मंगलवार, 26 मई 2015

ट्राई के पूर्व चेयरमैन प्रदीप बैजल ने लिखा, मनमोहन ने दी थी मुझे धमकी

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अब ट्राई के तत्कालीन चेयरमैन प्रदीप बैजल ने भी कठघरे में खड़ा किया है। प्रदीप बैजल के अनुसार मनमोहन ने उन्‍हें धमकी दी थी। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में पूर्व कैबिनेट सहयोगियों की ओर से पहले ही लपेटे जा चुके बैजल ने जल्द प्रकाशित होने वाली अपनी किताब ‘द कंप्लीट स्टोरी ऑफ इंडियन रिफॉर्म्स: 2जी पावर ऐंड प्राइवेट एंटरप्राइज’ में मनमोहन सिंह को घोटाले का जिम्मेदार ठहराते हुए लिखा है कि पूर्व पीएम ने उन्हें 2जी मामले में सहयोग न करने पर नुकसान उठाने की चेतावनी दी थी।
कई सालों तक 2जी और संपत्तियों के विनिवेश के मामले में जांच का सामना कर चुके बैजल ने कहा कि हमारे जैसे अधिकारियों की हालत होती है कि करें तब भी मुश्किल और कुछ न करें तब भी परेशानी।
2006 में रिटायर हुए बैजल ने अपनी किताब में पूरे घोटाले के लिए मनमोहन को जिम्मेदार ठहराते हुए लिखा है, ‘मैंने यूपीए-2 के दौरान बहुत से लोगों को चेताया था कि मेरे या अन्य लोगों से जो भी पूछताछ हो रही है, उसकी आंच प्रधानमंत्री तक भी जाएगी क्योंकि हमने प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों के फैसलों को ही आगे बढ़ाया है। यह अब सच साबित हो रहा है।’
‘हाउ द प्रॉब्लम्स बीगेन’ नाम से लिखे चैप्टर में बैजल ने दावा किया है कि उन्होंने 2004 में दयानिधि मारन को टेलिकॉम मिनिस्टर बनाने का विरोध किया था क्योंकि वह खुद एक ब्रॉडकास्टर भी थे और यह हितों के टकराव का मामला था लेकिन तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने इन आपत्तियों को खारिज कर दिया था।
बैजल ने दावा किया कि मनमोहन ने दो समितियों को गठित किया था, जिनमें से एक के अध्यक्ष वह खुद थे और दूसरी की जिम्मेदारी उनके प्रधान सचिव पर थी। मारन इन समितियों की बैठक में अधिकारियों का जाने से मना करते थे। मारन का कहना था कि वह खुद ‘टेलिकॉम प्राइम मिनिस्टर’ हैं। बैजल ने लिखा है, ‘मारन ने धमकी दी थी कि यदि मेरे आदेशों का पालन नहीं करोगे तो नुकसान उठाना पड़ेगा और मुझे बाद में खामियाजा भुगतना भी पड़ा।’

रविवार, 24 मई 2015

काले धन का सबसे बड़ा स्रोत नौकरशाही और राजनीतिक वर्ग: सर्वे

नई दिल्‍ली। नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (NCAER) के सर्वे से पता लगता है कि देश में काले धन का सबसे बड़ा स्रोत नौकरशाही और राजनीतिक वर्ग को मिलने वाली घूस की रकम है।
सर्वे के मुताबिक भले ही बीते कुछ सालों में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता बढ़ी हो, लेकिन आज भी देश में हर शहरी परिवार को साल में करीब 4,400 रुपये की घूस देनी पड़ती है जबकि ग्रामीण इलाकों में एक परिवार को साल में करीब 2,900 रुपये रिश्वत में देने पड़ते हैं।
अघोषित संपत्ति का आंकलन करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए आयोग ने इसका खुलासा किया है।
नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (NCAER) के सर्वे के मुताबिक लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर, चेन्नै, हैदराबाद, पुणे और ग्रामीण इलाके के लोगों को सामान्य कामों… जैसे एडमीशन कराने और पुलिस से संबंधित काम निपटाने के लिए देश में सबसे अधिक घूस देनी पड़ती है। सितंबर से दिसंबर 2012 के बीच हुए सर्वे के मुताबिक शहरों में लोगों को हर साल करीब 18 हजार रुपये नौकरी पाने और ट्रांसफर कराने के लिए खर्च करने पड़ते हैं। यही नहीं, ट्रैफिक पुलिस को भी साल में कम से कम 600 रुपये घूस के तौर पर देने पड़ते हैं।
सर्वे के मुताबिक देश में काले धन का सबसे बड़ा स्रोत नौकरशाही और राजनीतिक वर्ग को मिलने वाली घूस की रकम है। यह काला धन आम तौर पर ठेके आवंटित करने, विकास योजनाओं को मंजूरी देने, खनन और तेल उत्पादों की बिक्री करने आदि से हासिल होता है। सर्वे की रिपोर्ट 2013 और 2014 में वित्त मंत्रालय को सौंपी गई थी लेकिन अब इसे अन्य विभागों से राय लेने के लिए उन्हें सौंपा गया है। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में भ्रष्टाचार पूरी तरह से बेकाबू है। गरीब लोगों के लिए चलाई जाने वाली मनरेगा, पीडीएस, इंदिरा आवास योजना, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और छात्रवृत्ति योजनाओं के बजट का तकरीबन आधा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।
दिल्ली, हैदराबाद, नोएडा, लखनऊ और पटना में हुए सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार सड़क किनारे पटरी बाजार और रेहड़ी लगाने वालों को हर महीने लगभग 1,100 रुपये की घूस देनी पड़ती है। इन लोगों की करीब 13 फीसदी कमाई घूस देने में ही चली जाती है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की निगरानी में हुए इस सर्वे की रिपोर्ट ऐसे वक़्त में आई है, जब पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सभी सांसद देश में काले धन पर लगाम कसने के लिए कड़ा कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।

शुक्रवार, 22 मई 2015

खुलासा: स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचाना चाहती थी यूपीए

