शुक्रवार, 4 मार्च 2016

जिस Kanhaiya को अपनी मां से लगाव नहीं, उसे भारत मां से लगाव क्‍यों होगा

राष्‍ट्रद्रोह के आरोपी जेएनयू छात्र संघ के अध्‍यक्ष Kanhaiya की सशर्त कोर्ट से रिहाई के बाद जेएनयू कैंपस में उसके द्वारा दिए गए भाषण को (जिसे उसने अपना 23 दिनों का अनुभव बताया है) न सिर्फ अरविंद केजरीवाल और दिग्‍विजय सिंह जैसे भाजपा के घोर विरोधी नेताओं ने जमकर सराहा है बल्‍कि मीडिया ने भी भरपूर तरजीह दी है।
कन्‍हैया कुमार ने जेल से छूटने के बाद कल जो कुछ जेएनयू कैंपस में कहा, उसे यदि गौर से सुना और समझा जाए तो दो बातें साफ नजर आती हैं।
इनमें से पहली बात तो यह कि वह अपने ऊपर लगे राष्‍ट्रद्रोह के आरोप की सफाई देता दिखाई दिया न कि जेएनयू की गतिविधियों पर। और दूसरी यह है कि उसका कृत्‍य ऐसा अपराध है जिसे उचित ठहराना आसान नहीं होगा, यह वह समझ चुका है।
कन्‍हैया कुमार का कल यह कहना कि हम भारत से नहीं भारत में आजादी चाहते हैं, इस बात का प्रमाण है।
कन्‍हैया कुमार किस तरह की आजादी का पक्षधर है, इसे बताने का और अपनी बात रखने का अब उसे कोर्ट में पूरा मौका मिलेगा लिहाजा अब कोर्ट के बाहर उसकी इन सफाइयों का कोई मतलब नहीं कि वह किससे तथा कैसी आजादी चाहता है।
कन्‍हैया कुमार ने एक और बात जो प्रधानमंत्री मोदी के संदर्भ में कही कि वह अपने मन की बात करते हैं लेकिन दूसरों के मन की बात नहीं सुनते। कन्‍हैया का यह जुमला कांग्रेस तथा उसके राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के चिर-परिचित जुमले की नकल है और इससे साफ जाहिर है कि वह जेल यात्रा के बाद कांग्रेस की विचारधारा से खासा प्रभावित हो चुका है।
कन्‍हैया कुमार कहता है कि मोदी जी अपने मन की बात करते हैं लेकिन दूसरों के मन की बात नहीं सुनते। कन्‍हैया कुमार को यह भी बताना चाहिए कि उसने जेएनयू छात्रसंघ का अध्‍यक्ष होने के नाते भी मोदी जी को कितनी बार छात्रों के मन की बात बताने का प्रयास किया और उसके लिए कौन-कौन से संवैधानिक तथा काननूी रास्‍ते इस्‍तेमाल किए। राष्‍ट्रद्रोह के आरोप में पकड़े जाने से पहले उसने मोदी जी तक कब और किस मंच से अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की।
अपनी गिरफ्तारी और राष्‍ट्रद्रोह के अपने ऊपर लगे आरोप को लेकर भी प्रधानमंत्री मोदी को सीधे जिम्‍मेदार ठहराने का उसका प्रयास अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी और राहुल गांधी@Congress.com सरीखा है।
जिस तरह अरविंद केजरीवाल अपनी खांसी ठीक न हो पाने और राहुल गांधी अब तक सिंगल होने के लिए भी प्रधानमंत्री मोदी को ही जिम्‍मेदार ठहराते हैं, उसी तरह कन्‍हैया कुमार जैसा अदना सा एक यूनिवर्सिटी का नेता भी खुद की गिरफ्तारी के लिए मोदी जी को जिम्‍मेदार ठहरा रहा है। जैसे मोदी जी प्रधानमंत्री न होकर दिल्‍ली पुलिस के सब इंस्‍पेक्‍टर हों और उनके पास केवल यही काम रह गया हो।
