बुधवार, 27 अप्रैल 2016

Mission 2017: एक अनार और सौ बीमार की कहावत चरितार्थ कर रही है मथुरा-वृंदावन सीट

मथुरा। Mission 2017 के  तहत बेशक यूपी के विधानसभा चुनाव होने में लगभग पूरा एक साल बाकी है किंतु जहां तक सवाल राजनीतिक सरगर्मियों का है, तो वह काफी तेजी पकड़ती नजर आ रही हैं।
सबसे अधिक तेजी उन लोगों के बीच दिखाई दे रही है जो 2017 में चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं और उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। ऐसे लोग किसी खास पार्टी का टिकट पाने की कोशिश में उस पार्टी के पहले से तय उम्‍मीदवारों का टिकट कटवाने के लिए भी बाकायदा बोली लगा रहे हैं।
राजनीति के महारथियों की मानें तो उत्‍तर प्रदेश में इस बार मुख्‍य मुकाबला भाजपा और बसपा के बीच होने जा रहा है। समाजवादी पार्टी चाहे जितना दम भर ले किंतु जनता उसके काम-काज से खुश नहीं है। विशेष तौर पर कानून-व्‍यवस्‍था की बदहाली, भ्रष्‍टाचार, जाति विशेष का दबदबा और बिजली की भारी किल्‍लत ने समाजवादी पार्टी की छवि को काफी प्रभावित किया है।
कांग्रेस तथा राष्‍ट्रीय लोकदल फिलहाल इस परिदृश्‍य में दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहीं। कांग्रेस में यही पता नहीं लग पा रहा कि 2017 के लिए यूपी में उम्‍मीदवारों का चयन पार्टी के नए नवेले चुनाव विशेषज्ञ प्रशांत किशोर करेंगे या पार्टी हाईकमान। प्रशांत किशोर कांग्रेस को शायद भाजपा अथवा जद (यू) जैसी डिमांडिंग पार्टी समझ बैठे हैं, जिनके लिए काम करने के बाद वह एक ”ब्रांड” बनकर उभरे जबकि सच यह है कि कांग्रेस की टिकट पर यूपी में तो कोई आसानी से चुनाव लड़ने तक को तैयार नहीं होता।
रही बात चौधरी अजीत सिंह वाले राष्‍ट्रीय लोकदल की तो उसके बावत अभी इतना भी नहीं पता कि उनका ऊंट किस करवट बैठेगा। वह नीतीश के झण्‍डे तले चुनाव लड़ेंगे या अपना झण्‍डा लेकर।
इन हालातों के मद्देजनर राजनीति के महारथियों की यह बात सही प्रतीत होती है कि यूपी में मुख्‍य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही होना है।
चूंकि कृष्‍ण की नगरी मथुरा का उत्‍तर प्रदेश में अलग महत्‍व है और यहां की राजनीतिक दशा व दिशा से समूचे पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश का आंकलन किया जाता है इसलिए मथुरा पर एक ओर जहां प्रमुख पार्टियों के हाईकमान की निगाहें केंद्रित रहती हैं, वहीं दूसरी ओर चुनाव लड़ने के इच्‍छुक लोग भी अपनी नजरें गड़ाए रहते हैं।
राजनीतिक नजरिए से मथुरा इस मायने में भी खास है कि कई-कई बार सत्‍ता पर काबिज रहने के बावजूद समाजवादी पार्टी आज तक इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद के अंदर कभी अपना खाता तक नहीं खोल पाई।
पिछले चुनावों में मांट क्षेत्र से सपा ने अखिलेश के परम मित्र संजय लाठर को चुनाव मैदान में उतारा था और उन्‍हें जिताने के लिए पूरी ताकत भी झोंक दी थी, किंतु नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा।
यही कारण है कि समाजवादी पार्टी की तमाम कोशिशों के बावजूद मथुरा में सपा का टिकट मांगने वाले ना के बराबर हैं। सपा के इतिहास में सर्वाधिक मत पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से उम्‍मीदवार डॉ. अशोक को मिले थे लेकिन फिर भी वह सीट नहीं निकाल पाए जबकि पिछले चुनावों में सपा की प्रदेश के अंदर हवा रही।
