शनिवार, 24 जनवरी 2015

'खेल' में भी चल रहा है एक बड़ा 'खेल'




ऑब्लाइज करने का मामला सूत्रों के मुताबिक, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। BAI के अधिकारी अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और करीबियों को 'घूमाने-फिराने' के लिए ऐसे टूर्नामेंट्स में एंट्री दिलाते रहते हैं। इस बात के प्रमाण तो नहीं कि इसके पीछे मकसद पैसा कमाने का है लेकिन मामला 'ऑब्लाइज' करने का जरूर है। सूत्र बताते हैं कि कई मौकों पर इस तरह से 'ऑब्लाइज' कर अपने काम निकाले जाते हैं या फिर पैसे बनाए जाते हैं।
किसको क्या फायदा? अगर कोई अपने पैसे से भी विदेश जाता है तो उसके लिए वीजा हासिल करना आसान नहीं होता। लेकिन, खेल के नाम पर दुनिया के किसी भी देश का वीजा आसानी से हासिल किया जा सकता है। यहां मामला शेनगेन वीजा का है। अगर कोई वरिष्ठ सरकारी अधिकारी अपने पैसे से भी विदेश जाना चाहता है तो उसको कई लेवल पर इसके लिए अनुमति हासिल करनी पड़ती है, जबकि टूर्नामेंट के बहाने वीजा और अनुमति आसान हो जाती है।
एसोसिएशन का 'नो कॉमेंट' इस मामले में BAI के सचिव डॉक्टर विजय सिन्हा से संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि वह सैयद मोदी टूर्नामेंट के आयोजन में व्यस्त हैं और इस मामले में कोई कॉमेंट नहीं करना चाहते। एसोसिएशन के वाइज प्रेजिडेंट (ऐडमिनिस्ट्रेशन) टीपीएस पुरी ने भी टालमटोल करते हुए कहा कि आप सचिव से बात करें, जबकि पुरी पर ही इस तरह के मामलों में अप्रूवल देने और एंट्री भेजने की जिम्मेदारी है। उधर, मनमोहन शर्मा के घर से उनके स्टाफ ने बताया कि साहब विदेश खेलने गए हैं और फिलहाल उनके घर से कोई बात नहीं कर सकता।
किसका नुकसान? BWF ने जिस तरह टूर्नामेंट्स का वर्गीकरण किया है, उसमें इंटरनेशनल सीरीज सातवें नंबर पर आती है। जाहिर है इसमें कोई बड़ा स्टार या सीनियर खिलाड़ी नहीं खेलना चाहेगा लेकिन उभरते जूनियर खिलाड़ी इस टूर्नामेंट में जरूर हिस्सा लेना चाहेंगे क्योंकि विजेताओं को 2500 रैंकिंग पॉइंट मिलते हैं, जिससे भविष्य में उनकी इंटरनेशनल रैंकिंग सुधरने में मदद मिलती है। यहां सवाल है कि मनमोहन शर्मा और अपिंदर सभरवाल अपनी कौन सी रैंकिंग सुधारने वहां गए थे या भेजे गए थे? क्या इनकी जगह किसी उभरते खिलाड़ी को नहीं भेजा जा सकता था?
-एजेंसी
क्या आपको यकीन होगा कि रेकजाविक में चल रहे आइसलैंड इंटरनेशनल सीरीज बैडमिंटन में भारत का प्रतिनिधित्व 50 साल के एक रेफरी और 47 साल के एक सीनियर पुलिस अधिकारी कर रहे हैं। आप मानें या ना मानें ये बिल्कुल सच है कि तरणतारण के एसएसपी मनोमहन कुमार शर्मा और दिल्ली निवासी बैडमिंटन रेफरी अपिंदर सभरवाल को बैडमिंटन असोसिएशन ऑफ इंडिया (BAI) के कर्ता-धर्ताओं ने बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन (BWF) के एक मान्यता प्राप्त इंटरनैशनल सीरीज टूर्नामेंट में हिस्सा लेने भेजा है। इन दोनों 'खिलाड़ियों' ने वहां पहले दौर में ही वॉकओवर भी दे दिया है और यूरोपीय देश की यात्रा का लुत्फ उठा रहे हैं।

मंगलवार, 20 जनवरी 2015

टोंटा हत्‍याकांड: पुलिस द्वारा बताए गये ''मास्‍टर माइंड'' में तो पर्याप्‍त ''माइंड'' तक नहीं

