शनिवार, 30 जुलाई 2016

बलात्‍कार केस: अब उपमन्‍यु के साथ DGP और SSP भी हाईकोर्ट से खाल बचाने में लगे

– DGP और SSP को भी शपथ पत्र के जरिए जवाब दाखिल करने में छूटे पसीने
– एक-दूसरे के ऊपर थोपा उपमन्‍यु के खिलाफ जांच ट्रांसफर करने का  मामला
मथुरा। बलात्‍कार के केस में पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु को बचाने की कोशिश करने वाले DGP और SSP अब इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी खाल बचाने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत 12 जुलाई के अपने आदेश में मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद सहित यूपी के तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी तथा तत्‍कालीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी से 25 जुलाई तक व्‍यक्‍तिगत शपथपत्र के जरिए जवाब तलब किया था।
हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए आनंद लाल बनर्जी व मंजिल सैनी ने तो अपने-अपने जवाब सहित शपथ पत्र दाखिल कर दिए हैं किंतु सीएम के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद ने अभी अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।
शासन के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने जगजीवन प्रसाद को जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय और देते हुए अगली तारीख 08 अगस्‍त मुकर्रर कर दी है।
इन दिनों लखनऊ में वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात मथुरा की तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को भेजे गए अपने जवाब में सिर्फ खुद को बचाने का प्रयास किया है और कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ बलात्‍कार के केस की जांच स्‍थानांतरित करने का सारा ठीकरा अपने उच्‍चाधिकारियों के सिर फोड़ा है।
मंजिल सैनी ने अपने जवाब में लिखा है कि मैंने बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ जांच को मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करने के लिए मुख्‍यमंत्री के ओएसडी की सिफरिश से आए उच्‍चाधिकारियों के आदेश का पालनभर किया था। बतौर एसएसपी मुझे किसी जांच को मथुरा जनपद से बाहर स्‍थानांतरित करने का अधिकार ही नहीं था।
जांच स्‍थानांतरित हो जाने के बाद मथुरा पुलिस ने तत्‍काल इस केस से संबंधित केस डायरी और सभी पेपर्स फिरोजाबाद पुलिस को सौंप दिए।
मंजिल सैनी के जवाब से पहली बार में तो ऐसा लगता है जैसे बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को बचाए रखने में उनकी कोई भूमिका ही न हो किंतु जब किसी जांच को स्‍थानांतरित करने के लिए तय आदेश-निर्देशों पर गौर किया जाए तो पता लगता है कि ऊपर से लेकर नीचे तक बैठे पुलिस अधिकारियों ने किस प्रकार सारे आदेश-निर्देशों की खुली अवहेलना करके कमलकांत उपमन्‍यु को बच निकलने का पूरा मौका उपलब्‍ध कराया।
किसी भी केस की जांच बदलने के लिए उत्‍तर प्रदेश के ही प्रमुख सचिव देवाशीष पण्‍डा द्वारा प्रदेश पुलिस के मुखिया से लेकर हर जिले के पुलिस प्रमुख तथा जिलाधिकारियों तक के लिए 22 अक्‍टूबर 2014 को जो पत्र भेजा गया था, उसके मुताबिक निर्गत किए गए आदेश-निर्देश इस प्रकार हैं:
1- किसी भी केस की जांच को स्‍थानांतरित करने से पहले उस जिले से केस की आख्‍या मंगानी होगी जहां वो केस रजिस्‍टर्ड हुआ हो और उसी आख्‍या के आधार पर जांच ट्रांसफर करने का निर्णय लिया जाएगा।
2- भेजी गई आख्‍या न केवल पूर्णत: स्‍पष्‍ट होनी चाहिए बल्‍कि उस पर जिले के पुलिस प्रमुख की संस्‍तुति उनके अपने हस्‍ताक्षर के साथ की जानी चाहिए। संस्‍तुति करने के लिए भी पुलिस प्रमुख को आख्‍या के साथ संलग्‍न ”चेक लिस्‍ट” के आदेशों पर अमल करना होगा।
3- इस चेक लिस्‍ट में आरोपी के बावत बहुत सी जानकारियों का ब्‍यौरा उपलब्‍ध कराने तथा उस समय के विवेचक का भी जांच ट्रांसफर करने को लेकर अभिमत जानने सहित कुल 15 बिंदु दिए गए हैं जिन्‍हें पूरा करना आवश्‍यक है।
गौरतलब है कि कमलकांत उपमन्‍यु के मामले में न तो तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बजर्नी ने ऐसे किसी आदेश-निर्देश का पालन किया और ना ही मथुरा की तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी ने, जबकि प्रमुख सचिव का पत्र इस केस से करीब डेढ़ महीने पहले ही हर जिले के पुलिस प्रमुख तक पहुंच चुका था।
इसके अलावा मंजिल सैनी के पास क्‍या इन प्रश्‍नों का कोई जवाब है कि पीड़िता द्वारा खुद उनसे संपर्क स्‍थापित किए जाने के बावजूद उन्‍होंने जांच के नाम पर कई दिन तक क्‍यों कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ केस दर्ज नहीं होने दिया ?
क्‍यों इस बीच पीड़िता के भाई और पिता के खिलाफ ही एक केस दर्ज करवा दिया जो बाद में झूठा साबित हुआ ?
06 दिसंबर 2014 को केस दर्ज हो जाने के बाद से जांच स्‍थानांतरित होने के बीच 15 दिनों तक मंजिल सैनी क्‍या करती रहीं। उन्‍होंने आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को गिरफ्तार न करके उसे पीड़िता व उसके परिवार पर दबाव बनाने तथा लखनऊ तक संपर्क साधकर जांच गैर जनपद स्‍थानांतरित कराने का मौका कैसे दिया, वो भी तब जबकि इस बीच पीड़िता का मैडीकल भी हो चुका था और 161 व 164 के तहत बयान भी दर्ज कराए जा चुके थे।
क्‍या मंजिल सैनी को पहले से ज्ञात था कि कमलकांत उपमन्‍यु अपने खिलाफ केस की जांच गैर जनपद ट्रांसफर कराने में सफल होगा।
मंजिल सैनी द्वारा बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को बचाने का यह प्रयास इसलिए और अधिक मायने रखता है क्‍योंकि कमलकांत उपमन्‍यु के साथ मंजिल सैनी की निकटता जगजाहिर थी। वह कमलकांत उपमन्‍यु के घर पर उनके निजी कार्यक्रमों तक में शामिल होती थीं।

