शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

शर्त की आड़ में विकास प्राधिकरण से करोड़ों के टेंडर का बंदरबांट

सोलह कला अवतार, महाभारत नायक यशोदानंदन श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली के विकास प्राधिकरण ने इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक शहर का कितना विकास कराया है, इसे लेकर एक-दो नहीं अनेक प्रश्‍न खड़े हो सकते हैं किंतु विकास प्राधिकरण में समय-समय पर तैनात रहे अधिकारियों का अपना कितना विकास हुआ है, इसे लेकर सिर्फ एक ही प्रश्‍न खड़ा होता है और वह है कि क्‍या कोई अधिकारी ऐसा रहा है जिसका यहां अपना विकास न हुआ हो ?
विकास प्राधिकरण के अधिकारियों से जुड़ा उनके निजी विकास का ताजा मामला 12 सितंबर 2015 को अखबारों में जारी उस अल्‍पकालीन निविदा का है जिसके तहत करीब 14 करोड़ के कार्यों का बंटवारा दो दिन पूर्व ऑफिस आवर्स बीत जाने के बाद रात के अंधेरे में कर दिया गया।
शाम ढलने के बाद टेंडर खोले जाने की भनक मिलने पर पहुंचे मीडियाकर्मियों ने जब ऐसा किए जाने की वजह जाननी चाही तो हमेशा की तरह कोई अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं हुआ और सिर्फ इतना कहकर मीडिया कर्मियों को टरका दिया गया कि दिन के वक्‍त दूसरे कार्यों में व्‍यस्‍तता के चलते टेंडर नहीं खोले जा सके।
करोड़ों रुपए के इन विकास कार्यों हेतु 12 सितंबर को जारी निविदा तथा 4 नवंबर को किए गए बंटवारे का सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू यह है कि यह सारे कार्य मात्र चार ठेकेदारों के बीच बांट दिए गए और उन्‍हें ही काम दिए जाने का पुख्‍ता इंतजाम निविदा निकालने वाले दिन यानि 12 सितंबर 2015 को ही एक शर्त के साथ कर दिया गया।
इस शर्त के मुताबिक निविदा में वर्णित क्रम संख्‍या 1 से लेकर 12 तक के कार्य उसी पंजीकृत ठेकेदार को दिए जायेंगे जिसके पास अपना हॉटमिक्‍स प्‍लांट होगा।
इस शर्त को जोड़ने के पीछे की वजह का पता करने तथा ऐसा कोई नियम, कानून अथवा शासनादेश जारी होने के संबंध में जानकारी करने के लिए विकास प्राधिकरण के सचिव एस बी सिंह तथा चीफ इंजीनियर आर के शर्मा सहित कई अधिकारियों से संपर्क साधने का कई-कई बार प्रयास किया गया किंतु किसी ने बात करने की जहमत नहीं उठाई।
विकास प्राधिकरण में तैनात विकास पुरुषों से कोई जवाब न मिल पाने पर ‘लीजेंड न्‍यूज़’ ने जब अपने स्‍तर से छानबीन की तो बहुत ही चौंकाने वाली बातें सामने आईं।
प्रदेश के दूसरे विकास प्राधिकरणों और अन्‍य सरकारी विभागों से पता लगा कि किसी कार्य को कराने के लिए हॉटमिक्‍स प्‍लांट अथवा दूसरे किन्‍हीं उपकरणों का ठेकेदार के पास होना या न होना जरूरी नहीं है, जरूरी है तो केवल मानकों के अनुरूप कार्य की गुणवत्‍ता।
रहा सवाल निविदा के साथ ऐसी कोई शर्त जोड़ देने का तो उसके पीछे एकमात्र कारण अधिकारियों की बदनीयती ही होती है ताकि वो उसकी आड़ में अपने पसंदीदा ठेकेदारों को काम आवंटित कर सकें क्‍योंकि उन्‍हें पहले से मालूम होता है कि किस ठेकेदार के पास उनकी शर्त को पूरी करने का इंतजाम है और कौन उस शर्त को पूरी कर पाने में असमर्थ साबित होगा।
सरकारी विभागों में ही तैनात दूसरे बड़े अधिकारियों की मानें तो विकास प्राधिकरण सहित दूसरे सभी ऐसे विभागों में ठेकेदारी के लिए पंजीयन और ग्रेडिंग तभी होती है जब संबंधित ठेकेदार उसके लिए जरूरी सभी शर्तों को पूरा करता हो, फिर इस तरह अलग से कोई शर्त थोपने का मकसद सिर्फ और सिर्फ शर्त की आड़ लेकर निजी स्‍वार्थ पूरे करना ही होता है।
कुछ अधिकारियों ने बताया कि इस तरह की शर्तें अब विकास प्राधिकरण ही नहीं, पीडब्‍ल्‍यूडी आदि दूसरे सरकारी विभाग भी थोपने लगे हैं जबकि इसका कोई औचित्‍य नहीं है क्‍योंकि जिसे काम देना होता है उसके लिए अधिकारी इस आशय की छूट भी दे देते हैं कि वह किसी दूसरे ठेकेदार से उस उपकरण संबंधी प्रपत्र अपने नाम लिखवाकर दे सकता है जबकि इस छूट का उल्‍लेख निविदा में नहीं किया जाता।
ईमानदार अधिकारियों का तो यहां तक कहना है कि कल को यदि विकास प्राधिकरण ऐसी भी शर्तें थोपने लगे कि उसके यहां से काम उन्‍हीं ठेकेदारों को आवंटित किया जायेगा जो निर्माण में जरूरी सभी सामग्री का उत्‍पाद खुद करते हों, तो क्‍या यह उचित होगा। ऐसे में क्‍या इस विभाग का काम करने के लिए कोई ठेकेदार उपलब्‍ध होगा।
सच तो यह है कि ऐसी शर्तें थोपकर विकास प्राधिकरण अथवा दूसरे सरकारी विभागों के अधिकारी पूर्व नियोजित योजना के तहत अपने स्‍वार्थ की सिद्धि करते हैं ताकि उनके अपने चहेते ठेकेदार ही टेंडर डाल सकें और उन्‍हीं के बीच सारा काम बांट दिया जाए।
जाहिर है कि ऐसा करने से पहले ”इस हाथ दे, उस हाथ ले” की प्रक्रिया भी पूरी कर ली जाती है और टेंडर डालने से लेकर टेंडर निकालने तक का कार्य मात्र औपचारिकता निभा कर पूरा कर लिया जाता है।
अब यह औपचारिकता ऑफिस आवर्स में दिन के वक्‍त पूरी की जाए अथवा रात के अंधेरे में, इससे क्‍या फर्क पड़ता है।
रहा प्रश्‍न ऐसी प्रक्रियाओं पर चंद मीडियाकर्मियों के सवाल उठाने का तो जहां ऊपर से नीचे तक पूरा विभाग आकंठ भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त हो, वहां चंद मीडियाकर्मियों के सवाल उठाने से होता क्‍या है।
जिन्‍हें जवाब देना जरूरी है और जिनके जवाब सुनना भी जरूरी है, वह सब न केवल प्रक्रिया से संतुष्‍ट हैं बल्‍कि अधिकारियों के विकास से भी संतुष्‍ट हैं।
-लीजेंड न्‍यूज़ विशेष
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