दरअसल, अरविंद केजरीवाल हों या दिग्‍विजय सिंह, कन्‍हैया कुमार हों या मनीष सिसौदिया, इन सब की अपनी-अपनी हीन भावनाएं हैं। केजरीवाल बनारस में मोदी के खिलाफ चुनाव लड़कर ऐसा प्रयास कर भी चुके हैं कि किसी तरह वह मोदी के आसपास कहीं खड़े हो पाएं किंतु जब उन्‍हें उस प्रयास में सफलता नहीं मिली तो गाल बजाना शुरू कर दिया।
लुटेरे से महर्षि बने बाल्‍मीकि के बारे में कहा जाता है कि जब आदतन उन्‍होंने राम-राम जपने में असमर्थता जाहिर की तो किसी संत ने उनसे कहा कि तुम मरा-मरा जपो। वह अपने आप राम-राम बन जाता है।
इसी को लेकर एक चौपाई है कि ”उलटा नाम जपत जग जाना, बाल्‍मीकि भए ब्रह्म समाना”।
शायद यही कारण है कि केजरीवाल से लेकर कन्‍हैया तक और दिग्‍गी से लेकर मनीष तक…सब के सब अपने साथ हुई घटना-दुर्घटनाओं के लिए मोदी जी को जिम्‍मेदार ठहराने में लगे रहते हैं। उन्‍हें अब अपने राजनीतिक उद्धार का यही मार्ग आसान लगता है।
कन्‍हैया की मानें तो वह देश को लूटने वालों से आजादी चाहते हैं। यदि कन्‍हैया के कथन में रत्‍तीभर भी सच्‍चाई है तो उन्‍हें यह भी बताना चाहिए कि वो कौन लोग हैं जो देश को लूट रहे हैं और किस-किस ने अब तक देश को लूटा।
यूं भी देश को लूटने वालों से आजादी चाहने का उनका आशय क्‍या है, यह भी आमजन की समझ से परे है। क्‍या कन्‍हैया कुमार या उनका छात्र संगठन तथा उनके जैसे कथित बुद्धिजीवी क्‍या अब तक देश को लूटने वालों की गुलामी करते रहे हैं और अब उनसे आजादी चाहते हैं। कन्‍हैया को यह भी साफ करना चाहिए।
कन्‍हैया कुमार का यह कहना कि विरोध की सभी योजनाएं नागपुर में तैयार होती हैं और हम देश को बर्बाद करने वालों के खिलाफ एकजुट होकर रहेंगे, यह सब-कुछ कांग्रेसी स्‍क्रिप्‍ट का हिस्‍सा है।
बेहतर होता कि वह जमानत मांगने के लिए कोर्ट के सामने गिड़गिड़ाने की जगह कोर्ट को यह बताता कि असली राष्‍ट्रद्रोही जेएनयू से नहीं आरएसएस के नागपुर मुख्‍यालय से पैदा होते हैं और उन्‍होंने देश पर जबरन कब्‍जा कर लिया है।
कन्‍हैया को यह भी बताना चाहिए कि जहां देश को टुकड़े-टुकड़े करने की बात हो रही थी, वहां वह क्‍या कर रहा था।
कहीं ऐसा तो नहीं कि ”भारत से नहीं, भारत में आजादी” मांगने के नए जुमले की तरह ”देश के टुकड़े-टुकड़े” करने वाले नारे को भी जस्‍टीफाई करने के लिए कन्‍हैया व उसके साथियों ने कोई नई परिभाषा गढ़ ली हो।
संसद हमले के दोषी आतंकी अफजल गुरू की फांसी को न्‍यायिक हत्‍या बताने वालों के बारे में तो पहले ही कहा जा चुका है कि वो सब कहने वाले बाहरी तत्‍व थे।
कन्‍हैया या उसके हिमायती क्‍या यह बतायेंगे कि यदि उनके घर में घुसकर कोई बाहरी व्‍यक्‍ति ऐसा गैरकानूनी कार्य कर जाता है जो संगीन अपराध की श्रेणी में आता हो तो क्‍या उसके लिए उनकी जिम्‍मेदारी नहीं बनती। छात्रसंघ की क्‍या यह जिम्‍मेदारी नहीं है कि वह बाहरी आपराधिक तत्‍वों से यूनीवर्सिटी को महफूज रखे।
प्रधानमंत्री के सत्‍यमेव जयते पर तंज कसने वाले कन्‍हैया कुमार को यदि संविधान में उल्‍लिखित सत्‍यमेव जयते पर इतना ही भरोसा है तो देश के अंदर आजादी के लिए भी संविधान प्रदत्‍त अधिकारों के दायरे में रहकर काननू सम्‍मत लड़ाई लड़े न, उसे इससे कौन रोक रहा है। संविधान और काननू किसी जेएनयू की चारदीवारी के गुलाम तो नहीं। फिर सारी गतिविधियां उस चारदीवारी के अंदर ही क्‍यों।
