शनिवार, 27 मई 2017

…और अब चैप्‍टर क्‍लोज

दो हत्‍याएं, करोड़ों की लूट, विधाता के धाम से विधानभवन तक गूंज, फिर उसकी भी अनुगूंज। अनशन, धरना-प्रदर्शन व बंद, सत्ता पक्ष व विपक्ष के दौरे, सवाल…सवाल और सवाल।
सवालों के जवाब में तीन कुख्‍यात भाइयों और उनके तीन हलूकरों की गिरफ्तारी, मात्र 20 लाख रुपए मूल्‍य के माल की कथित बरामदगी…और चैप्‍टर क्‍लोज।
पुलिस-प्रशासन मुर्दाबाद का नारा, चार दिन के अंतराल में पुलिस-प्रशासन जिंदाबाद में ”तरमीम” हो गया। बेडवर्क, गुडवर्क बन गया। चार दिन में पराई होते-होते एक पार्टी फिर से अपनी हो गई। राजनीति की रोटी सेंकने का प्रयास करने वालों के मंसूबे धरे-धरे के धरे रह गए। मरने वालों की चिता ठीक से ठंडी भी नहीं हुई कि पुलिस को प्रशस्‍ति पत्र बांट दिए गए। इनाम-इकराम से नवाजे जाने का ऐलान कर दिया गया। सम्‍मान समारोह की तैयारियां होने लगीं। राम राज्‍य लौट आया। जिंदगी से लेकर व्‍यापार तक सब अपने ढर्रे पर वापस।
कौन कह सकता है कि इसी महीने की 15 तारीख को मयंक चेन पर हुई जघन्‍य वारदात के बाद धर्म की यह छोटी सी दुनिया उबल रही थी। बच्‍चे से लेकर बूढे़ तक की जुबान सिर्फ यही बोल रही थी कि बहुत बुरा हुआ।
20 मई को भोर होते-होते वही जुबान पलटने लगी। सूर्य चढ़ने के साथ शहर का पारा नॉर्मल होने लगा। जो लोग खाकी को खाक में मिला देने को आतुर थे, वही लोग उसकी शान में कसीदे पढ़ने लगे। यही है फितरत और यही असलियत भी।
पुलिस जानती है कि उसकी स्‍क्रिप्‍ट पर उंगली उठाने की हिमाकत प्रथम तो कोई करता नहीं, और यदि कोई करता भी है तो जवाब देने की जरूरत नहीं।
प्रेस कांफ्रेंस होती हैं लेकिन लकीर पीटने के लिए। सवाल उठाने का दौर बीत गया। सवाल किसी को अच्‍छे नहीं लगते। जवाब सुहाते हैं।
मीडिया की आवाज़ नक्‍कारखाने की तूती बनकर रह गई है और मीडियाकर्मी मीडिएटर। वह न तो आवाज़ उठाते हैं और न आवाज़ बनते हैं, वह आवाज़ मिलाते हैं। जिसकी ढपली, उसका राग।
लिखा-पढ़ी में व्‍यापारी बेशक कमजोर हो किंतु पुलिस चुस्‍त-दुरुस्‍त है। उसने हवा का रुख भांपकर घटना के दूसरे दिन ही कर लिया एक तीर से कई निशाने साधने का इंतजाम। सांप मर जाए और लाठी भी जस की तस बनी रहे, इस कला में खाकी का कोई मुकाबला नहीं।
एक मृतक के परिजनों को आश्‍वासन की पोटली थमा दी तो दूसरे के परिजनों को सड़क पर मिली गहनों की पोटली। होगा कोई सर्राफ जिसने रख लिए लाखों के जेवरात।
होंगे कोई कर्मचारी व कारीगर जिनकी बदनीयत ने घायल अवस्‍था में गोलियों का धुंआ साफ होने से पहले ही सर्राफ को थमा दी जेवरात व नकदी की वह पोटली। पुलिस को अब इस सबसे क्‍या मतलब।
किसने की सर्राफों की सुरागरसी, कौन था आस्‍तीन का सांप..सारे प्रश्‍न अपनी जगह। प्रश्‍न शेष हैं तो रहें, उत्तर दिया जा चुका है। देखेंगे, देख रहे हैं और देखते रहेंगे।
किसी को छोड़ेंगे नहीं, लाखों का माल मिल गया अब करोड़ों के लिए भी कोशिश करेंगे लेकिन पहले ब्‍यौरा तो दो।
चार दिन में चार हजार बार पुलिस से उसके काम का हिसाब मांगा गया, पर कारोबार का हिसाब अब तक नहीं मिला। अब क्‍या बदमाश बताएंगे कि कितना माल लूट कर ले गए।
पहले हिसाब दो, फिर हिसाब मांगो। नहीं दे सकते तो हिसाब-किताब बराबर समझो। बहुतों का हिसाब इसी तरह हुआ है बराबर। गोली मारीं, गोली खाईं…इनका भी तो हिसाब देना है, और अकेले देना है। बदमाशों के असलाह से फायर निकले या फुहार, इससे किसी को क्‍या वास्‍ता। बदमाश खाकी को और खाकी बदमाशों को, दोनों एक-दूसरे को बहुत अच्‍छी तरह जानते हैं। दोनों के असलाह भी परस्‍पर पहचानते हैं। कितनी मार करनी है, कैसी करनी है, सब उन्‍हें पता होता है। आखिर चोली-दामन का साथ है। किसी एक घटना से कैसे छूट सकता है यह साथ।
यूं भी यूपी बहुत बड़ा है। कोई योगी आए या भोगी, कर्मयोगियों को फर्क नहीं पड़ता। ज्‍यादा से ज्‍यादा क्‍या? इधर या उधर।
वसीम बरेलवी का एक शेर, और बात खत्‍म।
जहां रहेगा, वहीं रोशनी लुटाएगा।
किसी चराग़ का अपना मकां नहीं होता।।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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