भाजपा और बसपा के मुख्‍य मुकाबले वाले इस जनपद में बसपा ने मथुरा-वृंदावन की सीट पर अब तक पुष्पा शर्मा के पुत्र योगेश द्विवेदी का नाम फाइनल किया हुआ है जबकि गोवर्धन से सिटिंग विधायक राजकुमार रावत का लड़ना तय है। मांट से श्‍यामसुंदर शर्मा तथा छाता से ठाकुर तेजपाल के नाम पर मोहर लगी हुई है। बल्‍देव (सुरक्षित) से भी नाम लगभग फाइनल किया जा चुका है। इस सबके बाद भी बहुत से लोग इन संभावित उम्‍मीदवारों की दावेदारी को चुनौती देने में लगे हैं और इनकी टिकट कटवाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इन पांच नामों में भी सारा दारोमदार मथुरा-वृंदावन की सीट पर है। कई लोग तो योगेश द्विवेदी का टिकट कटवाने के लिए बहिनजी के दरबार में बाकायदा बोली लगाने को तैयार हैं। वह उन्‍हें इसके लिए मुंह मांगी कीमत अदा करने को तत्‍पर हैं। हालांकि पार्टी सूत्रों से बताया यह जा रहा है कि योगेश द्विवेदी का टिकट कटना आसान नहीं होगा क्‍योंकि योगेश द्विवेदी की माताजी तथा वृंदावन नगर पालिका की पूर्व अध्‍यक्ष पुष्‍पा शर्मा ने बहिनजी के दरबार में गहरी पैठ बना रखी है और लगातार वह पार्टी को अपने योगदान से सींचती रही हैं जिस कारण बहिनजी भी उनकी मुरीद हैं।
लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान मोदी लहर में मथुरा का दबदबा रहने के कारण 2017 के विधान सभा चुनावों के लिए भाजपा से उम्‍मीदवारी का दावा करने वालों की फेहरिस्‍त सर्वाधिक लंबी है। इस फेहरिस्‍त में भी मथुरा-वृंदावन सीट से चुनाव लड़ने के इच्‍छुकों की संख्‍या चौंकाने वाली है।
यहां भी मथुरा-वृंदावन यानि शहरी सीट पर दावेदारी करने वालों की संख्‍या सबसे अधिक है। पिछली बार बहुत कम मतों से इस सीट को गंवाने वाले डॉ. देवेन्‍द्र शर्मा की दावेदारी तो स्‍वाभाविक है ही, उनके अलावा पूर्व मंत्री रविकांत गर्ग भी इस बार चुनाव लड़ने का पूरा मन बना चुके हैं।
इधर नगर पालिका अध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता भी मथुरा-वृंदावन से टिकट मांग रही हैं। इस मामले में एक रोचक पहलू हालांकि यह जुड़ा हुआ है कि मथुरा के अंदर किसी पार्टी का कोई ऐसा नेता कभी विधायक नहीं बन पाया है जिसने नगर पालिका की अध्‍यक्षी कर ली हो किंतु मनीषा गुप्‍ता फिर भी स्‍वयं को प्रबल दावेदार मान रही हैं।
वरिष्‍ठ भाजपा नेता एस. के. शर्मा भी टिकट के दावेदारों में प्रमुख हैं और भाजपा छोड़कर रालोद का दामन थाम लेने वाले मुरारी अग्रवाल भी एक बार फिर दूसरे दावेदारों को चुनौती दे रहे हैं।
इनके अतिरिक्‍त हर विधानसभा चुनाव में मथुरा-वृंदावन से एक नाम सोहन लाल कातिब का भी उछलता है। बताया जाता है कि इस बार भी सोहन लाल कातिब पूरा जोर लगा रहे हैं।
वृंदावन से भी कुछ नाम दावेदारों की सूची में शामिल हैं और यही कारण है कि प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष बनने के बाद जब पहली बार केशव प्रसाद मौर्य बिहारी जी मंदिर के दर्शनार्थ यहां आए तो भाजपा की मथुरा व वृंदावन इकाई में साफ-साफ पाले खिंचे हुए दिखाई दिए। यहां तक कि केशव प्रसाद मौर्य को बाहर निकलने के लिए रास्‍ता बदलना पड़ा और उसके बाद वृंदावन की इकाई ने जिला अध्‍यक्ष डॉ. डी पी गोयल के खिलाफ बाकायदा मोर्चा खोल दिया। बताया जाता है कि डी पी गोयल खुद भी विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्‍छुक हैं।
भारतीय जनता पार्टी का अब तक का इतिहास यह बताता है कि वह अपने उम्‍मीदवार ऐन वक्‍त पर तय करती है किंतु इस मर्तबा हवा का रुख कुछ और कह रहा है। हो सकता है कि इस बार उम्‍मीदवारों की घोषणा पहले की अपेक्षा जल्‍दी कर दी जाए।
जो भी हो, लेकिन भाजपा और बसपा में मथुरा-वृंदावन सीट के लिए टिकट पाने वालों ने अपनी-अपनी बिसात बि‍छानी शुरू कर दी हैं। उनके लिए शह और मात का खेल शुरू हो चुका है। ऐसा भी कह सकते हैं कि उनके लिए हार और जीत की पहली लड़ाई तो अभी से जारी है क्‍योंकि टिकट मिलेगा तभी चुनाव लड़ पायेंगे। टिकट नहीं मिला तो पूरे पांच साल के लिए लाइन में लगे रहने के अलावा कोई चारा नहीं रह जायेगा।
अब देखना यह है कि उठा-पटक और पटखनी देने तथा दिलाने के इस खेल में अंतत: जीत किसकी होती है और कौन अपना भाग्‍य आजमाने की टिकट पाने में सफल रहता है।
दिलचस्‍प यह है कि इन दिनों भाजपा तथा बसपा में तो एक अनार और सौ बीमार वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। 2017 आते-आते यह अनार किसके हाथ लगता है और कौन मन मारकर चुप बैठने के लिए मजबूर होता है, यह नजारा भी काफी रोचक रहने वाला है।
-Legendnews

