शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

तेल के खेल में वजीर तो क्‍या, प्‍यादे भी नहीं हैं मथुरा और आगरा के मनोज

मथुरा रिफाइनरी से हो रहे तेल के खेल में जिन हमराहों पर हाथ डालकर मथुरा पुलिस आगरा के मनोज गोयल को वजीर साबित करके उसका गिरेबां नापने की कोशिश कर रही है, वह दरअसल इस खेल का वजीर तो क्‍या, प्‍यादा तक नहीं है।
आगरा के मनोज गोयल का नाम आने से पहले तेल माफिया के रूप में कुख्‍यात मथुरा का मनोज अग्रवाल भी इस खेल के वजीरों का हलूकर भर है।
वजीर तो वाकई वजीर हैं, और उनके गिरेबां तक हाथ डालने की हिमाकत आगरा तथा मथुरा पुलिस का कोई अफसर नहीं कर सकता। ये वजीर हर सत्ता में काबिज रहते हैं, फिर चाहे वो सत्ता सपा की हो अथवा बसपा की और भाजपा की या किसी गठबंधन की।
इन दिनों मथुरा पुलिस थोड़ी-बहुत उछल-कूद करके अपनी जो पीठ थपथपा रही है, उसका एकमात्र कारण है चुनावों के चलते सूबे की सत्‍ता का प्रभावहीन हो जाना और केंद्र की सत्‍ता का उसमें उलझे होना, अन्‍यथा इतनी उछल-कूद के बाद तो हलूकर ही मथुरा तथा आगरा में तैनात पुलिस अफसरों को ताश के पत्तों की तरह फैंट देने का माद्दा रखते हैं।
चुनावों के बीच भी यदि आगरा और मथुरा की पुलिस इन हलूकरों के हाथ में हथकड़ी नहीं डाल सकी तो तय जानिए कि नई सरकार बनने के साथ ऐसे कई अफसर अपने लिए ठिकाने ढूंढते नजर आएंगे जो आज अखबारों के पहले पन्‍ने की सुर्खियां बने हुए हैं।
पहले भी कई जांबाज पुलिस अफसरों ने मथुरा रिफाइनरी से होने वाले तेल के खेल में दखल देने की कोशिश की है लेकिन आज तक न तो कोई पुलिस अफसर किसी वजीर तक पहुंच पाया और न किसी वजीर के प्‍यादे को अपना मोहरा बना पाया। हां, थोड़े-बहुत हाथ-पैर मारने के बाद वह खुद उन वजीरों का मोहरा जरूर बन गया और अंतत: उनके तथा उनके हलूकरों के इशारों पर नाचते देखा गया।
इसी क्रम में नाम कमाने की चाह रखने वाले कुछ पुलिस अफसर दाम भले ही कमा गए परंतु बदनाम होने से नहीं बच सके। आज उनमें से कोई डीआईजी बना बैठा है तो कोई आईजी और एडीजी। एक-दो पुलिस अफसर तो डीजी बनकर सेवामुक्‍त भी हो लिए और आज टीवी चैनल्‍स पर होने वाली डिबेट्स में खाकी पहनने वालों को नैतिकता व ईमानदारी का पाठ पढ़ाते देखे व सुने जा सकते हैं।
कड़वा सच यह है कि मथुरा में रिफाइनरी स्‍थापित होने के बाद से शुरू हुआ तेल का खेल कभी बंद हुआ ही नहीं। एक-दो मौकों पर इसमें शिथिलता अवश्‍य दिखाई दी किंतु वह भी चंद दिनों के लिए।
यही कारण है कि मथुरा तथा आगरा में इस खेल के चलते एक-दो नहीं दर्जनों मनोज गोयल पैदा हुए और दर्जनों मनोज अग्रवाल। तेल के खेल की जन्‍मकुंडली खंगाली जाए तो पता लग जाएगा कि आज उनमें से कोई नामचीन बिल्‍डर बन चुका है तो कोई मशहूर व्‍यवसाई। किसी के नाम से उद्योगपति का टैग चस्‍पा किया जा चुका है तो कोई जनप्रतिनिधि बनकर जनता की सेवा करने का दम भर रहा है।
इतना सब होने के बावजूद हजारों करोड़ रुपए सलाना कमाई वाले तेल के इस खेल का वजीर कोई नहीं बन पाया क्‍योंकि वजारत हमेशा सत्ता के सोपान से चिपके रहने वालों पर रही और वहां तक पहुंचने के माद्दा मथुरा-आगरा के चिरकुटों में था नहीं। ये लोग सत्‍ता के गलियारों तक सिमटकर रह गए और उन्‍हीं झरोखों से झांककर खुदमुख्‍त्‍यारी का दम भरते रहे।
मथुरा रिफाइनरी से होने वाले तेल के खेल में संलिप्‍त हमराह, हलूकर, मोहरे तथा प्‍यादे तक नहीं जानते कि उनकी गर्दन में बंधी डोर का छोर आखिर है किसके हाथ में। वो तो सिर्फ इतना जानते हैं कि उस डोर के इशारे पर ही उन्‍हें नाचना है और उसी के इशारे पर अपने अधीनस्‍थों को नचाना है।