कहीं इसलिए तो नहीं कि कथित आजादी की मांग करने वाले, आतंकवादियों तथा नक्‍सलियों के समर्थक कन्‍हैया कुमार तथा उसके जैसे छात्र यह भली प्रकार जानते हैं कि उनके कृत्‍य किसी भी तरह संवैधानिक व कानूनी नहीं है और उन्‍हें जेएनयू के कैंपस की दरकार है। जेएनयू की चारदीवारी ही उन्‍हें उनके संविधान विरोधी गैरकानूनी कृत्‍यों के लिए संरक्षण दे सकती है।
इसी प्रकार कालेधन को लेकर कन्‍हैया कुमार के उद्गार, हर-हर मोदी के नारे पर तंज, महंगाई पर कटाक्ष और टीवी में घुसकर मोदी का सूट पकड़कर उनसे हिटलर व मुसोलिनी के बारे में बात करने जैसी इच्‍छा का प्रकट करना यह साबित करता है कि कन्‍हैया के पास अपनी कोई सोच नहीं है। जो कुछ है वह कांग्रेस, वामपंथी और केजरीवाल जैसे मौकापरस्‍तों की देन है जिन्‍होंने जेएनयू के हर कृत्‍य का आंख बंद करके समर्थन किया।
यूं भी बेगूसराय से दिल्‍ली आए कन्‍हैया कुमार के चाचा ने टीवी पर यह खुलेआम स्‍वीकार किया था कि वह स्‍वयं और उनका परिवार वामपंथी विचारधारा से प्रभावित रहे हैं।
कन्‍हैया हर-हर मोदी के नारे की आड़ में मोदी पर तो देश को ठगने का आरोप लगाता है किंतु उस कांग्रेस के बारे में कुछ नहीं कहता जिसने गरीबी हटाओ का नारा देकर देश से गरीब को ही हटा दिया।
कांग्रेस की दृष्‍टि में गरीब अब सिर्फ उस चिड़िया का नाम है जिसे पकड़कर वह राजनीति-राजनीति खेलने के लिए अपने पिटारे में रखती है और अमेठी में उसे निकालकर वहां कभी लंच तो कभी डिनर आयोजित कर लेती है।
मोदी को तो जुम्‍मा-जुम्‍मा चार दिन हुए हैं सत्‍ता संभाले, इससे पहले और उससे भी पहले हमेशा कांग्रेस का शासन रहा देश पर। तब किसी कन्‍हैया कुमार ने क्‍यों नहीं कहा कि उसे भारत से नहीं, भारत में आजादी चाहिए। जब यूपीए सरकार ने अफजल गुरू को फांसी देने से पहले उसके परिजनों को सूचित करने जैसी कानूनी जिम्‍मेदारी भी नहीं निभाई, तब जेएनयू के छात्र क्‍यों सोते रहे।
आंगनवाड़ी कार्यकत्री के रूप में कन्‍हैया कुमार की मां को जो कुछ पैसा मिलता है, वह कहां से आता है। क्‍या कोई इसके बारे में बात करेगा। यदि कन्‍हैया कुमार को सरकार और सरकारी तौर-तरीकों से इतनी ही नफरत है तो वह सरकारी खजाने के पैसे से अपने परिवार की दाल-रोटी को बंदोबस्‍त कैसे सहन कर रहा है। किसी भी व्‍यवस्‍था के प्रति घृणा पालना आसान है लेकिन उस व्‍यवस्‍था को सुधारने में अपनी घृणा का सद्उपयोग करना बेहद कठिन।
यदि गैरकानूनी और असंवैधानिक तरीके ही कन्‍हैया की नजर में उपयुक्‍त हैं तो हरियाणा में जाटों द्वारा आरक्षण मांगने के लिए अपनाया गया तरीका भी सही ठहराया जा सकता है। वह भी कह सकते हैं कि सरकार किसी की नहीं सुनती इसलिए हमने कानून अपने हाथ में ले लिया।
