शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

खूब ”हंसी” मर्दानी वह तो…

हमारे कांग्रेसी भाई पिछले दो दिनों से मोदी जी और किरन रिजिजू पर बहुत लाल-पीले हो रहे हैं।
कांग्रेसियों का आरोप है कि पीएम ने और गृह राज्‍य मंत्री ने उनकी महिला नेता रेणुका चौधरी को सांकेतिक रूप से ”शूपर्णखा” बताकर न सिर्फ रेणुका चौधरी का बल्‍कि संपूर्ण महिलाओं का भारी अपमान किया है जबकि बात ”इत्‍तू सी” थी कि बेचारी रेणुका चौधरी राज्‍यसभा में पीएम के अभिभाषण पर ”बुक्‍का फाड़” हंसी हंस रहीं थीं।
मेरी अपने कांग्रेसी भाइयों से करबद्ध प्रार्थना है कि रेणुका चौधरी को ”महिला” घोषित करने से पहले उनके बारे में सही-सही और पूरी जानकारी प्राप्‍त कर लें क्‍योंकि आधे अधूरे ज्ञान के आधार पर रेणुका जी को महिला घोषित करना भी रेणुका जी का अपमान है और इसके लिए रेणुका जी अपनी ही पार्टी के उन नेताओं पर ”अट्टहास” कर सकती हैं जो उन्‍हें महिला बताकर उनकी मर्दानगी को चुनौती दे रहे हैं।
रेणुका जी के बारे में पूरी जानकारी करने के लिए कांग्रेसी भाइयों को तनिक उनके राजनीतिक करियर की ओर झांकना होगा।
बताते हैं कि रेणुका जी के राजनीतिक सफर की शुरूआत टीडीपी अर्थात तेलगु देशम पार्टी से हुई थी।
टीडीपी के फाउंडर एनटी रामा राव यानि एनटीआर कहते थे कि रेणुका चौधरी ‘टीडीपी में इकलौती मर्द’ हैं.
हालांकि 1994 में रेणुका चौधरी टीडीपी से नाराज़ हो गईं और इस सदमे में 1996 के दौरान एनटीआर दुनिया से कूच कर गए.
बहरहाल, रेणुका चौधरी की टीडीपी और एनटी रामा राव से नाराज़गी चाहे जिस कारण भी रही हो किंतु इस वजह से तो नहीं थी कि उन्‍होंने रेणुका जी को पार्टी का ”इकलौता मर्द” घोषित किया था।
टीडीपी के सूत्रों ने भी इस बात की पुष्‍टि की है कि रेणुका जी ने अपनी ”मर्दानगी” को लेकर कभी कोई चुनौती तत्‍कालीन पार्टी या एनटीआर को नहीं दी।
हालांकि टीडीपी की कमान जब चंद्रबाबू नायडू के हाथों में आ गई तब पार्टी के कुछ उत्‍साही कार्यकताओं ने रेणुका जी को एक नया नाम ”जंबो” भी दिया था जिसका अर्थ भिन्‍न-भिन्‍न परिस्‍थितियों में भिन्न-भिन्‍न लोगों द्वारा भिन्‍न-भिन्‍न तरीकों से निकाला जाता रहा।
खैर, 1998 ख़त्म होते-होते रेणुका जी कांग्रेस में आ गईं किंतु कांग्रेस ज्‍वाइन करने के बाद से लेकर अब तक करीब 19 सालों के दरमियां रेणुका जी ने एनटीआर से मिले मर्दानगी के तमगे को वापस नहीं लौटाया लिहाजा यह मान लेने में कोई आपत्ति नहीं है कि वह आज भी खुद को ”मर्द” मानती हैं।
कांग्रेसी भाइयों ने हो सकता है कि उनकी मर्दानगी का समुचित प्रचार प्रसार इसलिए न किया हो कि टीडीपी की तरह रेणुका जी कांग्रेस में ”अकेली मर्द” नहीं रह गई थीं किंतु कभी इस बात का खण्‍डन भी नहीं किया। अलबत्ता रेणुका जी अपने बयानों से समय-समय पर यह साबित करती रहीं कि वह एनटीआर के आंकलन पर शत-प्रतिशत खरी उतरती हैं।