नई दिल्ली। एक ताजा खुलासे में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में कुछ निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाना चाहती थी। इसके लिए उसने नियमों को तोड़ने मरोड़ने का काम भी किया था। यह खुलासा कोबरापोस्‍ट ने किया है।कोबरापोस्ट के पास मौजूद आरटीआई ऐक्टिविस्ट विवेक गर्ग के डॉक्यूमेंट्स से पता चलता है कि सरकार ने प्राइवेट सेक्टर को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव किया था। ऐसा तब किया जबकि इसके प्रति कई ब्यूरोक्रेट्स और मंत्रियों ने चिंता जताई थी।
देश के चार मेट्रो शहरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नै, कोलकाता को जोड़ने के लिए प्रधानंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 5846 किलोमीटर की स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना लॉन्च की थी। सत्ता में आने के बाद 2005-06 में यूपीए ने इस परियोजना का श्रेय लेने की होड़ में इसे 4 की बजाय छह लेन का बनाने का प्रस्ताव रखा और इसकी अनुमानित लागत 41,210 करोड़ रुपये रखी गई।
परियोजना को शुरू करने की जल्दबाजी में मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन इंफ्रास्ट्रक्चर (सीसीआई) ने छह लेन के स्पेसीफिकेशन को कम करने का निर्णय लिया था, जिसे चार लेन के लिए ट्रैफिक की क्षमता 40 हजार पैसेंजर कार यूनिट्स प्रति दिन से घटाकर छह लेन के लिए 25 हजार पैसेंजर कार यूनिट्स प्रति दिन कर दिया गया। यह पहली बार था जब किसी परियोजना को शुरू करने की जल्दबाजी में नियमों में बदलाव किया गया था
तब के केंद्रीय सड़क एंव परिवहन मंत्री कमलनाथ को पीपीपी मॉडल के तहत छह लेन के प्रॉजेक्ट को बनाने के लिए कैबिनेट की मंजूरी मिल गई थी। 41,210 करोड़ के इस प्रॉजेक्ट में से 35,692 करोड़ का योगदान प्राइवेट सेक्टर का था। शेष 5518 करोड़ को सरकार से फंड से पूरा किया जाना था।
निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने वायाबिलेटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) के रूप में 5 फीसदी कंस्ट्रक्शन कॉस्ट देने का फैसला किया। अपवाद स्वरूप कुछ मामलों में 10 फीसदी वीजीएफ दिया गया लेकिन यूपीए सरकार ने अपने ही नियमों की अवहेलना की। सूत्रों के मुताबिक कुछ टॉप ब्यूरोक्रेट्स के विरोध के बावजूद दो मामलों में वीजीएफ को 36 फीसदी कर दिया गया।
ओडिशा में एनएच-5 पर चंडीखोल-जगतपुर-भुवनेश्वर खंड के 67 किलोमीटर के दो निर्माण कार्यों के लिए ठेकेदार को प्रॉजेक्ट की कुल लागत 1047 करोड़ रुपये में से 36.96 फीसदी वीजीएफ यानी कि 387 करोड़ रुपये दिए गए। इसी तरह उत्तर प्रदेश और बिहार में एनएच-2 पर वाराणसी-औरंगाबाद 192 किलोमीटर लंबे खंड के लिए 2848 करोड़ रुपये के प्रॉजेक्ट में वीजीएफ के रूप में 38.48 करोड़ रुपये दिए गए। इन दो मामलों से सरकारी खजाने को करीब 1483 करोड़ का नुकसान हुआ।
सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने इन प्रस्तावों को मंजूरी दी थी लेकिन इससे पता चलता है कि यह वीजीएफ पर कैबिनेट कमिटी ऑन इकनॉमिक अफेयर्स (सीसीईए) द्वारा मंजूर किए गए नियमों का उल्लघंन था। एनएच-2 स्थित छह लेन वाले वाराणसी-औरंगाबाद सेक्शन को 21 नवंबर 2008 को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप अप्रेजल कमिटी (पीपीपीएसी) ने मंजूरी दी थी। इसे सीसीईए ने 28 जनवरी 2009 को मंजूरी दे दी।
एनएच-5 स्थित छह लेन वाले चंडीखोल-जगतपुर-भुवनेश्वर सेक्शन के लिए बोली की प्रक्रिया 2008-09 के दौरान शूरू हुई थी। 15 फर्मों ने इस प्रॉजेक्ट के लिए आवेदन 7 मई 2008 को जमा किया था। दो राउंड के बाद 15 में से सिर्फ तीन आवेदन कर्ता ही नीलामी के लिए सहमत हुए। 2 जनवरी 2009 को जब बोली खुली तो वीजीएफ के लिए सबसे कम बोली 387 करोड़ रुपये या टीपीसी का 36.96 फीसदी की थी। एक बार फिर से एनएचएआई ने इसे उचित ठहरा दिया।
सूत्रों के मुताबिक वीजीएफ लिमिट को 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ाए जाने का फाइनैंस मंत्रालय के कई सचिवों ने विरोध किया था लेकिन उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक वीजीएफ में बढ़ोत्‍तरी के पीछे ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की बड़ी भूमिका थी। 2009 में मनमोहन सिंह से मुलाकात के दौरान पटनायक ने वीजीएफ को बढ़ाकर 38 फीसदी किए जाने का दबाव डाला था। सूत्रों के मुताबिक पीएमओ ने 7 अगस्त 2009 को सड़क एंव परिवहन मंत्रालय को लिखे एक पत्र में कहा था कि नवीन पटनायक ने पीएम को अवगत कराया है कि कलकत्ता और चेन्नै को जोड़ने वाले एनएच-5 के ट्रैफिक में जबर्दस्त बढ़ोत्‍तरी हुई है।
सूत्रों के मुताबिक सरकार छह लेन के प्रॉजेक्ट को मंजूरी देने की हड़बड़ी में थी जिसे कैबनेट से मंजूरी दिलाने के लिए 100 किलोमीटर के 65 हिस्सों में विभाजित कर दिया गया। इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक इस मामले को लेकर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, चिदंबरम, कमलनाथ, सीबीआई डायरेक्टर या एनएचआई चेयरमैन को भेजे सवालों का कोई जवाब नहीं मिला था।

गुरुवार, 21 मई 2015

फार्मेसी कॉउंसिल से अप्रूवल के बिना ही करा दी बी फार्मा, अब भटक रहे हैं छात्र

लखनऊ। शिक्षा माफिया के सामने प्रदेश का तंत्र किस कदर असहाय और बौना साबित हो रहा है इसका ज्‍वलंत उदाहरण हैं वो कॉलेज जिन्‍होंने फार्मेसी कॉउंसिल ऑफ इंडिया से अप्रूवल लिए बिना ही हजारों छात्रों को बी. फार्मा करा दी।
अब ये छात्र अपना रजिस्‍ट्रेशन कराने के लिए भटक रहे हैं किंतु उत्‍तर प्रदेश फॉर्मेसी काउंसिल उनका रजिस्‍ट्रेशन करने को तैयार नहीं है। फार्मेसी काउंसिल ने उनकी वैधता पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगा दिया है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के कई जिलों से बी. फार्मा कर चुके ऐसे हजारों छात्र अब भटकने को मजबूर हैं।
कहा जा रहा है कि इन छात्रों ने जिन कॉलेज में दाखिला लिया था, उन्हें फार्मेसी कॉउंसिल ऑफ इंडिया से अप्रूवल ही नहीं है।
आरोप है कि कॉलेजों ने यूपीटीयू के तत्कालीन अधिकारियों की मिलीभगत से पहले बिना अप्रूवल दाखिले लिए और बाद में छात्रों को दूसरे कॉलेजों में शिफ्ट कर दिया गया। पूरे मामले की जानकारी फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया को भेज दी गई है।
लखनऊ स्थित चरक इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी ने वर्ष 2009 में बी फॉर्मा कोर्स में दाखिले लिए थे। कॉलेज ने एआईसीटीई से कोर्स की मान्यता लेकर यूपीटीयू से सबद्धता हासिल कर ली। इसके मुताबिक दाखिले भी कर लिए, लेकिन कोर्स को फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया से अप्रवूल नहीं मिला। इसके बावजूद कोर्स शुरू हुआ और यूपीटीयू के तत्कालीन अधिकारियों ने परीक्षा भी करा दी।
इसके बाद छात्रों को यूपीटीयू की संस्तुति पर दूसरे मान्यता प्राप्त कॉलेज से संबद्ध करा दिया गया। छात्रों ने दूसरे से लेकर चौथे साल तक की पढ़ाई दूसरे कॉलेजों में की। कोर्स पूरा होने के बाद ये छात्र सुनहरे भविष्य का सपना देख रहे थे जबकि यूपी फार्मेसी काउंसिल ने पहले वर्ष के दाखिले ही अवैध करार देते हुए पंजीकरण से इंकार कर दिया।
उलझन में छात्र
प्रदेश की राजधानी स्थित चरक इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी समेत प्रदेश के कई ऐसे कॉलेजों के छात्र अब परेशान हैं। आरोप है कि यूपीटीयू अधिकारियों की मिलीभगत के चलते उनका करियर चौपट होने के कगार पर है। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश के दर्जनों कॉलेज इस घपले में शामिल हैं और वो अब तक हजारों छात्रों को बी. फार्मा का कोर्स करा चुके हैं लेकिन उनका पंजीकरण नहीं किया जा सकता।
उप्र फार्मेसी काउंसिल के पास लगातार ऐसे छात्र पहुंच रहे हैं। इन मामलों की रिपोर्ट फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के पास भेज दी गई है। वहीं, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट मिलने के बाद यूपीटीयू या संबंधित कॉलेज के प्रतिनिधियों को पेश होने को कहा था, बावजूद इसके न तो यूपीटीयू से कोई गया और न ही कॉलेजों ने कोई दिलचस्पी दिखायी। ऐसे में खुद को ठगा महसूस कर रहे छात्र अब कोर्ट जाने की तैयारी में हैं।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

