बुधवार, 30 नवंबर 2016

यूपी के 60 IAS अफसरों ने नहीं दिया अब तक अपनी अचल संपत्‍ति का ब्‍यौरा, कई लापता

यूपी के 60 IAS अफसरों ने एक वर्ष बीत जाने के बावजूद अब तक सरकार को अपनी अचल संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है। यूपी की नौकरशाही में अफसरों के रवैये को लेकर यह बड़ी जानकारी मिली है। बता दें कि इनमें दो आईएएस आलोक रंजन और जावेद उस्मानी यूपी सरकार में चीफ सेक्रेटरी भी रहे हैं। संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले कुछ अफसर कई वर्षों से लापता हैं। कई ऐसे भी हैं जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों से अपनी सम्पत्ति का कोई ब्यौरा ही नहीं दिया जबकि 2015 के लिए इन अफसरों को इस वर्ष 31 जनवरी तक सम्पति का ब्यौरा उपलब्ध कराना था।
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यूपी में बार-बार आदेश के बावजूद आईएएस अफसर संपत्ति का ब्यौरा देने में आनाकानी कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक ऐसे अफसरों की संख्या 60 के करीब है।
केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कुल 166 अफसर ऐसे हैं, जिन्होंने वर्ष 2015 के लिए अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है।
इनमें सर्वाधिक अफसर यूपी कैडर के हैं। 2014 में देश भर से ब्यौरा नहीं देने वाले 329 अफसरों में अकेले यूपी से 29 अफसर शामिल हैं।
दिलचस्प है लापता अफसरों की कहानी
संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले कई आईएएस अफसर लंबे वक्त से लापता हैं। इनमें एक नाम रीता सिंह का है जो 22 अप्रैल 2003 से छुट्टी पर हैं।
इनकी अनिवार्य सेवानिवृति को लेकर केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने राष्ट्रपति को पिछले वर्ष पत्र भी लिखा था।
इनके अलावा संजय भाटिया, अतुल बागई, संजीव आहलुवालिया नाम के आईएएस अफसरों ने भी लंबे वक्त से अपनी सम्पति का ब्यौरा नहीं दिया है।
ये सभी अफसर लापता भी है। आईएएस अनीता श्रीवास्तव, शैलेश कृष्ण, पीवी जगमोहन, संजय भाटिया जैसे कई अफसर हैं, जिन्होंने कई वर्षों का संपत्ति का ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराया है।
अखिलेश सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले और हाल ही में राजनीति में उतरे आईएएस डॉ. सूर्य प्रताप सिंह ने भी दो वर्षों से अपनी संपत्ति का ब्यौरा विभाग को उपलब्ध नहीं कराया है।

मथुरा के डॉक्‍टर्स भी आयकर विभाग के निशाने पर, शीघ्र होगी बड़ी कार्यवाही

मथुरा के डॉक्‍टर्स भी आयकर विभाग के निशाने पर हैं और शीघ्र ही विभाग उनका बड़े स्‍तर पर सर्वे कराने की तैयारी कर रहा है। यह जानकारी आयकर विभाग के ही उच्‍च पदस्‍थ सूत्रों से प्राप्‍त हुई है।
आयकर विभाग के सूत्र बताते हैं कि मथुरा के कई नामचीन चिकित्‍सकों ने बड़ी मात्रा में अपनी ब्‍लैक मनी मथुरा से बाहर रियल एस्‍टेट में निवेश की हुई है।
कृष्‍णानगर क्षेत्र में मेन रोड पर अपना नर्सिंग होम चलाने वाले एक चिकित्‍सक दंपत्‍ति का बड़े रियल एस्‍टेट ग्रुप के नोएडा स्‍थित प्रोजेक्‍ट में करीब 50 करोड़ रुपया लगे होने की जानकारी आयकर विभाग को मिली है। विभाग के अनुसार यह चिकित्‍सक इस रियल एस्‍टेट ग्रुप के साथ पिछले करीब आठ साल से जुड़ा है।
विभाग के अनुसार कृष्‍णानगर का यह चिकित्‍सक दंपत्‍ति तो मात्र एक उदाहरण है अन्‍यथा कृष्‍ण की नगरी में ऐसे डॉक्‍टर्स की संख्‍या दो दर्जन से ऊपर बताई जाती है।
सूत्रों के मुताबिक मोदी सरकार द्वारा 08 नवंबर की रात 12 बजे के बाद से अचानक 1000 और 500 के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर कर देने पर मथुरा का चिकित्‍सा जगत भी काफी प्रभावित हुआ है।
