शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

ब्रज होली रसोत्‍सव: वाह माननीय वाह…यमुना प्रदूषण का ठीकरा ब्रजवासियों के सिर, और नाच-गाने कराकर कथित विकास का श्रेय खुद को



मथुरा। घोषणा के साथ ही विवादों में घिरे अपने कार्यक्रम ‘ब्रज होली रसोत्‍सव’ पर सफाई देने के लिए मीडिया के सामने आईं मथुरा की सांसद और सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी ने यमुना के प्रदूषण मुक्‍त न हो पाने का ठीकरा भी मथुरा के ही लोगों के सिर फोड़ने की कोशिश तो की परंतु कार्यक्रम को लेकर उठ रहे सवालों का कोई जवाब अंत तक नहीं दिया।
प्रेस कांफ्रेंस की शुरूआत ही हेमा मालिनी ने यह कहते हुए की कि मैं जब से मथुरा की सांसद बनी हूं तब से मैंने बहुत सारे काम तो किए ही हैं, उसके साथ-साथ कल्‍चरल प्रोग्राम को भी बढ़ावा दिया है क्‍योंकि मैं बेसिकली एक आर्टिस्‍ट हूं।
एक कलाकार होने के नाते जब मैं मुंबई जाती हूं तो हमारे कलाकार मित्र हमेशा मुझसे कहते हैं कि आप मथुरा की सांसद हैं, आप हमें भी वहां लेकर चलिए। हम वहां गाना चाहते हैं, नृत्‍य करना चाहते हैं। उनकी हमेशा मांग रही है, और इसीलिए हमने दो साल पहले ‘मथुरा महोत्‍सव’ किया था जो बहुत ही सफल रहा। हमने सारे बॉलीवुड आर्टिस्‍ट को बुलाकर यह कार्यक्रम किया था। ऐसे कार्यक्रमों से मथुरा की शान बढ़ती है क्‍योंकि मैं मथुरा की सांसद हूं। एक साल पहले इसी प्रकार का एक कार्यक्रम मैंने ‘रसोत्‍सव’ के नाम से किया था। उसमें मैंने अपनी विश्‍व विख्‍यात नृत्य नाटिका ‘यशोदा-कृष्‍ण, राधाकृष्‍ण’ पेश किया था।
अब मेरा मन था कि मैं कुछ ऐसा बहुत अच्‍छा करूं जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिले और मथुरा की शान भी बढ़े। हम इस कार्यक्रम के तहत यमुना की आरती करते और यमुना में लाखों दीपक प्रवाहित करते लेकिन अचानक किसी को लगा कि हम यमुना को प्रदूषित करने जा रहे हैं जो कि हम नहीं कर रहे थे।
इसके बाद हेमा मालिनी ने कहा कि हम तो चाहते थे कि यमुना को शुद्ध करो, मथुरा के लोगों ने जो नहीं किया उनसे मैं रिक्‍वेस्‍ट करती हूं कि आप लोग यमुना को शुद्ध करो। प्रदूषित है इतना, गंदगी डालकर खराब हो गया है इतना। ये मथुरा वालों की भी जिम्‍मेदारी है कि उन्‍हें यमुना को साफ-सुथरा रखना चाहिए। अचानक उनके मन में आया कि मैं उसको खराब करने वाली हूं, तो वो एनजीटी मैं पहुंच गए और मेरे कार्यक्रम पर रोक लगवा दी। मैं एनजीटी से परमीशन लेकर यमुना किनारे कार्यक्रम कर सकती हूं किंतु उसमें समय लगेगा। हालांकि मैंने दृढ़ संकल्‍प लिया है कि यमुना किनारे जहां अभी कार्यक्रम नहीं हो सका, वहां पर बहुत जल्‍द कार्यक्रम होगा और जिन लोगों ने विरोध किया है उन्‍हें मानना पड़ेगा कि हमारे कल्‍चरल कार्यक्रमों से पर्यटन को कितना बढ़ावा मिलता है।
हेमा मालिनी ने कहा कि समय की कमी को देखते हुए मैंने इस कार्यक्रम को शिफ्ट किया और अब यह कार्यक्रम उसी तरह वेटरिनरी यूनिवर्सिटी के प्रांगण में होगा। मथुरा के मुक्‍ताकाशीय रंगमंच को भी जल्‍द से जल्‍द तैयार कराने का मैंने प्रयास किया ताकि मथुरा में सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते रहें।
