गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

मैं... मेरा परिवार... और हमारी सबसे अच्‍छी सरकार

मुलायम सिंह, शिवपाल सिंह, रामगोपाल और आजम खान जैसी सपाई सूरमाओं से घिरे सूबे के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव अपने अधिकारियों के साथ क्रिकेट का मैच खेल रहे हैं जबकि कहीं जेल के अंदर गैंगवार हो रही है तो कहीं कोर्ट के अंदर।
मथुरा में जेल के अंदर हुई गैंगवार का नतीजा जब गैंगेस्‍टर के अनुकूल नहीं निकलता तो वह पुलिस अभिरक्षा में अपने घायल प्रतिद्वंदी को तब सरेराह मौत के घाट उतार देते हैं जब उसे इलाज के लिए आगरा ले जाया जा रहा था।
मुजफ्फरनगर में अदालत के अंदर नाबालिग लड़का वकील का चोला पहनकर कुख्‍यात अपराधी को 'माननीय' की आंखों के सामने गोलियां बरसाकर भून देता है।
सहारनपुर में तनिष्‍क के शोरूम पर डाका पड़ता है और बदमाश करीब दस करोड़ रुपए के गहने ले जाते हैं।
यह आपराधिक वारदातें तो चंद उदाहरण भर हैं, अन्‍यथा प्रदेश का शायद ही कोई जिला ऐसा हो जहां अपराधी बेखौफ होकर अपने मकसद को अंजाम न दे रहे हों। ऐसा लगता है जैसे प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज है भी नहीं। सरकार के नाम पर जो कुछ व जितना कुछ नजर आ रहा है, वह सिर्फ एक परिवार का आधिपत्‍य है।
अधिकारी भी रोज-रोज होने वाली अपनी ट्रांसफर-पोस्‍टिंग्‍स से परेशान हैं किंतु समाजवादी कुनबे के लिए यह सब एक ऐसा धंधा है जिसमें बिना कुछ लगाये करोड़ों की कमाई हो रही है। प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा पुलिस अथवा प्रशासनिक अधिकारी होगा, जिसे कहीं टिकने दिया गया हो।
पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अब दबी जुबान से यह कहने भी लगे हैं कि निर्धारित समय के अंदर जिसने अपनी पोस्‍टिंग का रिन्‍यूअल नहीं कराया तो समझो अगली लिस्‍ट में उसका नप जाना तय है। 
घोर आश्‍चर्य की बात यह है कि इतना सब-कुछ होने के बाद भी मुख्‍यमंत्री से लेकर सुपर मुख्‍यमंत्रियों तक की फौज कहती है कि उत्‍तर प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था दूसरे सभी राज्‍यों से बेहतर है।
यह स्‍थिति करीब-करीब वैसी ही है जैसी 2012 से मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व वाली यूपीए
सरकार की हो गई थी। लोकसभा के चुनाव बेशक 2014 में होने थे किंतु सरकार 2012 से ही अपंगता का शिकार बन चुकी थी।
सपा और यूपीए सरकार के बीच एक अन्‍य समानता भी देखी जा रही है। और यह समानता है आत्‍मप्रशंसा करने के मामले में। कांग्रेस की दुर्गति पूरे देश को साफ-साफ दिखाई दे रही थी लेकिन कांग्रेसी कहते थे कि उनसे अच्‍छी सरकार चलाना कोई जानता ही नहीं। आज यही काम अखिलेश के नेतृत्‍व वाली सरकार कर रही है।