बताया जाता है कि सरकार द्वारा की गई इस अचानक नोटबंदी से प्रभावित मथुरा के कई प्रमुख डॉक्‍टर्स तो अगले 3 दिनों तक अपने नर्सिंग होम्‍स तथा हॉस्‍पीटल पर आए ही नहीं और उनके स्‍टाफ ने मरीजों को डॉक्‍टर साहब के जिले से बाहर होने की जानकारी दी।
इन डॉक्‍टर्स द्वारा अपने मरीजों को कोई पूर्व सूचना दिए बिना इस तरह गायब हो जाने की वजह ”लीजेंड न्‍यूज़” ने जाननी चाही तो पता लगा कि वह पुराने नोटों को ठिकाने लगाने की कवायद में व्‍यस्‍त हैं।
उल्‍लेखनीय है कि मथुरा में नर्सिंग होम्‍स एवं हॉस्‍पीटल संचालक कई दर्जन डॉक्‍टर्स ऐसे हैं जिनकी प्रतिदिन की आय एक लाख रुपए से ऊपर है लेकिन आयकर देने के नाम पर यह मात्र औपचारिकता निभाते हैं और अपनी अधिकांश कमाई रियल एस्‍टेट सहित अन्‍य दूसरे क्षेत्रों में निवेश करते रहे हैं।
चिकित्‍सा जगत के सूत्रों का ही कहना है कि मथुरा में ऐसे डॉक्‍टर्स की कोई कमी नहीं जो नियमित तौर पर अपनी ओपीडी (Outdoor Patient Department) द्वारा ही एक से डेढ़ लाख रुपए तक लेकर घर जाते हैं और इसका कोई ब्‍यौरा उनके इनकम टैक्‍स रिटर्न में नहीं होता।
सूत्रों के अनुसार फिजीशियन से लेकर विशेषज्ञ डॉक्‍टर्स तक ने अपनी फीस खुद निर्धारित की हुई है। सामान्‍य फीस के अतिरिक्‍त इनकी इमरजैंसी फीस अलग है जिसके एवज में यह मात्र परामर्श देते हैं। परामर्श शुल्‍क के अलावा नर्सिंग होम या हॉस्‍पीटल के अंदर ही संचालित मेडिकल स्‍टोर व पैथोलॉजी के माध्‍यम से होने वाली कमाई अलग है।
यही कारण है कि नर्सिंग होम्‍स या हॉस्‍पीटल संचालक अधिकांश डॉक्‍टर्स ने अपने यहां मेडिकल स्‍टोर तथा पैथोलॉजी चलाने का जिम्‍मा अपने निकटतम रिश्‍तेदारों अथवा अत्‍यंत भरोसेमंद व्‍यक्‍ति को ही सौंप रखा है ताकि उससे होने वाली अतिरिक्‍त आमदनी की जानकारी बाहर तक न पहुंचे।
डॉक्‍टर्स की अतिरिक्‍त आमदनी का एक और स्‍त्रोत है दवा कंपनियों से मिलने वाले महंगे-महंगे गिफ्ट और मोटी रकम। ये गिफ्ट और रकम डॉक्‍टर्स को एमआर के माध्‍यम से मिलती है। डॉक्‍टर्स के लिए ये एमआर परिवार सहित देश और देश के बाहर घूमने-फिरने का भी इंतजाम करते हैं।
इस सब के अतिरिक्‍त तमाम डॉक्‍टर्स ने तो गांव-देहात में सक्रिय झोलाछाप डॉक्‍टर्स को भी अपना कमीशन एजेंट बना रखा है। ये झोलाछाप अपनी सेटिंग वाले डॉक्‍टर को गांवों से उसी प्रकार मरीज रैफर करके अपना कमीशन सीधा करते हैं जिस प्रकार मथुरा या अन्‍य छोटे शहरों के डॉक्‍टर महानगरों के डॉक्‍टर्स अथवा मशहूर निजी हॉस्‍पीटल्‍स को अपने यहां से मरीज भेजकर कमीशन लेते हैं।
सच तो यह है कि आज चिकित्‍साजगत एक ऐसे कॉकस का शिकार है जिसके लिए पैसा ही उसका कर्म है और पैसा ही धर्म। पैसे के अलावा उन्‍हें कुछ नहीं सूझता।
यही कारण है कि कभी किसी निजी हॉस्‍पीटल से पैसा न दे पाने में असमर्थ किसी के परिजन का शव उन्‍हें न सौंपे जाने की बात सामने आती है तो कहीं किसी मरीज को ही बंधक बना लिए जाने का पता लगता है।
अंधी कमाई करने में व्‍यस्‍त चिकित्‍सा जगत के इस खेल का पता यूं तो आयकर विभाग को बहुत पहले से था किंतु वह भी कुछ इसके प्रभाव तथा कुछ अपनी कार्यप्रणाली के चलते निष्‍क्रिय पड़ा रहता था। अब जबकि मोदी सरकार ने नोटबंदी के साथ-साथ चिकित्‍सा के क्षेत्र में व्‍याप्‍त काले धन पर पैनी नजर गढ़ाने का फरमान जारी किया है और सार्थक नतीजे सामने लाने को कहा है तो आयकर विभाग ने इस क्षेत्र के माफियाओं की कुंडली खंगालना शुरू कर दिया है।
आयकर विभाग के सूत्र बताते हैं कि मथुरा में काली कमाई करने वाले सर्वाधिक चिकित्‍सक कृष्‍णा नगर क्षेत्र से हैं। यह क्षेत्र पिछले कुछ समय के अंदर ही निजी नर्सिंग होम्‍स तथा हॉस्‍पीटल्‍स का एक ”हब” बन चुका है।