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

हाईकोर्ट का एतिहासिक निर्णय: 15 जजों को जबरन Retirement देकर घर भेजा

-मथुरा में ADJ रहे ए. के. गणेश भी इन जजों में शामिल
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खण्‍डपीठ के इतिहास में यह पहला अवसर है जब गंभीर आरोपों के चलते न्‍यायिक सेवा के 15 अधिकारियों को एकसाथ कंपलसरी Retirement देकर घर बैठा दिया गया।
संदिग्‍ध आचरण के आरोपों पर जबरन सेवानिवृत्‍त किए गए ये सभी अधिकारी एडीजे और एसीजेएम स्‍तर के हैं।
इन अधिकारियों को जबरन सेवा निवृत्‍त करने का निर्णय इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने एक फुल कोर्ट मीटिंग के बाद इसी महीने की 14 तारीख को लिया।
उच्‍च न्‍यायालय के चीफ जस्‍टिस डी वाई चंद्रचूण द्वारा लिए गए निर्णय से उत्‍तर प्रदेश सरकार को अवगत कराते हुए इन सभी 15 अधिकारियों के अधिकार छीन लिए गए और अधिकारी के रूप में इनकी सभी गतिविधियों पर तत्‍काल प्रभाव से रोक लगा दी गई।
इस बात की जानकारी इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्‍ट्रार जनरल शिवेन्‍द्र कुमार सिंह ने दी।
जिन अधिकारियों को जबरन सेवा निवृत्‍त करने का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एतिहासिक निर्णय लिया है, उनमें एडीजे सिद्धार्थनगर शैलेश्‍वर नाथ सिंह, एडीजे इटावा बंसराज, एडीजे आजमगढ़ राममूर्ति यादव, एडीजे (एंटी करप्‍शन) लखनऊ ध्रुव राज, एडीजे मुरादाबाद जगदीश द्वितीय, एडीजे सोनभद्र नरेश, एडीजे सोनभद्र विमल प्रकाश काण्‍डपाल, फैमिली कोर्ट जज कुशीनगर ए. के. गणेश, एडीजे गाजीपुर अरविंद कुमार प्रथम, एडीजे मेरठ अविनाश चंद्र त्रिपाठी, एडीजे मुरादाबाद अविनाश कुमार द्विवेदी, एडीजे फर्रुखाबाद मोहम्‍मद मतीन खान, एडीजे कांशीराम नगर किशोर कुमार द्वितीय, एसीजेएम पीलीभीत श्‍याम शंकर सिंह द्वितीय तथा एसीजेएम हरदोई श्‍याम शंकर द्वितीय शामिल हैं।
इनमें से ए. के. गणेश करीब 5 साल पहले मथुरा में एडीजे थर्ड के पद पर काबिज हुए थे। मूल रूप से दक्षिण भारत के रहने वाले न्‍यायिक सेवा के इस अधिकारी ने धर्म की नगरी मथुरा में रहकर न केवल अपने अधिकारों का भरपूर दुरुपयोग किया बल्‍कि कानून के साथ यथासंभव खिलवाड़ किया।
ए. के. गणेश ने मथुरा में तैनाती के दौरान मुख्‍य रूप से अपना हथियार सीआरपीसी की धारा 319 को बनाया। धारा 319 के लिए जज को यह विशेष अधिकार प्राप्‍त है कि वह किसी आपराधिक मुकद्दमे में किसी भी ऐसे व्‍यक्‍ति को इस धारा का इस्‍तेमाल करके तलब कर सकता है जिसका नाम पुलिस एफआईआर में न हो अथवा जिसका नाम पुलिस ने तफ्तीश के बाद यह मानते हुए एफआईआर से निकाल दिया हो कि उसकी उक्‍त घटना में संलिप्‍तता नहीं थी।
ए. के. गणेश ने इस धारा को हथियार बनाकर एक ओर जहां वादी पक्ष से इस बात का पैसा लिया कि वह उसके बताए किसी भी व्‍यक्‍ति को 319 का नोटिस भेजकर आरोपी बना देगा, वहीं आरोपी बनाए गए निर्दोष व्‍यक्‍तियों से उन्‍हें जमानत देने के नाम पर भरपूर लूट की।
ए. के. गणेश ने यह सब तब किया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 319 के मामले में इस आशय के स्‍पष्‍ट आदेश व निर्देश दे रखे हैं कि 319 के तहत किसी व्‍यक्‍ति को तभी तलब किया जाए जब उसके खिलाफ संबंधित आपराधिक घटना में लिप्‍त होने के पर्याप्‍त सबूत हों और वो सबूत उसे सजा दिलाने के लिए पर्याप्‍त हों।
सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 319 का अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग रोकने के लिए ऐसे निर्देश भी दे रखे हैं कि 319 के तहत जारी किए गए तलबी आदेश पर खुद जज के हस्‍ताक्षर होने चाहिए न कि उनके बिहाफ पर किसी अधीनस्‍थ के हस्‍ताक्षर से नोटिस जारी कर दिया जाए।
ए. के. गणेश ने मथुरा में एडीजे के पद पर रहते हुए सुप्रीम कोर्ट के इन आदेश-निर्देशों की जमकर धज्‍जियां उड़ाईं और अपने कुछ खास दलालों के माध्‍यम से लाखों रुपए वसूले।
ए. के. गणेश की मथुरा में मनमानी का आलम यह था कि उसके मुंह से रिश्‍वत की जो रकम एकबार निकल जाती थी, वह उससे पीछे नहीं हटता था और तब तक लोगों को प्रताड़ित करता था जब तक रकम की पूरी वसूली नहीं कर लेता था।
ऐसा नहीं है कि ए. के. गणेश अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने वाला अकेला अधिकारी था या दूसरे न्‍यायिक अधिकारी उसकी इस कार्यप्रणाली से वाकिफ नहीं थे किंतु बोलता कोई कुछ नहीं था क्‍योंकि अधिकांश अधिकारियों की कार्यप्रणाली उससे मेल खाती थी और वो उसी कार्यप्रणाली के कायल थे।
अब जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ए. के. गणेश जैसे 15 न्‍यायिक अधिकारियों को एतिहासिक निर्णय देकर सबक सिखाया है तो उम्‍मीद की जानी चाहिए कि समूचे न्‍यायिक अधिकारियों में एक भय व्‍याप्‍त होगा और वह अपने विशेष अधिकारों का दुरुपयोग करने तथा पैसा वसूलने के लिए किसी निर्दोष को फंसाने से पहले एक बार सोचेंगे जरूर।
-लीजेंड न्‍यूज़

