रविवार, 9 अप्रैल 2017

सबसे बड़ी चुनौती: क्‍या पुलिस का DNA बदल पाएगी योगी सरकार ?

गोरखनाथ पीठ के महंत और उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के सामने अब यदि सबसे बड़ी चुनौती कोई है तो वह है राज्‍य पुलिस की उसके DNA से निर्मित छवि को बदलना। वह छवि जो स्‍वतंत्र भारत में भी ठीक वैसी ही है, जैसी स्‍वतंत्रता से 86 साल पहले उसके गठन के समय थी।
पुलिस की छवि को लेकर कोई ”अपवाद” भी नहीं है। पुलिस का चरित्र देशभर में कमोबेश एक जैसा है। फिर चाहे उत्तर प्रदेश हो या बिहार, राजस्‍थान हो या मध्‍यप्रदेश, उत्तराखंड हो या पश्‍चिम बंगाल, जम्‍मू-कश्‍मीर हो अथवा तमिलनाडु, दिल्‍ली हो या दूसरे केंद्र शासित प्रदेश।
कश्‍मीर से लेकर कन्‍या कुमारी तक पुलिस के समान आचार-व्‍यवहार एवं चाल-चरित्र का कारण जानने से पहले उसका डीएनए जानना जरूरी है।
दरअसल, 1861 में बने पुलिस अधिनियम के मुताबिक ही देश के अधिकांश राज्यों की पुलिस आज भी काम कर रही है। फिरंगियों ने ये अधिनियम आम जनता का दमन करने के लिए ही बनाया था। 1857 के विद्रोह की किसी भी सूरत में पुनरावृत्ति न हो इसलिए खाकी को ऐसे खौफ से सुसज्‍जित किया गया जिसके सामने कोई सिर उठाने की जुर्रत न कर पाए।
1947 में देश स्‍वतंत्र हो गया लेकिन पुलिस अधिनियम जस का तस बना रहा। यानि उसके डीएनए में कोई बदलाव नहीं हुआ। यह डीएनए ही पुलिस को आम पब्‍लिक का दमन करने के लिए प्रेरित करता था इसलिए वह आज तक वही कर रही है।
कुछ राज्यों ने नए अधिनियम बनाकर पुलिस को संचालित करने की कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हुए क्‍योंकि उनके नए अधिनयम, पुराने अधिनियम से बहुत अलग नहीं थे।
करीब 243286 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले और 2011 की जनगणना के मुताबिक लगभग 20 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश को न केवल देश, बल्कि पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा एकल पुलिस बल होने का गौरव प्राप्त है।
उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक कहने को तो 75 जिलों में 33 सशस्त्र बटालियनों, खुफिया, जांच, भ्रष्टाचार निरोधी, तकनीकी, प्रशिक्षण, अपराध विज्ञान इत्यादि से संबन्धित विशेषज्ञ प्रकोष्ठ/शाखाओं में फैले करीब 2.5 लाख कर्मियों की कमान संभालते हैं किंतु हकीकत यह है कि अनुशासन के लिए पहचाना जाने वाला पुलिस बल अब अधिकारियों के नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है।
जरूरत से ज्‍यादा राजनीतिक दखल, भ्रष्‍टाचार, जातिवाद और अनुशासनहीनता के चलते पुलिस किस कदर निरंकुश हो चुकी है इसका अंदाज वर्तमान डीजीपी जावीद अहमद के कथन से लगाया जा सकता है।
प्रदेश पुलिस के मुखिया ने कल ही यह स्‍वीकारा है कि पुलिस में काफी लोगों की अपराधियों से सांठगांठ है। पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश अर्थात मेरठ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, नोएडा, मथुरा, आगरा आदि में उन्‍होंने ऐसे पुलिसकर्मियों की भरमार बताई है जो अपराधियों से मिले हुए हैं। योगी सरकार की सख्‍ती को देखते हुए हालांकि उन्‍होंने ऐसे पुलिसजनों की सूची तैयार कर उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही करने की बात कही है किंतु यह काम इतना आसान नहीं है।
मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ द्वारा पिछले तीन दिनों से लगातार लगाए जा रहे जनता दरबार में सर्वाधिक शिकायतें पुलिस को लेकर ही आई हैं। ये शिकायतें बता रही हैं कि हत्‍या, अपहरण, लूट, बलात्‍कार, डकैती, ड्रग्‍स की तस्‍करी तथा जमीनों पर कब्‍जे जैसी संगीन आपराधिक वारदातों में पुलिस ने न केवल अपराधियों को संरक्षण दिया बल्‍कि आवश्‍यकता पड़ने पर सक्रिय भूमिका भी निभाई।