हेमा मालिनी के अनुसार सांसद का काम केवल रोड बनवाना, बिजली दिलवाना और उद्धाटन करते रहना ही नहीं है। कल्‍चरल प्रोग्राम भी होने चाहिए जिससे ब्रज की कलाओं को बढ़ावा मिले।
अपनी उपलब्‍धियों गिनाने, यमुना प्रदूषण के लिए मथुरा के ही लोगों को जिम्‍मेदार ठहराने और उन्‍हें यमुना किनारे ही अपना कार्यक्रम शीघ्र करने की चुनौती देकर हेमा मालिनी उन सभी सवालों का जवाब दिए बिना उठकर चलती बनीं जिनके कारण उनके कार्यक्रम तथा बतौर सांसद उनकी मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं।
हां, इस दौरान वह यह बताना नही भूलीं कि अगर मथुरा की जनता चाहेगी तो वह अवश्य यहां से दोबारा सांसद बनना चाहेंगी।
हेमा मालिनी को दूसरी मर्तबा मथुरा से संसद पहुंचने का सपना संजाेने से पहले यह भी सोच लेना चाहिए था कि एकबार तो उनके पति अभिनेता धर्मेन्‍द्र भी राजस्‍थान के बीकानेर से लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे थे। मथुरा से जीत के बाद हेमा मालिनी की कार्यप्रणाली अपने पति धर्मेन्‍द्र से कोई बहुत अलग नहीं रही है।
गौरतलब है कि आज यानि 23 फरवरी को हेमा मालिनी के इसी कार्यक्रम को लेकर एनजीटी में सुनवाई होनी है। पिछली तारीख 15 फरवरी को सुनवाई के बाद एनजीटी ने न सिर्फ कायर्क्रम को यमुना किनारे करने पर रोक लगा दी थी बल्‍कि ‘नमामि गंगे’ तथा ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ से जवाब तलब भी किया था।
बताया जाता है कि इन दोनों सरकारी संस्‍थाओं ने यमुना किनारे अब कार्यक्रम न करके वेटरिनरी यूनिवर्सिटी में किए जाने संबंधी साक्ष्‍यों के साथ अपना जवाब एनजीटी के समक्ष पेश कर दिया है लिहाजा आगे कोई आदेश आने की संभावना कम है।
रहा सवाल हेमा मालिनी द्वारा यमुना किनारे ही जल्‍द इसी तरह का कार्यक्रम करने की चुनौती देने का, तो उसकी भी उम्‍मीद काफी कम है क्‍योंकि प्रथम तो एनजीटी यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर बेहद गंभीर है और दूसरे दिल्‍ली में यमुना किनारे आध्‍यात्‍मिक गुरू श्री-श्री रविशंकर की संस्‍था ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ द्वारा कराए गए कल्‍चरल प्रोग्राम की नजीर उसके सामने है।
उस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा शिरकत किए जाने के बावजूद एनजीटी ने यह माना कि आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा कराए गए कार्यक्रम से यमुना और उसके किनारे के पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ। एनजीटी ने आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम से हुए नुकसान की भरपाई के लिए संस्‍था पर 5 करोड़ रुपए का बड़ा जुर्माना भी ठोका।
जहां तक प्रश्‍न हेमा मालिनी द्वारा यमुना के प्रदूषण का ठीकरा मथुरावासियों के ही सिर फोड़ने की कोशिश का है तो हेमा मालिनी को जान लेना चाहिए कि मथुरावासी तो 32 साल से मथुरा को प्रदूषण मुक्‍त कराने की लड़ाई विभिन्‍न स्‍तर पर लड़ रहे हैं।
