शनिवार, 13 मई 2017

So Sorry: अखिलेश में गुजरात के गधों से भी कम दिमाग है, वह बेवकूफ हैं…

उत्तर प्रदेश के पदच्‍युत मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव में गुजरात के गधों जितना भी दिमाग नहीं हैं, यह उन्‍होंने कल के अपने बयान से खुद-ब-खुद सिद्ध कर दिया।
यह कहना है गुजरात के शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह का। लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया इसी साल जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे।
नाराज मुनीम सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि एक आदमी जो अपने पिता का नहीं हो सका, वह देश का क्या होगा?
उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में उन्होंने हिंदू और मुस्लिमों को बांटा। ऐसे ही ठाकुरों, ब्राह्मणों और राजपूतों को बांटा। इसी बांटने वाली राजनीति के कारण उन्हें सत्ता से बेदखल किया गया। उन्होंने पूर्व में गुजरात के गधों को लेकर बात की थी और आज साबित कर दिया है कि उनके पास एक गधे के बराबर भी दिमाग नहीं है।’
एयरफोर्स से बतौर नॉन कमिशंड ऑफिसर के तौर पर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई कहते हैं, ‘अखिलेश यादव ने जो कहा वह बेवकूफी की हद है। शहीद सिर्फ शहीद होता है भले ही वह यूपी, बिहार या कहीं और का हो। यह बहुत घृणित बयान है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, चाहे यह कोई आम आदमी कहे या फिर कोई पूर्व सीएम।’
उल्‍लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कल कहा था कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत और देश के दूसरे हिस्से के जवानों ने शहादत दी है। कोई मुझे बता सकता है कि गुजरात का कोई जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हुआ हो?
अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा था कि गुजरात के किसी जवान ने आज तक शहादत नहीं दी है।
गुजरात के शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह और एयरफोर्स से बतौर नॉन कमिशंड ऑफिसर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई ने अखिलेश यादव के इसी बयान पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है।
उन्‍होंने पूछा है कि अखिलेश यादव क्या आप जानते हैं?
1- विजयवाड़ा के नजदीक साबरकांठा जिले के मात्र 6500 की जनसंख्‍या वाले कोडियावाड़ा में 1,200 से अधिक लोग भारतीय सेना के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 700 परिवार वाले इस गांव में हर परिवार से एक से अधिक सदस्य सेना में है।
2- गुजरात में मार्च 31 तक 26,656 पूर्व सर्विसमैन थे और 3,517 शहीदों की विधवाएं। इनमें से 6,223 तो सिर्फ अहमदाबाद से ही थे। गुजरात के 39 बेटों को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गुजरात के 20 बेटों ने आंतकियों से लोहा लेते हुए अपनी जान गंवाई और 24 बेटों ने देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए प्राणों का बलिदान किया।
1999 के करगिल युद्ध में शहीद हुए मुकेश राठौड़ की पत्नी राजश्री का कहना है, ‘अखिलेश का बयान हमारे लिए दिल तोड़ने वाला है।
कहते हैं कि कमान से निकला हुआ तीर और जुबान से निकले हुए शब्‍द, वापस नहीं लिए जा सकते। अखिलेश यादव ने जो बोल दिया सो बोल दिया।
बहरहाल, अखिलेश के इस बयान ने एक रहस्‍य पर से पर्दा जरूर उठा दिया।
वह रहस्‍य जिसे अखिलेश ने ही यूपी के चुनावों में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से दोस्‍ती करके गठबंधन के रूप में क्रिएट किया था।
अब शायद लोगों को समझ में आ गया होगा कि अखिलेश और राहुल की दोस्‍ती का आधार पार्टी के धरातल पर न होकर बुद्धि के धरातल पर था।
यह बात अलग है कि अखिलेश की बुद्धि का पता उनके चुनाव हारने के बाद लगा है और राहुल की बुद्धि का आंकलन कांग्रेस के साथ-साथ देश ने भी बहुत पहले ही कर लिया था। यह भी एक इत्‍तिफाक है कि दोनों युवराज अपनी अंतिम शिक्षा विदेश से प्राप्‍त करके आए थे।
यूपी को ”इनका साथ” कितना पसंद आया, यह बताने की तो अब कोई जरूरत रह नहीं गई अलबत्‍ता यह बताना शायद आवश्‍यक हो गया है कि पढ़ाई देश में हो अथवा विदेश में, दिमाग के अंदर उतनी ही समा पाती है जितना दिमाग आपके पास होता है। बाकी तो सब सिर के ऊपर से निकल जाती है।
वैसे भी पढ़ाई और शिक्षा दो अलग-अलग चीजें हैं। अखिलेश यादव पढ़े-लिखे हो सकते हैं किंतु शिक्षित नजर नहीं आते। शिक्षा प्राप्‍त की होती तो गुजरात से शहीद हुए जवानों की बावत कुछ तो पता होता।
उन्‍होंने तो सीधे-सीधे न सिर्फ सवाल दाग दिया बल्‍कि जवाब भी दे दिया।
पहले कहा, कोई मुझे बता सकता है कि गुजरात का कोई जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हुआ हो?