और हां, कन्‍हैया के तथाकथित उद्गगारों का एक महत्‍वपूर्ण पहलू यह भी है कि उसने जेल से छूटकर अपनी मां की बात की। बताया कि उसने लंबे समय बाद फोन पर अपनी मां से आज बात की है। दूसरे छात्रों से भी कहा कि वह अपनी-अपनी मां से बात करते रहें।
कन्‍हैया का कथन साफ बताता है कि जिस मां ने आंगनबाड़ी कार्यकत्री के रूप में मिलने वाली मामूली सी धनराशि से कन्‍हैया को जेएनयू में पढ़ने लायक बनाया, वह जेल यात्रा से पहले अपनी उस मां के साथ फोन पर भी बात नहीं करता था।
उस मां से जिसने कल ही कन्‍हैया के लिए दिए गए अपने संदेश में कहा था कि उसे गद्दारों से दूर रहना चाहिए। यानि कन्‍हैया की मां को भी जेएनयू में हुए घटनाक्रम के अंदर कहीं न कहीं गद्दारी दिखाई दे रही है।
कन्‍हैया का कथन इतना बताने के लिए काफी है कि जब उसे अपनी जन्‍मदात्री को लेकर इतना भी लगाव नहीं था कि नियमित रूप से उसका हाल-चाल जान ले तो उसे भारत मां से लगाव क्‍यों होने लगा। उसे क्‍यों इस बात की चिंता होने लगी कि उसकी मां ने उसे कैसे पाला, उसके देश ने उसे क्‍या दिया। उसे तो चिंता है इस बात की कि उसे आजादी चाहिए। उसके मन की आजादी। वैसी आजादी जैसी वह अपनी मां से तो पा चुका था किंतु देश से नहीं मिल पा रही थी। मां को कभी न पूछने की आजादी, उसका हाल-चाल न जानने की आजादी। कन्‍हैया जैसों को ऐसी ही आजादी देश से चाहिए।
आज बेशक वह भयवश पुलिस और न्‍यायपालिका में भरोसे की बात कर रहा है लेकिन उसे इन पर भरोसा है नहीं। हकीकत यह है कि वह डर गया है। वह जान चुका है कि न्‍यायपालिका भी देश को नुकसान पहुंचाने वाले और उसे तोड़ने का ख्‍वाब देखने वाले किसी कृत्‍य का समर्थन नहीं कर सकती।
वह खूब समझ रहा है कि उसे जो 6 महीने के लिए जमानत दी गई है, उसमें लगाई गई शर्तें तस्‍दीक करती हैं कि उसका कृत्‍य कोई सामान्‍य भूल नहीं है। उसमें से प्रथमदृष्‍या देशद्रोह की बू तो आ ही रही है। भले ही वह अभी साबित नहीं हुआ है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वह पूरी तरह इन्‍नोसेंट साबित हो चुका हो।
जमानत के साथ जुड़ी शर्तें न केवल अपराध की गंभीरता दर्शाती हैं बल्‍कि कन्‍हैया कुमार पर व्‍यक्‍तिगत रूप से यह जिम्‍मेदारी भी डालती हैं कि वह इन 6 महीनों में साबित करे कि उसका देश के प्रति नजरिया क्‍या है।
कन्‍हैया कुमार का यह कहना कि वह किसी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं है और उसकी अपनी विचारधारा है, सफेद झूठ से अधिक कुछ नहीं।
यदि ऐसा है तो उसने कल जिस तरह भाजपा और मोदी पर निशाना साधा, अपनी गिरफ्तारी के लिए सुब्रह्मण्‍यम स्‍वामी को जिम्‍मेदार ठहराया, उसी तरह यह भी बताना चाहिए था कि देश के टुकड़े-टुकड़े करने का सपना देखने वाले तथा अफजल गुरू की फांसी को न्‍यायिक हत्‍या बताने वालों के साथ राहुल गांधी व कांग्रेस का खड़ा होना कितना उचित था।
जहां तक सवाल कन्‍हैया द्वारा अपने भाषण में किसान और जवान दोनों को भाई बताते हुए सीमा पर तैनात फौजियों को सलाम करने का है तो यह उसी प्रकार के खालिस राजनीतिक स्‍टंट का हिस्‍सा है जिस प्रकार के स्‍टंट प्रत्‍येक नेता करता है।