सबसे पहले यमुना के लिए 16 मार्च 1985 को तत्‍कालीन जिलाधिकारी राजेन्‍द्र सिंह यादव के समक्ष उनके आवास पर गोपेश्‍वर चतुर्वेदी के नेतृत्‍व में आवाज़ बुलंद की गई थी। इस मामले में तब गोपेश्‍वर चतुर्वेदी सहित कई प्रमुख लोगों के खिलाफ संगीन धाराओं में केस भी दर्ज किया गया था।
उसके बाद जनवरी 1998 में प्रमुख पर्यावरणविद् और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता एम. सी. मेहता और गोपाल पीठाधीश्‍वर विठ्ठलेशजी महाराज के नेतृत्‍व में बड़ा धरना प्रदर्शन किया गया।
तब गंगा प्रदूषण की कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे एम. सी. मेहता ने जब यहां यमुना की दुर्दशा अपनी आंखों से देखी तो उन्‍होंने यमुना प्रदूषण के मुद्दे को भी कोर्ट में ले जाना ज्‍यादा मुनासिब समझा। उसके बाद गोपेश्‍वर चतुर्वेदी के नाम से इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय में एक जनहित याचिका 1644/98 डाली गई जिसे जनवरी 1998 में ही कोर्ट से स्‍वीकार करते हुए यमुना कार्य योजना के तहत मथुरा-वृंदावन का मामला शामिल किया और तमाम आदेश-निर्दश जारी दिए।
गोपेश्‍वर चतुर्वेदी बनाम स्‍टेट ऑफ यूपी एंड अदर्स के नाम से दाखिल इस याचिका की सुनवाई के बाद दिए गए आदेश-निर्देशों के अनुपालन हेतु कोर्ट ने ही एडीएम स्‍तर के एक अधिकारी को बहुत से अतिरिक्‍त अधिकारों सहित यमुना कार्य योजना का स्‍थानीय नोडल अधिकारी भी बनाया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश-निर्देशों से यमुना में गिरने वाले मथुरा के सभी 19 नाले और वृंदावन के 18 नाले पहली बार टेप किए गए और यमुना जल को शुद्ध बनाए रखने के दूसरे अनेक प्रयास शुरू हुए।
यह बात अलग है कि प्रशासनिक शिथिलता के कारण सन् 2000 के बाद इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के आदेश-निर्देशों की जो धज्‍जियां उड़नी शुरू हुईं, वह अब तक उड़ाई जा रही हैं।
दरअसल, सन् 2000 के बाद जितने भी नोडल अधिकारी यहां रहे, उनमें से किसी ने न तो अपने अधिकार जानना जरूरी समझा और न कभी यमुना के प्रति अपना कर्तव्‍य निभाया। यह सिलसिला अब भी जारी है। नतीजतन यमुना दिन-प्रतिदिन पहले से कई गुना अधिक प्रदूषित हो रही है।
गोपेश्‍वर चतुर्वेदी आज भी यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने की दोहरी लड़ाई लड़ रहे हैं। एक ओर इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय में तो दूसरी ओर नेशनल ग्रीन ट्रेब्‍यूनल (एनजीटी) में।
गोपेश्‍वर चतुर्वेदी के अलावा मथुरा के ही कांतानाथ चतुर्वेदी और महेन्‍द्र नाथ चतुर्वेदी भी न्‍यायालय के माध्‍यम से यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
इनके अलावा वृंदावन के प्रमुख पत्रकार रहे और इस समय समाज सेवा से जुड़े मधुमंगल शुक्‍ला ने यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर वर्ष 2010 में याचिका दाखिल की थी और वर्ष 2015 में एनजीटी का गठन होने के बाद वहां भी मूव किया।