मथुरा। मथुरा जिला कारागार में गोलियां चलने से एक की मौत तथा दो के घायल हो जाने और फिर एक घायल राजेश टोंटा को इलाज के लिए पुलिस अभिरक्षा में आगरा ले जाते वक्‍त चंद घंटों बाद ही नेशनल हाईवे पर भून डालने जैसी संगीन वारदातों का महज दो दिन के अंदर खुलासा करके उत्‍तर प्रदेश पुलिस ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सूबे में चाहे किसी की सत्‍ता हो, चाहे कितने ही निजाम बदल जाएं किंतु वह न कभी बदली है और न बदलेगी।
कानून का राज कायम करने की बात कहकर सत्‍ता में आई समाजवादी पार्टी बेशक पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को ताश के पत्‍तों की तरह फेंटकर कानून-व्‍यवस्‍था दुरुस्‍त करने का भ्रम पाल लेती हो किंतु सच्‍चाई यह है कि इससे सिर्फ अधिकारियों की सूरतें ही बदलती हैं, सीरत न बदली है और न बदलने की कोई उम्‍मीद नजर आती है।
आईजी जोन आगरा सुनील गुप्‍ता की मौजूदगी में कल देर शाम मथुरा की एसएसपी मंजिल सैनी ने पूरे प्रदेश को हिला देने वाली इन वारदातों का खुलासा करके पुलिस को भले ही दबाव मुक्‍त कर लिया हो लेकिन गैंगवार की नई पटकथा लिखे जाने का रास्‍ता साफ कर दिया।
दरअसल, अपने ऊपर उठ रहे तमाम सवालों के जवाब देने और जेल के अंदर व बाहर एक ही दिन में हुईं इतनी बड़ी वारदातों का पूरी तरह खुलासा करने की बजाय पुलिस ने जिस ''सॉफ्ट टारगेट गोपाल यादव'' को ''मास्‍टर माइंड'' बताकर सारा मामला रफा-दफा करने की कोशिश की है, उसमें तो इतनी बड़ी प्‍लानिंग करने लायक ''माइंड'' ही नहीं है।
चूंकि गोपाल यादव हाथरस में राजेश टोंटा के घर पर की गई ब्रजेश मावी की हत्‍या का चश्‍मदीद है तथा ब्रजेश मावी का दोस्‍त रहा है और मावी का शव बरामद करने की कवायद में मथुरा पुलिस उसे महीनों अपने साथ लेकर घूमती रही है इसलिए वह पुलिस के लिए न केवल आसानी से उपलब्‍ध था बल्‍कि सॉफ्ट टारगेट भी था लिहाजा उसे मास्‍टर माइंड बनाकर पेश कर दिया गया जबकि राजेश टोंटा जैसे कुख्‍यात व शातिर अपराधी को इस तरह ठिकाने लगाने की प्‍लानिंग वाकई बहुत तेज दिमाग व दुस्‍साहसी अपराधी ही कर सकता है।
पुलिस की कहानी पर यदि कुछ देर के लिए भरोसा कर भी लिया जाए तो उसके अनुसार गोपाल यादव ने बंदी रक्षक कैलाश गुप्‍ता के हाथों दीपक वर्मा के पास जेल में एक असलहा तथा एक लाख दस हजार रुपए भिजवाये जिसमें से उसने अपने लिए तय 20 हजार रुपए काटकर 90 हजार रुपए व असलहा दीपक को दे दिए।
17 तारीख को दोपहर बाद जेल में चली गोलियों से एक पक्ष के राजेश टोंटा व उसका साथी राजकुमार शर्मा घायल हो गये और दूसरे पक्ष का अक्षय सोलंकी मारा गया।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि यदि मास्‍टर माइंड गोपाल यादव ने बंदी रक्षक कैलाश गुप्‍ता के हाथों जेल में दीपक वर्मा के पास मात्र एक हथियार ही पहुंचाया था तो फिर क्‍या सारे बदमाश बारी-बारी से एक ही हथियार का इस्‍तेमाल करते रहे। वो भी तब जब कि दीपक वर्मा, दीपक राणा व अक्षय सोलंकी को ब्रजेश मावी पक्ष से बताया जा रहा है और राजेश टोंटा के साथ राजकुमार शर्मा आदि को बताया गया है।
पुलिस के अनुसार राजेश टोंटा ने ही अक्षय सोलंकी पर गोली चलाई थी, तो पुलिस ने अब तक यह क्‍यों नहीं बताया कि राजेश टोंटा के पास असलहा कहां से आया और उसके पास असलहा पहुंचाने वाले कौन लोग थे।
जेल के अंदर से भी जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार गोलियां चलाने में दोनों ओर से तीन असलाहों का इस्‍तेमाल हुआ लेकिन पुलिस ने दो असलहा ही बरामद दिखाये हैं।
पुलिस ने तो दो असलहा बरामद करने के बावजूद अपनी कहानी में यह बताया है कि दीपक वर्मा का असलहा गिर जाने के बाद टोंटा ने उसी असलहा से अक्षय को गोली मारी। पुलिस की इस कहानी पर भरोसा किया जाए तो टोंटा को क्‍लीनचिट मिल जाती है जबकि पूर्व में पुलिस ने कहा था कि टोंटा ने ही फायरिंग शुरू की थी और उसी ने अक्षय को मारकर खुद को घायल किया।
अब जेल से बाहर की पुलिसिया कहानी पर ध्‍यान दें तो उसके अनुसार जेल के अंदर हुई फायरिंग में टोंटा के बच निकलने की जानकारी होने के बाद गोपाल व अजय चौधरी ने मावी के वफादार साथियों को सूचित करके उसे फिर ठिकाने लगाने की तैयारी की और मौका मिलते ही नेशनल हाईवे पर रात करीब 11 बजे तब छलनी कर दिया जब उसे पुलिस अभिरक्षा में उपचार के लिए आगरा ले जाया जा रहा था। 
