शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

तेल के खेल में वजीर तो क्‍या, प्‍यादे भी नहीं हैं मथुरा और आगरा के मनोज

मथुरा रिफाइनरी से हो रहे तेल के खेल में जिन हमराहों पर हाथ डालकर मथुरा पुलिस आगरा के मनोज गोयल को वजीर साबित करके उसका गिरेबां नापने की कोशिश कर रही है, वह दरअसल इस खेल का वजीर तो क्‍या, प्‍यादा तक नहीं है।
आगरा के मनोज गोयल का नाम आने से पहले तेल माफिया के रूप में कुख्‍यात मथुरा का मनोज अग्रवाल भी इस खेल के वजीरों का हलूकर भर है।
वजीर तो वाकई वजीर हैं, और उनके गिरेबां तक हाथ डालने की हिमाकत आगरा तथा मथुरा पुलिस का कोई अफसर नहीं कर सकता। ये वजीर हर सत्ता में काबिज रहते हैं, फिर चाहे वो सत्ता सपा की हो अथवा बसपा की और भाजपा की या किसी गठबंधन की।
इन दिनों मथुरा पुलिस थोड़ी-बहुत उछल-कूद करके अपनी जो पीठ थपथपा रही है, उसका एकमात्र कारण है चुनावों के चलते सूबे की सत्‍ता का प्रभावहीन हो जाना और केंद्र की सत्‍ता का उसमें उलझे होना, अन्‍यथा इतनी उछल-कूद के बाद तो हलूकर ही मथुरा तथा आगरा में तैनात पुलिस अफसरों को ताश के पत्तों की तरह फैंट देने का माद्दा रखते हैं।
चुनावों के बीच भी यदि आगरा और मथुरा की पुलिस इन हलूकरों के हाथ में हथकड़ी नहीं डाल सकी तो तय जानिए कि नई सरकार बनने के साथ ऐसे कई अफसर अपने लिए ठिकाने ढूंढते नजर आएंगे जो आज अखबारों के पहले पन्‍ने की सुर्खियां बने हुए हैं।
पहले भी कई जांबाज पुलिस अफसरों ने मथुरा रिफाइनरी से होने वाले तेल के खेल में दखल देने की कोशिश की है लेकिन आज तक न तो कोई पुलिस अफसर किसी वजीर तक पहुंच पाया और न किसी वजीर के प्‍यादे को अपना मोहरा बना पाया। हां, थोड़े-बहुत हाथ-पैर मारने के बाद वह खुद उन वजीरों का मोहरा जरूर बन गया और अंतत: उनके तथा उनके हलूकरों के इशारों पर नाचते देखा गया।
इसी क्रम में नाम कमाने की चाह रखने वाले कुछ पुलिस अफसर दाम भले ही कमा गए परंतु बदनाम होने से नहीं बच सके। आज उनमें से कोई डीआईजी बना बैठा है तो कोई आईजी और एडीजी। एक-दो पुलिस अफसर तो डीजी बनकर सेवामुक्‍त भी हो लिए और आज टीवी चैनल्‍स पर होने वाली डिबेट्स में खाकी पहनने वालों को नैतिकता व ईमानदारी का पाठ पढ़ाते देखे व सुने जा सकते हैं।
कड़वा सच यह है कि मथुरा में रिफाइनरी स्‍थापित होने के बाद से शुरू हुआ तेल का खेल कभी बंद हुआ ही नहीं। एक-दो मौकों पर इसमें शिथिलता अवश्‍य दिखाई दी किंतु वह भी चंद दिनों के लिए।
यही कारण है कि मथुरा तथा आगरा में इस खेल के चलते एक-दो नहीं दर्जनों मनोज गोयल पैदा हुए और दर्जनों मनोज अग्रवाल। तेल के खेल की जन्‍मकुंडली खंगाली जाए तो पता लग जाएगा कि आज उनमें से कोई नामचीन बिल्‍डर बन चुका है तो कोई मशहूर व्‍यवसाई। किसी के नाम से उद्योगपति का टैग चस्‍पा किया जा चुका है तो कोई जनप्रतिनिधि बनकर जनता की सेवा करने का दम भर रहा है।
इतना सब होने के बावजूद हजारों करोड़ रुपए सलाना कमाई वाले तेल के इस खेल का वजीर कोई नहीं बन पाया क्‍योंकि वजारत हमेशा सत्ता के सोपान से चिपके रहने वालों पर रही और वहां तक पहुंचने के माद्दा मथुरा-आगरा के चिरकुटों में था नहीं। ये लोग सत्‍ता के गलियारों तक सिमटकर रह गए और उन्‍हीं झरोखों से झांककर खुदमुख्‍त्‍यारी का दम भरते रहे।
मथुरा रिफाइनरी से होने वाले तेल के खेल में संलिप्‍त हमराह, हलूकर, मोहरे तथा प्‍यादे तक नहीं जानते कि उनकी गर्दन में बंधी डोर का छोर आखिर है किसके हाथ में। वो तो सिर्फ इतना जानते हैं कि उस डोर के इशारे पर ही उन्‍हें नाचना है और उसी के इशारे पर अपने अधीनस्‍थों को नचाना है।