मधुमंगल शुक्‍ला के प्रयासों का ही नतीजा है कि आज यमुना की खादरों में किया गया बेहिसाब अवैध निर्माण गिराया जाने लगा है और यमुना रिवर फ्रंट के कार्य पर एनजीटी ने पूरी नजर बना रखी है।
यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने की एक लड़ाई अपने स्‍तर से बरसाना (मथुरा) स्‍थित मान मंदिर के महंत रमेश बाबा भी लड़ रहे हैं। रमेश बाबा के सानिध्‍य में उनके शिष्‍य रहे बाबा जयकृष्‍ण दास ने यमुना रक्षक दल के बैनर तले करीब 50 हजार लोगों के साथ मार्च 2013 में मथुरा से दिल्‍ली के लिए कूच किया था।
जयकृष्‍ण दास के काफिले को देखकर घबराई तत्‍कालीन यूपीए सरकार के केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत ने बाबा से मुलाकात कर यमुना को प्रदूषण मुक्‍त करने की एक रूपरेखा उनके सामने प्रस्‍तुत की, जिसके बाद जयकृष्‍ण दास फरीदाबाद से वापस लौट आए। बाद में हरीश रावत के सरकारी आश्‍वासन का भी वही हश्र हुआ जैसा सभी सरकारों के आश्‍वासन का होता आया है।
यमुना प्रदूषण के मुद्दे पर बाबा जयकृष्‍ण दास का साथ स्‍थानीय अन्‍य लोगों ने भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर दिया। इनमें भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट), कांग्रेसी नेता राकेश यादव व अब्‍दुल जब्‍बार, समाजवादी पार्टी के तत्‍कालीन महानगर अध्‍यक्ष डॉ. अशोक अग्रवाल, वृंदावन के जुझारु नेता उदयन शर्मा आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे। पंकज बाबा ने भी यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने के इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लिया। ये सभी लोग आज भी अपने-अपने स्‍तर से यमुना को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। रमेश बाबा ने तो एकबार फिर मार्च में दिल्‍ली कूच करने का एलान कर रखा है।
आश्‍चर्य की बात यह है कि कल की अपनी प्रेस कांफ्रेंस में यमुना प्रदूषण का ठीकरा ब्रजवासियों के सिर ही फोड़ने की हेमा मालिनी की कोशिश का जिक्र तक स्‍थानीय मीडिया ने अपने समाचारों में नहीं किया और सिर्फ उनके कार्यक्रम का ब्‍यौरा देकर अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर ली जबकि हेमा मालिनी का यह प्रयास मथुरावासियों के प्रति पूर्वाग्रह तथा आत्मप्रशंसा से भरा था।
होली रसोत्‍सव संबंधी विज्ञापनों के बोझ तले दबे और कार्यक्रम के पास पाने की अभिलाषा में हेमा मालिनी से स्‍थानीय पत्रकारों ने यह पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि दो साल पहले उनके द्वारा किए गए ‘मथुरा महोत्‍सव’ तथा एक साल पहले किए गए ‘रसोत्‍सव’ से मथुरा के पर्यटन में कितनी वृद्धि हुई। उन्‍होंने अपने कार्यक्रमों में यहां की संस्‍कृति और उससे जुड़े यहां के लोगों को कितना बढ़ावा दिया और मुक्‍ताकाशीय रंगमंच का निर्माण कराने में वह क्‍यों सफल नहीं हुईं।