सच तो यह है कि पूरा समाजवादी कुनबा प्रदेश को कुछ इस तरह चला रहा है जैसे कोई अपनी प्राइवेट कंपनी को चलाता है। समाजवादी कुनबा संभवत: इस मुगालते में है कि 2017 के चुनावों का नतीजा उनके अनुकूल रहेगा क्‍योंकि उनसे अच्‍छा शासक कोई है नहीं। बेहतर ही रहेगा यदि वह और कुछ समय तक इस मुगालते को पाले रहें क्‍योंकि उनके ऐसे मुगालते में ही जनता की भलाई छिपी है। जनता को इनके शासन से छुटकारा इनके ऐसे मुगालते से ही मिल सकता है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि 2017 के चुनावों तक उत्‍तर प्रदेश को यह लोग लालू के कार्यकाल का बिहार बना कर रख देंगे लेकिन उत्‍तर प्रदेश के उत्‍तम प्रदेश बनने का मार्ग भी तभी प्रशस्‍त होगा।
आज हालांकि आशा की कोई किरण स्‍पष्‍ट नहीं है परंतु 2017 के चुनावों तक जरूर हो जायेगी। यूं भी जनता अब काफी समझदार हो चुकी है। वह राजनेताओं की मनमानी का जवाब देने के लिए अपने समय का इंतजार करती है और मौका मिलते ही वही हाल बना देती है जैसे लोकसभा चुनावों के दौरान यूपी के अंदर कांग्रेस, सपा, बसपा तथा रालोद का किया था, या फिर हाल ही में दिल्‍ली के अंदर कांग्रेस व भाजपा का किया।
इसलिए और कुछ समय इंतजार कीजिए, फिर जनता बता देगी कि अखिलेश सरकार कितनी काबिल रही तथा समाजवादी कुनबे की मनमानी का नतीजा क्‍या रहा।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

कमलकांत उपमन्‍यु को हाईकोर्ट से तगड़ा झटका



मथुरा बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय पाल सिंह तोमर की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्‍य न्‍यायाधीश डॉ. डी. वाई. चन्‍द्रचूढ़ तथा जस्टिस सुनीत कुमार की खंडपीठ ने इस मामले में तीखी टिप्‍पणी करते हुए न केवल उत्‍तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक की कार्यप्रणाली पर गहरा सवालिया निशान लगाया है बल्‍कि प्रदेश सरकार से भी जवाब तलब किया है।
न्‍यायालय ने सरकार से पूछा है कि ऐसी कौन सी परिस्‍थितियां पैदा हो गईं कि आरोपी के भाई द्वारा दिये गये प्रार्थना पत्र को आधार बनाकर डीजीपी को विवेचना बदलने के लिए कहना पड़ा।
कोर्ट ने डीजीपी के उस पत्र का भी हवाला अपने आदेश में दिया है जिसके तहत साफ लिखा गया था कि ‘सरकार की मंशा है कि जांच स्थानांतरित की जाए’।
डीजीपी के पत्र से साफ है कि मुख्यमंत्री के ओएसडी (न्यायिक) द्वारा उनको लिखे पत्र के बाद विवेचना मथुरा से फिरोजाबाद स्थानांतरित की गई। इस तरह के आदेश का सीधा तात्‍पर्य है कि डीजीपी ने विवेक का प्रयोग न कर राजनीतिक दबाव में निर्णय लिया।
उच्‍च न्‍यायालय ने इन परिस्‍थितियों में विवेचना स्‍थानांतरित करने को अत्‍यंत गंभीरता से लेते हुए अपने आदेश के तहत लिखा है कि इस तरह तो आम जनता का भरोसा ही आपराधिक न्याय प्रणाली से उठ जाएगा क्‍योंकि आपराधिक मुकद्दमों की विवेचना के लिए निर्धारित गाइड लाइंस तक का सरकार पालन नहीं कर रही है।
सरकार अब इस मामले में पूरी तरह घिरती हुई दिखाई दे रही है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 19 फरवरी का दिन नियत किया है, साथ ही अपने इस आदेश की जानकारी पीड़िता और उसके परिवार को देने का जिम्‍मा चीफ जुडीशियल मजिस्‍ट्रेट (सीजेएम) मथुरा को सौंपा है।