पाइप लाइन में सेंध लगाकर पेट्रोलियम पदार्थों की चोरी करने और पाइप लाइन तक पहुंचने के लिए सुरंग बनाने का मथुरा में यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई मर्तबा ऐसे कारनामे लोग करते रहे हैं लेकिन कभी ऐसी प्रभावी कार्यवाही किसी स्‍तर से नहीं हुई जिसके बाद यह मान लिया जाए कि आगे वैसा हो पाना संभव नहीं होगा। हर बार सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का तमाशा किया गया जिसके परिणाम स्‍वरूप कोई उल्‍लेखनीय उपलब्‍धि हासिल नहीं हुई।
तेल शोधक कारखाना कहीं का भी हो, उसकी सुरक्षा एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी होती है। इस जिम्‍मेदारी को यूं तो केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) निभाती है किंतु कई दूसरे विभागों सहित सिविल पुलिस की भी इसमें अहम भूमिका होती है।
ऐसे में रिफाइनरी के अंदर और बाहर होने वाली किसी भी गैरकानूनी गतिविधि का इतने लंबे समय तक पता न लग सके कि कोई सुरंग बनाकर पाइप लाइन से तेल निकालने में सफल हो जाए, यह हो नहीं सकता। ये तभी संभव है कि अंदर से लेकर बाहर तक और ऊपर से लेकर नीचे तक के लोगों की इसमें संलिप्‍तता हो और वो लोग किसी भी हद तक गिरने के लिए तत्‍पर हों।
रिफाइनरी से ही जुड़े सूत्रों की मानें तो तेल के इस खेल में सबसे बड़ी भूमिका मार्केटिंग डिवीजन से ताल्‍लुक रखने वाले उन कर्मचारियों की रहती है जो सप्‍लाई का काम देखते हैं और जिन्‍हें रिफाइनरी की ओर आने व जाने वाली एक-एक पाइप लाइन की जानकारी है।
बताया जाता है कि इन रिफाइनरी कर्मियों के पास पाइप लाइन के पूरे जाल का नक्‍शा रहता है और वही बता सकते हैं कि कहां-कहां वॉल्‍व लगे हैं तथा कहां-कहां सुरक्षा में सेंध लगाना संभव है।
सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार यही वो लोग हैं जिनका प्रत्‍यक्ष में तो तेल के खेल से कोई सरोकार नहीं रहता लेकिन इनकी कमाई लाखों नहीं करोड़ों में होती है।
बताया जाता है कि ड्यूटी पर मौजूद रिफाइनरी कर्मियों के अलावा ऐसे रिफाइनरी कर्मियों की कोई कमी नहीं है जो अवकाश प्राप्‍त करने के बावजूद सिर्फ पाइप लाइन के नक्‍शों की बिना पर घर बैठे लाखों रुपए हासिल कर रहे हैं अन्‍यथा कितने आश्‍चर्य की बात है कि जिस पाइप लाइन की सुरक्षा पर बेहिसाब पैसा खर्च होता हो और जिसके अंदर चलने वाले प्रेशर तक से उसके लीकेज का पता लगाया जा सकता हो, उसमें छेद करके करोड़ों रुपए मूल्‍य का पेट्रोलियम पदार्थ चुरा लिया जाए फिर भी रिफाइनरी प्रशासन को तब भनक लगे जब कोई जनसामान्‍य अपनी जान हथेली पर रखकर अफसरों को बताने पहुंचे कि पाइप लाइन में सेंध लग चुकी है।
रिफाइनरी प्रशासन के दावों पर भरोसा करें तो समूची पाइप लाइन की एक ओर जहां नियमित चैकिंग होती है वहीं दूसरी ओर उसके ऊपर ऐसी प्‍लास्‍टिक कोटिंग भी की जाती है जिसे काटकर वॉल्‍व तक पहुंचना या पाइप लाइन में छेद कर पाना आसान नहीं होता। ऐसा करने की कोशिश के दौरान ही रिफाइनरी के अंदर बैठे अधिकारी व कर्मचारियों को आधुनिक उपकरणों के सहारे पता लग जाता है लेकिन यहां तो जैसे पूरे कुएं में ही भांग घुली हुई है लिहाजा आजतक मौके पर कभी कोई पकड़ा नहीं जा सका।
बहुत समय नहीं बीता जब रिफाइनरी के अंदर से सैकड़ों करोड़ रुपए मूल्‍य वाले पेट्रोलियम पदार्थों से भरे कंटेनर चोरी हो गए थे। तब भी इसी प्रकार शोर-शराबा हुआ और दावा किया गया कि इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने वाला कोई अपराधी बच नहीं पाएगा, चाहे वह रिफाइनरी के अंदर बैठा हो अथवा बाहर। समय के साथ यह मामला पहले ढीला पड़ा और अब ठंडे बस्‍ते के हवाले जाता नजर आ रहा है।