स्‍वतंत्रता के 69 सालों बाद पुलिस की छवि सुधरने की बजाय दिन-प्रतिदिन वीभत्‍स होते जाने का एक अन्‍य प्रमुख कारण उसकी वह ”थ्‍योरी” भी है जिसे कांटे से कांटा निकालने का नाम दिया जाता है।
पिछले ढाई दशक में पुलिस ने इस थ्‍योरी को जैसे आत्‍मसात कर लिया है अन्‍यथा इससे पूर्व पुलिस अपराधियों की धर-पकड़ के लिए मुखबिरों का बड़े पैमाने पर इस्‍तेमाल करती थी। मुखबिर भी इसके लिए पुलिस से आर्थिक व सामाजिक संरक्षण प्राप्‍त करते थे।
कांटे से कांटा निकालने की थ्‍योरी के तहत पुलिस ने मुखबिरों की जगह बदमाशों का इस्‍तेमाल करना शुरू कर दिया। एक बदमाश की पीठ पर हाथ रखकर वह या तो खुद उससे दूसरे बदमाश को मरवाने लगी या फिर उसके कंधे पर बंदूक रखकर चलाने लगी। पुलिस की इस थ्‍योरी पर चलने का परिणाम यह हुआ कि उसके कुख्‍यात अपराधियों से संबंध प्रगाढ़ होते गए। रही-सही कसर अपराधियों के राजनीतिककरण ने पूरी कर दी। सत्ता के साथ पुलिस की निष्‍ठा जुड़ गई और फिर यही निष्‍ठा सत्ता पर काबिज होने वाले जाति विशेष के लोगों से जुड़ने लगी। देखते-देखते पुलिस बल जातिगत खांचों में बंट गया। सत्ता बदलने के साथ पुलिसजनों की नेमप्‍लेट पर जाति को प्रमुखता से दर्शाने का जैसे रिवाज चल पड़ा।
सत्ता के गलियारों तक अदना से अदना पुलिसकर्मी की पहुंच ने उसके मन से अधिकारियों का भय दूर कर दिया और अधिकारी भी यह सोचने पर मजबूर हो गए कि पता नहीं कौन कब उनके ऊपर भारी पड़ जाए। उच्‍चाधिकारियों की बात तो दूर थाने तथा चौकियों पर भी तैनाती सीधे ऊपर से होने लगी और अधिकारी सिर्फ कागजी घोड़े बनकर रह गए।
पुलिस के पहले से दोषयुक्‍त डीएनए में अनुशासनहीनता की इस मिलावट ने हालात कुछ ऐसे बना दिए कि वह अपने सूत्र वाक्‍य ‘परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम’ से पूरी तरह भटक गई।
गीता जैसे धार्मिक ग्रंथ के एक श्‍लोक से लिए गए इस सूत्र वाक्‍य में निहित ”सज्जन व्यक्तियों की रक्षा और दुष्टों का नाश”, पुलिस के लिए सिर्फ थाने-चौकियों की दीवारों पर उकेरने भर के लिए रह गया।
सच तो यह है कि पुलिस का आचरण समय के साथ अपने सूत्र वाक्‍य से ठीक उलट दिखाई देने लगा लिहाजा सज्‍जन व्‍यक्‍ति पुलिस से जबर्दस्‍त खौफ खाने लगे और दुष्‍टजन उनके सहोदर बन बैठे।
पिछले कुछ समय से तो आलम ऐसा हो गया है कि पुलिस किसी सज्‍जन व्‍यक्‍ति को इज्‍ज़त देना जानती ही नहीं, यदि देनी भी पड़े तो पता नहीं रहता कि वह कितनी देर उसकी इज्‍ज़त अफजाई करेगी। किसी को भी अश्‍लील गालियां देना, चाहे जब मारपीट शुरू कर देना और विरोध करने पर बंद कर देने की धमकी देना तो एक तरह से पुलिस के चिर-परिचित हथकंडे बन गए हैं। पुलिस न किसी सीनियर सिटीजन को इज्‍ज़त बख्‍शना जानती है और न महिला व बच्‍चों को। कानून उसके लिए एक ऐसा हथियार बन गया है जिसे वह अपनी सुविधानुसार तोड़-मरोड़ कर इस्‍तेमाल करती है।
भारतीय जनता पार्टी ने अपनी चुनावी रैलियों में कानून का राज स्‍थापित करने की बात पुरजोर कही थी और कानून-व्‍यवस्‍था की बदहाली को ही एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था।
इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि योगी सरकार आमजन के साथ-साथ पुलिस से भी कानून-व्‍यवस्‍था का अनुपालन कराने में सफल हो गई तो आधी से अधिक समस्‍याओं का समाधान बिना किसी हस्‍तक्षेप के हो जाएगा।
अपराधों में पुलिस की संलिप्‍तता, अपराधियों से उसकी मिलीभगत और उससे उपजी अव्‍यवस्‍था यदि काबू में आ गई तो न जमीन से जुड़े अपराध होंगे और न लूट, डकैती, हत्‍या, बलात्‍कार आदि संगीन अपराधों के पीड़ित दर-दर की ठोकरें खाएंगे।
लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि क्‍या पुलिस के मूल चरित्र को बदलना इतना आसान है ?
