गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

इनका क्‍या…ये तो अपने भी DNA का सबूत मांग सकते हैं

ये वो लोग हैं, जो अपने DNA का भी सबूत मांग सकते हैं। ये अपने पिता से कह सकते हैं कि वह ”उनके पिता” होने का सबूत दें। ये अपनी मां को अपनी ”बल्‍दियत” साबित करने की चुनौती दे सकते हैं। ये कुछ भी कर सकते हैं और कुछ भी कह सकते हैं।
ऐसे लोग यदि एलओसी के पार जाकर भारतीय सेना द्वारा पाकिस्‍तान के खिलाफ की गई ”सर्जीकल स्‍ट्राइक” पर सवालिया निशान लगा रहे हैं तो कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए।
दरअसल, जिस तरह कुत्‍ता चाहे किसी भी नस्‍ल का क्‍यों न हो, स्‍वामी भक्‍ति उसका मौलिक गुण होता है और वही उसकी पहचान भी है। उसी तरह कुछ लोगों की नस्‍ल में ही गद्दारी निहित होती है, लिहाजा वह अपनी इस मौलिकता को छोड़ नहीं सकते। कई बार ऐसा लगता जरूर है कि वह देश व धर्म की बात कर रहे हैं किंतु असलियत कुछ और होती है।
अब जैसे दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ही ले लें। केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी को सेल्‍यूट करने की आड़ में न सिर्फ इंडियन आर्मी के सर्जीकल स्‍ट्राइक पर सवाल खड़े कर दिए बल्‍कि पाकिस्‍तान के प्रवक्‍ता भी बन बैठे।
अब पाकिस्‍तान के हुक्‍मरान और उनका मीडिया तो अरविंद केजरीवाल की तरह मूर्ख हैं नहीं। उन्‍होंने तुरंत केजरीवाल की मंशा को भांपते हुए उन्‍हें हीरो बना डाला।
केजरीवाल की सारी चालाकी, उनकी सेल्‍यूट के पीछे छिपी मंशा या कहें कि मूर्खता की पराकाष्‍ठा को जब पाकिस्‍तान ने पकड़ कर बेनकाब कर दिया तो केजरीवाल सफाई दे रहे हैं।
केजरीवाल की मानें तो उन्‍होंने न सर्जीकल स्‍ट्राइक पर कोई सवाल खड़ा किया और न इंडियन आर्मी पर। उन्‍होंने तो केवल इतना कहा कि अब मोदी को पाकिस्‍तान के प्रोपेगंडा का जवाब सर्जीकल स्‍ट्राइक के सबूत सामने रखकर दे देना चाहिए।
अपने बचाव में केजरीवाल द्वारा दी जा रही यह सफाई साबित करती है कि उनका अक्‍ल से दूर-दूर तक कभी कोई वास्‍ता नहीं रहा। एक राजनीतिक दुर्घटना के तहत वह दिल्‍ली की जनता के दुर्भाग्‍य से मुख्‍यमंत्री बन बैठे और अब जनता को बता रहे हैं कि भावनाओं को कैश करके किस तरह मूर्खों की जमात भी शासन कर सकती है।
अरविंद केजरीवाल के पास क्‍या इस बात का कोई जवाब है कि वह पाकिस्‍तान के सवालों को लेकर इतने चिंतित और गंभीर क्‍यों हैं ?
उन्‍हें क्‍यों लगता है कि भारत के लिए पाकिस्‍तान की तथाकथित शंका दूर करना इतना जरूरी है ?
क्‍या वह पाकिस्‍तान सरकार, पाकिस्‍तान की सेना अथवा आईएसआई के प्रवक्‍ता हैं या फिर वह अपनी घिनौनी मानसिकता को पाकिस्‍तानी सवालों की आड़ से पोषित करना चाह रहे हैं ?
जहां तक सवाल कांग्रेसी नेता संजय निरुपम, दिग्‍विजय सिंह, पी. चिदंबरम, जेडी-यू नेता अजय आलोक जैसों का है तो यह…और इनके जैसे तमाम अन्‍य लोग राजनीति में हैं ही इसलिए कि उन्‍हें खुद अपनी ही असलियत पर शक है। इन्‍हें खुद नहीं पता कि वह हैं क्‍या।
आइना देखते हैं तो अपने आप से सवाल करने लगते हैं कि अभी-अभी जो चेहरा देखा था, वह किसका था। संभवत: इसीलिए खुद उनकी पार्टियों को हर चौथे रोज यह कहना पड़ता है कि उनके बयानों से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। उन्‍होंने जो कुछ कहा है, वह उनके निजी विचार हैं।
यह एक अलग किस्‍म की राजनीति है। पल्‍ला झाड़ने की राजनीति। लेकिन क्‍या इतना आसान होता है पल्‍ला झाड़ लेना ?