यमुना के लिए मथुरावासियों को उनका कर्तव्‍य याद दिलाने वाली हेमा मालिनी से किसी ने यह भी पूछना मुनासिब नहीं समझा कि उन्‍होंने अपने करीब चार साल के संसदीय कार्यकाल में यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने का क्‍या प्रयास किया।
हेमा मालिनी से यह प्रश्‍न भी नहीं किया गया कि अब उनके द्वारा कराए जा रहे इस कार्यक्रम में कितने स्‍थानीय कलाकारों को तरजीह दी गई है क्‍योंकि जिन सुनामधन्‍य कलाकारों का जिक्र हेमा मालिनी ने किया वह किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। पंडित जसराज और हरिप्रसाद चौरसिया अपने-अपने फन के वो माहिर उस्‍ताद हैं कि हेमा मालिनी उनके सामने कहीं नहीं टिकतीं।
बेशक ये दिग्‍गज कलाकार देश की शान और पहचान हैं किंतु मथुरा में इनके कार्यक्रम मथुरा की कला व संस्‍कृति को कैसे समृद्ध करेंगे, यह बात समझ से परे है।
यूं भी देखा जाए तो महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली को नामचीन कलाकारों के कार्यक्रमों से अधिक नेकनीयत रखने वाले नेताओं की दरकार है क्‍योंकि बाहरी नेताओं से मथुरावासी पहले भी धोखा खाते रहे हैं।
हरियाणा से आए मनीराम बागड़ी से लेकर स्‍वामी सच्‍चिदानंद साक्षी तक और जयंत चौधरी से लेकर हेमा मालिनी तक, जितने भी नेताओं ने मथुरा से अपनी संसदीय पारी शुरू की, उन सभी ने मथुरा की जनता को निराश किया।
एकबार और मथुरा से संसद पहुंचने का ख्‍वाब देखने वालीं सिने तारिका कम से कम स्‍थानीय जनता की नब्‍ज टटोल लें, साथ ही पार्टी स्‍तर पर भी पता कर लें कि वह उन्‍हें फिर चुनाव में उतारने का जोखिम उठाने को तैयार है भी या नहीं, तो उनके लिए बेहतर होगा।
आत्ममुग्‍ध सांसद हेमा मालिनी ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि केवल सड़क बनवाना और बिजली मुहैया कराना ही उनका काम नहीं है। कल्‍चरल प्रोग्राम भी करते रहना चाहिए जिससे ब्रज की कलाओं को बढ़ावा मिले।
अच्‍छा होता यदि सांसद यह भी बता देतीं कि उन्‍होंने मथुरा जनपद में अपने प्रयासों से कितनी सड़क बनवाई हैं और बिजली की सुचारु आपूर्ति के लिए कितने प्रयास किए हैं।
हां, उद्घाटन करने वह समय-समय पर जरूर आती रही हैं किंतु उनका ब्‍यौरा जनता ने रखना जरूरी नहीं समझा होगा।
कौन नहीं जानता कि 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता पर योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्‍व वाली सरकार के काबिज होने तथा मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के विधायक श्रीकांत शर्मा को ऊर्जा मंत्रालय मिलने के बाद ही मथुरा जनपद की विद्युत समस्‍या का समाधान हुआ है अन्‍यथा इससे पहले शहर को भी बमुश्‍किल 12-14 घंटे ही बिजली मिल पाती थी परंतु सांसद ने कभी कोई प्रयास नहीं किए।
अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कथित उपलब्‍धियों और आगामी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का ऐलानी खाका खींचने वाली हेमा मालिनी ने अंत तक यह नहीं बताया कि यह ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट क्‍या है और इसके पदाधिकारी कौन-कौन हैं।