यह सवाल ही वह चुनौती है जो स्‍वतंत्रता के बाद से अब तक हर सरकार के सामने खड़ी है और जिसे पूरा करने की कवायद में तमाम सरकारें चली गईं।
अब पहली बार एक गेरूआ वस्‍त्रधारी और महंत की उपाधि से विभूषित योगी को राजपाठ की कमान मिली है तो आमजन की उम्‍मीदों को भी पंख लगे हैं। वह पुलिस से साधुता की तो नहीं, लेकिन व्‍यावहारिकता की आस अवश्‍य लगा रही है। यदि योगी का राज आमजन की इस उम्‍मीद पर खरा उतरता है तो नि:संदेह उत्तर प्रदेश, उत्तम प्रदेश में तब्‍दील होता नजर आएगा और इसी प्रकार 2022 में भी योगी की जय-जयकार होगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

प्रशांत भूषण ने साबित किया, ”बुद्धिजीवी” भी मूर्ख हो सकते हैं

मूर्ख होने के लिए ”श्रमजीवी” होना आवश्‍यक नहीं है, ”बुद्धिजीवी” भी मूर्ख हो सकते हैं। सीधे शब्‍दों में कहें तो सुप्रीम कोर्ट के किसी प्रसिद्ध वकील का भी मूर्ख होना संभव है और जिसे जनसामान्‍य उसकी पेशेगत मजबूरी के मद्देनजर मूर्ख मानते रहे हों, वह किसी मुकाम पर जीनियस साबित हो सकता है। बात सिर्फ अवसर या संदर्भ उपस्‍थित होने की है।
मूर्खता या बुद्धिमत्ता का आंकलन किसी के पेशे अथवा उसकी पेशेगत प्रसिद्धि से नहीं करना चाहिए, यह बात सुप्रीम कोर्ट के मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने एकबार फिर साबित कर दी है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा गठित किए गए पुलिस के ”एंटी रोमियो स्‍क्‍वॉयड” पर टिप्पणी करने के चक्‍कर में प्रशांत भूषण ने योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण को ही न सिर्फ ”लेजेंड्री ईव टीजर” बता डाला बल्‍कि योगी सरकार को इस आशय की चुनौती भी दी कि यदि उनमें हिम्‍मत है तो वह इस स्‍क्‍वॉयड का नाम ”एंटी कृष्‍ण स्‍क्‍वॉयड” रख कर देखें।
सुप्रीम कोर्ट के न्‍यायाधीश रहे मार्कन्‍डेय काटजू ने कुछ समय पहले कहा था कि हिंदुस्‍तान की 90 प्रतिशत आबादी मूर्खों से भरी पड़ी है। काटजू की कही बात तब अतिशयोक्‍ति महसूस हुई थी, किंतु अब लगता है कि शायद वह सही कह रहे थे।
कोई अस्‍त्र-शस्‍त्र उठाए बिना महाभारत जैसे भीषण युद्ध के नायक की उपाधि प्राप्‍त करने वाले तथा 16 हजार रानियां रखकर भी योगीराज कहलाने वाले जिन भगवान श्रीकृष्‍ण के चरित्र पर आज उनके जन्‍म से पांच हजार साल बाद तक विश्‍व के तमाम देश रिसर्च कर रहे हों, अर्जुन को दिए गए जिनके उपदेशों का एक-एक श्‍लोक आज भी लोगों का जीवन दर्शन बना हुआ हो, उनके चरित्र की तुलना शेक्‍सपीयर के एक पात्र रोमियो से वही व्‍यक्‍ति कर सकता जिसका बुद्धि से दूर-दूर तक कभी कोई वास्‍ता ही न रहा हो।
ऐसा लगता है कि प्रशांत भूषण के पास जितनी भी बौद्धिक क्षमता थी, वह उन्‍होंने कानून की किताबें पढ़ने और धाराएं रटने में लगा दी। इसके इतर उन्‍होंने कभी कुछ जानने व समझने की कोशिश नहीं की।
प्रशांत भूषण ने यह तो साबित कर दिया कि भगवान श्रीकृष्‍ण को समझने की क्षमता उनमें दूर-दूर तक नहीं है, साथ ही उन्‍होंने यह भी जाहिर करा दिया कि वह व्‍यावहारिक ज्ञान से महरूम हैं।
व्‍यावहारिक ज्ञान का ताल्‍लुक रोजमर्रा में पड़ने वाले उन क्रिया-कलापों एवं आचार-विचारों से होता है जो किसी किताब में नहीं लिखे होते। जिन्‍हें हर व्‍यक्‍ति को वक्‍त और परिस्‍थितियों के हिसाब से समझना पड़ता है। व्‍यावहारिक ज्ञान यह भी बताता है कि कौन सी बात कब कहनी है और किस तरह कहनी है। गलत वक्‍त पर कही गई कथित सही बात भी अनादर अथवा बेइज्‍जती का कारण बन सकती है।
प्रशांत भूषण तो खुद इसके भुक्‍तभोगी भी हैं। कश्‍मीर पर अपने निजी विचार व्‍यक्‍त करके वह इसका अनुभव कर चुके हैं।