फिर बोले, गुजरात के किसी जवान ने आज तक शहादत नहीं दी है।
मुझे तो लगता है कि वह भारत के भौगोलिक ज्ञान से भी शून्‍य हैं। उन्‍हें शायद ही पता हो कि भारत कितना बड़ा है और उसकी सीमाएं कहां-कहां तक फैली हुई हैं।
ऐसा भी संभव है कि यूपी के मुख्‍यमंत्री पद पर रहते हुए उन्‍हें यूपी में ही संपूर्ण भारत के दर्शन होते रहे हों और इसीलिए वह कभी प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी को चुनौती देते थे तो कभी गुजरात के गधों का विज्ञापन देखकर भड़क जाते थे।
रही-सही कसर राहुल गांधी से उस दोस्‍ती ने पूरी कर दी जिसकी खातिर वह अब भी गुनगुना रहे हैं कि ”ये दोस्‍ती हम नहीं तोड़ेंगे”।
गोस्‍वामी तुलसीदास सैकड़ों साल पहले कह गए थे कि ”जाकों प्रभु दारुण दु:ख दैहीं, ताकी मति पहले हर लैहीं”।
अखिलेश के बयानों को सुनकर अब ऐसा लगने लगा है कि वह एक ओर जहां समाजवादी पार्टी को इतिहास बना देने वाले आखिरी युवराज साबित होंगे वहीं दूसरी ओर समाजवादी कुनबे के लिए अंतिम मुख्‍यमंत्री।
बताते हैं कि उनके बचपन का नाम टीपू है जिसे लेकर वह हमेशा खुद के टीपू सुल्‍तान होने का मुगालता पालते रहे। टीपू तो सामान्‍य बोलचाल की भाषा में टीपने वाले यानि नकल करने वाले को भी कहते हैं।
अक्‍ल के इस्‍तेमाल में अखिलेश, राहुल गांधी की नकल कर रहे हैं या अपनी बुआ मायावती की, यह तो वही बता सकते हैं लेकिन इतना तो कोई भी बता सकता है कि उनके पास अक्‍ल बहुत इफराती नहीं है।
ऐसे में शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह द्वारा अखिलेश को गुजरात के गधों से भी कम अक्‍ल बताना और एयरफोर्स से ऑफिसर के तौर पर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई द्वारा बेवकूफ की संज्ञा देना, कोई अतिशयोक्‍ति नजर नहीं आती।
सच तो यह है कि चाहे किसी शहीद का पिता हो अथवा चाहे कोई सेवानिवृत आर्मी अफसर, अखिलेश जैसे बयानवीरों को इससे ज्‍यादा शलीन शब्‍दों में जवाब दे नहीं दे सकता क्‍योंकि इनके लिए इतना तो बनता है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

12 घंटे अंधेरे में डूबा रहा ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा का चुनाव क्षेत्र, पंडों पर CM के कमेंट को लेकर भी श्रीकांत शर्मा की सफाई नाकाफी

https://legendnews.in/constituency-of-energy-minister-shrikant-sharma-dipped-in-darkness-for-12-hours/
मात्र एक तार टूटने पर उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और सरकार के प्रवक्‍ता श्रीकांत शर्मा के चुनाव क्षेत्र का सर्वाघिक पॉश इलाका पूरे 12 घंटे अंधेरे में डूबा रहा जबकि प्रदेश सरकार शहरी क्षेत्र को 24 घंटे, तहसील मुख्‍यालय को 20 घंटे और ग्रामीण क्षेत्रों को 16 घंटे बिजली देने का दावा कर रही है।
यह हाल तो तब है जबकि मथुरा के ही कस्‍बा गोवर्धन का ‘गांठौली’, ऊर्जा मंत्री का पैतृक गांव है और मथुरा जनपद विश्‍व पटल पर महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली के रूप में न सिर्फ विशिष्‍ट स्‍थान रखता है बल्‍कि उस ताज ट्रिपेजियम जोन का भी हिस्‍सा है जहां निर्बाध विद्युत आपूर्ति के आदेश सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिए हुए हैं।