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

एक दशक से खेला जा रहा है Club Culture की आड़ में ”हवस” का खेल

मथुरा। Club Culture की आड़ लेकर कृष्‍ण की नगरी में शारीरिक हवस पूरी करने का खेल, आज से नहीं करीब एक दशक से खेला जा रहा है और इस खेल में कई जिंदगियां भी जा चुकी हैं।
इस बात पर मोहर क्‍लब संस्‍कृति से जुड़े उन लोगों ने लगाई है जिन्‍होंने विभिन्‍न राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय क्‍लबों को ज्‍वाइन तो यह समझ कर किया था कि उनके बैनर तले होने वाली सांस्‍कृतिक व सामाजिक गतिविधियों का वह भी हिस्‍सा बन सकेंगे किंतु कुछ समय के अंदर ही असलियत उनके सामने आने लगी लिहाजा उन्‍होंने किनारा कर लेने में ही अपनी भलाई समझी।
इन लोगों का तो यहां तक कहना है कि मथुरा में जितने भी राष्‍ट्रीय व अंतराष्‍ट्रीय क्‍लबों की शाखाएं हैं, उन सभी पर एक ”कॉकस” का कब्‍जा है और यही कॉकस क्‍लब संस्‍कृति को अवैध संबंधों का अड्डा बनाने के लिए जिम्‍मेदार है। इस कॉकस में एक विधायक का नाम भी सामने आ रहा है।
सूत्रों की मानें तो यह विधायक ही इस कॉकस का सरगना है और कॉकस की हर गतिविधि में परोक्ष अथवा अपरोक्ष तौर पर संलिप्‍त रहता है।
इस विधायक की पराई औरतों में दिलचस्‍पी का आलम यह है कि विधायक की अपनी पत्‍नी तक का उसके ऊपर से पूरी तरह भरोसा उठ चुका है और वह यथासंभव अपने विधायक पति पर नजर रखने की कोशिश करती है।
यह कॉकस इतना प्रभावशाली है कि क्‍लब के सभ्‍य व शालीन सदस्‍य प्रथम तो उनके सामने बोलने तक की हिम्‍मत नहीं कर पाते, और दूसरे यदि कोई सदस्‍य ऐसी हिमाकत कर भी दे तो उसे सार्वजनिक रूप से बेइज्‍जत कर दिया जाता है ताकि फिर कभी वह उनके सामने बोलने की हिम्‍मत न कर सके।
सूत्रों के मुताबिक ये लोग अपनी-अपनी कारों की चाभियां बदलकर ”वाइफ स्‍वैपिंग” का खेल खेलने से लेकर ”म्‍यूचुअल अंडरस्‍टेंडिंग” से परस्‍पर पत्‍नियों को बदलने का खेल भी बड़ी बेशर्मायी के साथ खेलते हैं।
विभिन्‍न क्‍लबों में इन लोगों की बदनामी और इनके कारनामों को लेकर व्‍याप्‍त घृणा का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि 19 अप्रैल को लीजेंड न्‍यूज़ द्वारा ”MATHURA में क्‍लब संस्‍कृति के ”पोप” का पत्‍नी के सामने हुआ जूते-चप्‍पलों से अभिनंदन”  शीर्षक से लिखी गई खबर के अंदर किसी शख्‍स का नाम सार्वजनिक न किए जाने के बावजूद शहर के लोगों की जुबान पर पूरी तरह वही नाम थे जिनका उस संपूर्ण घटनाक्रम से ताल्‍लुक था और जो इस सबका हिस्‍सा थे।
किन्‍हीं चंद लोगों के बारे में इतना सटीक आंकलन तभी संभव है जब उन लोगों ने मान-मर्यादा की सारी हदें पार कर दी हों।
लीजेंड न्‍यूज़ शीघ्र ही इस खास मामले से जुड़े लोगों के चेहरे भी बेनकाब करेगा क्‍योंकि समाज के लिए कोढ़ साबित हो रहे ऐसे तत्‍वों का बेनकाब होना सभ्रांत लोगों के लिए तथा क्‍लब संस्‍कृति के लिए भी जरूरी है जिससे समूची क्‍लब संस्‍कृति बदनाम होने से बची रहे।
क्‍लबों से जुड़े सूत्रों ने इस संबंध में जो और जानकारियां दी हैं वो वाकई दिल दहला देने वाली और भयावह हैं।
सूत्रों के अनुसार कुछ वर्ष पूर्व दो सभ्रांत महिलाओं द्वारा आत्‍महत्‍या किए जाने के पीछे भी यही कारण थे जिनमें से एक महिला ने होटल के कमरे में जान दी थी।
एक ट्रांसपोर्टर के पुत्र की जान भी ऐसे ही मामले में गई और एक नेता की पत्‍नी ने भी इन्‍हीं सब कारणों से आत्‍महत्‍या की। एक रियल एस्‍टेट कारोबारी के पुत्र की संदिग्‍ध मौत का कारण भी क्‍लब संस्‍कृति की आड़ में खेले जा रहे हवस के खेल को बताया जा रहा है जबकि हाल ही में हुई एक सर्राफा व्‍यवसाई की मौत के पीछे भी कुछ ऐसे ही कारण थे।