प्रशांत भूषण की भगवान श्रीकृष्‍ण पर की गई टिप्‍पणी को लेकर कांग्रेसी नेता जीशान हैदर ने उनके खिलाफ लखनऊ के हजरत गंज थाने में धारा 295/A और 153/A के अंतर्गत मामला दर्ज करा दिया है।
जीशान हैदर ने इस बावत पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में लिखा है कि भगवान श्रीकृष्ण पूरे विश्व में न सिर्फ करोड़ों हिंदुओं बल्कि समस्त मानव जाति के प्रेरणास्रोत हैं।
यहां गौर करने लायक है यह बात कि प्रशांत भूषण के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने वाले जीशान हैदर न केवल प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस से ताल्‍लुक रखते हैं बल्‍कि मुस्‍लिम समुदाय से हैं।
जाहिर है कि जिस व्‍यावहारिक ज्ञान की अपेक्षा बुद्धिजीवियों से की जाती है, उससे सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध अधिवक्‍ता प्रशांत भूषण का तो कोई संबंध नजर नहीं आया अलबत्‍ता एक नेता ने यह साबित अवश्‍य कर दिया कि कृष्‍ण का चरित्र जाति व धर्मों से भी परे तथा निर्विवाद रूप से अनुकरणीय है।
वैसे भी इतिहास ऐसे इस्‍लामिक धर्मावलंबियों, फनकारों तथा साहित्‍यकारों से भरा पड़ा है जिन्‍होंने श्रीकृष्‍ण को अपनी साधना का अंग बनाकर रखा। अनेक सूफी-संतों ने कृष्‍ण का अपने-अपने तरीके से गुणगान किया क्‍योंकि कृष्‍ण का चरित्र किसी धर्म अथवा जाति विशेष का प्रतिनिधित्‍व नहीं करता। कृष्‍ण ने तो अपनी हर लीला में, अपने प्रत्‍येक क्रिया-कलाप में मानव मात्र की भलाई का संदेश दिया है।
यही कारण है कि श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्‍ण द्वारा अर्जुन को माध्‍यम बनाकर दिए गए उपदेश सिर्फ युद्ध के लिए प्रेरणा न होकर एक ऐसा जीवन दर्शन थे जिनमें मानव मात्र का कल्‍याण निहित था।
संभवत: इसीलिए हजारों साल बाद भी ”गीता” एक सर्वमान्‍य ग्रंथ बनी हुई है और श्रीकृष्‍ण सर्वमान्‍य अवतार।
दुनिया के पता नहीं कितने देश गीता और कृष्‍ण को समझने की अनवरत चेष्‍टा जरूर कर रहे हैं किंतु किसी ने न तो कभी कृष्‍ण के चरित्र पर उंगली उठाई और न कभी उनकी कही हुई गीता पर।
”ओशो” के नाम से प्रसिद्ध विवादास्‍पद धर्मगुरू आचार्य रजनीश ने भी अपनी मशहूर किताब ”कृष्‍ण मेरी दृष्‍टि” में कृष्‍ण को आश्‍चर्यजनक व्‍यक्‍तित्‍व बताया है। एक ऐसा व्‍यक्‍तित्‍व जिसकी व्‍याख्‍या करना संभव नहीं है।
जो एक ही साथ योगी भी है और भोगी भी, नर्तक भी हो और योद्धा भी, ग्‍वाला भी है और राजा भी, उत्‍कट प्रेमी भी है और पूरी तरह निर्मोही भी।
महान इतने कि ”सेस, गनेस, दिनेस, महेस, सुरेसहु जाहि निरंतर ध्‍यावें…और लघु इतने कि ”ताहि अहीर की छोहरियां छछिया भरि छाछ पै नाच नचावें”।
प्रशांत भूषण ने कृष्‍ण के बारे में अपने विचार व्‍यक्‍त करके एक ओर जहां यह बता दिया कि किताबी जानकारी डिग्रियां तो दिला सकती है किंतु ज्ञान का माध्‍यम नहीं बन सकती वहीं दूसरी ओर यह भी जाहिर कर दिया कि अपराधियों के प्रति उनके मन में हमेशा ही सहानुभूति उमड़ती है, फिर चाहे वह फांसी की सजा प्राप्‍त कुख्‍यात आतंकवादी याकूब मेनन हो अथवा सड़क पर लड़कियों एवं महिलाओं के मान-सम्‍मान से खिलवाड़ करने वाले अपराधी तत्‍व।
प्रशांत भूषण की आतंकवादियों और अपराधियों के प्रति ऐसी सहानुभूति ही काफी है यह समझने के लिए कि उनकी मानसिकता और सोच क्‍या है तथा उनकी बुद्धि का किस हद तक दिवाला निकला हुआ है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

आखिर कितनी तर्कसंगत हैं योगी आदित्‍यनाथ को लेकर विपक्ष और मीडिया की आशंकाएं ?

