेडीकल क्‍यों नहीं कराया गया जिससे जांच आगे बढ़ सके।
एसएसपी मंजिल सैनी अब भी यह कैसे कह रही हैं कि पत्रकार पर यौन उत्‍पीड़न के आरोपों की जांच के बाद आगे कार्यवाही की जायेगी।
क्‍या एसएसपी किसी को यह बताने का कष्‍ट करेंगी कि कितने मामलों में वह या उनकी पुलिस एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद जांच के उपरांत कार्यवाही करने की सुविधा देती है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि एसएसपी महोदया ही इस पूरे प्रकरण में एक तीर से दो शिकार करने का खेल, खेल रही हों ताकि सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे क्‍योंकि एसएसपी से आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु की निकटता तो उसके द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर उनके साथ लगाये गये उन फोटोग्राफ से साबित हो जाती है जिसमें एसएसपी उसके साथ उसके घर में पूजा करती दिखाई दे रही हैं।
अब रहा सवाल मीडिया जगत का, जो पहले तो इस पूरे प्रकरण पर चुप्‍पी साधे बैठा था लेकिन कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद जब अमर उजाला ने खबर प्रकाशित की तो उसने एकतरफा रिपोर्टिंग करके एक ओर जहां नैतिकता को पूरी तरह ताक पर रख दिया वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के उन आदेश-निर्देशों की खुली अवहेलना करनी शुरू कर दी जो यौन उत्‍पीड़न के केस में दिये हुए हैं।
आगरा से प्रकाशित प्रमुख अखबार हिंदुस्‍तान ने तो यह लिखकर कि ''क्रॉस केस में उपजा उपध्‍यक्ष को फंसाने पर एसएसपी ने जताया रोष,'' अपना व एसएसपी दोनों का मकसद साफ कर दिया है। हिंदुस्‍तान अखबार एक पक्षीय रिपोर्टिंग करने के चक्‍कर में यह तक भूल गया कि उसने इस तरह की खबर लिखकर पीड़िता सहित उसके पूरे परिवार की पहचान उजागर कर दी और इससे लड़की व उसके परिवार को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। साथ ही उसकी यह रिपोर्टिंग सर्वोच्‍च न्‍यायालय के आदेश-निर्देशों की अवहेलना तथा अवमानना की श्रेणी में आती है।
मथुरा से प्रकाशित एक अन्‍य दैनिक कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस ने तो नैतिकता व पत्रकारिता के नियमों सहित कानून को भी धता बताते हुए ''दूसरे पक्ष पर भी छेड़छाड़ व मारपीट के दो मुकद्दमे'' शीर्षक से बॉक्‍स के अंदर एक खबर प्रकाशित की है। इस तरह उसने तो पीड़ित लड़की के भाई को दूसरा पक्ष ही बता डाला है।
गौरतलब है कि यौन उत्‍पीड़न की शिकार किसी युवती अथवा महिला की पहचान सार्वजनिक नहीं की जा सकती और इसलिए खबर में उनके काल्‍पनिक नाम-पते लिखे जाते हैं लेकिन इन अखबारों ने पीड़िता के भाई व पिता का नाम तथा पता लिखकर उसकी व उसके पूरे परिवार की पहचान उजागर कर दी है। 
इस संबंध में पूछे जाने पर पीड़िता के अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत ने कहा कि वह पीड़िता और उसके परिवार की पहचान उजागर करने वाले अखबारों के संपादक, ब्‍यूरो प्रमुख एवं संवाद्दाताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने जा रहे हैं क्‍योंकि उनकी इस हरकत से पीड़िता व उसके परिवार को जान-माल का खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है। विशेष रूप से अखबारों की यह हरकत इसलिए पीड़िता व उसके परिवार को बड़ी हानि पहुंचा सकती है क्‍योंकि अब तक आरोपी पत्रकार पुलिस की गिरफ्त से बाहर है और वह तथा उसके दबंग गुर्गे पीड़िता के परिवार पर लगातार समझौता करने का दबाव बना रहे हैं।