अब इसे दिया तले अंधेरे की संज्ञा दें अथवा दुष्यंत कुमार के इस शेर से जोड़ें कि-
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये।
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये।।
कल रात करीब साढ़े दस बजे मामूली सी हवा क्‍या चली, उसने प्रदेश सरकार के दावे की भी हवा निकाल कर रख दी। वृंदावन फीडर से पोषित शहर के सर्वाधिक पॉश इलाकों में शुमार कॉलोनियां राधापुरम्, राधापुरम् एस्‍टेट और राधापुरम् एस्‍टेट ऐक्‍सटेंशन सहित कृष्‍णा नगर आदि का समूचा क्षेत्र अंधेरे में पूरी तरह डूब गया। 42 डिग्री तक तापमान वाली भीषण गर्मी के इस दौर में पहले तो लोग सोचते रहे कि हवा कम होते ही रोज की तरह बिजली आ जाएगी किंतु बिजली ने पूरी रात इंतजार में कटवा दी।
सुबह 7 बजे और फिर 8 बजे दो बार 15-15 मिनट के लिए बिजली चमकी लेकिन फिर गई तो साढ़े दस बजे यानि पूरे 12 घंटे बाद ही सामान्‍य हो सकी।
इस बारे में पूछे जाने पर विद्युत विभाग के शहरी एसई प्रदीप मित्तल ने बताया कि रात को हवा चलने पर गोकुल रेस्‍टोरेंट के पास ओवरहेड लाइन का तार टूट गया था, जिसे रात में हमारे कर्मचारी तलाश नहीं पाए। सुबह तार जोड़ दिया गया लेकिन फिर एकसाथ लोड बढ़ जाने के कारण सप्‍लाई बाधित करनी पड़ी।
गौरतलब है कि इसी क्षेत्र में स्‍थित राधा वैली कॉलोनी में ऊर्जा मंत्री ने अपने लिए किराए का एक आवास ले रखा है परंतु वहां की बिजली हवा चलने के एक घंटे बाद ही सुचारू हो गई। अधिकारियों की मानें तो ऊर्जा मंत्री की कॉलोनी को सप्‍लाई ”गौर केंद्र” नामक औद्योगिक क्षेत्र से मिलती है इसलिए वहां कोई समस्‍या खड़ी नहीं हुई।
वैसे ऊर्जा मंत्री ने राधा वैली में अपना अस्‍थाई निवास मथुरा की शहरी सीट से चुनाव लड़ने के दौरान बनाया था क्‍योंकि उन पर बाहरी होने का ठप्‍पा लगाया जा रहा था।
ऐसा इसलिए क्‍योंकि ऊर्जा मंत्री गोवर्धन के गांव गांठौली को करीब दो दशक पहले राम-राम कहकर चले गए और तभी अचानक सामने आए जब उनका नाम मथुरा की शहरी सीट से चुनाव लड़ने के लिए घोषित किया गया।
ऊर्जा मंत्री के चुनाव क्षेत्र का एक बड़ा हिस्‍सा 12 घंटे इस भीषण गर्मी में बिजली के लिए तरसता रहा किंतु ऊर्जा मंत्री को इसकी खबर भी लगी या नहीं लगी, इसकी खबर देने वाला कोई नहीं है।
”लीजेंड न्‍यूज़” ने ऊर्जा मंत्री के मोबाइल नंबर 09999476555 पर बात करने की कोशिश की तो फोन रिसीव करने वाले उनके किसी निजी सचिव ने कहा कि हमने नोट कर लिया है, थोड़ी देर में मंत्री जी से आपकी बात करा देंगे लेकिन शाम तक मंत्री जी या उनके किसी नुमाइंदे से भी जवाब नहीं मिला।