महंत योगी आदित्‍यनाथ द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही न केवल विपक्ष बल्‍कि मीडिया भी तरह-तरह की आशंकाएं व्‍यक्‍त कर रहा है। विपक्ष जहां योगी आदित्‍यनाथ की ताजपोशी को आरएसएस का एजेंडा बता रहा है वहीं मीडिया कुछ ऐसा प्रचार-प्रसार कर रहा है जैसे कोई अनहोनी हो गई हो।
योगी आदित्‍यनाथ पर यूं तो बहुत पहले से मीडिया काफी कठोर रहा है और उनके हर बयान को सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिक चश्‍मे से देखता रहा है, लेकिन अब वह उन्‍हें कतई समय देने के लिए तैयार नहीं है।
योगी आदित्‍यनाथ ने उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ भले ही कल दोपहर सवा दो बजे ली हो किंतु मीडिया ने उन्‍हें 18 मार्च की शाम तभी से टारगेट करना शुरू कर दिया था जब मुख्‍यमंत्री पद के लिए उनके नाम की घोषणा की गई।
जहां तक सवाल विपक्ष द्वारा योगी को उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्‍य के मुख्‍यमंत्री बतौर न पचा पाने का है, तो यह बात समझ में आती है क्‍योंकि पहले तो भाजपा की अप्रत्‍याशित जीत ने विपक्ष को कहीं का नहीं छोड़ा और फिर योगी की ताजपोशी ने उनके जले पर नमक छिड़कने का काम किया परंतु यदि बात करें मीडिया की तो ऐसा लगता है कि जैसे मीडिया भी एक प्रतिपक्ष बनकर रह गया है। उसने भाजपा और मोदी के अंधे विरोध में अपने सोचने व समझने की शक्‍ति खो दी है।
तभी तो राजनीति के ककहरे की जो छोटी सी सीख योगी आदित्‍यनाथ के क्षेत्र से ताल्‍लुक रखने वाले मुस्‍लिम संप्रदाय के लोगों को है, उसे भी मीडिया समझने को तैयार नहीं है।
योगी आदित्‍यनाथ के इलाके से संबंध रखने वाले मुस्‍लिमों का साफ-साफ कहना है कि योगी अपने बयानों में जो कुछ अब तक कहते रहे हैं, वो वोट बैंक की और चुनावी राजनीति का हिस्‍सा है न कि वह उनके व्‍यक्‍तित्‍व का परिचय देता है।
इन मुस्‍लिमों ने हर मीडिया पर्सन से यही कहा है कि योगी के दरबार में बिना किसी भेदभाव के लोगों की समस्‍याओं का समाधान किया जाता रहा है और उनके पास समस्‍या लेकर जाने वालों में मुस्‍लिम समुदाय के लोगों की बड़ी संख्‍या रहती है।
यही नहीं, योगी के स्‍थाई निवास गोरखनाथ मंदिर प्रांगण में जो दुकानें आवंटित हैं, उनमें से 60 प्रतिशत दुकानें मुस्‍लिमों को दी हुई हैं। गोरखनाथ मंदिर भी मुस्‍लिम बाहुल्‍य क्षेत्र में स्‍थित है किंतु योगी के आचार-व्‍यवहार को लेकर कभी उस क्षेत्र के मुस्‍लिमों को कोई आपत्ति नहीं हुई। योगी का लगातार पांच बार सांसद निर्वाचित होना और हर निर्वाचन में जीत का अंतर बढ़ते जाना इस बात की पुष्‍टि करता है कि योगी को लेकर विपक्ष या मीडिया चाहे जितना भ्रमित हो किंतु उनके अपने क्षेत्र में किसी को कोई भ्रम नहीं है।
गोरखनाथ मंदिर पर हर साल मकर संक्रांति के दौरान आयोजित होने वाले ‘खिचड़ी मेले’ में लाखों लोग आते हैं ओर पूरे एक महीने तक रहते भी हैं.
इस मेले में हर जाति, धर्म और संप्रदाय के लोगों की भारी तादाद में उपस्‍थिति मठ की कट्टर हिंदूवादी छवि को तोड़ती है जबकि मुस्लिम शासन काल में हिन्दुओं और बौद्धों के अन्य सांस्कृतिक केन्द्रों की भांति इस पीठ को भी कई बार भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
इसकी व्यापक प्रसिद्धि के कारण विक्रमी चौदहवीं सदी में भारत के मुस्लिम सम्राट अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासन काल में इस मठ को नष्ट किया और साधक व योगी बलपूर्वक मठ से निष्कासित कर दिए।
सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मुग़ल शासक औरंगजेब ने इसे दो बार नष्ट किया। क़रीब 52 एकड़ के सुविस्तृत क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। वर्तमान में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यन्त कीमती आध्यात्मिक सम्पत्ति है। प्रतिदिन मंदिर में स्‍थानीय लोगों के अतिरिक्‍त भारत के सुदूर प्रांतों से भी असंख्य लोगों की भीड़ पर्यटकों व यात्रियों के रूप में आती है।
अब यदि बात करें इन विधानसभा चुनावों में भाजपा द्वारा वोटों की खातिर ध्रुवीकरण की राजनीति पर, तो कौन सा ऐसा राजनीतिक दल है जो ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं करता। कांग्रेस ने देश और विभिन्‍न प्रदेशों में इतने लंबे समय तक शासन वोटों का ध्रुवीकरण करके ही किया। क्षेत्रीय पार्टियां भी यही करती रही हैं।