कुछ समय पूर्व एक प्रतिष्‍ठित सर्राफा व्‍यवसाई को ऐसे ही खेल में महिला को बहुत मोटी रकम देकर अपना पीछा छुड़ाना पड़ा।
ऐसा नहीं है कि क्‍लब संस्‍कृति की आड़ में खेले जाने वाले इस खेल के अंदर सब-कुछ दोनों पक्षों की सहमति से ही होता हो। कुछ लोग तो अपनी हवस पूरी करने के लिए इतना नीचे गिर जाते हैं कि अपनी पत्‍नियों को दूसरों का साथ देने के लिए मजबूर करते हैं। हां, कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो स्‍वेच्‍छा से और ”फन” के लिए जरा सा इशारा पाते ही स्‍वत: तैयार हो जाती हैं।
हाल ही में ”लीजेंड न्‍यूज़” द्वारा जिन दो पक्षों का जिक्र अपने समाचार में किया गया था, उसमें पहले तो काफी समय तक मूक सहमति से ही खेल चलता रहा किंतु जब एक पक्ष का नाम ज्‍यादा खुलकर सामने आने लगा तब अपनी कथित प्रतिष्‍ठा बचाने के लिए दूसरे पक्ष को पूरी प्‍लानिंग के तहत घर बुलाकर बेइज्‍जत किया।
ऐसा नहीं है कि धर्म की इस नगरी में अधर्म का यह खेल केवल विभिन्‍न क्‍लबों के माध्‍यम से ही खेला जा रहा हो। सच तो यह है कि कुछ तथाकथित सफेदपोश नवधनाढ्य भी अपनी निजी तथा व्‍यावसायिक स्‍वार्थपूर्ति के लिए इस खेल को वर्षों से खेल रहे हैं।
इन सफेदपोशों में एक ओर जहां रियल एस्‍टेट के कारोबार से जुड़े लोग हैं तो कुछ ऐसे व्‍यवसाई जिनकी पहचान जुडीशियरी में खासा दखल रखने वालों के रूप में हो चुकी है। कुछ ऐसे सफेदपोश भी हैं जिन्‍होंने कुछ खास मीडिया पर्सन्‍स को अपना लाइजनर बना रखा है जिससे सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
इन सफेदपोशों के बारे में ऐसे प्रश्‍न करने वालों की भी कमी नहीं कि यदि यह पाकसाफ हैं तो दिन-रात क्‍यों पुलिस, प्रशासनिक व न्‍यायिक अधिकारियों की हर डिमांड पूरी करने में लगे रहते हैं ?
अनेक व्‍यापारों में सफलता अर्जित कर लेने तथा औकात से अधिक ईश्‍वर का दिया होने के बावजूद आखिर यह किस मकसद से अपने काम-धंधे छोड़कर अधिकारियों की चापलूसी करते हैं और उनके एक इशारे पर उन्‍हें सब-कुछ मुहैया कराते हैं। जिसमें गाड़ी-घोड़े से लेकर रहने, खाने-पीने तक और सुरा व सुंदरियों से लेकर रुपए-पैसों तक का बंदोबस्‍त करना शामिल है।
जाहिर है कि ऐसा करने के पीछे उनके प्रत्‍यक्ष व्‍यवसायों से इतर कुछ अन्‍य अप्रत्‍यक्ष यानि ”हिडन” व्‍यवसाय भी होंगे। वो हिडन व्‍यवसाय जिन्‍हें सफलतापूर्वक संचालित करने की पहली शर्त हर क्षेत्र के अधिकारियों की कृपा प्राप्‍त होना जरूरी हो जाता है।
जाहिर है अधिकारियों की संपूर्ण कृपा प्राप्‍त करने के लिए एक इशारे पर उनकी हर डिमांड पूरी करना जरूरी हो जाता है।
शहर के एक नामचीन होटल में कुछ समय पहले एक न्‍यायिक अधिकारी रंगरेलियां मनाते पकड़े भी गए थे किंतु उन्‍हें होटल मालिक ने ही अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल कर बचा लिया क्‍योंकि ऐसा न करने पर होटल तथा होटल मालिक दोनों की असलियत सामने आ जाती।
कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि बड़े से बड़े पाप कर्मों को छुपाने में धर्म की आड़ महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है, तो कुछ गलत नहीं होगा।
चूंकि मथुरा नगरी को श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली का गौरव प्राप्‍त है और विश्‍व के पटल पर इसकी अपनी बहुत बड़ी एक धार्मिक छवि है लिहाजा इसका लाभ वो सभी बहुरुपिये उठाते हैं जो अपने चेहरों पर मौके व वक्‍त की नजाकत के अनुरूप नकाब लगा लेने में माहिर हैं। कहीं वह व्‍यापारी तथा उद्योगपति के रूप में पहचाने जाते हैं तो कहीं समाज सेवा और कला एवं संस्‍कृति की सेवा के लिए।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