समाचार चैनल ”आजतक” के समक्ष इस केस से मुतल्‍लिक अपना पक्ष रखते वक्‍त भी बतौर एसएसपी मंजिल सैनी का आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को ”उपमन्‍यु जी” संबोधित करना और प्रतिष्‍ठित पत्रकार बताना इस बात की पुष्‍टि करता है कि मंजिल सैनी का कमलकांत उपमन्‍यु के प्रति सॉफ्टकॉर्नर बरकरार था।

मंजिल सैनी ने कोर्ट को शपथपत्र के माध्‍यम से दिए गए जवाब में इस बात का कोई उल्‍लेख नहीं किया कि पीड़िता के कोर्ट में बयान हो जाने के बाद वह आरोपी की गिरफ्तारी के लिए आखिर किस बात का इंतजार करती रहीं।
इसी प्रकार तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बजर्नी ने अपने बचाव में शपथ पत्र के जरिए जो सफाई पेश की है, वह बहुत ही हास्‍यास्‍पद है। जैसे बनर्जी का एक ओर तो यह कहना कि उन्‍हें CrPC की धारा 36 तथा पुलिस एक्‍ट 1861 की धारा 3 के तहत किसी केस की जांच को ट्रांसफर करने का अधिकार है, और दूसरी ओर यह बताना कि उक्‍त जांच उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज की संस्‍तुति पर ट्रांसफर की है।
बनर्जी संभवत: यह भूल गए कि वह जवाब हाईकोर्ट को भेज रहे हैं, न कि किसी नेता को।

