सोमवार, 2 नवंबर 2015

क्‍या अनऑथराइज्‍ड है जेएसआर ग्रुप की अशोका सिटी ?

विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक शहर मथुरा में प्राइम लोकेशन पर बनाया गया जेएसआर ग्रुप का होम प्रोजेक्‍ट ”अशोका सिटी” क्‍या अनऑथराइज्‍ड और गैरकानूनी है ?यह सवाल आज फिर इसलिए खड़ा हुआ क्‍योंकि ”जेएसआर ग्रुप” द्वारा आज सभी प्रमुख समाचार पत्रों में अपने आवासीय प्रोजेक्‍ट ”अशोका सिटी” का जो विज्ञापन दिया गया है, उसमें कहीं इस बात का उल्‍लेख नहीं है कि यह प्रोजेक्‍ट डेवलपमेंट अथॉर्टी से अप्रूव्‍ड है।
चूंकि पूर्व में भी जेएसआर ग्रुप के इस प्रोजेक्‍ट को लेकर भ्रांतियां उत्‍पन्‍न होती रही हैं और उन भ्रान्‍तियों का किसी स्‍तर पर कहीं से निराकरण नहीं किया गया लिहाजा आज उनका विज्ञापन भी नए सिरे से लोगों के बीच भ्रांति उत्‍पन्‍न कर रहा है।
दीपावली जैसे बड़े त्‍यौहार से ठीक 10 दिन पहले दिये गए इस विज्ञापन में बुकिंग एमाउंट 2 लाख 70 हजार रुपए लिखा है, जिससे जेएसआर ग्रुप का मकसद तो साफ हो जाता है किंतु यह साफ नहीं है कि वह किस आधार पर अपने इस आवासीय प्रोजक्‍ट के लिए लोन सुविधा उपलब्‍ध करा रहे हैं।
बताया जाता है कि देश की राजधानी दिल्‍ली को ताज नगरी आगरा से जोड़ने वाले राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर दो पर मथुरा में गोवर्धन चौराहे के अति निकट बनाया गया बहुमंजिला आवासीय परिसर ”अशोका सिटी” तभी से विवादित रहा है जब इसकी बुनियाद रखी गई थी और इसीलिए न केवल समय-समय पर इसके मालिकाना हक बदलते रहे बल्‍कि मालिकों के खिलाफ अपहरण जैसे संगीन मामले भी दर्ज हुए।
”अशोका सिटी” के निर्माण पर शक के बादल इसलिए और गहरा जाते हैं कि इसकी असलियत के बारे में कोई कुछ बताने को तैयार नहीं होता। यहां तक कि डेवलेपमेंट अथॉर्टी ”मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण” भी चुप्‍पी साधे हुए है।
हालांकि विभागीय सूत्र बताते हैं कि इसके अनधिकृत निर्माण और उसे अधिकृत बनाने के प्रयास में अपनाए गए गैरकानूनी हथकंडों से कमिश्‍नर आगरा मंडल तथा जिलाधिकारी मथुरा भी भली-भांति परिचित हैं और उन्‍होंने अपने-अपने स्‍तर से काफी सख्‍ती बरत रखी है किंतु फिलहाल ऐसी कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई जा सकी जिससे जनसामान्‍य के बीच स्‍थिति स्‍पष्‍ट हो सके।
इन हालातों में विज्ञापन को देखकर बहुत से लोगों का उलझ जाना स्‍वाभाविक है। तमाम लोग तो इस उम्‍मीद पर बुकिंग एमाउंट भी जमा करा बैठेंगे कि बाकी रकम का इंतजाम उन बैंकों और फाइनेंस एजेंसियों से हो ही जायेगा जिनका हवाला जेएसआर ग्रुप ने अपने विज्ञापन में दिया है।
अब यहां एक और महत्‍वपूर्ण सवाल यह खड़ा होता है कि क्‍या किसी अनधिकृत और गैरकानूनी होम प्रोजेक्‍ट पर कोई बैंक अथवा फाइनेंस कंपनी ऋण उपलब्‍ध करा सकती है?
इस संबंध में जब ”लीजेंड न्‍यूज़” ने जानकारी की तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं।
इन बातों में सबसे अहम बात तो यह है कि हर बैंक और हर फाइनेंस कंपनी ने होम लोन के मामले में अपने-अपने निजी नियम बना रखे हैं। स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया को छोड़कर कई बैंकें अनधिकृत तथा गैरकानूनी होम प्रोजेक्‍ट पर भी लोन केवल यह देखकर उपलब्‍ध करा देती हैं कि ऋण लेने वाले से वसूली हो जाने का उन्‍हें पूरा भरोसा है। फिर चाहे ऋण लेने वाला अनधिकृत प्रोजेक्‍ट के कारण बुरी तरह फंस जाए और उसका एक अदद अपने घर का सपना सिर्फ सपना बनकर रह जाए।
बताया जाता है कि अनधिकृत होम प्रोजेक्‍ट पर ऋण देने के मामले में सबसे उदार नियम निजी बैंकों तथा निजी फाइनेंस कंपनियों ने बना रखे हैं। संभवत: इसीलिए ”जेअएआर ग्रुप” की ”अशोका सिटी” पर ऋण उपल्‍ब्‍ध कराने वालों में एक भी राष्‍ट्रीय बैंक का नाम नहीं है।
जो नाम दिए गए हैं उनमें आईसीआईसीआई तथा एचडीएफसी जैसी निजी बैंकें तथा इंडिया बुल्‍स, डीएचएफएल तथा टाटा केपीटल जैसी फाइनेंस कंपनियां शामिल हैं।
”जेएसआर ग्रुप” की ”अशोका सिटी” के विज्ञापन में उसके अधिकृत या अनधिकृत होने का कोई उल्‍लेख न होने के संदर्भ पर जब विज्ञापन के अंदर दिए गए कांटेक्‍ट नंबर से संपर्क साधा गया तो किसी पूजा नाम की लड़की ने फोन रिसीव किया किंतु वह कोई भी संतोषजनक जवाब देने में असमर्थ रही।
दरअसल, अशोका सिटी तो एक उदाहरण है अन्‍यथा कृष्‍ण की इस पावन भूमि में ऐसे होम प्रोजेक्‍ट की संख्‍या अच्‍छी-खासी है जो आकर्षक विज्ञापनों तथा आसानी से ऋण उपलब्‍ध कराने की आड़ में आमजन के सपनों से खिलवाड़ करके अपनी जेबें भर रहे हैं और बैंकें ही नहीं डेवलेपमेंट अथॉर्टी भी चुप्‍पी साधकर इसमें उनका पूरा सहयोग कर रही हैं। चूंकि बैंकों का अपना स्‍वार्थ है और डेवलेपमेंट अथॉर्टी में ऊपर से लेकर नीचे तक स्‍वार्थ ही स्‍वार्थ है इसलिए कोई कुछ बोलने या सुनने को तैयार नहीं होता।
रही बात उस जन सामान्‍य की जो बिल्‍डर्स और बैंकों की चाल में फंसकर एक ओर जहां अपनी जिंदगीभर की जमा पूंजी लुटा बैठता है और दूसरी ओर अपने एक अदद घर के सपने को बिखरते देखता है तो उससे किसी को कोई वास्‍ता नहीं।
फिर चाहे वह ताजिंदगी उस ऋण की किश्‍तें अदा करता रहे जिसे लेने के बाद उसने अपने घर का सपना देखा था।
-लीजेंड न्‍यूज़ विशेष
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