MATHURA में क्‍लब संस्‍कृति के ”पोप” का पत्‍नी के सामने हुआ जूते-चप्‍पलों से अभिनंदन

-क्‍लब के राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्राप्‍त सदस्‍य की पत्‍नी से इश्‍क लड़ाना पड़ा महंगा
-पत्‍नी सहित डिनर पर घर बुलाकर की जबर्दस्‍त पिटाई और वीडियो भी बनाया
MATHURA में खुद को क्‍लब संस्‍कृति का ”पोप” कहने वाले एक साड़ी व्‍यवसाई पर उन्‍हीं की लाई हुई क्‍लब संस्‍कृति तब महंगी पड़ गई जब क्‍लब के ही एक सदस्‍य ने उन्‍हें अपनी पत्‍नी से इश्‍क लड़ाते देख घर बुलाकर न केवल जमकर जूते-चप्‍पलों से जमकर अभिनंदन किया बल्‍कि उसकी वीडियोग्राफी भी कर ली। इस पूरे घटनाक्रम को क्‍लब संस्‍कृति के इस तथाकथित ‘पोप’ की पत्‍नी के सामने अंजाम दिया गया।
क्‍लब संस्‍कृति के पोप को पत्‍नी सहित घर बुलाकर उनका जूते-चप्‍पलों से अभिनंदन करने वाले सोकॉल्‍ड सज्‍जन भी बेहद प्रतिष्‍ठित परिवार से ताल्‍लुक रखते हैं और राष्‍ट्रीय स्‍तर के पुरस्‍कार से नवाजे जा चुके हैं।
बताया जाता है कि राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्राप्‍त यह सज्‍जन स्‍वयं भी क्‍लब के दूसरे सदस्‍यों की पत्‍नियों से इश्‍क लड़ाने में माहिर हैं किंतु जब उनकी अपनी पत्‍नी ने वही रास्‍ता अपनाया तो उनके होश उड़ गए और उन्‍होंने बड़े सुनियोजित तरीके से पत्‍नी के आशिक को उसकी पत्‍नी सहित घर बुलाकर इश्‍क का सारा भूत उतार दिया।
यह भी पता लगा है कि इस दौरान क्‍लब संस्‍कृति के ”पोप” उनके सामने रोते-गिड़गिड़ाते रहे और अपने ऊपर जूते-चप्‍पलों की बारिश किए जाने का वीडियो न बनाने की गुहार लगाते रहे लेकिन उनके कानों पर जूं नहीं रेंगी।
”लीजेंड न्‍यूज़” पहले भी इस बात का तो कई बार खुलासा कर चुका है कि कृष्‍ण की नगरी के कुछ नव धनाड्य, क्‍लब संस्‍कृति की आड़ लेकर मथुरा की संस्‍कृति को नष्‍ट-भ्रष्‍ट कर रहे हैं। यह लोग आए दिन ”मीटिंग” और ”ईटिंग” के नाम पर एक-दूसरे के परिवारों से ”चीटिंग” का खेल खेलते हैं जिसमें ”वाइफ स्‍वैपिंग” जैसा घिनौना खेल तक शामिल है।
क्‍लब से ही जुड़े सूत्रों के मुताबिक इस क्‍लबबाजी में जमकर पीने-पिलाने का दौर चलता है और उसी के बीच वह खेल शुरू हो जाता है जिसे ”पेज थ्री” कल्‍चर कहा जाता है और जिसमें सब-कुछ जायज है।
मदहोशी के दौरान परस्‍पर सहमति से खेले जाने वाले इस खेल में चूंकि क्‍लब के लगभग अधिकांश मैंबर्स शामिल होते हैं इसलिए कोई किसी का विरोध नहीं करता और सब-कुछ मूक सहमति से जारी रहता है।
सूत्रों के मुताबिक ऐसे ही खेल में शामिल राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्राप्‍त वृंदावन निवासी एक ख्‍यातिप्राप्‍त सज्‍जन को किसी तरह पता लगा कि जिस खेल का वह खुद को माहिर खिलाड़ी मानकर क्‍लब संस्‍कृति के पोप की पत्‍नी से इश्‍क लड़ा रहे हैं, उसी खेल को उनकी अपनी पत्‍नी उस पोप के साथ मिलकर खेल रही है।
बताया जाता है कि इस बात का पता लगते ही उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई और वह किसी तरह पोप और अपनी पत्‍नी के संबंधों का ठोस सबूत जुटाने में लग गए।
काफी प्रयासों के बाद किसी तरह एक दिन उनके हाथ जैसे ही ठोस सबूत हाथ लगा, उन्‍होंने पोप और अपनी पत्‍नी दोनों को अहसास कराए बिना पोप को उनकी पत्‍नी सहित वृंदावन स्‍थित अपने आलीशान घर पर डिनर के लिए आमंत्रित किया।
निर्धारित समय पर जैसे ही ”पोप” अपनी पत्‍नी के साथ उनके यहां डिनर के लिए पहुंचे, राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्राप्‍त उक्‍त सज्‍जन ने उन्‍हें घर के अंदर ले जाकर पत्‍नी की मौजूदगी में जूते-चप्‍पलों से पीटना शुरू कर दिया। अचानक हुए इस हमले का कारण पूछे जाने पर उन्‍होंने बासबूत अपनी बात सामने रखी। सबूत देखते ही क्‍लब संस्‍कृति के पोप उनके सामने रोने-गिड़गिड़ाने लगे और माफी की मांग करने लगे।
इस दौरान राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्राप्‍त सज्‍जन का एक खास आदमी इस पूरे घटनाक्रम का इत्‍मीनान के साथ वीडियो बना रहा था।
क्‍लब संस्‍कृति के पोप ने वीडियो न बनाने के लिए काफी अनुनय-विनय भी की किंतु इसका किसी पर कोई असर नहीं पड़ा।
बताया जाता है कि काफी देर तक और अच्‍छे से सबक सिखाकर क्‍लब संस्‍कृति के पोप को जाने तो दिया गया लेकिन उनके रोने-गिड़गिड़ाने तथा अपने किए की माफी मांगने का सबूत वीडियो में कैद है ताकि वह फिर कोई ऐसी हरकत न कर सकें।
यह भी पता लगा है कि क्‍लब संस्‍कृति के यह पोप अपने समाज की भी कई संस्‍थाओं से जुडे हैं और उनके जिम्‍मेदार पदों पर हैं। इसके अलावा उद्योग-व्‍यापार की प्रतिष्‍ठित संस्‍थाओं के भी पदाधिकारी हैं और राजनीतिक जगत के अंदर अच्‍छा-खासा हस्‍तक्षेप रखते हैं। एक विधायक से तो उनकी घनिष्‍ठता पूरे जनपद को मालूम है। उक्‍त विधायक भी उनकी क्‍लब संस्‍कृति के मुरीद हैं।
दूसरी ओर जिन राष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त सज्‍जन ने अपनी पत्‍नी से अंतरंग संबधों को लेकर क्‍लब संस्‍कृति के पोप का जूते-चप्‍पलों से अभिनंदन किया, वह भी राष्‍ट्रीय स्‍तर की राजनीतिक पार्टियों तथा उनके राष्‍ट्रीय स्‍तर वाले नेताओं से पारिवारिक संबंधों का दावा करते रहे हैं।
जो भी हो, इस पूरे घटनाक्रम का रोचक लेकिन चौंकाने वाला पहलू यह है कि पिटने वाले और पीटने वाले दोनों ही तथाकथित सज्‍जन अपनी उम्र के 50 से ऊपर वसंत देख चुके हैं।
जाहिर है कि उनकी पत्‍नियां भी अधेड़ उम्र की रही होंगी लेकिन पुरानी कहावत है कि ‘हवस’ के शिकार स्‍त्री-पुरुषों को कुछ नहीं सूझता। वह अपनी हवस में इतने अंधे हो जाते हैं कि मान-मर्यादा भी ताक पर रखने से नहीं चूकते।
विभिन्‍न क्‍लबों से जुड़े तमाम लोग इस पूरे घटनाक्रम की पुष्‍टि करते हुए कहते हैं कि ऐसे तत्‍व एक ओर जहां क्‍लबों को बदनाम कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक संबंधों को भी दूषित करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
यह भी ज्ञात हुआ है कि इस घटनाक्रम के बाद विभिन्‍न क्‍लबों से जुड़े बहुत से सभ्‍य लोगों ने क्‍लबों के आयोजनों में जाना ही छोड़ दिया है ताकि किसी विवाद का हिस्‍सा बनने से बचे रहें।
इन लोगों का कहना है कि एक बड़ा तबका क्‍लबों की सदस्‍यता इसलिए ज्‍वाइन करता है कि उन्‍हें सामाजिक सरोकारों से जुड़ा बताया जाता है लेकिन अंदर जाने के बाद ही पता लगता है कि क्‍लबों के सामाजिक सरोकार कितने हैं और उनकी संस्‍कृति कितनी विषैली हो चुकी है। बेशक इसके लिए कुछ ऐसे खास प्रभावशाली लोग ही जिम्‍मेदार हैं जो पूरी क्‍लब संस्‍कृति पर हावी रहते हैं और अपने प्रभाव का हर तरह दुरुपयोग करते हैं।
इन लोगों द्वारा अपने कार्यक्रमों में उच्‍च अधिकारियों को भी समय-समय पर शामिल किए जाने की वजह यही है कि आसानी से कोई इनके खिलाफ उंगली न उठा सके।
इनके कुकृत्‍यों पर पर्दा पड़ा रहे और उनका खेल किसी न किसी रूप में चलता रहे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