पुलिस ने मौके से देशी तमंचों के खोखे बरामद दिखाये हैं और मास्‍टर माइंड गोपाल के कब्‍जे से भी एक तमंचा बरामद किया है।
यहां पुलिस से कोई यह पूछने वाला नहीं है कि राजेश टोंटा को जेल के अंदर ठिकाने लगाने के लिए नाइन एमएम के प्रतिबंधित बोर वाला असलहा भेजने वाला गोपाल और उसके साथी नेशनल हाईवे पर उसे मारने के लिए क्‍या देशी तमंचों का इस्‍तेमाल करने की मूर्खता करेंगे?
गौरतलब है कि जेल के अंदर पुलिस ने जो दो असलहा बरामद किये हैं, वह दोनों नाइन एमएम के हैं।
मजे की बात यह भी है कि पुलिस ने वारदात का खुलासा तो कर दिया लेकिन अब तक इस बात का खुलासा नहीं कर पाई कि मौके पर मिला AK-47 का खोखा किसकी गोली का था। पहले पुलिस कह रही थी कि बदमाशों ने  AK-47 का भी इस्‍तेमाल किया लेकिन जब मास्‍टर माइंड गोपाल ने कहा कि उनमें से किसी के पास ऐसा कोई हथियार नहीं था तो पुलिस कहने लगी कि अभिरक्षा में चल रहे एसओ के हमराह पर AK-47 थी और उसी ने फायर किया था। इस बारे में गोपाल की मानें तो पुलिस की ओर से उनके ऊपर कोई गोली चलाई ही नहीं गई।
यहां नया सवाल एक और खड़ा हो जाता है कि क्‍या किसी एसओ का हमराह सिपाही AK-47 जैसा हथियार रखने के लिए अधिकृत होता है और क्‍या इस सिपाही को यह हथियार दिया गया था? 
सच तो यह है कि ब्रजेश मावी की राजेश टोंटा के हाथरस स्‍थित घर पर की गई हत्‍या के बाद उसका शव बरामद करने के लिए मथुरा पुलिस गोपाल को महीनों अपने साथ लेकर घूमती रही थी और इसलिए गोपाल यादव को पूरा पुलिस महकमा पहचानता था। वह ब्रजेश मावी का बचपन का दोस्‍त है, इस बात से भी पुलिस परिचित हो चुकी थी। पुलिस उसे कभी भी बुला लेती थी और फिर छोड़ भी देती थी इसलिए गोपाल यादव उसके लिए सहज उपलब्‍ध था। वह उसके लिए इस मामले में भी सॉफ्ट टारगेट साबित हो सकता है, यह समझते पुलिस को देर नहीं लगी। हालांकि उससे पहले पुलिस ने ब्रजेश मावी के अधिवक्‍ता रहे दो लोगों को कोतवाली बुलाकर कहानी का ताना बाना बुनने की कोशिश की किंतु उसमें बार एसोसिएशन मथुरा द्वारा हंगामा काटे जाने के बाद पुलिस को दोनों अधिवक्‍ता छोड़ने पड़े और उसके बाद पुलिस ने गोपाल यादव को लेकर काम करना शुरू कर दिया।
इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तरह पुलिस ने फिलहाल अपने ऊपर पड़ रहे भारी दबाव से खुद को मुक्‍त कर राहत की सांस ली होगी लेकिन इससे उसने फिर किसी बड़ी वारदात का रास्‍ता भी साफ कर दिया क्‍योंकि इससे असली मास्‍टर माइंड को बिना किसी प्रयास के बड़ा मौका मिलना स्‍वाभाविक है।
ब्रजेश मावी के बाद राजेश टोंटा मारा गया, अक्षय सोलंकी भी काम आ गया परंतु अभी राजकुमार शर्मा, दीपक वर्मा, दीपक राणा तथा लारेंस जैसे दोनों पक्ष के तमाम कुख्‍यात अपराधी बाकी हैं और वह वर्चस्‍व की इस लड़ाई में अपनी-अपनी भूमिका साबित करने से पीछे नहीं हटने वाले।
तय है कि जिस गैंगवार का आगाज़ हाथरस में राजेश टोंटा के घर से शुरू होकर मथुरा जिला कारागार के अंदर और फिर नेशनल हाईवे पर राजेश टोंटा की हत्‍या से 17 जनवरी 2015 को हुआ है, उसका अंजाम शेष है। वह कब और किस रूप में सामने आयेगा, यह बताना चाहे मुश्‍किल हो पर इतना आसानी से कहा जा सकता है कि होगा बहुत खौफनाक। शायद 17 तारीख से भी अधिक खौफनाक।
तो इंतजार कीजिए तथा देखिए कि पुलिस और क्‍या-क्‍या गुल खिलाती है।
एक करोड़ की रकम लुटने पर दो लाख बरामद दिखाकर अपनी पीठ खुद थपथपा लेने तथा ईनाम इकराम भी हासिल कर लेने का उसका शगल कोई नया नहीं है और न नई है उसकी कांटे से कांटा निकालने की थ्‍योरी।
कानून-व्‍यवस्‍था जाए भाड़ में, वह अपना शगल इसी प्रकार पूरा करती रहेगी और इसी थ्‍योरी पर काम करके वाहवाही भी लूटेगी।
उसके लिए गोपाल यादव जैसे सॉफ्ट टारगेट्स की न कभी कहीं कोई कमी रही है और न रहेगी क्‍योंकि माइंडलेस को मास्‍टर माइंड साबित करना उसे बखूबी आता है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष             