हेमा मालिनी समय-समय पर यह तो कहती रही हैं कि वह ब्रज के विकास के लिए एक ट्रस्‍ट का गठन करके देश-विदेश से पैसा इकठ्ठा करेंगी परंतु वह ट्रस्‍ट कौन सा है, इसकी जानकारी कभी नहीं दी।
गौरतलब है कि होली रसोत्‍सव के नाम से बड़ी रकम एकत्र किए जाने की खासी चर्चा है और माथुर चतुर्वेद परिषद ने भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में इसका उल्लेख यह कहते हुए किया था कि फिल्‍म तो दिखानी ही पड़ेगी क्‍योंकि टिकट जो बिक चुकी हैं
माथुर चतुर्वेद परिषद ने यह बात उस समय कही जब उन्‍हें बताया गया कि हेमा मालिनी का कार्यक्रम तो अब भी होने जा रहा है। फर्क केवल इतना है कि अब वह यमुना पार न होकर वेटरिनरी के प्रांगण में होगा।
हेमा मालिनी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में माथुर चतुर्वेद परिषद के एनजीटी पहुंच जाने तथा एनजीटी से यमुना किनारे प्रस्‍तावित कार्यक्रम पर रोक लगा देने की बात तो बताई परंतु परिषद के इस आरोप का कोई उत्तर नहीं दिया कि जब टिकट बिक गए तो फिल्‍म दिखानी पड़ेगी।
इसी प्रकार होली रसोत्‍सव के सहआयोजकों में ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट का उल्‍लेख अवश्‍य किया गया है किंतु उसका कोई पदाधिकारी, कार्यक्रम की किसी प्रेस कांफ्रेंस का हिस्‍सा नहीं बना जबकि पहली प्रेस कांफ्रेंस समन्‍वयक बताए गए अनूप शर्मा ने तथा दूसरी खुद हेमा मालिनी ने की।
दोनों ही प्रेस कांफ्रेंस के वक्‍त उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग और तीर्थ विकास ट्रस्‍ट की ओर से भी किसी की नुमाइंदगी न होना शंका तो प्रकट करता है क्‍योंकि इन्‍हें मात्र विज्ञापन का हिस्‍सा बनाकर छोड़ दिया गया।
ऐसा नहीं है कि होली रसोत्‍सव करने के तौर-तरीकों से माथुर चतुर्वेद परिषद को ही शिकायत हुई हो, भाजपा का एक बड़ा वर्ग भी आयोजन के मकसद को न तो समझ पा रहा है और न पचा पा रहा है क्‍योंकि इसका औचित्‍य उनकी समझ से परे है।
यही कारण है कि कार्यक्रम की घोषणा से लेकर आज तक हेमा मालिनी के इर्द-गिर्द सिर्फ ऐसे लोगों का जमावड़ा रहा है जिनकी पार्टी में भी कोई पूछ नहीं रह गई और जो हर वक्‍त किसी न किसी की आड़ में अपना चेहरा चमकाने का प्रयास करते रहते हैं।
जाहिर है कि इतने सारे प्रश्‍नों और आरोपों के बीच आज से शुरू होने जा रहे होली रासोत्‍सव का कल समापन तो हो जाएगा लेकिन जो प्रश्‍न इसके आयोजकों पर उठे हैं, वह 2019 के लोकसभा चुनावों तक भाजपा और हेमा मालिनी का पीछा नहीं छोड़ने वाले।
ऐसे में हेमा मालिनी खुद सोच लें कि पार्टी द्वारा उतारे जाने के बाद भी क्‍या 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना उनके लिए आसान होगा, और क्‍या वह तब भी इसी प्रकार किसी प्रश्‍न का जवाब दिए बिना सिर्फ अपनी बात कहकर प्रेस कांफ्रेंस से उठ पाएंगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

हेमा जी! होली रसोत्‍सव तो ठीक…लेकिन ये ‘ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट’ क्‍या है ?