पाइप लाइन में सेंध लगाकर पेट्रोलियम पदार्थों की चोरी करने और पाइप लाइन तक पहुंचने के लिए सुरंग बनाने का मथुरा में यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई मर्तबा ऐसे कारनामे लोग करते रहे हैं लेकिन कभी ऐसी प्रभावी कार्यवाही किसी स्‍तर से नहीं हुई जिसके बाद यह मान लिया जाए कि आगे वैसा हो पाना संभव नहीं होगा। हर बार सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का तमाशा किया गया जिसके परिणाम स्‍वरूप कोई उल्‍लेखनीय उपलब्‍धि हासिल नहीं हुई।
तेल शोधक कारखाना कहीं का भी हो, उसकी सुरक्षा एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी होती है। इस जिम्‍मेदारी को यूं तो केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) निभाती है किंतु कई दूसरे विभागों सहित सिविल पुलिस की भी इसमें अहम भूमिका होती है।
ऐसे में रिफाइनरी के अंदर और बाहर होने वाली किसी भी गैरकानूनी गतिविधि का इतने लंबे समय तक पता न लग सके कि कोई सुरंग बनाकर पाइप लाइन से तेल निकालने में सफल हो जाए, यह हो नहीं सकता। ये तभी संभव है कि अंदर से लेकर बाहर तक और ऊपर से लेकर नीचे तक के लोगों की इसमें संलिप्‍तता हो और वो लोग किसी भी हद तक गिरने के लिए तत्‍पर हों।
रिफाइनरी से ही जुड़े सूत्रों की मानें तो तेल के इस खेल में सबसे बड़ी भूमिका मार्केटिंग डिवीजन से ताल्‍लुक रखने वाले उन कर्मचारियों की रहती है जो सप्‍लाई का काम देखते हैं और जिन्‍हें रिफाइनरी की ओर आने व जाने वाली एक-एक पाइप लाइन की जानकारी है।
बताया जाता है कि इन रिफाइनरी कर्मियों के पास पाइप लाइन के पूरे जाल का नक्‍शा रहता है और वही बता सकते हैं कि कहां-कहां वॉल्‍व लगे हैं तथा कहां-कहां सुरक्षा में सेंध लगाना संभव है।
सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार यही वो लोग हैं जिनका प्रत्‍यक्ष में तो तेल के खेल से कोई सरोकार नहीं रहता लेकिन इनकी कमाई लाखों नहीं करोड़ों में होती है।
बताया जाता है कि ड्यूटी पर मौजूद रिफाइनरी कर्मियों के अलावा ऐसे रिफाइनरी कर्मियों की कोई कमी नहीं है जो अवकाश प्राप्‍त करने के बावजूद सिर्फ पाइप लाइन के नक्‍शों की बिना पर घर बैठे लाखों रुपए हासिल कर रहे हैं अन्‍यथा कितने आश्‍चर्य की बात है कि जिस पाइप लाइन की सुरक्षा पर बेहिसाब पैसा खर्च होता हो और जिसके अंदर चलने वाले प्रेशर तक से उसके लीकेज का पता लगाया जा सकता हो, उसमें छेद करके करोड़ों रुपए मूल्‍य का पेट्रोलियम पदार्थ चुरा लिया जाए फिर भी रिफाइनरी प्रशासन को तब भनक लगे जब कोई जनसामान्‍य अपनी जान हथेली पर रखकर अफसरों को बताने पहुंचे कि पाइप लाइन में सेंध लग चुकी है।
रिफाइनरी प्रशासन के दावों पर भरोसा करें तो समूची पाइप लाइन की एक ओर जहां नियमित चैकिंग होती है वहीं दूसरी ओर उसके ऊपर ऐसी प्‍लास्‍टिक कोटिंग भी की जाती है जिसे काटकर वॉल्‍व तक पहुंचना या पाइप लाइन में छेद कर पाना आसान नहीं होता। ऐसा करने की कोशिश के दौरान ही रिफाइनरी के अंदर बैठे अधिकारी व कर्मचारियों को आधुनिक उपकरणों के सहारे पता लग जाता है लेकिन यहां तो जैसे पूरे कुएं में ही भांग घुली हुई है लिहाजा आजतक मौके पर कभी कोई पकड़ा नहीं जा सका।
बहुत समय नहीं बीता जब रिफाइनरी के अंदर से सैकड़ों करोड़ रुपए मूल्‍य वाले पेट्रोलियम पदार्थों से भरे कंटेनर चोरी हो गए थे। तब भी इसी प्रकार शोर-शराबा हुआ और दावा किया गया कि इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने वाला कोई अपराधी बच नहीं पाएगा, चाहे वह रिफाइनरी के अंदर बैठा हो अथवा बाहर। समय के साथ यह मामला पहले ढीला पड़ा और अब ठंडे बस्‍ते के हवाले जाता नजर आ रहा है।