रविवार, 18 जनवरी 2015

पुलिस ने ही तो ठिकाने नहीं लगा दिया टोंटा?





मथुरा।  कल दोपहर बाद मथुरा जिला कारागार में जिस अंदाज से गैंगवार का आगाज़ हुआ, उसका अंजाम तो लगभग वही होना था जो देर रात नेशनल हाईवे स्‍थित टोल प्‍लाजा पर कुख्‍यात अपराधी राजेश टोंटा की हत्‍या के साथ हुआ लेकिन किसी को यह अंदाज शायद ही रहा हो कि चंद घंटों के अंतराल में ही यह आगाज़ अपने अंजाम की पहली किश्‍त पूरी कर लेगा।
अभी इस गैंगवार की कितनी पटकथाएं शेष हैं और इसकी समाप्‍ति किस रूप में होगी, यह कहना तो बहुत मुश्‍किल है किंतु इतना अवश्‍य कहा जा सकता है कि न सिर्फ अखिलेश सरकार बल्‍कि उसकी समूची कानून-व्‍यवस्‍था पूरी तरह चरमरा चुकी है। फिर चाहे यूपी सरकार और उसका समाजवादी कुनबा अपना मन बहलाने को दावे-प्रतिदावे चाहे कितने ही क्‍यों न करता रहे।
जिला कारागार के अंदर गैंगवार ने कई सवाल एकसाथ खड़े कर दिये हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर जेल के अंदर इतनी बड़ी तादाद में असलहा पहुंचा कैसे?
बेशक इसका जवाब हर आम व खास आदमी जानता है किंतु वो व्‍यववस्‍था उसे कभी स्‍वीकार नहीं करती जिसके लिए यह सवाल है और जिससे माकूल जवाब की उम्‍मीद की जाती है।
कौन नहीं जानता कि जिन सरकारी इमारतों के अंदर भ्रष्‍टाचार जैसा शब्‍द बहुत बौना प्रतीत होता है, उनमें जेल की इमारतें प्रमुख हैं। जेल के अंदर एक ओर जहां सारे मानवाधिकार खूंटी पर टंगे मिलते हैं, वहीं दूसरी ओर कानून उसकी चौखट के अंदर पहुंचने के साथ दम तोड़ देता है।
यही कारण है कि जेल में वहां के अधिकारी एवं कर्मचारियों की अपनी समानांतर सत्‍ता कायम रहती है और कुख्‍यात अपराधी उस सत्‍ता के महत्‍वपूर्ण अंग होते हैं। इन्‍हें एक-दूसरे का पूरक भी कह सकते हैं।
इसी प्रकार जेल के बाहर पुलिस की अपनी सत्‍ता है। वह अपनी सत्‍ता में किसी का भी दखल एक लिमिट तक बर्दाश्‍त करती है और जहां लिमिट क्रॉस होती नजर आती है, वह अपनी लिमिट क्रॉस करने से नहीं चूकती।
हाथरस में पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश के माफिया डॉन ब्रजेश मावी की राजेश टोंटा के घर पर हुई हत्‍या के बाद गैंगवार होने की आशंका सबको थी, बावजूद इसके सारा प्रशासनिक अमला जैसे इसका इंतजार कर रहा था और उन तत्‍वों को मौका दे रहा था जो इसका ताना-बाना बुन रहे थे।
कितने आश्‍चर्य की बात है कि गोली लगने से जख्‍मी राजेश टोंटा को मात्र सात घंटे बाद फिर तब निशाना बनाया जाता है जब उपचार के लिए पुलिस भारी-भरकम सुरक्षा में उसे आगरा ले जा रही थी। इस बार टोंटा बच नहीं पाता और मौके पर ही मारा जाता है जबकि उसके साथ गये अमले में से किसी को चोट नहीं आती।
जिला कारागार से लेकर देर रात टोल प्‍लाजा तक के बीच जो कुछ एवं जितना कुछ हुआ, उसमें न तो जेल प्रशासन की भूमिका पाक-साफ प्रतीत हो रही है और न जिला प्रशासन की। ऐसा ल्रगता है कि जैसे पूरे घटनाक्रम का सूत्रधार इन्‍हीं के इर्द-गिर्द बैठा हो।
दरअसल आमजन के जेहन में इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कई प्रश्‍न घूम रहे हैं। जैसे कि यदि राजेश टोंटा को गोली उसकी जांघ में लगी थी और वह खतरे से बाहर था तो फिर घने कोहरे के बावजूद उसे उपचार के नाम पर आगरा ले जाने की जरूरत क्‍या पड़ी?
पुलिस कह रही है कि ऐसा राजेश टोंटा के पिता की जिद पर किया गया।
अब यहां एक और सवाल यह पैदा हो जाता है कि एक कुख्‍यात अपराधी के पिता की जिद को पुलिस ने इतनी गंभीरता से क्‍यों ले लिया जबकि साफ जाहिर था कि उसके ऊपर मंडरा रहा खतरा टला नहीं है।
यूं भी पुलिस जब किसी का पोस्‍टमॉर्टम और यहां तक कि अंतिम संस्‍कार तक अपनी सुविधानुसार कराती है तो फिर टोंटा के मामले में ऐसा क्‍या हुआ कि खतरे के बाहर होने पर भी वह रात को 11 बजे उसे आगरा लेकर चल दी।
महुअन टोल प्‍लाजा पर बदमाशों ने खुद को टोंटा के परिजन बताते हुए एंबुलेंस के अंदर प्रवेश किया और उसे गोलियों से भून डाला।
यह वही पुलिस है जिसने जिला अस्‍पताल में टोंटा की पत्‍नी, पिता व भाई आदि को उससे मिलने तक नहीं दिया और उनसे तीखी झड़प के बाद उसकी पत्‍नी को बमुश्‍किल मिलने दिया गया।
बदमाश आये और टोंटा को इत्‍मीनान के साथ मौत की नींद सुला कर चले गये लेकिन उसके साथ का सुरक्षा अमला तमाशबीन बना रहा। एंबुलेंस में मौजूद अस्‍पताल कर्मी भी सुरक्षित रहे यानि किसी को कोई गंभीर चोट नहीं आई।
जिला जेल के अंदर दोपहर बाद हुई शुरूआत से लेकर हाईवे पर देर रात की वारदात तक का पूरा घटनाक्रम, जेल और जिला प्रशासन की भूमिका को केवल संदिग्‍ध ही साबित नहीं करता, उसकी संलिप्‍तता भी जाहिर कराता है।
संभवत: यही कारण है कि दबी जुबान से ही सही, पर ऐसा कहने वालों की कमी नहीं है कि गैंगवार के आगाज़ से लेकर, कल तक के अंजाम की पटकथा सरकारी नुमाइंदों ने ही लिखी है।
नि: संदेह इस गैंगवार का क्‍लाईमेक्‍स अभी बाकी है क्‍योंकि पर्दे के पीछे बैठे सूत्रधारों का न कभी कुछ बिगड़ा है और न अब बिगड़ेगा।
कुछ सरकारी नुमाइंदे निलंबित होंगे, कुछ का ट्रांसफर हो जायेगा, कुछ जांच की आंच से खुद को तपायेंगे और कुछ दूर बैठकर इस तपिश का आनंद लेंगे। मावी चला गया, अक्षय और टोंटा भी चले गये। राजकुमार शर्मा घायल है। लेकिन यह सब सरकारी मशीनरी के कलपुर्जों की तरह हैं। इन्‍हें कब, कहां और कैसे फिट करना है, किस तरह इनसे काम लेना है और कब इनका 'काम' कर देना है, इस खेल में जेल प्रशासन भी निपुण होता है और जिला प्रशासन भी।
होगा भी क्‍यों नहीं...मावी, टोंटा और अक्षय जैस अपराधी तो आते-जाते रहेंगे किंतु सरकारी वर्दी प्राप्‍त अपराधियों का अधिक से अधिक स्‍थानांतरण होगा। वह जहां जायेंगे, वहां एक नई कहानी का प्‍लॉट बना देंगे ताकि भ्रष्‍टाचार का सिलसिला अनवरत जारी रहे और जारी रहे इसी तरह उनकी अपराध व अपराधियों से दुरभि संधि का भी सिलसिला।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष 