आवासीय क्षेत्र कृष्‍णा नगर में इन चिकित्‍सकों ने सर्किल रेट्स से कई-कई गुना ज्‍यादा कीमत पर जमीनें लेकर अपने नर्सिंग होम्‍स व हॉस्‍पीटल बनाए हैं।
गौरतलब है कि कृष्‍णा नगर फिलहाल मथुरा शहर का सर्वाधिक कीमती क्षेत्र है और यहां जमीन की कीमत गलियों के अंदर भी एक से सवा तथा डेढ़ लाख रुपया प्रति वर्ग गज तक है। मेन रोड पर तो यह कीमत दो से सवा दो लाख रुपया प्रति वर्ग गज तक पहुंच जाती है जो कि सर्किल रेट से करीब पांच गुना अधिक है।
आयकर विभाग के अनुसार कृष्‍णा नगर के बाद काली कमाई करने में दूसरा नंबर आता है नेशनल हाई-वे के किनारे बने हुए नर्सिंग होम्‍स तथा हॉस्‍पीटल्‍स का। नेशनल हाई-वे पर नर्सिंग होम्‍स, हॉस्‍पीटल तथा दूसरी चिकित्‍सा सुविधाएं एवं जांच केंद्र खोले बैठे लोगों की आमदनी का ब्‍यौरा भी आयकर विभाग ने जुटा लिया है और शीघ्र ही इनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही अमल में लाने की तैयारी है।
नेशनल हाई-वे के साथ-साथ महोली रोड, भूतेश्‍वर, मथुरा-वृंदावन रोड आदि पर बने नर्सिंग होम्‍स व हॉस्‍पीटल भी आयकर विभाग के टारगेट बताए जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि जनसामान्‍य के बीच ईश्‍वर जैसा दर्जा प्राप्‍त सभी चिकित्‍सक सिर्फ और सिर्फ मोटी कमाई करने में लगे हैं तथा उस काली कमाई को इधर-उधर निवेश करते हैं, कई चिकित्‍सक ऐसे भी हैं जो अपना काम न केवल ईमानदारी से करते हैं बल्‍कि कमाई के अनुरूप टैक्‍स भी अदा करते हैं लेकिन ऐसे चिकित्‍सकों की मथुरा में संख्‍या काफी कम है।
जाहिर है कि ऐसे में वह काली कमाई करने वाले अपने हमपेशा लोगों के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्‍मत नहीं कर पाते हैं और चुपचाप तमाशबीन बने रहने को मजबूर हैं।
मोदी सरकार द्वारा उठाए गए नोटबंदी के कदम के बाद ऐसे चिकित्‍सक न सिर्फ काफी खुश हैं बल्‍कि दबी जुबान से प्रधानमंत्री के फैसले का समर्थन कर रहे हैं।
इन चिकित्‍सकों का भी यह मानना है कि यदि समय रहते आयकर विभाग चिकित्‍साजगत में मौजूद काले धन पर प्रभावी कार्यवाही करने में सफल रहा और सफेदपोश चिकित्‍सकों का चेहरा बेनकाब कर पाया तो इसका लाभ चिकित्‍साजगत के साथ-साथ उस जनसामान्‍य को भी मिलेगा जो आज इनके हाथों में खेलने पर मजबूर हैं तथा इनकी हर नाजायज बात सिर झुकाकर स्‍वीकार करने को बाध्‍य है।
यह भी ज्ञात हुआ है कि अपने खिलाफ आयकर विभाग की सक्रियता के संकेत कुछ खास चिकित्‍सकों को मिल चुके हैं लिहाजा वह अभी तो किसी भी तरह अपनी काली कमाई व अधिकारियों को मैनेज करने की कोशिश में लगे हैं परंतु मोदी सरकार की सख्‍ती उनके प्रयासों में आड़े आती दिखाई दे रही है।
अब देखना यह है कि धर्म की नगरी में लंबे समय से सक्रिय अधर्म की कमाई करने वाले तथा भगवान का दर्जा प्राप्‍त इन चिकित्‍सकों के खिलाफ आयकर विभाग कब तक कार्यवाही अमल में लाता है और कब आम आदमी को इनकी प्रताड़ित करने वाली कमाई से मुक्‍ति दिलाने में सफल होता है।
कहने को मोदी सरकार ने चिकित्‍सकीय पेशे की मनमानी पर लगाम लगाने ने लिए नर्सिंग होम्‍स एक्‍ट भी बनाया है लेकिन देशभर के नर्सिंग होम्‍स व हॉस्‍पीटल संचालक डॉक्‍टर इस एक्‍ट का विरोध कर रहे हैं और इसलिए अभी नया एक्‍ट प्रभावी नहीं हो सका है।
जो भी हो, इसमें कोई दोराय नहीं कि मोदी सरकार की मंशा के अनुरूप यदि आयकर विभाग चिकित्‍सकीय पेशे में व्‍याप्‍त गंदगी तथा उससे उपजी काली कमाई का सफाया करने में सफल रहा तो निश्‍चित ही इसका बड़ा लाभ मरीज व उनके परिजनों को मिलेगा।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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