मथुरा की माननीय सांसद और प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी द्वारा स्‍थानीय वेटरिनरी यूनीवर्सिटी के प्रांगण में कराया जाने वाला दो दिवसीय ‘होली रसोत्‍सव’ कार्यक्रम खासा विवादित हो चुका है जबकि कार्यक्रम का आयोजन 23 और 24 फरवरी को होना है।
हेमा मालिनी द्वारा कराए जा रहे इस कार्यक्रम का सर्वप्रथम तो विरोध इसलिए हुआ क्‍योंकि वह सैकड़ों साल की परंपरा के विपरीत दूसरे स्‍थान से यमुना आरती कराना चाहती थीं।
जैसे-तैसे यमुना आरती विश्राम घाट पर ही कराने को लेकर सहमति बनी तो माथुर चतुर्वेद परिषद्, सांस्कृतिक कार्यक्रमों की वजह से होने वाले संभावित यमुना प्रदूषण का मुद्दा लेकर एनजीटी जा पहुंची। एनजीटी ने 15 फरवरी को इस मामले की सुनवाई करते हुए कार्यक्रम पर रोक लगा दी।
विश्राम घाट के किनारे यमुना पार कार्यक्रम किए जाने का विरोध बढ़ता देख पहले तो हेमा मालिनी ने कार्यक्रम को ही निरस्‍त करने की घोषणा कर दी किंतु बाद में स्‍थान बदलने की सूचना दी गई।
अब यह कार्यक्रम स्‍थानीय वेटरिनरी यूनिवर्सिटी के उस गार्डन में किया जाना है जिसमें गत दिनों मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय की प्रतिमा का अनावरण करके गए हैं।
हेमा मालिनी सहित ‘होली रसोत्‍सव’ के आयोजक मंडल में शामिल लोगों ने कार्यक्रम स्‍थल भले ही बदल दिया लेकिन कार्यक्रम पर उठ रहे सवाल अब भी पीछा नहीं छोड़ रहे।
सबसे पहला सवाल तो माथुर चतुर्वेद परिषद् ने ही बाकायदा अपनी प्रेस कांफ्रेंस में यह कहकर खड़ा कर दिया कि ‘ टिकट बेच दिए हैं इसलिए सिनेमा तो दिखाना ही होगा’।
माथुर चतुर्वेद परिषद् के इस सवाल का जवाब आयोजकों में से किसी ने अब तक नहीं दिया।
दूसरा सवाल कल तब खड़ा हुआ जब बीते कल यानि 19 फरवरी को उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग ने ब्रज की प्रमुख होलियों के कार्यक्रम का बड़ा सा विज्ञापन प्रकाशित कराया।
इस विज्ञापन में 19 फरवरी से लेकर 04 मार्च तक ब्रज में होने वाले सभी परंपरागत होली कार्यक्रमों का विवरण तो दिया गया है किंतु हेमा मालिनी के ‘होली रसोत्‍सव’ का कोई उल्‍लेख नहीं है जबकि होली रसोत्‍सव के आयोजकों में प्रदेश के पर्यटन विभाग का नाम शामिल है।
लोग यह जानना चाहते हैं कि यदि पर्यटन विभाग आयोजक है तो उसके अपने विज्ञापन में हेमा जी के होली कार्यक्रम को जगह क्‍यों नहीं दी गई।
आयोजकों ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में भी बताया था कि पर्यटन विभाग और उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद् के सहयोग से आयोजित हो रहे कार्यक्रम की थीम होली होगी।
तीसरा सवाल इस कार्यक्रम को लेकर आयोजकों की ओर से प्रकाशित कराए जा रहे विज्ञापन के बाद खड़ा हुआ है।
दरअसल, आयोजकों द्वारा प्रकाशित कराए गए विज्ञापनों में उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग की ओर से प्रमुख सचिव पर्यटन अवनीश अवस्‍थी का नाम छपा है और उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद् की ओर से परिषद् के उपाध्‍यक्ष शैलजाकांत मिश्र का नाम लिखा है।
बतौर सांसद और नृत्‍यांगना के रूप में हेमा मालिनी का नाम भी इसमें शामिल है किंतु उस ‘ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट’ के किसी पदाधिकारी का उल्‍लेख नहीं है जो कार्यक्रम का सह आयोजक बताया गया है।