छात्रा रेप केस की जांच ट्रांसफर होने पर भारी रोष 'बार एसोसिएशन ने लिखा UP के DGP को पत्र'







मथुरा। 
बार एसोसिएशन मथुरा ने एमबीए की छात्रा से बलात्‍कार करने के मामले में आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के भाई की एप्‍लीकेशन पर जांच को गैर जनपद स्‍थानांतरित कर दिये जाने के खिलाफ पुलिस महानिदेशक लखनऊ को एक प्रार्थनापत्र भेजा है।
बार के अध्‍यक्ष विजयपाल सिंह तोमर के हस्‍तक्षरयुक्‍त इस पत्र में डीजीपी उत्‍तर प्रदेश से अनुरोध किया गया है कि वह कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 506 के केस की विवेचना को पुन: मथुरा जनपद स्‍थानांतरित कर आरोपी की गिरफ्तारी सुनिश्‍चित करें।
उल्‍लेखनीय है कि उत्‍तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी आनंद लाल बनर्जी ने सेवा निवृत होने से मात्र एक सप्‍ताह पूर्व आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के भाई त्रिभुवन उपमन्‍यु के प्रार्थना पत्र पर बलात्‍कार जैसे संगीन अपराध की विवेचना मथुरा से फिराजाबाद जनपद स्‍थानांतरित कर दी थी जो न सिर्फ नियम विरुद्ध है बल्‍कि ऐसे मामलों में सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिये गये आदेश-निर्देशों का खुला उल्‍लंघन है।
इस संबंध में आज जब 'लीजेण्‍ड न्‍यूज़' ने इस मामले के नये विवेचक और फिरोजाबाद की क्राइम ब्रांच में तैनात इंस्‍पेक्‍टर सत्‍यपाल सिंह से उनके सीयूजी नंबर 9412861327 पर बात की तो उन्‍होंने विवेचना खुद को सौंपे जाने की पुष्‍टि करते हुए यह भी स्‍वीकार किया कि बलात्‍कार जैसे संगीन आरोप की जांच सामान्‍यत: इस तरह तब्‍दील नहीं की जाती। उन्‍होंने कहा कि मैं अपनी जिम्‍मेदारी पूरी निष्‍पक्षता के साथ और ईमानदारी पूर्वक निभाऊंगा तथा तथ्‍यों का ध्‍यान रखूंगा।
गौरतलब है कि पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ दर्ज बलात्‍कार और जान से मारने की धमकी देने के इस मामले की जांच इससे पहले मथुरा में ही तैनात महिला सब इंस्‍पेक्‍टर रीना द्वारा की जा रही थी। उप निरीक्षक रीना ने ही पीड़िता से 161 के बयान लिए थे और उन्‍होंने ही मैडिकल कराने के उपरांत कोर्ट में 164 के बयान कराकर कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ गैर जमानती वारंट हासिल करके 82 की कार्यवाही कराई थी।
यह मामला पीड़िता द्वारा 3 दिसंबर को प्रार्थना पत्र देने पर एसएसपी मंजिल सैनी ने जांच के उपरांत 6 दिसंबर को थाना हाईवे में दर्ज कराया था, बावजूद इसके आरोपी कमलकांत की गिरफ्तारी नहीं की गई और उसे पीड़िता व उसके परिवार पर समझौते के लिए दबाव बनाने का पूरा मौका दिया गया।
यही नहीं, एसएसपी मंजिल सैनी से पर्याप्‍त सहयोग मिलने के कारण ही बलात्‍कार जैसे संगीन केस की विवेचना को आरोपी कमलकांत गैर जनपद स्‍थानांतरित कराने में सफल रहा।
आश्‍चर्य की बात यह है कि जिस तारीख यानि 22 दिसंबर को इस केस की विवेचना फिरोजाबाद स्‍थानांतरित किये जाने के आदेश तत्‍कालीन डीजीपी उत्‍तर प्रदेश आनंद लाल बनर्जी के हस्‍ताक्षर से हुए हैं, उस तारीख में आनंद लाल बनर्जी गंभीर अस्‍वस्‍थ्‍य बताये गये और उपचार के लिए हॉस्‍पीटल में एडमिट थे। ऐसे में उनके द्वारा विवेचना स्‍थानांतरित करना किसी बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करता है।
जाहिर है कि इस मामले में मथुरा की एसएसपी से लेकर तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी की भूमिका से सूबे के पुलिस महकमे की छवि काफी धूमिल हुई है और आमजन के बीच इस आशय का संदेश भी गया है कि हाईप्रोफाइल मामलों में पुलिस की भूमिका कुछ और रहती है जबकि जनसमान्‍य के लिए कुछ और। कमलकांत उपमन्‍यु जैसे शासन व प्रशासन के लाइजनर्स, नियम-कानून तथा आदेश-निर्देशों की धज्‍जियां उड़ाकर किस तरह समूची व्‍यवस्‍था का मजाक उड़ाते प्रतीत होते हैं और आम आदमी छोटे से छोटे मामलों में प्रताड़ित किया जाता है।
बार एसोसिएशन ने डीजीपी को लिखे पत्र में इस आशय की चेतावनी भी दी है कि यदि समय रहते इस मामले में आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की जाती और विवेचना को निष्‍पक्ष तरीके से निस्‍तारित करने में बाधा उत्‍पन्‍न की जाती है तो शीघ्र ही अधिवक्‍तागण इसे उच्‍च न्‍यायालय तक ले जाने को बाध्‍य होंगे क्‍योंकि इस तरह आरोपी के भाई की एप्‍लीकेशन पर संगीन अपराध की विवेचना गैर जनपद स्‍थानांतरित की जा सकती है तो यह अधिकार सभी मामलों में आरोपी अथवा उसके परिजनों को दिया जाना चाहिए ताकि कानून सबके लिए समान होने की बात केवल सुनाई न दे, बल्‍कि दिखाई भी दे।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष      