उदाहरण के तौर पर उनके द्वारा ”बलात्कारों” के संबंध में दिया गया वो बयान प्रस्‍तुत किया जा सकता है जिसमें वह कहती हैं कि रोज-रोज रेप पर क्‍या चर्चा करना। रेप तो होते ही रहते हैं।
रेणुका जी के बयान की तुलना माननीय मुलायम सिंह जी के उस बयान से की जा सकती है जिसमें उन्‍होंने बढ़ते ”बलात्‍कारों” पर कहा था कि ऐसी छोटी-मोटी भूल बच्‍चों से हो जाती हैं। इन्‍हें इतना तूल नहीं देना चाहिए।
राजनीति के प्रकांड पंडित और हर बात पर बहस करने के लिए टीवी चैनलों से आमंत्रण प्राप्‍त विद्वतजनों ने मुलायम सिंह के बयान को पुरूषों की कुत्‍सित मानसिकता घोषित किया था। विद्वतजनों की बात कौन झुठला सकता है, अत: यह मान लेने में कोई बुराई नहीं कि ”पुरूषों” की मानसिकता शायद ऐसी ही होती होगी।
वैसे भी चैनलों से सर्टीफाइड विद्वतजनों में पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी शामिल रहती हैं इसलिए उनके निष्‍कर्ष गलत कहे भी नहीं जा सकते।
जाहिर है कि रेणुका जी का बढ़ते ”बलात्‍कारों” पर खीझ कर दिया गया बयान सर्वसम्‍मति से उनकी पुरूषोचित मानसिकता का द्योतक है और यह साबित करता है कि उनकी मौलिक सोच भी पुरूषों से ज्‍यादा मिलती है, अपेक्षाकृत महिलाओं के।
ऐसे में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि रेणुका जी के मामले में ”कांग्रेसी भाई” किसी राजनीतिक साजिश के तहत उन्‍हें महिला साबित करने के लिए नरेन्‍द्र भाई मोदी के कथन और किरन रिजिजू की वीडियो पोस्‍ट का सहारा तो नहीं ले रहे क्‍योंकि राजनीति में कुछ भी संभव है। जैसे…कहीं पै निगाहें और कहीं पै निशाना, कुशल राजनीति की प्राथमिकताओं में शुमार रहता है।
इधर एक बात घड़े में से निकल कर यह भी आ रही है कि आधी आबादी को जब पूरे अधिकार देने की बात की जा रही है और यह माना जा रहा है कि महिलाएं किसी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं तो फिर भाई रेणुका जी की हंसी को महिला की हंसी साबित किसलिए किया जा रहा है। लोगों को इसके पीछे षड्यंत्र की ”बू” आ रही है।
”मेंगो पीपुल” की मानें तो रेणुका जी ”सांसद” हैं, न कि ”सांसदी”। राजनीति में महिलाओं के लिए ”आरक्षण” का बिल भी अभी अधर में लटका हुआ है। वह सामान्‍य सीट से राज्‍यसभा पहुंची हैं, फिर उनके पद को महिला सांसद और पुरूष सांसद के खांचे में बांटना किस हद तक उचित है।
अगर यूं ही बिना आरक्षण लिए-दिए बंटवारा हो गया तो महिलाओं के लिए प्रस्‍तावित ”आरक्षण” गया पानी में। ये तो कोई बात नहीं हुई।
माना भी यही जाता है कि कोई पद कभी पुल्‍लिंग अथवा स्‍त्रीलिंग नहीं होता। ऐसा होता तो ”राष्‍ट्रपति” के पद पर काबिज होने वाली महिला को ”राष्‍ट्रपत्‍नी” कहा जाता और महिला ”जिलाधिकारी” को ”जिलाधिकारिणी”। ऐसा नहीं होता न।