उत्तर प्रदेश की दोनों प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों बसपा व सपा की पूरी राजनीति वोटों के ध्रुवीकरण पर टिकी रही है। बसपा ने तो इन चुनावों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खुली अवहेलना करके मुस्‍लिमों के ध्रुवीकरण की पूरी कोशिश की और बड़ी मात्रा में मुस्‍लिम प्रत्‍याशियों को खड़ा किया। मायावती ने अपने चुनावी मंचों से बेझिझक मुस्‍लिमों का आह्वान किया और दलितों के एक वर्ग को भी डराया।
उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, पश्‍चिम बंगाल, दिल्‍ली, पंजाब आदि कौन सा ऐसा राज्‍य है जहां के शासक ध्रुवीकरण की राजनीति न करते रहे हों।
इस सब के इतर देखा जाए तो भाजपा पहली ऐसी पार्टी है जिसने तीन तलाक की मुखालफत और नोटबंदी व समान नागरिक संहिता की वकालत करने का दुस्‍साहस दिखाया। ये बात अलग है कि विपक्ष के भारी दुष्‍प्रचार के बाद भी यह सारे मुद्दे भाजपा के लिए मुफीद साबित हुए और अब कहा जा रहा है कि मुस्‍लिम महिलाओं ने भी इन चुनावों में भाजपा के लिए मतदान किया है।
उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्‍य है जिसके इर्द-गिर्द सारे देश की राजनीति घूमती है। ऐसे में भाजपा ने योगी आदित्‍यनाथ को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपने से पहले राजनीति के सारे गुणा-भाग जरूर लगाए होंगे क्‍योंकि भाजपा नहीं चाहेगी कि वर्षों बाद समाप्‍त हुआ उसका वनवास, उपहास बनकर रह जाए।
योगी आदित्‍यनाथ जो कल तक मुंह से आग उगलने के लिए पहचाने जाते थे, उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री का पद संभालने के साथ सबसे पहले अपनी कैबिनेट को हिदायत दी है कि मीडिया को वह नहीं, इसके लिए अधिकृत मंत्री ब्रीफ करेंगे। योगी ने बाकायदा दो मंत्रियों श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थनाथ सिंह को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी है। श्रीकांत शर्मा व सिद्धार्थनाथ सिंह पहले से राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता की जिम्‍मेदारी संभालते चले आ रहे हैं।
योगी का अपनी कैबीनेट को दिया गया यह संदेश स्‍पष्‍ट करता है कि वह पद की गरिमा को बखूबी समझ रहे हैं और उसकी जिम्‍मेदारी का अहसास भी कर रहे हैं।
संभवत: इसीलिए उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेने से पूर्व ही प्रदेश पुलिस के मुखिया को इस आशय का आदेश दे दिया था कि जीत के जश्‍न में निरंकुश होने वालों से सख्‍ती के साथ निपटें। कानून-व्‍यवस्‍था से खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नहीं मिलनी चाहिए।
योगी ने यह आदेश कुछ स्‍थानों से आ रहीं उन खबरों के आधार पर दिया था जहां जीत के जश्‍न में वर्ग विशेष के खिलाफ नारेबाजी की बात बताई गई थी।
योगी का इतनी जल्‍दी एक्‍शन में आना यह बताता है कि उन्‍हें अपनी प्रचारित की गई कथित कट्टरवादी छवि का भी अच्‍छी तरह इल्‍म है और वह इसके लिए विपक्ष और मीडिया को कोई मौका नहीं देना चाहते।
सबका साथ, सबका विकास पर चलते हुए भाजपा के संकल्‍प पत्र पर पूरी तरह अमल करने की बात उन्‍होंने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में भी कही।
इन सब बातों पर गौर करें तो साफ लगता है कि जिस तरह केंद्र में नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व वाली सरकार का गठन होने के साथ विपक्ष ने मुस्‍लिमों के अंदर भय का वातावरण उत्पन्‍न करने की कोशिश की थी, उसी तरह की कोशिश वह अब योगी की ताजपोशी के बाद कर रहा है क्‍योंकि उसके तो नीचे से लगभग पूरी जमीन ही खिसक चुकी है। प्रमुख विपक्षी पार्टियां जहां से चली थीं, आज फिर वह वहीं आकर खड़ी हो गई हैं। योगी यदि पार्टी की उम्‍मीदों पर खरे साबित हुए और जनभावनाओं के अनुरूप शासन की कमान संभालने में सफल रहे तो सपा व बसपा जैसी पार्टियों का वजूद तक खतरे में पढ़ जाएगा। कांग्रेस की दुर्गति का अंदाज लगाने को तो इतना ही काफी है कि उसे अपना दल से भी कम सीटें मिली हैं, और वो भी तब जबकि उसने बड़े ढोल-नगाड़े पीटकर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था। यह साथ यूपी की जनता को कितना पसंद आया, इसका अब जिक्र करने की भी जरूरत नहीं रह गई।
बेहतर होगा कि विपक्ष और मीडिया अब योगी-राज को बेवजह शंका की दृष्‍टि से देखने की बजाय उनके काम को देखे और नकारात्‍मक प्रचार-प्रसार व बयानबाजी की प्रवृत्ति से बाहर निकल कर धरातल पर होने वाले कामों की समीक्षा करे ताकि एक स्‍वस्‍थ परंपरा कायम हो सके और उत्तर प्रदेश की जनता भी उस परंपरा का लाभ उठाकर भ्रम की स्‍थिति से बच सके।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

पौने दो करोड़ के भ्रष्‍टाचार का मामला: क्‍या अब अपनी चेयरमैन के खिलाफ कार्यवाही करेगी भाजपा सरकार?