सोमवार, 12 जनवरी 2015

जहां भेड़-बकरियों से ज्‍यादा असुरक्षित हैं ''बेटियां''

मथुरा। 
यदि आपके जेहन में मथुरा की छवि सिर्फ एक धार्मिक स्‍थान की है और अगर आप ऐसा मानते हैं कि कृष्‍ण की यह पावन जन्‍मस्‍थली सिर्फ यमुना के घाटों, वृंदावन की कुंज गलियों, अरावली पर्वत श्रृंखला की गोवर्धन परिक्रमा, नंदगांव, बरसाना, कोकिलावन के शनिदेव मंदिर, द्वारिकाधीश, बिहारी जी जैसे तमाम मंदिरों तक ही सीमित है तो आप गलतफहमी में हैं। इन सबसे और अपनी धार्मिक छवि से इतर भी एक मथुरा है, और यह मथुरा एक ऐसी अंधी सुरंग में ले जाती है जहां जाते हुए तो बहुत कुछ नजर आता है किंतु वापस होते कुछ नजर नहीं आता। ऐसा लगता है जैसे इस सुरंग से वापसी का कोई मार्ग है ही नहीं।
कभी प्राचीन बेशकीमती मूर्तियों की तस्‍करी के लिए कुख्‍यात रहा मथुरा जनपद अपनी भौगोलिक स्‍थितियों के कारण समय के साथ यूं तो शराब, ड्रग्‍स, हथियार तथा चांदी आदि की तस्‍करी के लिए भी मशहूर होता गया किंतु आज यह गर्ल्‍स ट्रैफिकिंग यानि लड़कियों की तस्‍करी के लिए भी काफी मुफीद साबित हो रहा है लिहाजा यहां बड़े पैमाने पर लड़कियों के तस्‍कर सक्रिय हो चुके हैं।
चूंकि मथुरा जनपद की सीमा एक ओर राजस्‍थान से तथा दूसरी ओर हरियाणा से लगती है और राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली की दूरी भी यहां से मात्र 146 किलोमीटर है इसलिए हर किस्‍म के अपराधियों का आवागमन यहां काफी आसान रहता है। ऊपर से अनेक तथाकथित मठ, मंदिर एवं आश्रम भी अपराधियों को संरक्षण देने में अहम् भूमिका निभाते हैं।
यही कारण है कि विश्‍व प्रसिद्ध यह धार्मिक जनपद पिछले कुछ सालों से गर्ल्‍स ट्रैफिकिंग का बड़ा अड्डा बन चुका है।
यहां से ले जायी जाने वाली लड़कियां कहां गायब हो जाती हैं, इसका पता आज तक नहीं लगा। हां, यह पता जरूर है कि गायब होने की तुलना में बरामद होने वाली लड़कियों की संख्‍या नगण्‍य है। जो लड़कियां यदा-कदा मिल जाती हैं, उन्‍हें लेकर फिर पुलिस ऐसी कोई जांच नहीं करती जिससे दूसरी बेहिसाब लापता लड़कियों का कोई सुराग मिल सके।
सच तो यह है कि पुलिस मात्र खानापूरी करके ऐसे मामलों से पीछा छुड़ाने में ज्‍यादा रुचि लेती है ताकि कोई बड़ी मुसीबत गले न पड़ जाए।
पुलिस के ही सूत्र बताते हैं कि मथुरा जनपद से हर दिन कोई न कोई लड़की गायब होती है और पुलिस को इसकी सूचना भी दी जाती है किंतु पुलिस पहले तो ऐसे मामले बिना कोई लिखा-पढ़ी किये निपटाने का प्रयास करती है लेकिन यदि लिखा-पढ़ी करना मजबूरी बन जाता है तब मात्र गुमशुदगी दर्ज करके अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर लेती है। उसके बाद लड़की के परिवारीजनों से ही कह दिया जाता है कि यदि आपको कुछ पता लगे तो बता देना। पुलिसजन खुद उसके बाद कोई जानकारी करने की जहमत नहीं उठाते जबकि आज गर्ल्‍स चिल्‍ड्रन को अगवा कर उनसे वैश्‍यावृत्‍ति कराने, दूसरे प्रांतों में ले जाकर जबरन विवाह करा देने, खाड़ी के देशों में भेज देने तथा भीख मंगवाने से लेकर ड्रग्‍स की तस्‍करी कराने जैसे मामले सामने आ चुके हैं।
इसके अलावा निठारी जैसे कांड बताते हैं कि लड़कियों के साथ कितने किस्‍म के अपराध किये जा सकते हैं।
हाल ही में मथुरा से तीन नाबालिग लड़कियों को फिल्‍मों में काम दिलाने के बहाने अगवा कर ले जाने का मामला प्रकाश में आ चुका है, बावजूद इसके पुलिस लगभग हर दिन लड़कियों के गायब होने जैसे संगीन मामले को गंभीरता से नहीं लेती।
पुलिस के साथ-साथ इस मामले में न तो मथुरा का कोई सामाजिक संगठन रुचि लेता है और न कोई धार्मिक संस्‍था। राजनेता तो यहां जैसे केवल वक्‍त पर चुनाव लड़ने और बाकी समय निठल्‍ला चिंतन करने के लिए हैं। उनके द्वारा कभी किसी गंभीर समस्‍या के समाधान की पहल की ही नहीं जाती नतीजतन पुलिस तथा प्रशासनिक अफसर यहां ड्यूटी कम और मौज ज्‍यादा करते हैं।
नेताओं की निष्‍क्रियता, अफसरों की उदासीनता, पुलिस की अकर्मयण्‍यता तथा अपराधियों की इस अति सक्रियता पर यदि अब भी ध्‍यान नहीं दिया और लड़कियों का जनपद से गायब होना इसी प्रकार जारी रहा तो निश्‍चित ही वह दिन दूर नहीं जब किसी भयानक कांड के सूत्र मथुरा जैसी विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी से जुड़ते दिखाई देंगे। तब हो सकता है कि राजनीति भी हो और कुछ अफसरों से जवाब-तलब भी किया जाए किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। उसके बाद भी जरूरी नहीं कि गर्ल्‍स ट्रैफिकिंग का यह सिलसिला थम ही जाए क्‍योंकि बेटियों को लेकर समाज जिस कदर संवेदनाहीन हो चुका है, उसी का परिणाम है कि आज बेटियां भेड़-बकरियों से भी ज्‍यादा असुरक्षित हैं। आश्‍चर्य इस बात पर भी होता है कि फिर भी हम खुद को सभ्‍य समाज का हिस्‍सा कहते हैं। फिर भी हम मथुरा को विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक स्‍थानों में शुमार करते हैं।
यहां एक सवाल यह पूछने का मन करता है कि यदि धार्मिक स्‍थल ऐसे होते हैं तो जरायम की दुनिया और जरायमपेशा शहर कैसे होते होंगे?
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