आश्‍चर्य की बात यह है कि डीजीपी के पद से अवकाश ग्रहण करने के मात्र चंद रोज पहले किए गए इस कारनामे के लिए आनंद लाल बनर्जी ने भी जांच ट्रांसफर करने के लिए प्रमुख सचिव द्वारा दिए गए लिखित आदेश-निर्देशों पर गौर करना जरूरी नहीं समझा। आखिर क्‍यों ?
इतने बड़े पद पर बैठे अधिकारी ने कैसे उन आदेश निर्देशों की खुली अवहेलना की और जांच ट्रांसफर करने का आदेश करने से पहले जिले के एसएसपी से आख्‍या क्‍यों नहीं मांगी।
कोर्ट को दिए गए शपथ पत्र में डीजीपी बनर्जी ने लिखा है कि उन्‍होंने आरोपी के भाई की एप्‍लीकेशन पर मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज की संस्‍तुति और पीड़िता द्वारा भी जांच बदलने के लिए मुझे दिए गए प्रार्थना पत्र के मद्देनजर अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करते हुए जांच ट्रांसफर की जबकि सच्‍चाई यह है कि आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के भाई पूर्व सूबेदार त्रिभुवन उपमन्‍यु ने मुख्‍यमंत्री के नाम प्रार्थना पत्र 18 दिसंबर 2014 को दिया था और पीड़िता द्वारा डीजीपी को प्रार्थना पत्र 22 दिसंबर 2014 को दिया गया लेकिन जांच बदलने के आदेश 22 दिसंबर को किए जा चुके थे।
अगर पीड़िता के प्रार्थना पत्र को भी जांच बदलने का आधार बनाया गया तो डीजीपी की इस मामले में तेजी बहुत से संदेह पैदा करती है।
जैसे 22 दिसंबर को मिले प्रार्थना पत्र पर उसी दिन बिना आख्‍या मांगे जांच बदलने का आदेश कर देने के पीछे कहीं डीजीपी का अपना कोई स्‍वार्थ तो पूरा नहीं हो रहा था। डीजीपी को यह भी मालूम था कि वह 8 दिन बाद अपने पद से अवकाश ग्रहण करने वाले हैं, फिर ऐसी कौन सी वजह थी कि डीजीपी ने सेम-डे जांच बदलने का आदेश किया।
इस मामले का एक और सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू यह है कि मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज का पद न तो कोई संवैधानिक पद है और न डीजीपी जैसा अधिकारी उनके किसी आदेश-निर्देश अथवा संस्‍तुति को मानने के लिए बाध्‍य है, ऐसे में डीजीपी बनर्जी का मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन की संस्‍तुति पर अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करते हुए जांच ट्रांसफर करने का हवाला देना कानून-व्‍यवस्‍था के साथ भद्दे मजाक से अधिक कुछ नहीं हो सकता।
डीजीपी बनर्जी ने अपने शपथ पत्र में एक दलील इस आशय की भी दी है कि याचिकाकर्ता एडवोकेट विजय पाल तोमर चूंकि इस केस में कोई पक्ष नहीं हैं इसलिए उन्‍हें जनहित याचिका दायर करने का कोई अधिकार भी नहीं है, एक तरह से उच्‍च न्‍यायालय को चुनौती देने के समान है। उच्‍च न्‍यायालय ने जब याचिका स्‍वीकार करके केस की सुनवाई शुरू कर दी और जवाब तलब भी कर लिया तो ऐसी किसी दलील का क्‍या औचित्‍य रह जाता है। यूं भी जनहित याचिका दायर करने का अधिकार किसे है और किसे नहीं, यह देखना कोर्ट का काम है न कि आनंद लाल बनर्जी का।
इन हालातों में लगता तो यह है इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय आगामी 08 अगस्‍त को इस मामले में कोई बड़ा फैसला सुना सकती है। केस की जांच नए सिरे से सीबीआई को भी सौंप सकती है जैसा कि उसने 12 जुलाई के अपने आदेश में कहा भी है कि क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
यदि ऐसा होता है तो निश्‍चित है कि जांच की आंच सिर्फ पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु, तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी, तत्‍कालीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी तथा मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद तक सीमित नहीं रह जाएगी।
तब इसकी जांच के दायरे में वह लोग भी होंगे जिन्‍होंने एक मामूली से पत्रकार को इतना अधिक प्रभावशाली बनाने में मदद की कि वह पूरी व्‍यवस्‍था को खुली चुनौती दे सके और मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज सहित डीजीपी व महिला एसएसपी अपनी गर्दन फंसाकर भी बलात्‍कार जैसे संगीन अपराध से उसे बच निकलने के लिए पूरा अवसर प्रदान करते रहे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया बताते चलें कि ये पोस्‍ट कैसी लगी ?

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...