मथुरा। उत्तर प्रदेश में भाजपा को भारी बहुमत मिलने के साथ ही एक ओर जहां मुख्‍यमंत्री के पद को लेकर कयासों का दौर जारी है वहीं दूसरी ओर यह प्रश्‍न भी उठने लगा है कि क्‍या प्रदेश सरकार अब मनीषा गुप्‍ता जैसे अपनी ही पार्टी के उन जनप्रतिनिधियों पर कार्यवाही करेगी जिनके ऊपर भ्रष्‍टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं।
गौरतलब है कि मथुरा नगर पालिका पर काबिज भाजपा की चेयरमैन मनीषा गुप्‍ता सहित अधिशासी अधिकारी के. पी. सिंह, अवर अभियंता (जलकल) के. आर. सिंह, सहायक अभियंता उदयराज, लेखाकार विकास गर्ग तथा लिपिक टुकेश शर्मा पर एसटीपी व एसपीएस के संचालन हेतु उठाए गए ठेके में पौने दो करोड़ रुपए का घपला किए जाने का आरोप लगा है।
घपले की जांच करने वाले तीन अधिकारियों तत्‍कालीन अपर जिलाधिकारी कानून-व्‍यवस्‍था/प्रभारी अधिकारी स्‍थानीय निकाय एस. के. शर्मा, तत्‍कालीन जिलाधिकारी राजेश कुमार तथा तत्‍कालीन कमिश्‍नर आगरा मंडल प्रदीप भटनागर द्वारा पालिका अध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता सहित घोटाले में लिप्‍त पाए गए सभी अधिकारी व कर्मचारियों के खिलाफ शासन से कार्यवाही की संस्‍तुति पहले ही की जा चुकी है।
अब यह मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल में चल रहा है और वर्तमान जिलाधिकारी मनीष बंसल भी सभी आरोपियों के बारे में कार्यवाही के लिए शासन को रिपोर्ट भेज चुके हैं। हालांकि पालिका प्रशासन ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल के अधिकार को चुनौती देते हुए कहा है कि उसे भ्रष्‍टाचार संबंधी मामला सुनने का अधिकार ही नहीं है किंतु उसकी चुनौती इसलिए कोई मायने नहीं रखती क्‍योंकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल ने इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के आदेश पर ही इसकी सुनवाई शुरू की थी।
उल्‍लेखनीय है कि एसटीपी व एसपीएस का संचालन सीधे-सीधे यमुना प्रदूषण से जुड़ा है और यमुना को प्रदूषणमुक्‍त रखने के लिए ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 1998 में इसकी व्‍यवस्‍था के आदेश दिए थे इसलिए उसके संचालन में हुए भ्रष्‍टाचार की सुनवाई पर एनजीटी को चुनौती कैसे दी जा सकती है।
दरअसल, नगरपालिका प्रशासन सिर्फ और सिर्फ समय बर्बाद करना चाहता है क्‍योंकि इसी वर्ष जुलाई में वर्तमान पालिका प्रशासन का कार्यकाल समाप्‍त हो रहा है। यह भी संभव है यह कार्यकाल पूरा होने से पहले मथुरा नगर पालिका को महानगरपालिका घोषित कर दिया जाए क्‍योंकि अखिलेश सरकार में ही इसके लिए परिसीमन आदि का कार्य पूरा हो चुका है। यदि ऐसा होता है तो समय से पहले ही मनीषा गुप्‍ता को पालिकाध्‍यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है।
वैसे तो इस मामले की एनजीटी में सुनवाई इसी महीने होनी है किंतु शासन चाहे तो वर्तमान जिलाधिकारी तथा पूर्व के जांच अधिकारियों द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 48 के तहत पालिकाध्‍यक्ष को सीधे बर्खास्‍त कर सकता है और अन्‍य आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है।
नई सरकार द्वारा भ्रष्‍टाचार के इस मामले पर संज्ञान लिया जाना इसलिए आवश्‍यक है कि प्रथम तो भाजपा को इतना जबर्दस्‍त बहुमत भ्रष्‍टाचार व कुशासन के खिलाफ ही मिला है, और दूसरे यमुना प्रदूषण के मामले में हो रहा भ्रष्‍टाचार करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं व आस्‍था से जुड़ा है लिहाजा वह उन्‍हें आहत कर रहा है।
2014 के लोकसभा चुनावों में और अब 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने यमुना को प्रदूषण मुक्‍त करने का संकल्‍प दोहराया था। मथुरा की शहरी सीट पर चुनाव लड़े भाजपा प्रत्‍याशी श्रीकांत शर्मा ने भी यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने का वचन जनता को दिया था।
चूंकि श्रीकांत शर्मा भाजपा के राष्‍ट्रीय सचिव व प्रवक्‍ता भी हैं इसलिए उनके वचन को मथुरा की जनता ने गंभीरता से लेते हुए उन्‍हें एक लाख से भी अधिक मतों से जितवाकर विधानसभा में प्रतिनिधित्‍व के लिए भेजा है।