भ्रामक विज्ञापन मुद्दा: मॉडल्‍स जिम्‍मेदार तो Media क्‍यों नहीं ?

भ्रामक और गुमराह करने वाले विज्ञापनों के लिए यदि उनके मॉडल्‍स को जिम्‍मेदार ठहराया जा सकता है तो फिर Media को क्‍यों नहीं ?
यह बड़ा सवाल इसलिए खड़ा होता है क्‍योंकि केंद्रीय उपभोक्‍ता संरक्षण परिषद (CCPC) जल्‍द ही भ्रामक और गुमराह करने वाले विज्ञापनों के लिए उन मॉडल्‍स अथवा सेलेब्रिटी को भी जिम्‍मेदार ठहराने की व्‍यवस्‍था करने जा रही है जो ऐसे विज्ञापनों का हिस्‍सा बनते हैं। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान केंद्रीय उपभोक्‍ता संरक्षण परिषद के अध्‍यक्ष हैं।
रामविलास पासवान का कहना है कि ब्रांड एंबेसेडर के लिए दिशा-निर्देश होने चाहिए और ब्रांड एंबेसेडर को भी किसी उत्‍पाद या सेवा का विज्ञापन करने से पहले खुद अच्‍छे से विचार कर लेना चाहिए।
गौरतलब है कि टीडीपी सांसद जेसी दिवाकर रेड्डी की अध्‍यक्षता में गठित संसद की एक स्‍थाई समिति भ्रामक विज्ञापनों के मुद्दे की समीक्षा कर रही है। जल्‍द ही यह समिति संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली है।
बताया जाता है कि समिति की सिफारिशों के मुताबिक यदि इस मुद्दे पर अमल किया गया तो भ्रामक विज्ञापन करने वाले मॉडल या सेलिब्रिटी के ऊपर न केवल भारी जुर्माने की व्‍यवस्‍था होगी बल्‍कि पांच वर्ष तक की सजा का प्रावधान भी होगा।
पहली बार भ्रामक विज्ञापन करने पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना या 2 वर्ष की जेल अथवा दोनों एक साथ और दूसरी बार करने पर 50 लाख तक का जुर्माना या 5 वर्ष की सजा अथवा दोनों एक साथ हो सकते हैं।
भ्रामक, असत्‍य और गुमराह करने वाले विज्ञापनों में किसी भी प्रकार से संलिप्‍त मॉडल्‍स या सेलेब्रिटी को उसके लिए जिम्‍मेदार ठहराए जाने पर शायद ही किसी को कोई एतराज हो क्‍योंकि यह सीधे देश की जनता से जुड़ा मामला है लेकिन क्‍या ऐसे विज्ञापनों के लिए मीडिया जिम्‍मेदार नहीं है जो उन उत्‍पादों के प्रचार व प्रसार का मुख्‍य जरिया बना हुआ है।
जिस प्रकार कोई मॉडल या सेलेब्रिटी किसी उत्‍पाद का विज्ञापन करने के लिए मोटी रकम लेता है, ठीक वैसे ही मीडिया उसका प्रचार व प्रसार करने के लिए भी भारी-भरकम रकम लेता है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि एक प्रवृति के अपराध पर किसी के लिए बड़ी सजा का प्रावधान और किसी के लिए पूरी स्‍वतंत्रता क्‍यों ?
यह सवाल इसलिए महत्‍वपूर्ण है कि मॉडल्‍स या सेलेब्रिटी हर विज्ञापन का हिस्‍सा नहीं होते। टीवी और अखबारों में काफी बड़ी तादाद ऐसे विज्ञापनों की भी होती है जिनमें कोई मॉडल या सेलेब्रिटी नहीं होता।
उदाहरण के लिए लगभग समूचा इलैक्‍ट्रॉनिक मीडिया ऐसे धार्मिक व्‍यापारियों का प्रचार-प्रसार करने में लगा है जो हर समस्‍या का समाधान चुटकी बजाकर कर देने का दावा करते हैं।
कोई रंग-बिरंगी और कलंगी लगी टोपियों से सुसज्‍जित है तो कोई साधारण वेश-भूषा में असाधारण चमत्‍कारिक कार्य पूरे करने के नुस्‍खे पैसे लेकर बांट रहा है। कोई वशीकरण करने का ठेका ले रहा है तो कोई असाध्‍य रोगों का इलाज तंत्र-मंत्र के जरिए कर रहा है। किसी के पास एकतरफा ”प्‍यार” का दोतरफा बना देने का तरीका है तो कोई अकूत दौलत व शौहतर अर्जित कराने के उपाय बता रहा है।
मजे की बात यह है कि कोई धर्म, कोई संप्रदाय अब ऐसे टोने-टोटके करने वालों से अछूता नहीं है। ज्‍यातिषी, नजूमी और भविष्‍यवक्‍ताओं की भी जैसे पूरी फौज विभिन्‍न टीवी चैनल्‍स पर जुटी पड़ी है, और यह सब टीवी चैनल्‍स की मोटी कमाई का माध्‍यम बने हुए हैं। नामचीन अखबारों का हाल तो और भी बुरा है। वह एक ओर जहां खुलेआम लिंग वर्धक यंत्रों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर मसाज पॉर्लर तथा दूसरे ऐसे माध्‍यमों से युवक-युवतियों को मोटी कमाई का लालच देने वाले विज्ञापन भी छाप रहे हैं।
अपने बचाव के लिए अखबार सिर्फ करते हैं तो इतना कि वह विज्ञापनों के अंत में एक छोटे से बॉक्‍स के अंदर इस आशय का डिस्‍क्‍लेमर दे देते हैं कि समाचार पत्र में छपे विज्ञापनों की सत्‍यता का पता उपभोक्‍ता अपने स्‍तर से कर लें। समाचार पत्र इसके लिए किसी तरह जिम्‍मेदार नहीं होगा।
किसी भी आपराधिक कृत्‍य में संलिप्‍त कोई संस्‍था अथवा व्‍यक्‍ति क्‍या मात्र डिस्‍क्‍लेमर देकर खुद का उससे पल्‍ला झाड़ सकता है?
सब-कुछ जानते व समझते हुए उस आपराधिक कृत्‍य का पैसा लेकर प्रचार-प्रसार करने वाले मीडिया की जिम्‍मेदारी क्‍या मात्र एक डिस्‍क्‍लेमर देकर पूरी हो जाती है ?
यदि ऐसा है और यह सुविधा मीडिया के लिए उपलब्‍ध है तो फिर मॉडल्‍स व सेलेब्रिटी के लिए क्‍यों नहीं?
ऐसा भी हो सकता है कि मॉडल्‍स या सेलेब्रिटी के लिए ऐसा कानून बनने के साथ ही वह भी इस सुविधा का लाभ उठाने लगें। वह किसी संदिग्‍ध उत्‍पाद के विज्ञापन में कहीं छोटे-छोटे अक्षरों से लिखवा दें कि उत्‍पाद की गुणवत्‍ता के बारे में उपभोक्‍ता अपने स्‍तर से जानकारी कर लें, मॉडल इसके लिए किसी तरह जिम्‍मेदार नहीं होगा।
टीवी हो या अखबार, अथवा आज के दौर का कोई दूसरा मीडिया ही क्‍यों न हो, हर एक पर आने वाले विज्ञापनों में से अधिकांश भ्रामक व गुमराह करने वाले ही होते हैं। सत्‍यता से उनका दूर-दूर तक वास्‍ता नहीं होता।
खास पान मसाले के विज्ञापन में बताया जा रहा है कि उसका सेवन करने वाले के दिमाग में ही पानी बचाने का आइडिया आता है। खास परफ्यूम लगाने वाले युवकों पर लड़कियां जान न्‍यौछावर करने लगती हैं, वह उनके पीछे सब-कुछ करने व कराने को दौड़ी चली आती हैं। खास कोलड्रिंक पीने वाला ही मर्दानगी दिखा सकता है और खास बनियाइन या अंडरवियर पहनने वाला ही समाज में हो रहे अत्‍याचारों को रोकने में सक्षम है। यह सब क्‍या है।
क्‍या मीडिया इन्‍हें जनहित में जारी करता है, क्‍या वह इसके लिए उसी प्रकार मोटी रकम नहीं लेता जिस प्रकार कोई मॉडल या सेलेब्रिटी लेता है?
यदि दोनों ही किसी आपराधिक कृत्‍य में पैसों के लिए जान-बूझकर शामिल हो रहे हैं तो अपराधी कोई एक कैसे हुआ ?
केंद्र सरकार यदि लोगों को भ्रामक विज्ञापनों के जरिए बिकने वाले घटिया उत्‍पादों तथा उनके पीछे छिपी आपराधिक मंशा से छुटकारा दिलाना चाहती है तो उसे मॉडल्‍स व सेलेब्रिटी के साथ-साथ मीडिया को भी ऐसे कृत्‍य के लिए जिम्‍मेदार ठहराने की व्‍यवस्‍था करनी होगी अन्‍यथा शातिर दिमाग लोग इसके लिए बनने वाले कानून का भी उसी प्रकार मजाक उड़ाते रहेंगे जिस प्रकार दूसरे अपराधों के लिए बने कानून का उड़ाते हैं। कोई एक डिस्‍क्‍लेमर देकर अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर लेगा और कोई कानून में छोड़े गए सुराखों से साफ निकल जायेगा। रह जायेगी वो जनता जो कानून होते हुए असहाय बनी रहती है।
-Legendnews