शुक्रवार, 15 मई 2015

यूपी: आईपीएस अमिताभ ठाकुर के खिलाफ गवर्नर ने दिए जांच के आदेश

लखनऊ। यूपी काडर के आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर द्वारा कथित रूप से छुपाई गयी अचल संपत्तियों के मामले में गवर्नर ने नागरिक सुरक्षा के महानिदेशक को जांच के आदेश दिए हैं. बताते चलें कि ‘तहरीर’ नामक सामाजिक संगठन ने इस संबंध में गवर्नर को पत्र लिखा था.
‘तहरीर’ के मुताबिक, 1992 बैच के आईपीएस अफसर ठाकुर ने 2010 में गृह मंत्रालय को दी गयी अपनी अचल संपत्ति की जानकारी में बताया था कि उनके और उनकी पत्नी के नाम से लखनऊ और बिहार में दस संपत्तियां थी. इनमें राजधानी के गोमतीनगर स्थित विरामखंड में एक एचआईजी मकान, खरगापुर में पांच प्लाट और उजरियांव में एक पांच हजार स्क्वायर फिट में मकान भी थे. इसके अलावा बिहार के मुजफ्फरपुर, पटना, सीतामढ़ी में भी उनके पास मकान और कृषि भूमि थी.
बाद में किया सिर्फ दो संपत्तियों का दावा
इन सभी संपत्तियों से उनकी वार्षिक आय 2 लाख 88 हजार 390 रुपए थी. उनके पास इतनी संपत्तियां होने के मामले ने जब तूल पकड़ा, तो उन्होंने बाद के वर्षो में दाखिल किये गये अपने आईपीआर में उनके नाम केवल दो संपत्तियां ही होने का दावा किया था. संस्था का आरोप है कि अमिताभ ठाकुर अपनी पत्नी नूतन ठाकुर के नाम आठ संपत्तियों की जानकारी छुपा गए थे.
आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने अपने ऊपर लगे इन आरोपों को खारिज किया है. अखिल भारतीय सेवा नियमावली (15-3) के तहत स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति का ब्यौरा गृह मंत्रालय को भेजना होता है. इसके तहत उन्होंने 2010 में सपंत्ति का ब्यौरा भेजा था. इसमें उनके और उनकी पत्नी की संपत्ति का विवरण था. बाद में उन्होंने अपनी पत्नी की संपत्ति अलग कर दिया. लेकिन एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर के निर्देश पर उन्होंने दोबारा पत्नी की संपत्ति अपने साथ दिखा दी.

जानिये…नेपाल जैसे भूकंप से “ब्रज वसुंधरा” का क्‍या होगा हाल?