उल्‍लेखनीय है कि एक एमबीए की छात्रा द्वारा लगाये गये बलात्‍कार व जान से मारने की धमकी देने जैसे संगीन आरोपों की विवेचना कमलकांत उपमन्‍यु ने अपने राजनीतिक व प्रशासनिक प्रभाव से तब फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करा ली थी जबकि पीड़िता का एक ओर जहां 161 के बयान दर्ज कराकर मैडीकल करवाया जा चुका था वहीं दूसरी ओर कोर्ट में 164 के कलमबद्ध बयान भी दर्ज हो चुके थे। पीड़िता ने 164 के अपने बयानों में इस बात का भी उल्‍लेख किया था कि आरोपी मेरे व मेरे परिवार पर समझौते के लिए लगातार दबाव बना रहा है और मेरे परिवारीजनों को धमिकयां दी जा रही हैं। यही नहीं, केस की गंभीरता के मद्देनजर न्‍यायालय से आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के गैर जमानती वारंट जारी हो गये और सीआरपीसी की धारा 82 के तहत कार्यवाही भी कर दी गई थी। मथुरा पुलिस ने कमलकांत उपमन्‍यु के घर पर 82 का नोटिस तक चस्‍पा कर दिया था।
बताया जाता है कि फिरोजाबाद विवेचना स्‍थानांतरित कराने के बाद कमलकांत उपमन्‍यु ने इस मामले में आईओ से फाइनल रिपोर्ट लगवाने का पूरा इंतजाम कर लिया था। आईओ ने गत दिनों संबंधित न्‍यायालय में पीड़िता के 164 के तहत बयान फिर से कराने की इजाजत भी लेनी चाही थी लेकिन न्‍यायालय ने उसे इजाजत नहीं दी।
दरअसल कमलकांत उपमन्‍यु को इतना सब-कुछ करने व कराने का पूरा मौका एसएसपी मथुरा ने दिया। वह पहले तो पीड़िता की एफआईआर ही दर्ज करने के लिए तैयार नहीं थीं। पीड़िता की तहरीर पर तीन दिन बाद जांच के उपरांत जैसे-तैसे मुकद्दमा दर्ज कराया तो आरोपी की गिरफ्तारी का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया।
कमलकांत उपमन्‍यु के दबाव में एसएसपी ने पीड़िता के पिता व भाई के खिलाफ ही फर्जी आपराधिक मामले दर्ज करा दिये ताकि वह किसी प्रकार कमलकांत उपमन्‍यु से समझौता कर ले।
विभिन्‍न टीवी चैनल्‍स को दिये अपने बयानों में भी एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी, आरोपी पत्रकार का बचाव करती साफ नजर आईं। बलात्‍कार जैसे संगीन व घृणित आरोपों के बावजूद वह कैमरे के सामने कमलकांत उपमन्‍यु के लिए आदर सूचक शब्‍दों का प्रयोग करती देखी गईं।
यही कारण था कि आरोपी पत्रकार, पीड़िता व उसके परिवार पर लगातार दबाव बनाने में सफल रहा और साथ ही अपने बचाव के लिए शासन व प्रशासनिक स्‍तर पर भी सक्रिय रहा।
अब मुख्‍य न्‍यायधीश की अध्‍यक्षता वाली खण्‍डपीठ के इस निर्णय ने कमलकांत उपमन्‍यु के अरमानों पर तो पानी फेर ही दिया है, ऐसे तत्‍वों को सबक सिखाने का इंतजाम भी कर दिया है जो अपने राजनीतिक व प्रशासनिक रसूख के बल पर कानून का खुला मजाक उड़ाते हैं और संगीन आपराधिक वारदातें करके भी साफ बच निकलते हैं।
कोर्ट ने भी अपने इस आदेश के तहत यह जिक्र किया है कि शासन व पुलिस प्रशासन के स्‍तर पर मनमाने तरीके से विवेचना बदले जाने के कारण अपराधियों ने इसे अपने बचाव का कारगर हथियार बना लिया है और पीड़ितों की ओर से बड़ी संख्‍या में इनके खिलाफ याचिकाएं दाखिल हो रही हैं।
पीठ का कहना है कि इस प्रकार के मनमाने स्थानांतरण निश्चित रूप से बंद होने चाहिए।
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