जिस समय कृष्‍ण की इस पावन जन्‍मभूमि पर रिफाइनरी की शक्‍ल में एक आधुनिक मंदिर की नींव रखी जा रही थी तब कहा गया था कि मथुरा तथा मथुरा वासियों के लिए यह मंदिर बड़ा वरदान साबित होगा किंतु आज स्‍थिति इसके ठीक उलट है।
मथुरा रिफाइनरी आज की तारीख में तेल का अवैध कारोबार करने वालों, भ्रष्‍ट अफसरों, सफेदपोश नेताओं तथा पुलिस-प्रशासन के लिए भले ही वरदान बनी हुई हो किंतु मथुरा-आगरा के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है।
रिफाइनरी के कारण वायु और जल प्रदूषण तो बढ़ा ही है, साथ ही खतरा भी बहुत बढ़ गया है। आतंकवादियों के लिए यह एक बड़ा टारगेट है और दुश्‍मन देशों की भी इस पर हमेशा पैनी नजर रहती है।
कहने को मथुरा रिफाइनरी अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्‍सा शहर के विकास और उसके बेहतर रख-रखाव के लिए निकालती है लेकिन यह हिस्‍सा कहां जाता है, इसका कभी पता नहीं लगा।
रिफाइनरी स्‍थापित हुए साढ़े तीन दशक होने को आए लेकिन कृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली आज तक अपनी गरिमा के अनुरूप विकास को तरस रही है। सड़क, बिजली, पानी, जलभराव जैसे सामान्‍य समस्‍याओं तक के समाधान में मथुरा रिफाइनरी ने कोई उल्‍लेखनीय भूमिका कभी अदा की हो, ऐसा याद नहीं आता। हां, इसके कारण जनसामान्‍य की जिंदगी हर वक्‍त खतरे में जरूर पड़ी रहती है क्‍योंकि पता नहीं कब कौन तेल को चोरी करके पैसे बनाने की जगह उसका दूसरा गलत इस्‍तेमाल करने की ठान ले।
मथुरा का हर जागरूक नागरिक जानता है कि रिफाइनरी की सीमा में पड़ने वाले ”बाद रेलवे स्‍टेशन” से लेकर तेल के भण्‍डारण तक में सेंध लगाकर चोरी करने का सिलसिला कभी थमा नहीं है। रेलवे स्‍टेशन पर जहां वैगनों से बाकयदा पाइप डालकर तेल खींच लिया जाता है वहीं गोदामों से कंटेनर के कंटेनर गायब कर दिए जाते हैं किंतु सब तमाशबीन बने रहते हैं। यही हाल रिफाइनरी के लिए बिछी पाइप लाइनों को क्षतिग्रस्‍त करने के मामले में है। कितनी बार पाइप लाइनों में सूराख करके करोड़ों रुपए की चपत लगाई गई है लेकिन सरकारी माल पर हाथ साफ करना अपना जन्‍मसिद्ध अधिकार मानने वाले अधिकारी और कर्मचारी, अपराधियों को संरक्षण देने से नहीं चूकते। उनके लिए वह दुधारु गाय बने हुए हैं।
मथुरा की ओर आने वाली कोई सड़क हो अथवा यहां से दूसरे जनपदों एवं राज्‍यों को जोड़ने वाली कोई सड़क क्‍यों न हो, हरेक पर अवैध तेल के गोदामों का जाल बिछा मिल जाएगा लेकिन क्‍या मजाल कि कोई इनकी ओर आंख उठाकर देख ले।
देखेगा भी कैसे, आखिर तेल की धार से निकलने वाले पैसों की चमक किसी की भी आंखें चुंधियाने को काफी हैं। तभी तो कहावत है कि तेल देख और तेल की धार देख।
कहते हैं कि मथुरा तीन लोक से न्‍यारी है। कुछ समय के अंदर गधों को घोड़ों की तरह सरपट दौड़ते और फर्श से अर्श तक का सफर काफी कम समय में पूरा करते देखकर तो लगता है कि वाकई मथुरा तीन लोक से न्‍यारी है।
यहां हमराह पकड़े जाते हैं, हलूकर भी पकड़े जा सकते हैं लेकिन वजीरों का बाल भी बांका नहीं होता। सत्ता की खातिर उनकी निष्‍ठाएं बेशक लचीली हो जाती हों लेकिन उनके गोरखधंधों में लचीलापन कभी नहीं आता।
इसलिए तेल का खेल जारी था, जारी है और बदस्‍तूर जारी रहेगा। फॉलोअर पहले भी पकड़े जाते रहे हैं और हमेशा पकड़े जाते रहेंगे जिससे पुलिस इसी तरह अपनी पीठ खुद थपथपाती रहे किंतु वजीरों की वजारत कायम रहेगी। चुनाव का सीजन बीतने दें और फिर तेल भी देखना और तेल व तेलियाओं की धार भी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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