जिस समय कृष्‍ण की इस पावन जन्‍मभूमि पर रिफाइनरी की शक्‍ल में एक आधुनिक मंदिर की नींव रखी जा रही थी तब कहा गया था कि मथुरा तथा मथुरा वासियों के लिए यह मंदिर बड़ा वरदान साबित होगा किंतु आज स्‍थिति इसके ठीक उलट है।
मथुरा रिफाइनरी आज की तारीख में तेल का अवैध कारोबार करने वालों, भ्रष्‍ट अफसरों, सफेदपोश नेताओं तथा पुलिस-प्रशासन के लिए भले ही वरदान बनी हुई हो किंतु मथुरा-आगरा के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है।
रिफाइनरी के कारण वायु और जल प्रदूषण तो बढ़ा ही है, साथ ही खतरा भी बहुत बढ़ गया है। आतंकवादियों के लिए यह एक बड़ा टारगेट है और दुश्‍मन देशों की भी इस पर हमेशा पैनी नजर रहती है।
कहने को मथुरा रिफाइनरी अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्‍सा शहर के विकास और उसके बेहतर रख-रखाव के लिए निकालती है लेकिन यह हिस्‍सा कहां जाता है, इसका कभी पता नहीं लगा।
रिफाइनरी स्‍थापित हुए साढ़े तीन दशक होने को आए लेकिन कृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली आज तक अपनी गरिमा के अनुरूप विकास को तरस रही है। सड़क, बिजली, पानी, जलभराव जैसे सामान्‍य समस्‍याओं तक के समाधान में मथुरा रिफाइनरी ने कोई उल्‍लेखनीय भूमिका कभी अदा की हो, ऐसा याद नहीं आता। हां, इसके कारण जनसामान्‍य की जिंदगी हर वक्‍त खतरे में जरूर पड़ी रहती है क्‍योंकि पता नहीं कब कौन तेल को चोरी करके पैसे बनाने की जगह उसका दूसरा गलत इस्‍तेमाल करने की ठान ले।
मथुरा का हर जागरूक नागरिक जानता है कि रिफाइनरी की सीमा में पड़ने वाले ”बाद रेलवे स्‍टेशन” से लेकर तेल के भण्‍डारण तक में सेंध लगाकर चोरी करने का सिलसिला कभी थमा नहीं है। रेलवे स्‍टेशन पर जहां वैगनों से बाकयदा पाइप डालकर तेल खींच लिया जाता है वहीं गोदामों से कंटेनर के कंटेनर गायब कर दिए जाते हैं किंतु सब तमाशबीन बने रहते हैं। यही हाल रिफाइनरी के लिए बिछी पाइप लाइनों को क्षतिग्रस्‍त करने के मामले में है। कितनी बार पाइप लाइनों में सूराख करके करोड़ों रुपए की चपत लगाई गई है लेकिन सरकारी माल पर हाथ साफ करना अपना जन्‍मसिद्ध अधिकार मानने वाले अधिकारी और कर्मचारी, अपराधियों को संरक्षण देने से नहीं चूकते। उनके लिए वह दुधारु गाय बने हुए हैं।
मथुरा की ओर आने वाली कोई सड़क हो अथवा यहां से दूसरे जनपदों एवं राज्‍यों को जोड़ने वाली कोई सड़क क्‍यों न हो, हरेक पर अवैध तेल के गोदामों का जाल बिछा मिल जाएगा लेकिन क्‍या मजाल कि कोई इनकी ओर आंख उठाकर देख ले।
देखेगा भी कैसे, आखिर तेल की धार से निकलने वाले पैसों की चमक किसी की भी आंखें चुंधियाने को काफी हैं। तभी तो कहावत है कि तेल देख और तेल की धार देख।
कहते हैं कि मथुरा तीन लोक से न्‍यारी है। कुछ समय के अंदर गधों को घोड़ों की तरह सरपट दौड़ते और फर्श से अर्श तक का सफर काफी कम समय में पूरा करते देखकर तो लगता है कि वाकई मथुरा तीन लोक से न्‍यारी है।
यहां हमराह पकड़े जाते हैं, हलूकर भी पकड़े जा सकते हैं लेकिन वजीरों का बाल भी बांका नहीं होता। सत्ता की खातिर उनकी निष्‍ठाएं बेशक लचीली हो जाती हों लेकिन उनके गोरखधंधों में लचीलापन कभी नहीं आता।
इसलिए तेल का खेल जारी था, जारी है और बदस्‍तूर जारी रहेगा। फॉलोअर पहले भी पकड़े जाते रहे हैं और हमेशा पकड़े जाते रहेंगे जिससे पुलिस इसी तरह अपनी पीठ खुद थपथपाती रहे किंतु वजीरों की वजारत कायम रहेगी। चुनाव का सीजन बीतने दें और फिर तेल भी देखना और तेल व तेलियाओं की धार भी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

''एक्‍सीडेंटल पॉलिटीशियन'' हैं मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के प्रमुख प्रत्‍याशी, जानिए इनके राजनीति में प्रवेश की अनछुई कहानी...

मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में मौजूद अधिकांश प्रमुख प्रत्‍याशी एक्‍सीडेंटल पॉलिटीशियन हैं न कि रैगूलर पॉलिटीशियन। यानि ये लोग किसी न किसी दुर्घटनावश या यूं कहें कि हालातों के मद्देनजर अथवा मौका मिलने पर राजनीति में आ गए अन्‍यथा न तो इनके परिवार में कोई राजनीतिज्ञ रहा और न इनकी अपनी राजनीति में कोई रुचि थी।
सबसे पहले बात करते हैं चार बार विधायक रह चुके कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के गठबंधन प्रत्‍याशी प्रदीप माथुर की।
1980-81 की बात रही होगी, तब प्रदीप माथुर बीएसए कॉलेज में लॉ (कानून) के विद्यार्थी हुआ करते थे। कृष्‍णा नगर के एक छोटे से किराए के मकान में रहने वाले प्रदीप माथुर के पिता सरकारी विभाग के मुलाजिम थे और इनकी माली हालत बस गुजारा करने भर की इजाजत देती थी।
लॉ के आखिरी सेमिस्‍टर की पढ़ाई के दौरान बीएसए कॉलेज के सामने हुई एक सड़क दुर्घटना में किसी युवक की मौत हो गई। पिता के साए से महरूम इस युवक की बहिन का रिश्‍ता तय हो चुका था और नजदीक ही शादी की तारीख तय थी।
चौबिया पाड़ा क्षेत्र के रहने वाले उक्‍त युवक के परिवार में इस दुर्घटना से कोहराम मचना ही था। मृत युवक के परिवार की दुर्दशा और उसकी बहिन की होने जा रही शादी को देखते हुए बीएसए कॉलेज के कुछ लॉ स्‍टूडेंट आगे आए। इन स्‍टूडेंट्स ने पहले तो कॉलेज के सामने वाली सड़क को अवरुद्ध किया और बाद में युवक के परिवार की मदद करने का बीड़ा उठाया। इन स्‍टूडेंट्स में से एक का नाम था प्रदीप माथुर। अन्‍य युवकों में शामिल थे घाटी बहालराय घीया मंडी निवासी रमेश पचौरी। वकील आनंद मोहन पचौरी के पुत्र रमेश पचौरी अब मथुरा में ही रेवेन्‍यू के वकील हैं। इस ग्रुप में शामिल तीसरे युवक का नाम था अब्‍दुल जब्‍बार। सदर बाजार निवासी अब्‍दुल जब्‍बार आज वृंदावन में एक कुकिंग गैस एजेंसी के संचालक हैं, साथ ही राजनीति में भी रुचि रखते हैं। अब्‍दुल जब्‍बार भी प्रदीप माथुर की तरह कांग्रेसी हैं और प्रदीप माथुर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले हैं, बावजूद इसके उन्‍हें राजनीति में कोई उल्‍लेखनीय उपलब्‍धि हासिल नहीं हो पाई।
इनके अलावा इसी ग्रुप में शामिल रहे चौथे छात्र का नाम राकेश यादव है जिन्‍हें लोग राकेश मामा के नाम से जानते हैं। राकेश यादव भी कांग्रेसी हैं और अब तक प्रदीप माथुर का साथ देकर अपनी निष्‍ठा पूरी कर रहे हैं। राकेश यादव एक इंटर कॉलेज के संचालक तो हैं ही, कामधेनु गऊशाला का भी संचालन करते हैं। वह एक बार कांग्रेस की टिकट पर एमएलसी का चुनाव लड़ चुके हैं किंतु उसमें सफलता नहीं मिल सकी।
बहरहाल, इन सभी स्‍टूडेंट्स ने मिलकर सड़क दुर्घटना में मारे गए उस युवक की बहिन का विवाह कराने के लिए चंदा इकठ्ठा किया और तय समय पर उसकी शादी करवा दी।
युवकों के इस नेक काम की गूंज प्रदेश सरकार के कानों तक पहुंची अत: प्रदेश सरकार ने इन युवकों को पुरस्‍कृत करने का ऐलान किया। तत्‍कालीन गवर्नर ने इन्‍हें पुरस्‍कृत किया तो ये युवक अचानक समाज में हीरो बनकर उभरे।
कांग्रेस को उस दौरान चुनाव लड़ाने के लिए साफ-सुथरी छवि वाले उत्‍साही युवकों की तलाश थी। मथुरा में कांग्रेस की यह तलाश प्रदीप माथुर के रूप में पूरी हुई जिसका बड़ा कारण हाईकमान तक प्रदीप माथुर के किन्‍हीं निकटस्‍थ रिश्‍तेदार की पहुंच भी बताई जाती है।