अधिवक्‍ता प्रदीप राजपूत ने बताया कि वह इस संबंध में एसएसपी से भी मिलकर शिकायत करेंगे और पूछेंगे कि पीड़िता व उसके परिवार की पहचान उजागर करने वाले अखबारों के खिलाफ क्‍या कदम उठाने जा रही हैं।
कुल मिलाकर अखबारों की रिपोर्टिंग तथा पुलिस के रवैये से निश्‍चित तौर पर एक बात तो साफ हो जाती है कि यौन उत्‍पीड़न के आरोप में कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो जाने के कारण पुलिस और मीडिया ही नहीं, शहर के कई उद्योगपति, व्‍यापारी, नेता और अन्‍य तमाम तथाकथित सभ्रांत तत्‍व अपनी-अपनी रोटी सेक रहे हैं। कोई उपमन्‍यु का हिमायती बनकर अपना मकसद पूरा कर रहा है तो कोई उसके विरोध में खड़ा होकर। जैसे पूरा शहर दो खेमों में बंटकर रह गया है।
एक खेमे की मानें तो कमलकांत उपमन्‍यु को जीरो से हीरो बनाने में शहर के ऐसे ही तथाकथित सभ्रांत और विभिन्‍न व्‍यवसायों से जुड़े सफेदपोश माफियाओं का हाथ रहा है जिन्‍होंने उसे अपने लिए हथियार के रूप में इस्‍तेमाल किया तथा उसकी कमजोरियों का फायदा उठाया।
इस खेमे की मानें तो यह मामला सिर्फ एक लड़की के यौन उत्‍पीड़न या कमलकांत उपमन्‍यु तक सीमित नहीं है। इसकी यदि निष्‍पक्ष जांच हो तो सफेदपोश अपराधियों का बहुत बड़ा रैकेट सामने आ सकता है। ऐसा रैकेट जिसमें पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर जुडिशियरी के दलाल और भूमाफिया व शिक्षा माफिया तक शामिल हैं। ऐसे-ऐसे लोग इस रैकेट का हिस्‍सा हैं जिन्‍होंने अपने ही परिवार की महिलाओं तक को नहीं छोड़ा और उन्‍हें अपने काम कराने का जरिया बना रखा है।
दूसरा खेमा कहता है कि कमलकांत उपमन्‍यु की शौहरत व कम समय में अर्जित की गई दौलत को देखकर कुछ लोग उससे ईर्ष्‍या रखते हैं और इसी ईर्ष्‍या के चलते उसे निशाना बनाया गया है।
इन सबके अलावा एक वर्ग ऐसा भी है जो जानना चाहता है कि बिना किसी बिजनेस के आखिर कमलकांत उपमन्‍यु करोड़ों का आसामी कैसे बन गया और उसकी आमदनी का जरिया क्‍या है।
इन लोगों का स्‍वाभाविक प्रश्‍न यह भी है कि क्‍या जर्नलिज्‍म वाकई इतनी दौलत कमाने का माध्‍यम बन सकती है, वो भी तब जबकि कोई किसी ऐसे अखबार का मात्र रिपोर्टर हो जिसकी जिले में सैंकड़ों प्रतियां भी सर्कुलेट न होती हों।
यह लोग चाहते हैं कि वह और उससे जुड़े तमाम लोगों का सच एक बार सामने जरूर आए ताकि इस तिलिस्‍मी दुनिया से वह भी वाकिफ हों। वह जान सकें कि क्‍यों अखबार किसी खास पत्रकार को हर दिन कवरेज देते रहे हैं और क्‍यों वह पत्रकार समाज के हर ताकतवर वर्ग को अपनी ताबेदारी में खड़ा दिखाना चाहता है। आखिर क्‍या है ऐसा कि मंजिल सैनी जैसी महिला एसएसपी हो या बी चंद्रकला जैसे महिला डीएम, जिले का प्रभार संभालने के साथ उसके निजी कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए उसकी चौखट के अंदर तक जा पहुंचती हैं। यह जानते व समझते हुए कि उनकी नौकरी उन्‍हें यह सब करने की इजाजत नहीं देती।
यह जानते हुए कि महिला अधिकारी होने के नाते उनकी इस मामले में कुछ अतिरिक्‍त जिम्‍मेदारी बनती है और उनकी गतिविधियों पर उनके अधीनस्‍थों सहित जनपद भर के लोगों की नजर टिकी होती है।
कमलकांत उपमन्‍यु या पीड़िता के भाई पर लगे आरोपों का सच देर-सबेर सामने आयेगा ही, लेकिन इस पूरे प्रकरण में कोई न कोई सूत्रधार ऐसा अवश्‍य है जिसका बेनकाब होना सबके हित में जरूरी हो गया है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष
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