1-आगरा व मथुरा भी शामिल हैं भूकंप के प्रति अति संवेदनशील जोन 4 में 2-क्‍या आगरा और मथुरा के नव निर्माण में अपनाई जा रही है भूकंपरोधी तकनीक? 3-क्‍या होती है भूकंपरोधी तकनीक और कैसे किसी इमारत को बनाया जाता है भूकंपरोधी?
25 अप्रैल को आये भूकंप ने नेपाल में बर्बादी का जैसा मंजर दिखाया… और कल फिर जिस तरह लोगों को भी कांपने पर मजबूर कर दिया, उसके बाद भारत में भी इस पर खासी चर्चा की जाने लगी है कि यदि नेपाल जैसा भूकंप कभी भारत के उन क्षेत्रों में आया जो भूकंप के प्रति अति संवेदनशील जोन 4 में आता है तो स्‍थिति क्‍या होगी।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली और उसके आसपास का “ब्रज वसुंधरा” कहलाने वाला सारा क्षेत्र जिसमें मथुरा व आगरा भी शामिल हैं भूकंप के प्रति अति संवेदनशील जोन 4 में आता है।
दिल्‍ली से आगरा जहां करीब 200 किलोमीटर दूर है जबकि मथुरा 146 किलोमीटर की दूरी पर है। आगरा एक एतिहासिक शहर है और वहां ताजमहल सहित अनेक विश्‍व प्रसिद्ध इमारत हैं जबकि मथुरा को भगवान श्रीकृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली का गौरव प्राप्‍त है। इन दोनों ही शहरों का पुराना रिहायशी इलाका न सिर्फ काफी घना है बल्‍कि इस इलाके में खड़ी तमाम इमारतें, दुकान तथा मकान जर्जर अवस्‍था को प्राप्‍त हो चुके हैं।
मथुरा में तो अंदर का एक बड़ा हिस्‍सा मिट्टी के टीलों पर बसा है और इस हिस्‍से में ढाई-ढाई, तीन-तीन सौ साल पुराने मकान भी देखे जा सकते हैं।
जाहिर है कि इन पुराने व जर्जर मकानों व इमारतों में इतनी सामर्थ्‍य शेष नहीं है कि वह नेपाल जैसे किसी बड़े भूकंप को झेल सकें।
इन रिहायशी हिस्‍सों में शासन-प्रशासन भी कुछ कर पाने में असमर्थ है किंतु यदि बात करें आगरा और मथुरा के उस बाहरी हिस्‍से की जो तरक्‍की की दौड़ में शामिल होकर बहुमंजिला इमारतों से तो भरता जा रहा है किंतु उनके भी निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक का इस्‍तेमाल नहीं किया जा रहा। हां, उसका प्रचार करके लोगों को गुमराह अवश्‍य किया जा रहा है।
अब सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर कैसे बनती है कोई इमारत भूकंपरोधी, क्‍या कहता है इस बारे में हमारा कानून और सच्‍चाई के धरातल पर हो क्‍या रहा है?
इन सब बातों के जवाब जानने के लिए ”लीजेण्‍ड न्‍यूज़” ने जब विशेषज्ञों से बात की तो चौंकाने वाले तथ्‍य सामने आये।
किसी बिल्‍डिंग को भूकंपरोधी बनाने लिए सबसे जरूरी है सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट। यह रिपोर्ट बताती है कि उस जगह की मिट्टी में बिल्डिंग का कितना वजन सहन करने की क्षमता है। इलाके की मिट्टी की क्षमता के आधार पर ही बिल्डिंग में मंजिलों की संख्या तय की जाती है और डिजाइन तैयार किया जाता है। तकनीकी शब्दों में इसे सॉइल की ‘बियरिंग कैपेसिटी’ कहा जा सकता है। इस रिपोर्ट से ही यह पता चलता है कि नेचुरल ग्राउंड लेवल के नीचे कितनी गहराई तक जाकर भूकंप के प्रति बियरिंग कैपेसिटी मिल सकती है। मान लीजिए यदि रिपोर्ट बताती है कि हमें तीन मीटर नीचे जाकर बियरिंग कैपेसिटी मिलेगी, तो यहां से स्ट्रक्चरल इंजीनियर का काम शुरू होता है। वह रिपोर्ट के आधार पर वहां डेढ़ बाई डेढ़ मीटर की फाउंडेशन तैयार करेगा। इसके बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियर का काम बिल्डिंग का डिजाइन तैयार करना होता है। आजकल भूकंपरोधी मकान बनाने के लिए लोड बियरिंग स्ट्रक्चर की बजाय फ्रेम स्ट्रक्चर बनाए जाते हैं, जिनसे पूरी बिल्डिंग कॉलम पर खड़ी हो जाती है। कॉलम को जमीन के नीचे दो-ढाई मीटर तक लगाया जाता है। फ्लोर लेवल, लिंटेल लेवल, सेमी परमानेंट लेवल (टॉप) और साइड लेवल (दरवाजे-खिड़कियों के साइड) में बैंड (बीम) डालने जरूरी होते हैं।
कौन करेगा जांच
– मिट्टी की जांच की जिम्मेदारी सेमी गवर्नमेंट और कई प्राइवेट एजेंसी संभालती हैं। इसके लिए इंश्योरेंस सर्वेयर्स की तरह इंडिपेंडेंट सर्वेयर भी होते हैं।
– इसके लिए वे बाकायदा एक निर्धारित फीस चार्ज करते हैं।
– जांच के बाद एक सर्टिफिकेट जारी किया जाता है।
क्या पता चलेगा
– मिट्टी प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर कितना लोड झेल सकती है?
– यह जगह कंस्ट्रक्शन के लिए ठीक है या नहीं?
– इलाके में वॉटर लेवल कितना है?
– वॉटर लेवल और बियरिंग कैपेसिटी का सही अनुपात क्या है?
– मिट्टी हार्ड है या सॉफ्ट?
कितना आएगा खर्च
90 गज के प्लॉट के लिए करीब 25 हजार रुपये।
बिल्डिंग के लिए जिम्मेदारी
– टेस्टिंग के बाद सर्वेयर और बिल्डिंग डिजाइन करने के बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियर एक सर्टिफिकेट जारी करता हैं। बिल्डिंग को कोई नुकसान पहुंचने पर इसकी भी जवाबदेही तय की जा सकती है।
क्या है सेफ
– कॉलम में सरिया कम-से-कम 12 मिमी. मोटाई वाला हो।
– फाउंडेंशन कम-से-कम 900 बाई 900 की हो।
– लिंटेल बीम (दरवाजों के ऊपर) में कम-से-कम 12 मिमी मोटाई का स्टील इस्तेमाल किया जाए।
– पुटिंग में कम-से-कम 10-12 मिमी. मोटाई वाले स्टील का प्रयोग हो।
– स्टील की मोटाई कंक्रीट की थिकनेस के आधार पर कम या ज्यादा की जा सकती है।
– स्टील की क्वॉलिटी बेहतर होनी चाहिए, ज्यादा इलास्टिसिटी वाले स्टील से बिल्डिंग को मजबूती मिलती है।
तैयार मकान
अगर आप प्लॉट पर अपना मकान बनवाने की बजाय पहले से ही तैयार कोई मकान लेने जा रहे हैं, तो उसकी जांच करने के लिए आपके पास विकल्प सीमित हो जाते हैं। इसके लिए ठीक ब्लड टेस्ट की तरह थोड़े-थोड़े सैंपल लेकर जांच की जा सकती है, लेकिन यह काम भी कोई आम आदमी नहीं कर सकता। इसके लिए किसी स्ट्रक्चरल इंजीनियर की सर्विस लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए, तैयार मकान के कॉलम को किसी जगह से छीलकर सरिये की मोटाई और संख्या का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए खास मशीन भी आती है, जो एक्स-रे की तरह कॉलम को नुकसान पहुंचाए बिना सरिये की स्थिति बता देती है। इसी तरह, प्लिंथ (फ्लोर) लेवल पर कंक्रीट की थिकनेस और एरिया देखकर उसका मिलान मिट्टी की बियरिंग कैपेसिटी से कर सकते हैं। अगर कोई कमी पाई जाती है और लगता है कि मकान भूकंप नहीं सह सकता तो अतिरिक्त कॉलम खड़े करके उसे मजबूत बनाया जा सकता है। वैसे कंस्ट्रक्शन मटीरियल की जांच भी कुछ राहत दे सकती है।
मटीरियल की जांच
जमीन की मिट्टी ठीक होना ही बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए काफी नहीं है, जरूरी है कि बिल्डिंग को तैयार करने में क्वॉलिटी मटीरियल भी लगाया गया हो। इस मटीरियल में कंक्रीट, सीमेंट, ईंट, सरिया आदि शामिल होता है। मटीरियल के ठीक होने या नहीं होने के संबंध में ज्यादातर संतुष्टि केवल डेवलपर के ट्रैक रिकॉर्ड और उसकी साख को देखकर ही की जाती है। फिर भी कुछ हद तक सावधानी बरती जा सकती है।
बिल्डिंग मटीरियल टेस्टिंग
– किसी प्रोफेशनल एजेंसी से भी बिल्डिंग मटीरियल की टेस्टिंग कराई जा सकती है।
– ये एजेंसियां पूरी बिल्डिंग या आपकी इच्छानुसार किसी खास हिस्से के मटीरियल की टेस्टिंग करेंगी।
– अलग-अलग तरह की जांच के लिए अलग-अलग फीस ली जाती है।
– जांच के बाद 10-15 दिनों में रिपोर्ट मिल जाती है।
प्रोफेशनल सर्टिफिकेट
– आरसीसी फ्रेमवर्क के तहत आने वाली चीजों की जांच किसी प्रोफेशनल से कराई जा सकती है।
– इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत पिलर, नींव, स्लैब्स आदि आते हैं।
– प्रोफेशनल के रूप में स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सटिर्फिकेट लिया जा सकता है।
साइट विजिट
– अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में फ्लैट बुक कराया है तो साइट विजिट जरूर करें।
– वहां मौजूद एक्सपर्ट/प्रोजेक्ट इंचार्ज से मटीरियल की जानकारी लें।
– आम आदमी को भी मौके पर रखे सामान को देखकर क्वॉलिटी का अंदाजा हो जाता है।
थर्ड पार्टी क्वॉलिटी चेक
– इस प्रक्रिया के अंतर्गत बिल्डर मिट्टी समेत सभी मटीरियल की क्वॉलिटी चेक कराता है।
– यह जांच प्राइवेट एजेंसियां निर्धारित मानकों के आधार पर करती हैं, जिन्हें मानना बिल्डर के लिए जरूरी होता है।
– सभी चीजों की जांच के बाद सर्टिफिकेट दिए जाते हैं, जिन्हें एक बार जरूर देख लेना चाहिए।
मल्टी स्टोरी फ्लैट
मल्टी स्टोरी फ्लैट भूकंपरोधी हैं या नहीं, यह जांच करने के ज्यादा मौके आपके पास नहीं होते। इसके लिए बिल्डर पर भरोसा कर लेना ही आमतौर पर उपलब्ध विकल्प होता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, किसी भी फ्लैट में इंडिविजुअल रूप से यह नहीं जांचा जा सकता कि वह भूकंपरोधी है या नहीं? इसके लिए पूरी बिल्डिंग की ही टेस्टिंग की जाती है। हां, डेवलपर से बिल्डिंग और फ्लैट का स्ट्रक्चरल डिजाइन मांगकर उसे किसी एक्सपर्ट से चेक कराया जा सकता है।
क्या है स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग
स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग सिविल इंजीनियरिंग का एक हिस्सा है। इसके अंतर्गत किसी बिल्डिंग, ब्रिज, डैम या किसी अन्य निर्माण का स्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन का कार्य आता है। बिल्डिंग के स्ट्रक्चर को डिजाइन करते समय बिल्डिंग कैसे खड़ी होगी और इस पर कितना लोड आयेगा, इसका आंकलन सबसे पहले किया जाता है। बिल्डिंग कितने लोगों के लिए तैयार की जा रही है, यह बिल्डिंग कॉमर्शियल होगी या रेजीडेंशियल, जमीन किस तरह की है, मिट्टी की क्षमता कितनी है, उस स्थान पर भूकंप, बाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कितना डर है आदि बातों को ध्यान में रखकर बिल्डिंग का डिजाइन तैयार किया जाता है। यह सारा कार्य स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के अंतर्गत आता है। इसके अंतर्गत कॉलम, बीम, फ्लोर, स्लैब आदि की मोटाई जैसे मुद्दों पर भी गंभीर रूप से ध्यान दिया जाता है। स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड और इंडियन बिल्डिंग कोड के मानकों का ध्यान रखा जाता है, जिससे मकान या बिल्डिंग सालों-साल सुरक्षित रहते हैं।
स्ट्रक्चरल इंजीनियर और सावधानियां
– घर या बिल्डिंग बनवाने से पहले ही नहीं, फ्लैट खरीदते वक्त भी स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सलाह लें।
– यह सलाह ड्रॉइंग डिटेल बनवाने तक ही सीमित न रहे। उस डिटेल पर पूरी तरह अमल भी करें।
– घर बनवाते वक्त/साइट पर स्ट्रक्चरल इंजीनियर से यह चेक करवाते रहें कि निर्माण सही हो रहा है या नहीं?
– आर्किटेक्ट और स्ट्रक्चरल इंजीनियर का आपसी मेल-जोल होना भी बहुत जरूरी है।
– अगर खुद घर बनवा रहे हैं तो कंस्ट्रक्शन पर आने वाली कुल लागत का अनुमान लगाना आसान हो जाता है।
गौरतलब है कि समय के अभाव और रेडीमेड के चलन ने मकानों का निर्माण खुद कराने की परंपरा को लगभग समाप्‍त सा कर दिया है। अधिकांश लोग निजी बिल्‍डर या डेवलेपमेंट अथॉरिटी द्वारा निर्मित कॉलोनियों में मकान खरीदने को प्राथमिकता देते हैं। निजी बिल्‍डर को अपनी कॉलोनी का डेवलेपमेंट अथॉरिटी से अप्रूवल लेने के लिए न सिर्फ सभी जरूरी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं बल्‍कि इसके लिए भारी-भरकम रकम भी देनी पड़ती है।
क्‍या कहते हैं बिल्‍डर
इस बारे में बिल्‍डर्स का कहना है कि यदि वह किसी प्रोजेक्‍ट का नियमानुसार अप्रूवल लेना चाहें तो कभी प्रोजेक्‍ट खड़ा ही नहीं कर सकते। फिर भूकंपरोधी इमारत बनाने के मामले में तो अप्रूवल के बाद भी गुणवत्‍ता को चेक करने का प्रावधान शामिल है।
उनका कहना है कि किसी इमारत को भूकंपरोधी बनाने के लिए सबसे अहम् और बेसिक चीज सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट की बात करें तो उसी पर कोई खरा नहीं उतरेगा।
शायद ही कोई बिल्‍डर हो जिसने अप्रूवल से पूर्व डेवलेपमेंट अथॉरिटी को नियमानुसार सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट दी हो जबकि अप्रूवल सबको दे दिया जाता है क्‍योंकि वहां अप्रूवल के लिए सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट की नहीं, कदम-कदम पर मोटे सुविधा शुल्‍क की दरकार होती है।
बिल्‍डर्स के कथन की पुष्‍टि इस बात से भी होती है कि अनेक प्रयास करने के बावजूद आज तक विकास प्राधिकरण का कोई अधिकारी इस मामले में मुंह खोलने को तैयार नहीं हुआ।
रही बात निर्माण कार्य शुरू हो जाने के बाद प्राधिकरण के अधिकारियों तथा तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा चेक करने की, तो उसका सवाल ही पैदा नहीं होता। पैदा होती है तो केवल हर सुविधा देने की कीमत जिसे वह इमारत के निर्माण की गति बढ़ने के साथ वसूलते रहते हैं।
विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा और उसके उपनगर वृंदावन में इन दिनों तमाम मल्‍टी स्‍टोरी बिल्‍डिंग्‍स का निर्माण कार्य जोरों पर है। इनमें 3 मंजिला से लेकर 14 मंजिला इमारत तक शामिल हैं।
इन बहुमंजिला इमारतों को बनाने की इजाजत किस स्‍तर से और किस तरह दी गई है, यह जानकारी देने वाला भी कोई नहीं। अलबत्‍ता यह बात जरूर कही जा रही है कि मथुरा में 4 मंजिल से अधिक ऊंची इमारत को बनाने की परमीशन देने का अधिकार स्‍थानीय अधिकारियों के पास नहीं है।
निर्माणाधीन इन तमाम हाइट्स में से कई तो भर्त की जमीन पर खड़ी की जा रही हैं यानि जहां ये बन रही हैं, वह जगह पहले गड्ढे के रूप में थी जिसे बाद में मिट्टी भरवाकर समतल किया गया है जबकि इस तरह की जगह पर मल्‍टी स्‍टोरी बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सामान्‍य मकान बनाने से पहले भी भर्त करने की एक जटिल प्रक्रिया अपनाने के बाद ऐसी जगह के लिए परमीशन दी जाती है।
इन हालातों में ब्रज वसुंधरा पर जगह-जगह बन रहीं मौत की ये हाइट्स जमीन के अंदर होने वाली जरा सी हलचल से कैसे ताश के पत्‍तों की तरह ढह जायेंगी, इसका अंदाज लगाना बहुत कठिन नहीं है है। तब इन ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं और उनमें रहने वालों का हाल क्‍या होगा, इसका भी अंदाज बखूबी लगाया जा सकता है… लेकिन अभी तो सब उसी तरह आंखें बंद किये बैठे हैं जैसे बिल्‍ली द्वारा देख लिए जाने पर भी कबूतर इस झूठी उम्‍मीद में अपनी आंखें बंद कर लेता है कि उसके ऐसा कर लेने से शायद मौत टल जायेगी।
कबूतर फिर भी बेवश होता है लेकिन यहां तो सब-कुछ जानते हुए लोग मौत को खुला निमंत्रण दे रहे हैं जो एक प्रकार से आत्‍महत्‍या का प्रयास ही है। भ्रष्‍टाचार की रेत और गारे पर टिकी इन तमाम हाइट्स को मौत की हाइट्स में तब्‍दील होते उतनी भी देर नहीं लगेगी जितनी कि पलक झपकने में लगती है लेकिन फिलहाल तो तरक्‍की का पैमाना बन चुकी इन हाइट्स की बुनियाद में झांकने का वक्‍त किसी के पास नहीं।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