यमुना तभी प्रदूषण मुक्‍त होगी जब उसे प्रदूषित करने वाले कारणों को बंद किया जाएगा और उन तत्‍वों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाएगी जिन्‍होंने यमुना को प्रदूषण मुक्‍त रखने की आड़ में करोड़ों रुपए हड़प लिए।
यमुना के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण मथुरा शहर में कृष्‍ण जन्‍मस्‍थान के निकट दरेसी रोड पर चल रहा वह अवैध कट्टीघर भी है जिसे बंद करने का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सन् 1998 में दिया था और जिसमें एक भी पशु का कटान पालिका प्रशासन की सहमति अथवा लापरवाही के बिना नहीं हो सकता।
यदि यह कहा जाए कि यमुना को प्रदूषित कराने में एक बड़ी भूमिका नगर पालिका प्रशासन की ही है, तो कुछ गलत नहीं होगा क्‍योंकि न तो वह पशुओं के अवैध कटान पर पाबंदी लगा पाने में सफल हुआ और न नाले-नालियों से सीधे यमुना में गिर रही गंदगी को साफ करने के लिए एसटीपी व एसपीएस के संचालन में धांधली को रोक पाया। उल्‍टे इसके लिए दिए गए ठेके की अनियमितताओं में संलिप्‍त पाया गया।
आश्‍चर्य की बात इस बीच यह रही कि पूरे लगभग पांच साल के अपने कार्यकाल में पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता ने ऐसी अनियमितताओं पर लगाम तक लगाना जरूरी नहीं समझा नतीजतन आज भी वही ठेकेदार एसटीपी व एसपीएस का संचालन कर रहा है जिसे ठेका देने में करीब पौने दो करोड़ रुपए के घपले का आरोप पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता और पालिका के दो अभियंताओं सहित पांच लोगों पर भ्रष्‍टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। इस पूरे प्रकरण का सबसे अहम पहलू यह है कि मनीषा गुप्‍ता पर भ्रष्‍टाचार के आरोपों की जांच के लिए शासन-प्रशासन से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट तथा एनजीटी में गुहार लगाने वाले भी भाजपा के ही कर्मठ कार्यकर्ता व पदाधिकारी हैं इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उनके ऊपर लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित व पूर्वाग्रह से ग्रसित होंगे।
निश्‍चित ही यह और ऐसे अन्‍य भ्रष्‍टाचार के मामले पर तत्‍काल प्रभावी कार्यवाही करने का नैतिक दायित्‍व भारतीय जनता पार्टी की नई सरकार पर होगा। मथुरा का मामला इसलिए और महत्‍वपूर्ण हो जाता है कि यह मामला उस यमुना प्रदूषण से जुड़ा है जिसके लिए मोदी सरकार ने नमामि गंगे परियोजना शुरू की है और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को इसके सफलता पूर्वक क्रियान्‍वयन का भरोसा दिलाया है।
अब तक केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती यह कहती रही हैं कि नमामि गंगे के काम में अपेक्षा के अनुरूप तेजी न आ पाने का प्रमुख कारण अखिलेश यादव के नेतृत्‍व वाली समाजवादी सरकार द्वारा एनओसी न दिया जाना है लेकिन अब इस तरह की दलील सुनना जनता शायद ही पसंद करे।
उमा भारती ने कुछ समय पहले ही मथुरा की अपनी यात्रा के दौरान स्‍थानीय लोगों से कहा था कि शीघ्र ही यमुना की सतह से गंदगी साफ करने वाली ट्रैश स्‍कीमर मशीन स्‍थाई रूप से यहां भेज दी जाएगी। यह मशीन गत फरवरी में यहां आनी थी किंतु आज तक नहीं पहुंची। इसके लिए भी उमा भारती ने अखिलेश सरकार से एनओसी प्राप्‍त न होना ही कारण बताया था लेकिन अब ऐसी किसी समस्‍या के सामने खड़े होने की सभी आशंकाएं समाप्‍त हो चुकी हैं लिहाजा काम में तेजी लानी होगी।
बस देखना यह है कि यमुना प्रदूषण जैसे संवेदनशील एवं गंभीर मुद्दे पर भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त पाई गई अपनी ही पार्टी की पालिकाध्‍यक्ष के खिलाफ भजपा सरकार कार्यवाही करती है या नहीं और यमुना को प्रदूषण मुक्‍त रखने का अपना वचन निभा पाती है या नहीं।
यदि इन दोनों बातों पर पूरी निष्‍ठा के साथ अमल नहीं किया गया तो तय जानिए कि जनता जनार्दन की लाठी में भी आवाज नहीं होती।
-लीजेंड न्‍यूज़
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