जो भी हो, इस तरह अचानक एक दुर्घटना से उपजे हालातों ने प्रदीप माथुर को पहले चुनावी चेहरा बनवाया और फिर विधायक।
पहला चुनाव जीतने के बाद प्रदीप माथुर अगले चुनाव में जीत दर्ज नहीं करा पाए किंतु राजनीति उन्‍हें रास आ गई। अब वह लगातार तीन बार से विधायक हैं। इस बीच केंद्र में भी कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली सरकार काबिज रही किंतु प्रदीप माथुर ने मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया जिसका उल्‍लेख किया जा सके।
वैसे खुद प्रदीप माथुर पहले यमुना नदी पर गोकुल बैराज को बनवाने का श्रेय लेते थे लेकिन जब से यह सिद्ध हुआ कि गोकुल बैराज सरकार के लिए सफेद हाथी तथा यमुना के लिए वरदान की जगह अभिषाप बन गया है तब से प्रदीप माथुर ने गोकुल बैराज के निर्माण का श्रेय लेना बंद कर दिया है।
यही हाल कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली सरकार की जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्‍यूअल मिशन यानि ''जे नर्म'' योजना का हुआ। जे नर्म में मथुरा को शामिल कराने का श्रेय प्रदीप माथुर ने डंके की चोट पर लिया और इस आशय का प्रचार किया कि इस योजना के धरातल पर उतरने के साथ मथुरा का कायाकल्‍प उसकी गरिमा के अनुसार होगा। इस योजना के तहत मथुरा के लिए 1800 करोड़ से अधिक की रकम निर्धारित की गई किंतु नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। जे नर्म के तहत हुए चंद कामों ने पूरे शहर का हुलिया बिगाड़ कर रख दिया और मथुरा की सूरत बनने की जगह बिगड़ती चली गई। यह बात अलग है कि इस योजना के तहत प्रथम फेज का काम पूरा कराने को जो करोड़ों रुपया मिला, उसका विभिन्‍न स्‍तर पर बंदरबांट होता रहा और काम समय पर पूरा न हो पाने की वजह से मथुरा को योजना से बाहर कर दिया गया। इस पूरे घपले में कहीं न कहीं विधायक प्रदीप माथुर की भी संलिप्‍तता का जिक्र होता रहा है लेकिन स्‍पष्‍टत: कुछ सामने नहीं आया।
आम जनता द्वारा ''जे नर्म'' में हुए घपले से विधायक प्रदीप माथुर को जोड़ने की एक वजह यह भी रही है कि इस बीच प्रदीप माथुर फर्श से अर्श तक जा पहुंचे जबकि हैसियत उनकी सिर्फ विधायक की ही थी। प्रदीप माथुर की माली हालत की बात करें तो अब वह प्रत्‍यक्ष में एक गैस एजेंसी और सर्वाधिक कीमती इलाके कृष्‍णा नगर में करोड़ों रुपए मूल्‍य की भव्‍य कोठी के मालिक हैं। उनकी संतानें मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और उनके नाम पर भी पॉश कॉलोनियों में अचल संपत्‍तियां हैं।
बताया जाता है कि प्रदीप माथुर की दूसरे व्‍यापारों में भी साझेदारी है किंतु इसकी पुष्‍टि नहीं हो सकी, अलबत्‍ता लोकपाल से शिकायत जरूर हुई।
एक ऐसे ही व्‍यापारिक मामले में सरकारी कर्ज को लेकर प्रदीप माथुर पर केस चला था और उसमें गैर जमानती वारंट भी जारी हुए थे लेकिन वर्तमान में उसका क्‍या स्‍टेटस है, यह कोई बताने को तैयार नहीं।
जाहिर है कि मथुरा के लिए प्रदीप माथुर ने कुछ किया या नहीं किया, किंतु अपने लिए इतना कुछ कर लिया है कि आगे आने वाली पीढ़ी को भी शायद ही कभी आर्थिक समस्‍या का सामना करना पड़े।
यमुना प्रदूषण मुक्‍ति के लिए शुरू की गई पदयात्रा में बाबा जयकृष्‍ण दास सहित यमुना भक्‍तों के साथ प्रदीप माथुर द्वारा केंद्र के इशारे पर किए गए धोखे से मथुरा की जनता बेहद नाराज है और इसीलिए इस बार जब प्रदीप माथुर नामांकन भरने से पहले यमुना पूजन करने पहुंचे तो उनका खासा विरोध किया गया।