कन्‍हैया कुमार क्‍या बनना चाहता है और उसकी महत्‍वाकांक्षा कितनी बड़ी है, यह तो मैं नहीं जानता किंतु इतना जरूर कह सकता हूं कि जेल यात्रा के बाद वह एक बड़ा नेता बनने का सपना अपनी आंखों में पाल चुका है और उसके मुंह से कल निकला एक-एक शब्‍द इसकी पुष्‍टि करता है।
वह जानता है कि कोई न कोई केजरीवाल, दिग्‍विजय, राहुल गांधी, मनीष सिसौदिया या सीताराम येचुरी उसे अपने कंधे पर बैठा लेगा और तब वह उसके कांधे का इस्‍तेमाल उस राजनीति की सीढ़ियों चढ़ने में बखूबी करेगा जो उसकी महत्‍वाकांछा अथवा हवस का पूरा करेगी। शुरूआत हो चुकी है।
बस इंतजार है तो उस एक अदद मौके का जिसे भुनाया जा सके।
लालू जैसे चारा घोटाले के दोषी भी कहते हैं कि जेल यात्रा उतनी बुरी भी नहीं होती, जितनी बताई जाती है।
कन्‍हैया को भी लग रहा होगा कि उसके लिए तो 23 दिन का जेल का सफर, उसकी जिंदगी का टर्निंग प्‍वाइंट बन गया। इसलिए वह अनुभव बांटने लगा। सबके अपने-अपने अनुभव हैं। लालू यादव के अपने और केजरीवाल व कन्‍हैया कुमार के अपने। अफजल गुरू अपना अनुभव बांटने को रहा नहीं अन्‍यथा केजरीवाल एक ट्वीट उसके अनुभव पर भी न्‍यौछावर जरूर करते।
जैसे कन्‍हैया के उद्गगारों पर केजरीवाल ने इस आशय का ट्वीट किया है- मैंने कहा था मोदी जी से कि छात्रों से पंगा मत लो। नहीं माने, अब भुगतें।
किंतु केजरीवाल यह भी जान लें कि जेएनयू के जुमले देश की आवाज नहीं हो सकते और जेएनयू के छात्रों की कुटिल सोच समूचे देश के छात्रों की सोच नहीं होती।
ठीक उसी तरह जैसे दिल्‍ली कभी देश नहीं हो सकती और लाख कोशिशों के बावजूद दिल्‍ली का ”आधा मुख्‍यमंत्री” देश का प्रधानमंत्री नहीं हो सकता।
केजरीवाल हो या Kanhaiya, अभिव्‍यक्‍ति की आजादी का फायदा उठाकर प्रधानमंत्री को बात-बात के लिए कोस तो सकते हैं लेकिन मोदी नहीं बन सकते क्‍योंकि कोई एक ही नरेन्‍द्र दामोदार दास मोदी पैदा होता है और कोई एक नरेन्‍द्र मोदी ही पीएम बन सकता है।
जान लें कि संविधान की तरह प्रधानमंत्री भी एक ही होता है…और नरेन्‍द्र मोदी समूचे देश के प्रधानमंत्री हैं।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

UP: ठेके पर सरकार …या सरकार पर नकल का ठेका

समाजवादी कुनबे के चश्‍मो चिराग और UP के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव पर यूं तो यह कहावत इन दिनों सटीक बैठती है कि बुझता हुआ दीया रौशनी ज्‍यादा करता है लेकिन यहां तो उक्‍त कहावत भी सिर्फ जुबानी जमाखर्च ही मालूम पड़ती है।
चूंकि 2017 के विधानसभा चुनाव लगभग सामने आ खड़े हुए हैं और सभी राजनीतिक दलों ने मिशन 2017 पर काम करना भी शुरू कर दिया है लिहाजा सूबे के सीएम अखिलेश यादव भी इन दिनों पूरी ताकत के साथ अपनी सरकार का बखान करने में लगे हैं।
बात चाहे कानून-व्‍यवस्‍था की हो अथवा विकास कार्यों की, अखिलेश यादव की मानें तो उन्‍होंने उत्‍तर प्रदेश को इतना उत्‍तम प्रदेश बना दिया है कि जितना पिछली कोई सरकार नहीं बना सकी।