अरविंद केजरीवाल हों या संजय निरुपम, दिग्‍विजय सिंह, पी. चिदंबरम, और अजय आनंद। इन सबका कहना है कि भाजपा के नेतृत्‍व वाली मोदी सरकार सर्जीकल स्‍ट्राइक का क्रेडिट लेकर राजनीतिक लाभ अर्जित करना चाहती है। चूंकि पांच राज्‍यों के चुनाव सामने हैं इसलिए वह इस सर्जीकल स्‍ट्राइक को भुनाना चाहती है।
मैं इन सभी और इनके जैसे सभी बुद्धिहीनों से यह पूछना चाहता हूं कि उरी में सेना के हमले के बाद यह क्‍यों चुप्‍पी साध कर नहीं बैठ गए। क्‍यों विधवा विलाप करने लगे कि 56 इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री को बदला लेना चाहिए। क्‍यों कहते रहे कि जनता अब कार्यवाही चाहती है, बयान नहीं।
इन्‍हें करना तो यह चाहिए था कि आगामी पांच राज्‍यों के चुनावों में जनता के बीच जाकर मोदी सरकार के बयानों की हवा निकालते और कहते कि देखिए मोदी सरकार ने सेना के कितने जवान मरवा दिए लेकिन पाकिस्‍तान के किसी चूहे तक को नहीं मार पाए। मोदी के 56 इंच के सीने पर कायरता का तमगा चस्‍पा करते और बताते कि उनकी तो नवाज शरीफ तथा पाकिस्‍तान के साथ पहले दिन से सांठगांठ चली आ रही है।
हो सकता है कि यदि यह विधवा विलाप न करते और मोदी सरकार पर कार्यवाही के लिए दबाव बनाकर उसे चुनौती नहीं देते तो वह भी कांग्रेसी शासन की तरह हाथ पर हाथ रखे बैठी होती। ऐसे में कांग्रेस संभवत: उत्‍तर प्रदेश, पंजाब तथा गोवा में अपनी सरकार बनाने का ख्वाब देख सकती थी और उत्‍तराखंड व हिमाचल में काबिज रहने की कोशिश कर सकती थी।
हो सकता है कि अनेक विवादों में घिरे होने के बावजूद मोदी जी की अक्षमता के प्रचार से अरविंद केजरीवाल की पार्टी ही पंजाब पर काबिज हो जाती और दिल्‍ली की तरह पंजाब को धन्‍य करती, किंतु लगता है इन्‍हें इस बात का इल्‍म नहीं रहा कि दांव उल्‍टा पड़ जाएगा क्‍योंकि सरकार ने जनभावनाओं के मद्देनजर कार्यवाही कर डाली।
ऐसे में कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी कोई सामाजिक संस्‍था तो है नहीं। वह भी एक राजनीतिक दल है और सत्‍ता पर काबिज रहने की उसकी कोशिश किसी नजिरए से गलत नहीं है। यदि वह सर्जीकल स्‍ट्राइक से कोई राजनीतिक लाभ अर्जित करना चाहती है तो इसमें गलत क्‍या है। सेना का मनोबल बढ़ाकर तथा जन भावनाओं के अनुरूप काम करके सत्‍ता में बने रहने का प्रयास करना क्‍या गुनाह है।
कौन सा राजनीतिक दल और कौन सा नेता ऐसा है जिसकी कोशिश अपने क्रिया-कलापों का राजनीतिक लाभ अर्जित करने की नहीं होती। सब यही तो करते हैं।
फिर सर्जीकल स्‍ट्राइक का राजनीतिक लाभ उठाने की मोदी सरकार की कोशिश पर आश्‍चर्य कैसा ?
क्‍या कांग्रेस को 1971 के युद्ध में इंदिरा गांधी द्वारा उठाए गए कदमों का राजनीतिक लाभ नहीं मिला ?
जनभावनाओं के अनुरूप निर्णय लेने का लाभ दुनिया के हर मुल्‍क की सरकारों को मिलता रहा है और मिलता रहेगा। मोदी सरकार इसका अपवाद नहीं हो सकती।
बेहतर होगा कि सर्जीकल स्‍ट्राइक पर पाकिस्‍तान के हुक्‍मरानों की भाषा बोलने वाले इस सच्‍चाई को समय रहते समझ लें क्‍योंकि अब भी उनके पास डैमेज कंट्रोल करने का वक्‍त है। यूपी सहित जिन राज्‍यों में चुनाव प्रस्‍तावित हैं, उनमें कुछ माह बाकी हैं।
अगर और कुछ समय तक सर्जीकल स्‍ट्राइक पर सवाल खड़े किए जाते रहे और पाकिस्‍तान की तरह सेना की कार्यवाही पर शक जताया जाता रहा तो तय जानिए कि कांग्रेस के जनाजे को कांधा देने के लिए चार लोग भी शायद ही मिलें। तब संजय निरुपम, दिग्‍विजय सिंह तथा पी. चिदंबरम के अलावा कांग्रेस की अर्थी उठाने के लिए चौथा आदमी निश्‍चित ही अरविंद केजरीवाल होगा क्‍योंकि ये दल बेशक अलग हों, दिल तो दोनों के मिले हुए हैं।
राजनीति के चक्‍कर में सेना की सर्जीकल स्‍ट्राइक पर शक करके और पाकिस्‍तानी मीडिया की सुर्खियां बनकर दोनों ने साबित कर दिया है कि सोच के धरातल पर कांग्रेस व केजरीवाल में कोई अंतर नहीं है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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