सोमवार, 5 जनवरी 2015

...मुझको भी एक "पद्म" दिला दो

पाकिस्‍तानी गायक अदनान शामी का एक गीत काफी मशहूर है, आपने भी जरूर सुना होगा।
गीत के बोल हैं-    तेरी ऊँची शान है मौला, मेरी अर्ज़ी मान ले मौला...मुझको भी तो लिफ्ट करा दे।
थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे, बांग्ला मोटर कार दिला दे... एक नहीं दो चार दिला दे...
मुझको एरो प्लेन दिला दे, दुनिया भर की सैर करा दे, कैसे कैसों को दिया है... ऐसे वैसों को दिया है, मुझको भी तो लिफ्ट करा दे, थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे।

जैसा कि गीत की पक्‍तियों से जाहिर है कि अदनान शामी ने इन सभी चीजों की मांग ऊपर वाले से की है, किसी नीचे वाले से नहीं।
यूं भी कहा और माना यही जाता है कि जो भी मांगना है ऊपर वाले से मांगना चाहिए क्‍योंकि नीचे वाले तो सबके सब भिखारी हैं। किसी को कुछ चाहिए तो किसी को कुछ।
ऐसे में किसी भिखारी से क्‍या मांगना और क्‍यों मांगना।
अब रही बात ऊपर वाले की तो उससे मांगते वक्‍त भी अधिकांश लोग इस बात का ध्‍यान रखते हैं कि कब और क्‍या मांगा जाए क्‍योंकि गलत वक्‍त पर गलत मांग ऊपर वाला भी पूरी नहीं करता।
खैर, फिलहाल हम यहां बात कर रहे हैं ''ऊपर वाले'' जैसी दो तथाकथित महान हस्‍तियों की। दो दिन पहले तक वह मेरे लिए भी पूरी तरह महान हस्‍तियां ही थीं किंतु दो दिन में ''तथाकथित'' हो गईं।
पहले बात करते हैं प्रसिद्ध कवि और गीतकार गोपाल दास 'नीरज' की। 91 वर्ष पूरे करके 92 वर्ष में प्रवेश कर चुके यानि कब्र में पैर लटका कर बैठे इस कवि ने एक साक्षात्‍कार के दौरान कहा है कि मुझे ईमानदारी से काम करने का ''पूरा फल'' नहीं मिला।
नीरज के अनुसार उन्‍होंने 72 साल तक लगातार गीतों के माध्‍यम से हिंदी की सेवा की, फिर भी उन्‍हें किसी सरकार ने राज्‍यसभा के लिए नामित नहीं किया।
नीरज का एक और दर्द है कि उन्‍हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी नहीं नवाजा गया।
कवि व गीतकार नीरज ने जिस दिन अपना यह दर्द एक पत्रकार के सामने बयां किया, उसी दिन ओलंपिक में बैडमिंटन का कांस्‍य पदक जीतने वाली भारतीय खिलाड़ी साइना नेहवाल ने पद्म भूषण पुरस्‍कार के लिए अपना आवेदन खारिज कर दिये जाने पर आपा खो दिया।
साइना नेहवाल का तर्क है कि जब पहलवान सुशील कुमार को पद्म पुरस्‍कार देने के लिए 5 साल के अंतराल का नियम दरकिनार किया जा सकता है तो उनके लिए क्‍यों नहीं।
जहां तक मेरी जानकारी है, कवि गोपाल दास नीरज और बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल को देश ने इतना कुछ दिया है जितने की उन्‍होंने संभवत: खुद कल्‍पना भी नहीं की होगी।
ये बात अलग है कि जितना उन्‍हें मिल गया...या मिलता गया...उतनी ही उनकी हवस बढ़ती गई...और नतीजा सामने है।
हो सकता है कि आज की तारीख में उन्‍हें अब तक प्राप्‍त प्रतिफल अपनी तथाकथित देश सेवा के सामने कम नजर आता हो लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्‍या सम्‍मान और पुरस्‍कार भी मांगने की चीज हैं?
क्‍या मांग कर प्राप्‍त सम्‍मान और पुरस्‍कार किसी को संतुष्‍टि प्रदान कर सकते हैं?
क्‍या मान-सम्‍मान और पुरस्‍कारों की भीख मांगी जा सकती है, और क्‍या भीख में मिला सम्‍मान या पुरस्‍कार कोई अहमियत रखता है?
अगर किसी के पास इन सवालों के जवाब हों तो कृपया करके अवश्‍य दें ताकि मैं आगे से किसी महान शख्‍सियत की शान में गुस्‍ताखी करने से पहले उन जवाबों पर नजर डाल सकूं।
रहा सवाल कवि व गीतकार गोपाल दास नीरज तथा बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल द्वारा अपने-अपने तरीकों से देश की और हिंदी व खेल की सेवा करने का तो ऐसी सेवा समझ से परे है।
सेवा का तो मतलब ही कुछ और बताया गया है। यह कैसी सेवाएं हैं जिनके एवज में खुलेआम कीमत मांगी जा रही है। बेझिझक अपने लिए राज्‍य सभा का नॉमीनेशन तथा पद्म पुरस्‍कार की चाहत की जा रही है।