मथुरा की जनता से पूछने पर वह साफ कहती है कि कुल चार बार की विधायकी में प्रदीप माथुर ने अपना घर खूब भरा लेकिन मथुरा का कोई भला नहीं कर पाए। मथुरा के लिए जो भी योजनाएं लाई गईं, उनका मकसद निजी स्‍वार्थ पूरे करना रहा न कि मथुरा को उसके गौरवशाली अतीत से रूबरू कराना।
ऐसे ही दूसरे एक्‍सीडेंटल पॉलिटीशियन हैं राष्‍ट्रीय लोकदल के प्रत्‍याशी डॉ. अशोक अग्रवाल। जहां तक सवाल बाल रोग विशेषज्ञ रहते राजनीति में आने वाले डॉ. अशोक अग्रवाल का है, तो इसका कारण बनी अपहरण की एक आपराधिक घटना वरना डॉ. अशोक, ''अशोक हॉस्‍पीटल'' के नाम से चौकी बाग बहादुर क्षेत्र में अपना अच्‍छा-खासा चिकित्‍सकीय व्‍यवसाय चला रहे थे।
यह आपराधिक घटना घटी सन् 2003 के जुलाई महीने में। इस घटना के तहत शहर के मशहूर डॉक्‍टर उमेश माहेश्‍वरी का मसानी क्षेत्र से तब देर शाम अपहरण कर लिया गया जब वो चौक बाजार स्‍थित अपनी क्‍लीनिक से एनएच टू स्‍थित अपने घर तथा हॉस्‍पीटल लौट रहे थे। माहेश्‍वरी हॉस्‍पीटल नामक इस संस्‍थान को डॉ. उमेश माहेश्‍वरी के पुत्र डॉ. मयंक माहेश्‍वरी व डॉ. शशांक माहेश्‍वरी संचालित करते हैं। हॉस्‍पीटल के ऊपर ही माहेश्‍वरी परिवार ने अपना निवास बना रखा है।
प्रसिद्ध चिकित्‍सक उमेश माहेश्‍वरी के अपहरण से मथुरा ही नहीं नजदीकी शहरों के चिकत्‍सा जगत में भी हंगामा मच गया क्‍योंकि डॉ. उमेश माहेश्‍वरी आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे।
उस वक्‍त मथुरा के एसएसपी प्रेम प्रकाश हुआ करते थे। जाहिर है कि पुलिस पर डॉ. उमेश माहेश्‍वरी को जल्‍द से जल्‍द अपराधियों के चंगुल से छुड़ाने का खासा दबाव था लिहाजा पुलिस हाथ-पैर तो खूब मार रही थी किंतु नतीजा कुछ नहीं निकल रहा था।
इधर डॉ. उमेश माहेश्‍वरी के दोनों डॉ. पुत्र तथा अन्‍य लोग भी अपने स्‍तर से डॉ. साहब के बारे में जानकारी करने का पूरा प्रयास कर रहे थे।
इस दौरान पुलिस को पता लगा कि डॉ. उमेश माहेश्‍वरी के अपहरणकर्ताओं से कुछ लोग संपर्क साधने में सफल हुए हैं और उनकी अपहरणकर्ताओं से बातचीत चल रही है।
इन लोगों में कृष्‍ण जन्‍मभूमि की सुरक्षा ड्यूटी में तैनात पुलिस के ही एक सीओ त्रिदीप सिंह, अलीगढ़ में तैनात एलआईयू का एक सब इंस्‍पेटर मलिक सहित एक उद्योगपति, एक प्रसिद्ध वकील तथा एक डॉक्‍टर भी शामिल हैं।
पुलिस अभी और कुछ कर पाती कि इससे पहले किसी तरह डॉ. उमेश माहेश्‍वरी बदमाशों के चंगुल से मुक्‍त होने में सफल रहे। बदमाशों के चंगुल से मुक्‍त होकर डॉ. उमेश माहेश्‍वरी ने होटल मधुवन में एक प्रेस कांफ्रेस करके जो जानकारी दी, उसके मुताबिक पुलिस की उन्‍हें मुक्‍त कराने में कोई भूमिका नहीं रही।
डॉ. उमेश माहेश्‍वरी द्वारा दी गई जानकारी मथुरा पुलिस को काफी नागवार गुजरी और उसने अपना मुंह साफ करने के लिए सबसे पहले सीओ त्रिदीप सिंह पर शिकंजा कसा। पुलिस ने सीओ त्रिदीप सिंह के सरकारी घर से 11 लाख रुपए बरामद करते हुए बताया कि यह रकम बदमाशों को फिरौती देकर डॉ. उमेश माहेश्‍वरी को छुड़वाने के एवज में सीओ को मिली है तथा सीओ व अन्‍य कई लोग बदमाशों को फिरौती दिलवाने में शामिल रहे हैं। सीओ त्रिदीप सिंह को आरोपी बनाकर जेल भेजने के बाद पुलिस ने रात में फौजदारी के प्रसिद्ध वकील राम सरीन के डेंपियर नगर स्‍थित आवास पर दविश दी और फिर चौकी बाग बहादुर स्‍थित डॉ. अशोक के निवास को घेर लिया।