यहां उल्‍लेखनीय है कि बिजली को एक बड़ा मुद्दा बनाकर सत्‍ता पर काबिज होने वाली भाजपा सरकार के ऊर्जा मंत्री और मुख्‍यमंत्री ने भी इस आशय के आदेश विभागीय अधिकारियों को दे रखे हैं कि सामान्‍यत: तो बिजली की आपूर्ति में बाधा आनी ही नहीं चाहिए और आती भी है तो उसका तत्‍काल समाधान होना चाहिए। रात में तो बिजली की आपूर्ति शत-प्रतिशत सुनिश्‍चित होनी चाहिए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रदेश में योगी आदित्‍यनाथ की सरकार बनने के बाद बिजली की आपूर्ति में उल्‍लेखनीय सुधार हुआ है किंतु कल रात जिस तरह मात्र एक तार टूटने पर 12 घंटे सप्‍लाई ठप्‍प रही उसने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
लोगों के सोचने पर मजबूर होने का एक कारण यह भी है कि अभी तो आंधी रूपी हवाओं के चलने का यह प्रथम चरण है, अभी तो करीब दो महीने काफी तेज आंधियां भी आ सकती हैं और हवाएं भी चल सकती हैं। इसके बाद बारिश का दौर शुरू हो जाएगा और ऐसे में यदि बिजली विभाग इसी गति से काम करेगा तो ”अखिलेश राज” का अहसास होते देर नहीं लगेगी।
ऊर्जा मंत्री से मथुरा की जनता इसलिए भी अपेक्षा रखती है क्‍योंकि सांसद हेमा मालिनी स्‍थानीय जनप्रतिनिधि बनने के बावजूद स्‍वप्‍नसुंदरी ही बनी हुई हैं जबकि उनके कार्यकाल का आधे से अधिक हिस्‍सा बीत चुका है।
कहने को भाजपा ने यहां एक मीडिया प्रभारी और एक मीडिया प्रमुख भी बना रखा है लेकिन उनकी सक्रियता सिर्फ और सिर्फ किसी बड़े नेता के आगमन पर दिखाई देती है। सामान्‍य तौर पर मीडिया से उनकी दूरी किसी विशिष्‍ट व्‍यक्‍ति की तरह बनी रहती है जबकि भाजपा विशिष्‍ट और अति विशिष्‍ट कल्‍चर से मुक्‍त होने की हिमायती है। हालांकि मीडिया प्रमुख संजय शर्मा को जब यह जानकारी दी गई कि शहर का एक बड़ा क्षेत्र मात्र तार टूटने के कारण 12 घंटे अंधेरे में डूबा रहा तो उन्‍होंने कहा कि वह ऊर्जा मंत्री को इस बात से अवगत कराएंगे।
अब देखना होगा कि ऊर्जा मंत्री उनकी बात को कितनी गंभीरता से लेते हैं और भविष्‍य में इस भीषण गर्मी के चलते इस तरह की पुनरावृत्ति होने से रोक पाते हैं या नहीं।
बहरहाल, 2022 भले ही दूर हो लेकिन 2019 बहुत दूर नहीं है। श्रीकांत शर्मा हों या दूसरे विधायक और मंत्री, वीआपी कल्‍चर से मुक्‍त रहने का प्रदर्शन करने भर से काम नहीं चलेगा। वास्‍तविकता के धरातल पर आकर महसूस भी कराना होगा कि वह हर सुख-दुख में जनता के साथ खड़े हैं। पत्रकार तो क्‍या, किसी आमजन का भी नंबर मंत्री के निजी सचिव द्वारा नोट कर लेना उसी सरकारी कल्‍चर का हिस्‍सा है जिससे मुक्‍ति की बात तो भाजपा कर रही है, लेकिन मुक्‍त होती नजर नहीं आ रही।
अब बात मथुरा के ”पंडों” को लेकर दी गई सफाई पर
हाल में यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने अपने आगरा दौरे पर मथुरा व आगरा में सक्रिय ”लपकों” के साथ पंडों को भी जोड़ते हुए उनके खिलाफ अभियान चलाने की बात कही जबकि लपकों और पंडों को किसी भी तरह एकसाथ नहीं जोड़ा जा सकता।