यदि इसी को देश सेवा, समाज सेवा या किसी भी किस्‍म की कोई सेवा कहते हैं तो हर वो नागरिक देश सेवा में लीन है जो देश की जनसंख्‍या बढ़ाने में बिना सोचे-समझे अपना योगदान दे रहा है क्‍योंकि आज सवा अरब से ऊपर की वह संख्‍या ऐसे ही लोगों के कारण बन सकी है जिस संख्‍या पर देश गर्व करने लगा है। जो कभी चिंता का विषय बनी थी किंतु आज उसे लेकर दूसरे देश चिंतित हैं।
यदि यही देश सेवा है तो हर वो व्‍यक्‍ति भी देश सेवा कर रहा है जो अपना-अपना काम करके दौलत, शौहरत व इज्‍ज़त कमा रहा है या फिर बमुश्‍किल ही सही पर जीविको पार्जन कर रहा है।
देखा जाए तो वह नीरज व नेहवाल जैसे देश सेवकों से कहीं ज्‍यादा महान है क्‍योंकि वह सरकार से किसी प्रकार के मान-सम्‍मान व ईनाम-इकराम की इच्‍छा पाले बिना और सरकार पर बोझ बने बिना चुपचाप अपना काम कर रहा है और उन बच्‍चों को भी पाल रहा है जो बेशक पैदा चाहे उसने किये हों किंतु जिस पर गर्व देश कर रहा है। बच्‍चों को कर्ज लेकर पढ़ाता है और जब वह कुछ बन जाता है तो देश उसका क्रेडिट ले लेता है।
देश के पूर्व और वर्तमान प्रधानमंत्री विभिन्‍न राष्‍ट्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय मंचों से कहते हैं कि हमारा युवा हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। हमारे इंजीनियर, डॉक्‍टर और वैज्ञानिक विश्‍व में देश की पताका फहरा रहे हैं।
यदि राज्‍यसभा की सदस्‍यता और पद्म पुरस्‍कार देने का यही पैमाना है तो शायद ही देश का कोई नागरिक हो, जिसकी इन पर दावेदारी न बनती हो।
उन चोर-उचक्‍कों की भी जो भारी-भरकम जोखिम उठाकर अपने काम को अंजाम देते हैं सरकारों से कोई ऐसी शिकायत नहीं करते कि यदि उन्‍हें भी समय रहते उनकी योग्‍यता के अनुसार रोजी-रोजगार मिल गया होता तो वह इतना जोखिम भरा काम नहीं करते। ऐसा काम जिसमें बच्‍चों की परवरिश करने के लिए तो कोई पीठ तक नहीं थपथपाता लेकिन पकड़े जाने पर जेल जरूर जाना पड़ता है जबकि वह भी अपने तरीके से देश सेवा ही कर रहे हैं।
91 साल के वयोवृद्ध कवि को कभी देश या ऐसे-वैसे देशवासियों की चिंता नहीं सताई पर इस बात का मलाल है कि किसी सरकार ने उन्‍हें राज्‍यसभा नहीं भेजा, पद्म विभूषण नहीं दिया। कभी ऊपर वाले का शुक्रिया अदा नहीं किया कि इतना मान-सम्‍मान और धन-दौलत अपना काम करते हुए दिलवा दिया लेकिन चला-चली की बेला में सरकार से शिकायत कर रहे हैं।
युवा बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने भी कभी देश व देशवासियों की स्‍थिति-परिस्‍थितियों पर चिंता जाहिर की हो, ऐसा स्‍मरण नहीं आता। कभी किसी प्राकृतिक आपदा में करोड़ों की अपनी दौलत से अंशभर कुछ दिया हो, याद नहीं आता परंतु पद्म पुरस्‍कार ऐसे मांग रही हैं जैसे बैडमिंटन खेल कर एकमात्र देश पर और हर तरह से देशवासियों पर कोई उपकार कर रही हों।
देश अनेक तरह की परेशानियों का सामना कर रहा है, तमाम देशवासी अपनी ख्‍वाहिशें पूरी होने के लिए ताजिंदगी तरसते रहते हैं, कुल आबादी का एक बड़ा हिस्‍सा अपने सपने पूरे होने की उम्‍मीद में दुनिया से कूच कर जाता है...और हमारी तथाकथित महान हस्‍तियों को अपनी हवस पूरी न हो पाने से नाराजगी है।
यदि महानता इसी को कहते हैं और ऐसे ही होते हैं महान लोग...तो ऐसी महानता किसी काम की नहीं।
ईश्‍वर न करे कि आने वाली पीढ़ी को ऐसे महान लोगों की हवस का पता भी लगे...क्‍योंकि यदि पता लग गया तो उनकी भी नजरों से ये उसी प्रकार गिर जायेंगे जिस प्रकार मेरी नजरों से दो दिन के अंदर गिर गये अन्‍यथा दो दिन पहले तक मैं भी इन्‍हें बहुत महान मानता था।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी 
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