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

सनसनीखेज खुलासा: Tax haven का इस्‍तेमाल करने वालों में अमिताभ और ऐश्‍वर्या भी

टैक्स का स्वर्ग कहे जाने कहे जाने वाले देश पनामा की कानूनी फर्म मोसेक फोंसेका के खुफिया दस्तावेज लीक होने से मिली जानकारी के अनुसार Tax haven का इस्‍तेमाल करने वालों में अमिताभ बच्चन और उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन, डीएलफ के मालिक केपी सिंह और गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी भी शामिल हैं। जानकारी के अनुसार अमिताभ बच्चन को चार कंपनियों का डायरेक्टर नियुक्त किया गया था, जिनमें से तीन बहामास में थीं। इन कंपनियों की आधिकारिक तौर पर कैपिटल 5 हजार से 50 हजार डॉलर के बीच में थी लेकिन ये कंपनिया उन शिप्स का कारोबार कर रही थीं, जिनकी कीमत करोड़ों में थी। लिस्ट में ऐश्वर्या का भी नाम है। ऐश्वर्या को पहले एक कंपनी का डायरेक्टर नियुक्त किया गया था, बाद में उन्हें कंपनी का शेयर होल्डर घोषित कर दिया गया।
लपेटे में नवाज शरीफ : इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्‍ट्स (आईसीआईजे) ने रविवार को पनामा पेपर्स के नाम से इन लीक टैक्स दस्तावेजों को जारी किया। जांच में यह खुलासा हुआ कि नवाज शरीफ परिवार ने प्रॉपर्टीज को गिरवी रखकर डाएचे बैंक से 70 लाख पाउंड का लोन हासिल किया।
इसके अलावा, अन्य दो अपार्टमेंट को खरीदने में बैंक ऑफ स्कॉटलैंड ने वित्तीय मदद की।
मोसेक फोंसेका के खुफिया दस्तावेज लीक होने से दुनियाभर के कई और दिग्गज नेता, कारोबारी और सेलेब्रिटीज बेनकाब हो गए हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े खुलासों में से एक बताया जा रहा है। तकरीबन 1 करोड़ 15 लाख से ज्यादा बेहद खुफिया डॉक्यूमेंट्स लीक हो गए हैं। इसके लपेटे में 70 से ज्यादा वर्तमान या पूर्व राष्ट्राध्यक्ष और तानाशाह आ गए हैं। इसमें भारत और पाकिस्तान सहित कई देशों की बड़ी हस्तियां भी शामिल हैं।
‘पनामा पेपर्स’ के आंकड़े लीक होने से अब तक के सबसे बड़ा खुलासा हुआ है। पनामा की कानूनी फर्म मोसेक फोंसेका की 1 करोड़ 10 लाख से ज्यादा बेहद खुफिया दस्तावेज लीक हो गए हैं। इन दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि कैसे दुनिया के ताकतवर और प्रभावशाली लोग टैक्स हैवन का इस्तेमाल कर अपनी बेशुमार दौलत को छिपाते हैं।
इन दस्तावेजों के लीक होने से पता चला है कि रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के करीबि‍यों, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक, सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद, चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग, पाकिस्तान की पूर्व पीएम बेनजीर भुट्टो ने अपनी संपत्ति को छिपाने के लिए टैक्स स्वर्ग की मदद ली।
पनामा सरकार ने ‘पनामा पेपर्स’ के आंकड़े लीक होने के मद्देनजर शुरू की जा सकने वाली हर प्रकार की कानूनी जांच में ‘पूरा सहयोग’ करने का संकल्प लिया है।
पनामा सरकार ने रविवार को एक बयान में कहा, ‘पनामा सरकार कोई कानूनी कदम उठाए जाने की स्थिति में हर प्रकार की आवश्यक सहायता या हर प्रकार के अनुरोध में पूरी तरह सहयोग करेगी।’
पनामा आंकड़े लीक होने के कारण हुए इन खुलासों से जूझ रहा है कि उसकी एक हाई प्रोफाइल लेकिन गोपनीय विधि फर्म मोस्साक फोंसेका ने कर अधिकारियों से पूंजी को छुपाने में विश्व भर के कई बड़े नेताओं और चर्चित हस्तियों की कथित रूप से मदद की। इन लीक आंकड़ों को कई मीडिया संस्थानों ने दर्शाया है।
-एजेंसी

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

2009 के Lok Sabha चुनाव में कांग्रेस ने खरीदे थे सभी अखबारों के पहले पन्‍ने

नई दिल्ली। यूपीए सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री रहे और कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि 2009 के Lok Sabha चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सभी अखबारों के पहले पन्ने को खरीदा था।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने पहले पन्ने को खरीदकर उसका प्रारूप बदलवाने के लिए ज्यादा रकम दी थी।
उन्होंने कहा कि मीडिया हाउस अपना पहला पन्ना बेचता है। पेड न्यूज़ पर अहम खुलासा कर पार्टी को ही मुश्किल में डाल दिया है। दिल्ली में न्यूजरूम पोस्ट के एक कार्यक्रम के दौरान मनीष ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां मीडिया का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करती हैं।
कार्यक्रम में चर्चा के दौरान मनीष ने
कांग्रेस के इतने बड़े दिग्गज का यह बयान सोशल मीडिया में जमकर छाया हुआ है। लोग मनीष के बयान को लेकर अपनी प्रतिक्रियाएं भी सामने रख रहे हैं।
लोग तो यह सवाल भी उठा रहे हैं यह सच्चाई तब सामने क्यों नहीं लाई गई जब वह खुद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय संभाल रहे थे।
वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं है जब कांग्रेस के किसी दिग्‍गज नेता ने अपने बयानों से पार्टी को शर्मसार किया हो। समय-समय पर कांग्रेस के कई नेता अपनी बदजुबानी से पार्टी को मुश्‍किल में डालने का काम करते रहे हैं।
पूर्व में कांग्रेस के महासचिव दिग्‍विजय सिंह ने यह कह कर पार्टी को मुसीबत में डाल दिया था कि बटला हाउस मुठभेड़ फर्जी थी।
हाल ही में कांग्रेस के एक अन्‍य दिग्‍गज नेता और यूपीए सरकार में गृह मंत्री रहे पी चिदंबरम ने अफजल गुरू की फांसी पर टिप्‍पणी करके पार्टी की किरकिरी कराई। हालांकि पार्टी ने उनके बयान से पल्‍ला झाड़कर उसे उनकी निजी राय बता दिया।
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