देश के हर प्रमुख धार्मिक स्‍थल पर पंडे होते हैं, जो दरअसल पुरोहित हैं। पूरब से पश्‍चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक इन पुरोहितों का अपने यजमानों से एक ओर जहां आत्‍मिक रिश्‍ता होता है वहीं दूसरी ओर इनका उनके साथ पारिवारिक संबंध रहता है। यह एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं। एक-दूसरे के यहां ठहरते हैं और उनके सुख-दुख में सहभागी बनते हैं।
परहित सोचने वाले को पुरोहित कहा जाता है और पुरोहितों की इसी सोच ने देशभर में उन्‍हें हमेशा मान-सम्‍मान दिलाया है। यजमान नया हो अथवा पुराना, पुरोहित हमेशा उसके हित में ही लगा रहता है।
इसके ठीक विपरीत ”लपके” वह तत्‍व हैं जिनका एकमात्र मकसद किसी न किसी तरह यात्री, पर्यटक एवं सैलानियों का आर्थिक दोहन करना होता है। मथुरा में यह तत्‍व धर्म की आड़ लेकर इस काम को करते हैं तो आगरा जैसे पर्यटन स्‍थल पर अवैध गाइड के रूप में।
जाहिर है कि मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ द्वारा लपकों और पंडों को एक ही श्रेणी में रखकर किए गए कमेंट से मथुरा-वृंदावन सहित आसपास के सभी प्रमुख धार्मिक स्‍थलों के पुराहितों को ठेस लगना स्‍वाभाविक था लिहाजा सभी ने अपने-अपने तरह से योगी जी के कमेंट पर विरोध प्रदर्शन किया।
यहां सबसे महत्‍वपूर्ण और गौर करने वाली बात यह है कि प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और सरकार के प्रवक्‍ता श्रीकांत शर्मा भी जिस कौशिक परिवार से ताल्‍लुक रखते हैं उसका भी पारंपरिक व्‍यवसाय पुरोहिताई करना ही रहा है। कहने का अर्थ यह है कि वह या उनके परिवार में से किसी ने कभी पंडागीरी की हो अथवा न की हो किंतु हैं वह भी पंडा ही। ऐसे में उनके द्वारा मुख्‍यमंत्री के बचाव में मात्र इतना कह देना कि सरकार पंडा-पुरोहितों का पूरा सम्‍मान करती है, पर्याप्‍त नहीं है।
सरकार के प्रवक्‍ता की हैसियत से उन्‍हें आगे आकर मुख्‍यमंत्री को पंडों और लपकों का भेद बताना चाहिए और मथुरा जनपद के पुरोहितों से वायदा करना चाहिए कि भविष्‍य में ऐसी चूक नहीं होगी।
हो सकता है कि योगी आदित्‍यनाथ पंडों और लपकों में भारी फर्क से अनभिज्ञ हों लेकिन एक पुरोहित परिवार का हिस्‍सा होने के नाते ऊर्जा मंत्री व सरकार के प्रवक्‍ता श्रीकांत शर्मा को योगी जी के सामने स्‍थिति स्‍पष्‍ट करनी चाहिए न कि अपने स्‍तर पर बयान देकर सतही रूप से मामले को रफा-दफा करने का प्रयास करना चाहिए।
श्रीकांत शर्मा का यह पहला चुनाव था और पहली ही बार उन्‍हें मंत्रिपद प्राप्‍त हुआ है। उनसे पूर्व भी मथुरा से निर्वचित अनेक विधायक विभिन्‍न मंत्री पदों को सुशोभित करते रहे हैं किंतु आज उनकी राजनीति अवसान पर है।
बेहतर होगा कि श्रीकांत शर्मा उनके असमय राजनीतिक अवसान के कारणों को अपने जेहन में रखें अन्‍यथा यह तो जानते ही होंगे कि मथुरा को तीन लोक से न्‍यारी नगरी की उपमा भी प्राप्‍त है। पार्टी के 14 साल के वनवास को खत्‍म हुए अभी तो चौदह सप्‍ताह भी नहीं हुए। अभी मथुरा की जनता को उनकी दरकार है, फिर उन्‍हें मथुरा की दरकार होगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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