सेना प्रमुख ने प्रधानमंत्री राहत कोष में एक करोड़ रुपया कहां से दिया ?

नई दिल्ली। सेना द्वारा एक आरटीआई के जवाब ने यह प्रश्‍न खड़ा कर दिया है कि सेना प्रमुख ने प्रधानमंत्री राहत कोष में एक करोड़ रुपया कहां से दिया ?
दरअसल, सेना का कहना है कि उसने सैनिकों के वेतन से कोई चंदा नहीं दिया। ऐसे में उस चेक पर सवाल उठ रहा है, जिस पर लिखा गया था कि रकम सेना के वेतन से ली गई है।
चार महीने पहले आर्मी चीफ दलबीर सिंह सुहाग ने प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए 100 करोड़ रुपये का चेक दिया था। यह चेक उन्होंने खुद पीएम नरेंद्र मोदी को दिया। मगर अब सेना की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि सैनिकों की सैलरी से या अन्य तरीके से ऐसा कोई दान नहीं दिया गया है।
देहरादून के रहने वाले प्रभु डंडरियाल की तरफ से डाली गई आरटीआई के जवाब में आर्मी के सीपीआईओ लेफ्टिनेंट कर्नल राजीव गुलेरिया ने लिखा है ‘संबंधित एजेंसी ने सूचित किया है कि सेना के जवानों के वेतन से प्रधानमंत्री राहत कोष में कोई अनुदान नहीं दिया गया है। यह मामला अभी विचाराधीन है।’
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के ऑफिस की वेबसाइट पर डाले गए 67वें सेना दिवस समारोह की तस्वीरों में एक चेक दिख रहा था। जनरल सुहाग इस चेक को पीएम मोदी को सौंप रहे हैं। इस चेक में लिखा है, ‘भारतीय सेना के सभी रैंक्स का एक दिन का वेतन।’
डंडरियाल ने अब प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के जरिए इस चेक के बारे में जानकारी मांगी है। डंडरियाल ने कहा, ‘जब 20 मार्च तक दान के लिए वेतन से कुछ नहीं लिया गया था, तो आर्मी चीफ ने 100 करोड़ रुपये का चेक कैसे दे दिया? इसीलिए मैंने आरटीआई के जरिए पीएमओ से जवाब मांगा है।’