इस लिहाज से भी रेणुका चौधरी को महिला सांसद कहना, संसद और संविधान का अपमान है क्‍योंकि संविधान ने पुरुष और महिला को सांसद की हैसियत से समान अधिकार दिए हैं। समाज के अंदर महिला और पुरुषों की हंसी इस 21वीं सदी में भी विभाजित नहीं है। हंसी…हंसी है। फिर चाहे वह महिला की हो या पुरूष की।
…तो मेरा अपने कांग्रेसी भाइयों से निवेदन है कि पहले रेणुका जी की मर्दानगी और उनके संसदीय अधिकार और कर्तव्‍यों पर पार्टी के अंदर बहस कराकर तय कर लें कि क्‍या यह मामला एक महिला का है या फिर उसी तरह किसी सांसद का है जिस तरह मोदी जी और किरन रिजिजू का है। वह हंस दी और उन्‍होंने हंसा दिया।
कांग्रेसियों को रेणुका जी की मर्दानगी पर प्रश्‍न खड़ा करने से पहले उस घटना को भी याद करना होगा जब टीडीपी में रहते रेणुका जी थाने के अंदर घुसकर अपने उन तीन ”मर्द” समर्थकों को छुड़ा ले गई थीं जिन्‍हें पुलिस ने एक प्लॉट पर कब्ज़े को लेकर हिरासत में ले लिया था।
रेणुका जी की मर्दानगी को चुनौती देने से पहले कांग्रेसी भाइयों को उनके बयानों पर रिसर्च करनी पड़ सकती है। रेणुका जी एक बार मुख्‍यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को ‘बस स्टैंड के पास खड़ा जेबकतरा’ बता चुकी हैं और राज्‍यसभा की ही सांसद व प्रसिद्ध अभिनेत्री जयप्रदा को ‘बिंबो’
गौरतलब है कि बिंबो का एक अर्थ कमअक्‍ल खूबसूरत औरत भी होता है। और जयप्रदा के लिए यह बात उन्‍होंने बाकायदा एक टीवी चैनल पर कही थी।
जो भी हो, जयप्रदा को दी गई उपाधि भी यह साबित करती है कि रेणुका जी महिलाओं के प्रति कितना आदरभाव रखती हैं और उनकी दृष्‍टि में खुबसूरती के मायने क्‍या हैं।
सामान्‍य तौर पर ऐसे विचार पुरूषों के माने जाते हैं कि खूबसूरत महिलाएं अक्‍सर कमअक्‍ल होती हैं। पुरूषों से रेणुका जी की सोच का इस कदर मिलना कुछ तो इशारा करता है।
समूची कांग्रेस की तो कांग्रेसी जानें लेकिन मुझे अब उस बेचारे एक अदद कांग्रेसी तहसीन पूनावाला की फिक्र है जिसने मणिशंकर अय्यर के साथ-साथ रेणुका जी को भी पार्टी पर बोझ बता दिया और कहा कि राज्यसभा में उनकी हंसी से मैं छटपटा गया।
कहीं ऐसा न हो कि राज्‍यसभा से ध्‍यान हटते ही रेणुका जी तहसीन पूनावाला को निशाने पर ले लें और एकबार फिर साबित कर दें कि वह टीडीपी में ही नहीं, कांग्रेस में भी अकेली मर्द हैं। वह हंसकर फंसती नहीं हैं, फंसाती हैं। उनकी हंसी को चेलेंज करना चायवाले ये लेकर पूनावाला तक को भारी पड़ सकता है।
इस दौर में भले ही महाभारत का युद्ध न हो, और न हो राम-रावण का युद्ध, किंतु वाकयुद्ध तो हो सकता है। कहीं द्रोपदी को जिम्‍मेदार ठहराया जाता है, कहीं शूपर्णखा को लेकिन हकीकत तो यह है कि ”हंसी” हर वक्‍त मुफीद नहीं होती। कभी हंसने वालों के लिए तो कभी हंसाने वाले के लिए ”साढ़े साती” बन जाती है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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