पुलिस ने डॉ. अशोक पर बदमाशों के साथ सांठगांठ होने का आरोप लगाया और कहा कि फिरौती की रकम दिलवाने में उनकी भी भूमिका रही है। पुलिस ने डॉ. अशोक और एडवोकेट राम सरीन को गिरफ्तार तो नहीं किया लेकिन उनके यहां पुलिसिया तांडव जमकर किया।
डा. अशोक को पुलिस के इस अप्रत्‍याशित व्‍यवहार ने पूरी तरह हिला दिया अत: उन्‍होंने पुलिसिया हरकत के अगले दिन अपने हॉस्‍पीटल में एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई। प्रेस कांफ्रेस में डॉ. अशोक ने जो जानकारी दी वो चौंकाने वाली थी।
डॉ. अशोक ने बताया कि पुलिस द्वारा उनके यहां दविश देने से पहले मथुरा दैनिक जागरण के ब्‍यूरो चीफ अमी आधार निडर का फोन उनके पास आया था और उन्‍होंने मुझसे एसएसपी के नाम से 5 लाख रुपयों की मांग की।
डॉ. अशोक ने तब प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि अमी आधार निडर ने उनसे साफ कहा है कि एसएसपी प्रेम प्रकाश उनके घर पर बैठे हैं और यदि यह मांग पूरी नहीं की गई तो रात में आपको आरोपी बनाकर जेल भेज दिया जाएगा।
डॉ. अशोक ने प्रेस कांफ्रेस में बाकायदा रोते हुए सिलसिलेवार पुलिस और अमी आधार निडर के धमकाने का ब्‍यौरा देकर कहा कि यदि मुझे न्‍याय नहीं मिला तो मैं आत्‍महत्‍या कर लूंगा।
डॉ. अशोक के साथ हुई इस घटना के बाद एसएसपी प्रेम प्रकाश का तबादला पड़ोसी जनपद अलीगढ़ के लिए कर दिया गया और दैनिक जागरण ने अमी आधार निडर को भी हटा दिया।
इसके काफी समय बाद सीओ त्रिदीप सिंह को पहले जमानत मिली और फिर अदालत ने उन्‍हें निर्दोष भी माना। सीओ के यहां से पुलिस द्वारा बरामद दिखाया गया 11 लाख रुपया सीओ को मिल गया किंतु उस घटना ने डॉ. अशोक को राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरित किया।
डॉ. अशोक ने सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी की सदस्‍यता ली। बहुजन समाज पार्टी ने उन्‍हें विधानसभा का चुनाव लड़ने को तैयार भी किया किंतु ऐन वक्‍त पर उनका पत्‍ता काटकर देवेन्‍द्र गौतम ''गुड्डू'' को टिकट पकड़ा दिया। इधर गुड्डू गौतम चुनाव हार गए और उधर डॉ. अशोक ने बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया।
2012 का विधानसभा चुनाव वह सपा के टिकट पर लड़े भी लेकिन कांग्रेस व रालोद के गठबंधन उम्‍मीदवार प्रदीप माथुर से मात्र 1500 मतों के अंतर से हारकर तीसरे नंबर पर रहे। यही रालोद जिसके टिकट पर डॉ. अशोक अब चुनाव लड़ रहे हैं।
इस बार सपा कांग्रेस के गठबंधन से मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र की सीट सिटिंग विधायक तथा कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर के खाते में चली गई और सारी तैयारियों के बाद भी डॉ. अशोक मुंह देखते रह गए।
मौका देखकर राष्‍ट्रीय लोकदल ने डॉ. अशोक को लपक लिया और उन्‍हें अपना टिकट थमाकर मथुरा-वृंदावन से चुनाव मैदान में उतार दिया क्‍योंकि रालोद के पास इस सीट के लिए कोई कद्दावर केंडीडेट था ही नहीं।
दुर्घटनावश राजनीति में आए प्रदीप माथुर की गिनती आज घाघ राजनीतिज्ञों में होती है जबकि चार बार विधायक रहकर भी उन्‍होंने मथुरा के लिए कुछ नहीं किया। हां, अपने लिए खूब किया। इतना किया कि राजनीति में आने से पहले जिस प्रदीप माथुर की हैसियत स्‍कूटर पर चलने की नहीं थी आज वह करोड़ों की चल-अचल संपत्‍ति के मालिक हैं।