सोमवार, 11 मई 2015

अखिलेश सरकार की जड़ों में मठ्ठा डाल रहे हैं बिजली विभाग के एसई प्रदीप मित्‍तल

मथुरा। कृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली में तैनात बिजली विभाग के एसई प्रदीप मित्‍तल एक ओर जहां अखिलेश सरकार की जड़ों में मठ्ठा डाल रहे हैं, वहीं आम लोगों के लिए ”जले पर नमक छिड़कने” वाली कहावत को बखूबी चरितार्थ कर रहे हैं।
विश्‍वविख्‍यात धार्मिक स्‍थलों में शुमार इस शहर की जनता पिछले करीब पंद्रह दिनों यानि जब से गर्मी ने अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू किया है, बिजली की भारी किल्‍लत का सामना कर रही है।
दिन तो लोगों का काम के बीच जैसे-तैसे बीत जाता है किंतु रात काटे नहीं कटती क्‍योंकि आधी रात के वक्‍त यहां तब बिजली काटी जाती है जब लोग गहरी नींद के आगोश में समाये होते हैं। बिजली की यह कटौती तीन से चार घंटे तक की होती है। दिन…और फिर रात में भी की जा रही इस भारी कटौती की वजह से लोगों के इन्‍वर्टर भी साथ छोड़ देते हैं क्‍योंकि वह पूरी तरह चार्ज ही नहीं हो पाते।
इस स्‍थिति में बीमार, वृद्ध और बच्‍चों के साथ घर के हर सदस्‍य को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
जाहिर है कि इन हालातों में लोग यह जानने का प्रयास करते हैं कि बिजली की ऐसी किल्‍लत कब तक रहेगी क्‍योंकि अभी तो गर्मी ने अपने शुरूआती तेवर दिखाना शुरू ही किया है।
जनसामान्‍य इसके लिए मीडिया से भी यह अपेक्षा रखता है कि वह उसे किन्‍हीं बड़े अफसरों के मार्फत जानकारी दे क्‍योंकि बड़े विभागीय अफसर अपनी ओर से कोई जानकारी देना मुनासिब नहीं समझते।
बिना किसी पूर्व सूचना के इस धार्मिक शहर में दिन-रात की जा रही भारी बिजली कटौती के बावत पहले तो ”लीजेण्‍ड न्‍यूज़” ने राधापुरम एस्‍टेट के सब स्‍टेशन पर फोन किया। राधापुरम एस्‍टेट के सब स्‍टेशन पर जिन सज्‍जन ने फोन रिसीव किया उनका कहना था कि कटौती के बारे में उन्‍हें कुछ नहीं बताया जाता लिहाजा वह कुछ भी बता पाने में असमर्थ हैं। उच्‍च अधिकारी ही बता सकते हैं कि असलियत क्‍या है और यह स्‍थिति कब तक बनी रहेगी।
सब स्‍टेशन से इस आशय का जवाब मिलने पर ”लीजेण्‍ड न्‍यूज़” ने रात में ही एसई प्रदीप मित्‍तल को उनके सरकारी मोबाइल पर फोन किया।
आश्‍चर्यजनक रूप से एसई का भी जवाब वही था जो सब स्‍टेशन पर मौजूद रहे कर्मचारी का था।
एसई प्रदीप मित्‍तल के मुताबिक कटौती का फरमान सीधे लखनऊ से जारी होता है और उन्‍हें इसकी कोई सूचना नहीं दी जाती।
एसई का कहना था कि कटौती क्‍यों हो रही है और कितने दिन चलेगी, इसकी जानकारी लखनऊ में बैठे विभागीय अफसर ही दे सकते हैं इसलिए उन्‍हें फोन कर लें।
जब एसई से यह पूछा गया कि यहां के सबसे बड़े अफसर आप है, और आपको ही लखनऊ में बैठे अफसर कोई जानकारी नहीं देते तो किसी अन्‍य को वह जानकारी दे देंगे क्‍या?
इस पर एसई का जवाब था कि इसके लिए मैं क्‍या कर सकता हूं।
जब उनसे यह कहा गया कि लोगों से बिजली बिल के भुगतान की वसूली का जिम्‍मा आपका है और उसके लिए आप हरसंभव हथकंडा अपनाते हैं, बिल न दे पाने वालों के खिलाफ कार्यवाही आप कराते हैं, बिजली विभाग से मोटा वेतन-भत्‍ता आप लेते हैं तो क्‍या आपकी कोई जवाबदेही नहीं बनती, इस पर एसई का जवाब था कि डीएम साहब ने भी मुझसे कटौती के बारे में जानकारी मांगी थी और मैंने उन्‍हें बता दिया कि जवाब लखनऊ से ही मिल सकता है।
कहते हैं कि किसी को गुड़ भले ही न दे सको लेकिन उससे गुड़ जैसी बात तो करो ताकि वह आशान्‍वित रहे तथा उत्‍तेजित न हो…किंतु यहां तो जिम्‍मेदार अफसर ही लोगों के जले पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं।
जिलाधिकारी राजेश कुमार से उन्‍होंने क्‍या कहा, इसकी पुष्‍टि तो नहीं हो पाई अलबत्‍ता इतना जरूर पता लग गया कि बिजली विभाग के एसई आने वाले समय में अपने जवाबों से इस धार्मिक शहर के अंदर किसी बड़े उपद्रव का कारण बन सकते हैं क्‍योंकि उनका जवाब किसी भी समय आग के अंदर घी डालने का काम कर बैठेगा।
आज ही लखनऊ से छपे समाचार में स्‍पष्‍ट चेतावनी दी गई है कि पॉवर कार्पोरेशन ने पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश को और बिजली दे पाने में असमर्थता जाहिर की है इसलिए पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश के लोग बिजली का भारी संकट झेलने को तैयार रहें।
इन स्‍थितियों में गर्मी और बिजली संकट के साथ-साथ लोगों का दिमागी पारा भी बढ़ना स्‍वाभाविक है। उत्‍तेजित लोगों को जब कहीं से कोई संतोषजनक या आशावादी उत्‍तर नहीं मिलेगा तो टकराव की संभावना भी बढ़ जायेगी।
यूं भी बिजली विभाग ने प्रति किलोवाट के हिसाब से हर कनेक्‍शन पर मिनीमम बिल तो निर्धारित कर रखा है किंतु मिनीमम सप्‍लाई आज तक तय नहीं की।
कहने का मतलब यह है कि यदि कोई उपभोक्‍ता अपने निर्धारित भार का ईमानदारी के साथ इस्‍तेमाल कर रहा है तो बिजली विभाग उसे उसके हक की बिजली दिये बिना भी जबरन मिनमम बिल वसूल रहा है।
यह बात अलग है कि कोई भी ईमानदार उपभोक्‍ता अतिरिक्‍त एक यूनिट बिजली का इस्‍तेमाल नहीं कर सकता।
प्रदेश के सर्वाधिक भ्रष्‍ट विभागों में से एक बिजली विभाग के अंदर बिलिंग से किये गये करोड़ों के भ्रष्‍टाचार का मामला गत दिनों सामने आ ही चुका है। कनेक्‍शन से लेकर बिल के भुगतान तक में सुविधा शुल्‍क देकर कुछ भी खेल इस विभाग के कर्मचारी और अधिकारियों से करा लेना आम बात है, लेकिन बिजली की भारी किल्‍लत पर जवाबदेही लेने को कोई तैयार नहीं।
मथुरा ही नहीं, प्रदेश के हर जिले में बिजली विभाग के अफसरों की कार्यशैली लगभग ऐसी ही देखने को मिलती है जबकि उनकी माली हैसियत उनके पद से मिलने वाली तनख्‍वाह की तुलना में बहुत अच्‍छी देखी जा सकती है।
अतिरिक्‍त कमाई में बिजली विभाग का अदना सा कर्मचारी भी किसी से पीछे नहीं रहता किंतु जवाबदेही में उच्‍च अफसर भी सबसे छोटे कर्मचारी से तुलना करते नहीं शरमाते। वो बेझिझक कहते हैं कि उन्‍हें कुछ नहीं पता, कब तक हालात सुधरेंगे।
शायद इसीलिए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह बार-बार कहते हैं कि कुछ अफसर ही अखिलेश सरकार की छवि धूमिल करने पर आमादा हैं। संभवत: मुलायम सिंह जानते हैं कि प्रदीप मित्‍तल जैसे अफसरों की संख्‍या ही अधिक है जो सरकार से तो सब-कुछ ले रहे हैं लेकिन उसकी ओर से गुड़ तो छोड़िये गुड़ जैसी बात भी नहीं करते।
गौरतलब है कि मथुरा, प्रदेश के उन अजूबे जिलों में से है जहां आज तक समाजवादी पार्टी का न तो कभी लोकसभा में कोई प्रतिनिधि पहुंच सका और न विधानसभा में, हालांकि पार्टी ने हरसंभव प्रयास किया।
अब 2017 में फिर विधानसभा के चुनाव होने हैं, अखिलेश सरकार केंद्र की पिछली यूपीए सरकार जैसा आचार-व्‍यवहार कर रही है। मुख्‍यमंत्री मुगालते में हैं कि उन्‍होंने उत्‍तर प्रदेश को उत्‍तम प्रदेश बनाने की राह पर ला खड़ा किया है। अफसर उनके इस मुगालते को बनाये रखना चाहते हैं। पार्टी की जिला इकाइयां सत्‍ता के मद में चूर हैं। पार्टी के पदाधिकारी या तो अंतर्कलह के शिकार हैं या निजी स्‍वार्थ पूरे कराने में लिप्‍त। आम आदमी के लिए जवाबदेही वह भी महसूस नहीं कर रहे।
फिर चाहे बात आज के लिए आवश्‍यक आवश्‍यकता बन चुकी बिजली की किल्‍लत से ताल्‍लुक रखती हो अथवा बेलगाम हो चुकी कानून-व्‍यवस्‍था से जुड़ी हो। अधिकारी चूंकि ले-देकर सीधे अपनी मनमाफिक तैनाती कराने में सक्षम हैं, इसलिए वह न तो जनता की सुनते हैं और न पार्टी पदाधिकारियों को कुछ समझते हैं।
अब भी वक्‍त है यदि माननीय मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव और उनका समाजवादी कुनबा इस तल्‍ख सच्‍चाई को महसूस करते हुए कुछ ठोस कदम उठा लें अन्‍यथा प्रदीप मित्‍तल जैसे अफसर उनकी जड़ों में मठ्ठा डालने का काम बखूबी कर ही रहे हैं।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