अखिलेश के जुबानी जमाखर्च पर यकीन कर भी लिया जाता यदि हर रोज उनके दावों की पोल खोलने वाला कोई न कोई वाकया सामने न आ खड़ा होता।
उदाहरण के लिए इन दिनों यूपी में माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं। ये परीक्षाएं एक लंबे समय से नकल माफियाओं द्वारा संचालित की जाती हैं, उत्‍तर प्रदेश सरकार तो बस जैसे इनका टेंडर निकालती है। बोर्ड की परीक्षाओं के नाम पर शिक्षा का मजाक और शिक्षा व्‍यवसाय का घिनौना रूप इस दौरान खुलेआम देखा जा सकता है।
बोर्ड परीक्षाओं के लिए सेंटर बनाए जाने से शुरू हुआ यह खेल नकल द्वारा पास की गई परीक्षाओं पर जाकर वहां खत्‍म होता है जहां पीढ़ी-दर-पीढ़ी जाहिलों की एक पूरी फौज खड़ी कर दी जाती है। यही फौज फिर कभी कहीं किसी नौकरी में भर्ती के समय तो कभी आरक्षण की मांग के नाम पर किए जाने वाले आंदोलन के वक्‍त उपद्रवियों में तब्‍दील होती दिखाई देती है।
विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा में आज ”लीजेंड न्‍यूज़” को कुछ ऐसे चित्र मिले जिनसे पूरी तरह स्‍पष्‍ट होता है कि यूपी में बोर्ड परीक्षाएं कितना बड़ा मजाक बनकर रह गई हैं और किस तरह समाजवादी पार्टी की सरकार शिक्षा माफियाओं के सामने या तो बेबस है या फिर उनसे मिली हुई है।
बोर्ड परीक्षाओं के नाम पर चल रहे नकल माफियाओं के इस काले धंधे को देखकर ऐसा लगता है जैसे प्रदेश में शासन नाम की कोई चीज है ही नहीं। और जब शासन ही नहीं होगा तो प्रशासन कहां होगा।
अगर यह राजनीतिक मुद्दा होता तो संभवत: अखिलेश सरकार इस स्‍थिति के लिए भी विपक्ष को जिम्‍मेदार ठहरा देती किंतु दुर्भाग्‍य से यह पूरी तरह कानून-व्‍यवस्‍था का मुद्दा है।
ऐसा नहीं है कि नकल का यह खेल सिर्फ समाजवादी सरकार की उपज हो और बसपा या दूसरे दलों के शासनकाल में परिस्‍थितियां कुछ अलग रही हों, लेकिन इस समय यूपी में अखिलेश के नेतृत्‍व वाली वो समाजवादी सरकार काबिज है जो दावा करती है कि उसके जैसी बेहतर कानून-व्‍यवस्‍था देश के कई दूसरे राज्‍यों में नहीं है।
यूपी बोर्ड की परीक्षाओं में चल रहा नकल का यह खेल इसलिए अत्‍यंत घातक है क्‍योंकि इससे तथाकथित पढ़े-लिखों की वो जमात तैयार हो रही है जो आगे आने वाले समय में शासन-प्रशासन के लिए चुनौती बनेगी। उसके पास बोर्ड का सर्टीफिकेट तो होगा लेकिन शिक्षा से उसका दूर-दूर तक कोई वास्‍ता नहीं होगा।
अखिलेश सरकार अब इस मामले में कुछ कर भी नहीं सकती क्‍योंकि उसमें इसके लिए इच्‍छाशक्‍ति ही नहीं है और नकल माफिया के पास हर तरह की शक्‍ति है।
उनके पास धनबल भी है और बाहुबल भी। उन्‍हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अखिलेश यादव क्‍या करते हैं और मुलायम सिंह यादव क्‍या कहते हैं। उन्‍हें मतलब है तो इस बात से कि बोर्ड परीक्षाओं में नकल कराने के लिए ली गई उनकी ठेकेदारी इसी प्रकार चलती रहे।
उनकी ठेकेदारी कैसी चल रही है, इसका प्रत्‍यक्ष प्रमाण मथुरा के एक कॉलेज से लिए गए चित्रों के रूप में आपके सामने है।
-लीजेंड न्‍यूज़
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...