इसी सीट से बसपा के प्रत्‍याशी योगेश द्विवेदी कुछ वर्षों पहले तक होटल में बैरे का काम करते थे। खुद योगेश द्विवेदी ने अपने इस रूप की फोटो सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर डाली हुई हैं जिनमें वह बहिन मायावती व मान्‍यवर कांशीराम की खिदमत करते दिखाई दे रहे हैं। उनसे पहले उनकी मां पुष्‍पा शर्मा भी इसी प्रकार स्‍वास्‍थ्‍य विभाग में एएनएम थीं और बाद में नगर निकाय का चुनाव लड़कर वृंदावन नगर पालिका की अध्‍यक्ष बनीं। पुष्‍पा शर्मा ने एक चुनाव विधायकी का भी लड़ा लेकिन उसमें उन्‍हें असफलता हाथ लगी थी। इसी प्रकार योगेश द्विवेदी ने 2009 का लोकसभा चुनाव भी बसपा की टिकट पर लड़ा था किंतु वह हार गए। योगेश द्विवेदी की मां पुष्‍पा शर्मा अपनी आपराधिक छवि के कारण राजनीति में आईं और उनकी प्रेरणास्‍त्रोत दस्‍यु सुंदरी से सांसद बनीं फूलन देवी रहीं। फूलन देवी से उनकी निकटता हमेशा चर्चा का विषय रही है।
अब शेष रह जाते हैं भाजपा के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता और प्रत्‍याशी श्रीकांत शर्मा। श्रीकांत शर्मा का राजनीति में प्रवेश किसी घटना-दुर्घटनावश हुआ या नहीं, इसके बारे में तो कहना मुश्‍किल है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उनके राजनीतिक कद तथा उम्‍मीदवारी को उनकी ही पार्टी के लोग किसी बड़ी दुर्घटना से कम नहीं मानते।
मथुरा में एक से एक धुरंधर नेता मुंह देखते रह गए और श्रीकांत शर्मा अचानक हवाई मार्ग द्वारा उस धरा पर उतरे, जिस धरा को वह बीस साल पहले ही छोड़ चुके थे। खुद को गोवर्धन विधानसभा क्षेत्र के गांव गंठौली निवासी बताने वाले श्रीकांत शर्मा हिमालय में तपस्‍या करके अमित शाह को प्राप्‍त कर पाए अथवा अमित शाह ने हिमालय जाकर उन्‍हें हासिल किया, इस रहस्‍य को जानने के लिए मथुरा की जनता बेहद उत्‍साहित है। जनता को उनकी जीत-हार से ज्‍यादा इस बात में रुचि है कि बीस साल से अधिक समय तक वह राजनीति के किन गलियारों की शोभा बढ़ा रहे थे और कैसे मोदी सरकार के साथ-साथ राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता व राष्‍ट्रीय सचिव जैसे पदों पर नमूदार हो गए।
श्रीकांत शर्मा की शहरी सीट पर उम्‍मीदवारी मथुरा की जनता के लिए किसी रहस्‍य-रोमांच से कम नहीं है। आम मतदाता और खुद पार्टी के भी एक बड़े तबके के लिए उनकी उम्‍मीदवारी किसी दुर्घटना की तरह है।
अब देखना यह है कि इन चारों एक्‍सीडेंटल पॉलिटीशियन में से किस के सिर जीत का सेहरा बंधता है और कौन-कौन हार से रूबरू होता है परंतु यह निश्‍चित है कि मथुरा का विकास एकबार फिर यक्षप्रश्‍न बनने जा रहा है।
यक्ष प्रश्‍न इसलिए क्‍योंकि इन चुनावों से ठीक पहले भी मथुरा की जनता को कुछ ऐसी ही आस बंधाई गई थी, ऐसे ही वायदे किए गए थे और ऐसी ही तकरीरें सुनाई गईं थीं जो अब दिवास्‍वप्‍न बनकर रह गई हैं।
मथुरा की स्‍वप्‍न सुंदरी सांसद अब कहती हैं कि मथुरा के विकास में अखिलेश सरकार रोड़े अटकाती रही है इसलिए विकास चाहिए तो प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बनवाइए।
पता नहीं चुनावों का ऊंट किस करवट बैठेगा लेकिन यह जरूर पता है कि किसी न किसी दुर्घटनावश राजनीति में प्रवेश करने वाले मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के ये प्रत्‍याशी क्‍या-क्‍या गुल खिलायेंगे। जीत किसी की हो लेकिन जनता की हार पहले से तय है क्‍योंकि एक्‍सीडेंटल राजनीतिज्ञों से और उम्‍मीद भी क्‍या की जा सकती है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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