शनिवार, 9 मई 2015

महाराजा न्‍यूज़ के संचालक श्रीचंद और उनके पुत्र पर धोखाधड़ी का मुकद्दमा दर्ज

मथुरा। डेन नेटवर्क के लिए मथुरा में महाराजा न्‍यूज़ के नाम से केबिल नेटवर्क संचालित करने वाले पिता-पुत्र श्रीचंद अग्रवाल व कौशल अग्रवाल सहित डेन नेटवर्क के चेयरमैन समीर मनचंदा के खिलाफ धोखाधड़ी, अमानत में खयानत करने तथा गाली-गलौज करके जान से मारने की धमकी देने का मुकद्दमा एसएसपी के आदेश पर थाना कोतवाली की रिपोर्टिंग चौकी कृष्‍णा नगर में दर्ज किया गया है।
पूर्व में श्रीचंद अग्रवाल मथुरा में ही मिलीविजन के नाम से केबिल नेटवर्क का संचालन कर चुके हैं और फिलहाल डेन नेटवर्क की फ्रेंचाइजी लेकर महाराजा न्‍यूज़ के नाम से केबिल नेटवर्क चला रहे हैं।
अपराध संख्‍या 0474/2015 पर आईपीसी की धारा 420, 504, 506 तथा 406 के तहत दर्ज उक्‍त मामले में राम कुमार शर्मा (पहलवान) पुत्र स्‍व. श्री मोहन पहलवान ने 07 मई के दिन एसएसपी मथुरा को इस आशय का एक प्रार्थना पत्र दिया था कि उनकी मां श्रीमती विमला देवी पत्‍नी स्‍व. श्री मोहन पहलवान ने श्रीचंद अग्रवाल पुत्र श्री सोहन लाला अग्रवाल तथा कौशल अग्रवाल पुत्र श्रीचंद अग्रवाल निवासीगण राधा ऑर्चिड कॉलोनी मसानी के माध्‍यम से डेन नेटवर्क के चेयरमैन समीर मनचंदा, 236 ओखला इंडस्‍ट्रियल एस्‍टेट नई दिल्‍ली को भूतेश्‍वर स्‍थित मोहन प्‍लाजा काम्‍पलेक्‍स के बेसमेंट में निर्मित दुकान संख्‍या 25 लगायत 34 मय हॉल व तीसरी मंजिल की छत कार्यालय व डिश एंटीना के सेटअप बॉक्‍स आदि लगाने के लिए टैक्‍स के अलावा 90 हजार रुपए प्रतिमाह के किराये पर दिया था।
राम पहलवान के अनुसार दिसंबर 2014 में इसके लिए उनकी मां ने एक माह का पेशगी किराया इस शर्त पर लिया था कि यह लोग 6 महीने के अंदर अपना कार्यालय आदि व्‍यवस्‍थित करके कार्य शुरू कर देंगे और फिर 6 महीने का एकमुश्‍त किराया देकर एक पंजीकृत किरायेनामा निष्‍पादित करा लेंगे। उसके बाद हर महीने की पहली तारीख को मय टैक्‍स के देते रहेंगे।
राम पहलवान द्वारा दर्ज कराये गये मुकद्दमे के अनुसार श्रीचंद अग्रवाल, उनके पुत्र कौशल आदि ने शर्तों का पालन नहीं किया लिहाजा उनसे कई बार कहा गया कि वह शर्तों का पालन करें तथा किराया अदा करें।
लगातार टाले जाने पर जब इसके पीछे का कारण जानने की कोशिश की गई तो पता लगा कि राम पहलवान की मां के नाम से किराया तो हर महीने श्रीचंद अग्रवाल तथा कौशल अग्रवाल के पास आता रहा है और उन्‍होंने किराया लेने के लिए कोई किरायानामा भी बना लिया है। इस किराये के चेक मोहन कंस्‍ट्रक्‍शन कंपनी के नाम से बनते रहे हैं।
एफआईआर के अनुसार इन चेकों को भुनाने के लिए तीनों आरोपियों ने मिलीभगत करते हुए सिंडीकेट बैंक मथुरा की चौक बाजार शाखा में एक खाता भी खोल लिया जिसका नंबर 85211010001064 है।
इस तरह इन आरोपियों ने षड्यंत्र पूर्वक कूटरचित दस्‍तावेज तैयार करके विमला देवी का लाखों रुपया हड़प लिया।
राम पहलवान के अनुसार जब उन्‍होंने इस बारे में श्रीचंद अग्रवाल, उनके पुत्र कौशल तथा समीर मनचंदा से बात करनी चाही तो इन्‍होंने 20 मार्च 2015 की शाम करीब 7.30 बजे मोहन प्‍लाजा कॉम्‍पलेक्‍स स्‍थित कार्यालय पर बुलाकर अवैध हथियार दिखाते हुए राजीनामा करने का दबाव बनाया।
राम पहलवान का कहना है कि उनके द्वारा राजीनामा से इंकार करने पर आरोपियों ने गालियां बकते हुए कहा कि हम मीडिया वाले हैं, पुलिस व प्रशासन में हमारी पहुंच काफी ऊपर तक है, इसलिए तू हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
तेरी भलाई इसी में है कि इस जगह का बैनामा हमारे पक्ष में कर दे अन्‍यथा तुझे जान से मार देंगे।
बताया जाता है कि एसएसपी को प्रार्थना पत्र देने से पहले मय सबूतों के राम पहलवान ने इलाका पुलिस से संपर्क किया था ताकि षड्यंत्रकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली जाए किंतु महाराज न्‍यूज़ के संचालकों के प्रभाव में इलाका पुलिस न एफआईआर दर्ज नहीं की। हारकर उन्‍होंने एसएसपी को प्रार्थना पत्र दिया और तब उनके आदेश से रिपोर्टिंग चौकी कृष्‍णा नगर पर कल शाम मुकद्दमा दर्ज किया गया है किंतु समाचार लिखे जाने तक किसी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

गुरुवार, 7 मई 2015

शैलेन्‍द्र अग्रवाल केस: पकड़ा जाए वह चोर, बाकी सब साहूकार!

आगरा पुलिस की गिरफ्त में आये शैलेन्‍द्र अग्रवाल पर यह कहावत पूरी तरह सटीक बैठती है कि ”पकड़ा जाए वह चोर, बाकी सब साहूकार!” शैलेन्‍द्र “आलू वाला” के नाम से मशहूर समाजवादी पार्टी के जिस तथाकथित युवा नेता को न्‍यायालय ने आज से 75 घंटों की पुलिस कस्‍टडी में दिया है, उससे अब भले ही उसके नामचीन रिश्‍तेदार पल्‍ला झाड़कर खड़े हों, भले ही मीडिया आज उसे लेकर पूरे-पूरे पेज की कहानी गढ़ रहा हो, किंतु कड़वा सच यह है कि उसे इस मुकाम तक पहुंचाने में उसके सफेदपोश रिश्‍तेदारों की भूमिका भी कम महत्‍वपूर्ण नहीं है।
शैलेन्‍द्र अग्रवाल की जिस लाइफ स्‍टाइल को लेकर आज तमाम सवाल खड़े किये जा रहे हैं, और उसे बड़ा नटवरलाल बताया जा रहा है, उसकी यह लाइफ स्‍टाइल तब भी थी जब उसके साथ शहर के नामचीन मिठाई विक्रेता ने अपनी बेटी की शादी की थी। संभवत: तब शैलेन्‍द्र की इसी लाइफ स्‍टाइल ने मिठाई विक्रेता को प्रभावित किया होगा अन्‍यथा उसकी गतिविधियां असंदिग्‍ध तो कभी नहीं रहीं।
मथुरा के डैम्‍पियर नगर के ही एक अन्‍य उद्योगपति परिवार के घर से जब एक ही नंबर की एक कार और दूसरी बुलेट मोटरसाइिकल बरामद हुई तो कोतवाली पुलिस को पता लगा था कि वह शैलेन्‍द्र अग्रवाल की हैं। निकट संबंधों के चलते वही उनके यहां उन दोनों वाहनों को खड़ा कर गया था। शैलेन्‍द्र अग्रवाल ने ऐसा क्‍यों किया, इसका खुलासा तो कभी नहीं हुआ अलबत्‍ता ले-देकर पुलिस को सेट कर लिया गया और शैलेन्‍द्र अग्रवाल सकुशल अपनी गतिविधियों को परवान चढ़ाता रहा।
शादी के बाद भी शैलेन्‍द्र की गतिविधियों में कोई सुधार नहीं हुआ। एक बार तो उसने पारि‍वारिक कारणों से खुद के ही पैर में गोली मार ली थी किंतु तब भी बदनामी से बचने के लिए उसके खास रिश्‍तेदारों ने मामला दबवा दिया।
एक दौर ऐसा भी आया जब शैलेन्‍द्र अग्रवाल समाजवादी पार्टी के सबसे युवा व चमकदार नेता के रूप में पहचान बना चुका था। मथुरा शहर में चारों ओर समाजवादी पार्टी के होर्डिंग उसके सौजन्‍य से लगे नजर आते थे। इन होर्डिंग्‍स पर उसकी आदमकद तस्‍वीर होती थी और कोई दिन ऐसा नहीं होता था जब शैलेन्‍द्र की खबरें अखबारों का हिस्‍सा न बनें।
इस दौर में शैलेन्‍द्र अखबार वालों को भी विभिन्‍न तरीकों से भरपूर ऑब्‍लाइज करता था। तथाकथित बड़े अखबार के मालिकों तथा स्‍टाफ ने तो उससे लाखों रुपए अर्जित किये लिहाजा क्‍या मजाल कि उसे कभी उसकी संदिग्‍ध गतिविधियों का भी अहसास कराया हो अथवा उस ओर इशारा किया हो।
शैलेन्‍द्र जब आगरा में आयकर विभाग के एक कर्मचारी की हत्‍या में नामजद हुआ, तब भी उसे सही रास्‍ते पर लाने का प्रयास उसके निकटस्‍थ रिश्‍तेदारों या यार-दोस्‍तों ने नहीं किया।
वैसे शैलेन्‍द्र अग्रवाल जिस तरह की संदिग्‍ध गतिविधियों में संलिप्‍त था और उसकी जो लाइफ स्‍टाइल थी, वही लाइफ स्‍टाइल तथा वैसी ही गतिविधियां उसके निकटस्‍थ रिश्‍तेदारों तथा यार-दोस्‍तों की भी हमेशा रही हैं और आज भी हैं। फर्क केवल इतना है कि शैलेन्‍द्र आज पुलिस कस्‍टडी में है और निकटस्‍थ रिश्‍तेदारों तथा यार-दोस्‍तों ने उसी प्रकार पुलिस-प्रशासन को अपनी कस्‍टडी में ले रखा है जिस प्रकार कभी शैलेन्‍द्र रखा करता था।
शैलेन्‍द्र के जो कारनामे आज पुलिस तथा अखबारों के माध्‍यम से आम जनता के सामने आ रहे हैं, वह न सिर्फ उसके खास रिश्‍तेदारों के सामने बहुत पहले से थे बल्‍कि वह खुद भी अब तक उन कारनामों को अंजाम दे रहे हैं। हां, यह जरूर माना जायेगा कि शैलेन्‍द्र पकड़ा गया और वह पकड़ से दूर हैं। यह बात अलग है कि किसी न किसी रोज उनके कारनामे भी अखबारों की सुर्खियों का हिस्‍सा बनेंगे।
इस मामले में सूत्र बताते हैं कि आये दिन किसी न किसी ‘अवार्ड’ से नवाजे जाने वाले शिक्षा माफियाओं से लेकर सर्राफा व्‍यवसाई और रीयल एस्‍टेट के बड़े कारोबारियों से लेकर कई होटल कारोबारी तक शैलेन्‍द्र अग्रवाल के नक्‍शे कदम पर चल रहे हैं। सुरा और सुंदरियों का यह लोग भरपूर उपभोग व उपयोग करते हैं, साथ ही क्रिकेट की सट्टेबाजी से लेकर एमसीएक्‍स के अवैध कारोबार तक में इनका खासा इनवॉल्‍वमेंट है, बावजूद इसके अब तक यह इज्‍ज़तदार कहलाते हैं। हालांकि पूर्व में कॉलगर्ल्‍स के साथ पकड़े जाने, क्रिकेट की सट्टेबाजी तथा दूसरे कालेधंधों में इन सफेदपोशों का नाम सामने आता रहा है किंतु अब तक यह खुद को बचाने में सफल रहे हैं।
हाल ही में एक रेप केस की पीड़ित लड़की ने जब पुलिस को इस आशय का बयान दिया था कि उसे कुछ तथाकथित ”बड़े लोगों” के साथ भी हमबिस्‍तर होने को मजबूर किया जाता था तो शहर के कई बड़े लोगों की नींद उड़ गई थी। उन्‍होंने अचानक नामजद आरोपी की पैरवी बंद करके मीडिया से इस आशय की अपनी पैरवी शुरू कर दी कि वह लड़की द्वारा लिये गये ”बड़े लोगों” के नाम सार्वजनिक न कर दे।
बताया जाता है कि अनेक खास अवसरों पर यह तथाकथित सफेदपोश बड़े लोग शैलेन्‍द्र अग्रवाल की सेवाएं भी अपने लिए लेते रहे हैं।
जिन आईएएस और आईपीएस के आज शैलेन्‍द्र अग्रवाल से रिश्‍तों को खंगाला जा रहा है, वह जग जाहिर थे और क्‍यों थे, यह भी सबको पता है। ये रिश्‍ते न तो केवल पैसों के लेनदेन तक सीमित थे और न शैलेन्‍द्र इनका एकतरफा लाभ उठाता था। ये रिश्‍ते एक-दूसरे के पूरक बन चुके थे और हर क्षेत्र में परस्‍पर सहभागिता के थे।
अब पुलिस को अदालत से मिली 75 घंटों की कस्‍टडी में शैलेन्‍द्र कितने राज खोलता है या पुलिस उसमें से कितने राज सार्वजनिक करती है, यह तो आने वाला वक्‍त ही बतायेगा परंतु एक बात पूरी तरह तय है कि शैलेन्‍द्र जिस हमाम का हिस्‍सा बनकर इस गति को प्राप्‍त हुआ है, उसमें उसके जैसे अनेक सफेदपोश भी खड़े हैं। वो रिश्‍तेदार भी हैं और राजदार भी। बस देखना यह है कि शैलेन्‍द्र की तरह उनका राजफाश कब होता है।
इतना निश्‍चित है कि जिस दिन उनके कारनामे सार्वजनिक होंगे, उस दिन शैलेन्‍द्र बहुत पीछे छूट जायेगा।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष
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