‘ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट’ के साथ-साथ लोग यह भी जानना चाहते हैं कि ‘होली रसोत्‍सव’ के संबंध में 15 फरवरी को प्रेस कांफ्रेंस करने वाले अनूप शर्मा का क्‍या ‘ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट’ से भी कोई ताल्‍लुक है।
वैसे अनूप शर्मा को कार्यक्रम का समन्‍वयक बताया गया है किंतु यह नहीं बताया गया कि उन्‍हें समन्‍वयक किसने बनाया। मतलब पर्यटन विभाग ने, उत्तर प्रदेश विकास परिषद् ने, ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट ने, या फिर हेमा मालिनी ने।
इसके अलावा इस बात की भी खासी चर्चा है कि ‘ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट’ में कौन-कौन शामिल हैं और उनकी होली रसोत्‍सव कार्यक्रम कराने में इतनी रुचि क्‍यों है।
प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद रहे कुछ अन्‍य नामों को लेकर भी उत्‍सुकता है। ये नाम हैं विपिन मुकुटवाला, मितुल पाठक, अनिल मालवीय, पुरूषोत्‍तम सिंह, संजीव गर्ग व भीमराज शर्मा आदि।
यहां भी सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि सांसद हेमा मालिनी की ओर से उनके निजी सचिव जनार्दन शर्मा थे किंतु इतने बड़े कार्यक्रम के आयोजकों जैसे पर्यटन विभाग, ब्रज तीर्थ विकास परिषद् और ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट का कोई प्रतिनिधि क्‍यों प्रेस कांफ्रेंस का हिस्‍सा नहीं बना।
क्‍या ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट कोई ऐसी ‘छद्म संस्‍था’ है जिसके पदाधिकारियों का नाम सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
यदि नहीं, तो आयोजकों को यह भी बताना चाहिए कि हेमा मालिनी क्‍या स्‍थानीय सांसद होने के कारण ही इस कार्यक्रम को कराने में सबसे आगे खड़ी हैं अथवा ‘ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट’ से उनका भी कोई नाता है।
यह सारे सवाल इसलिए खड़े हुए हैं क्‍योंकि हेमा मालिनी के कार्यकाल को अगले कुछ दिनों में चार साल पूरे होने वाले हैं। उन्‍होंने ‘होली रसोत्‍सव’ से पहले भी यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम किए हैं, किंतु ब्रज अपने विकास को आज भी तरस रहा है।
हेमा मालिनी के पिछले कार्यक्रमों से यदि ब्रज का कोई विकास नहीं हुआ तो चार साल पूरे होने के आसपास किए जा रहे होली रसोत्‍सव से ब्रज का विकास कैसे होने लगेगा।
लोगों को संदेह है कि बार-बार सारा ध्‍यान सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों पर ही केंद्रित किए जाने का मकसद कुछ खास लोगों का विकास करना तो नहीं है।
होली रसोत्‍सव में कहीं ऐसे तत्‍वों का विकास तो निहित नहीं है जो किसी न किसी आड़ में मलाई मारने के लिए कुख्‍यात हैं और जिन्‍होंने ब्रज के विकास में कभी कोई भूमिका बेशक न निभाई हो परंतु विनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सवाल उठ रहे हैं तो जवाब भी देने ही होंगे, अन्‍यथा समय पर ये सवाल अपने जवाब खुद तलाश लेंगे। ‘ब्रजभूमि विकास ट्रस्‍ट’ के बारे में भी और उनके पदाधिकारियों के बारे में भी। होली रसोत्‍सव के बारे में भी और उसे कराने के पीछे छिपे मकसद के बारे में भी क्‍योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों को बहुत समय शेष नहीं है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

”खिन्‍न” होकर नहीं, ”खेल” खुल जाने के कारण रद्द किया हेमा मालिनी ने ”होली रसोत्‍सव”

भाजपा सांसद और प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी द्वारा अपने संसदीय क्षेत्र मथुरा में विश्‍व विख्‍यात तीर्थ स्‍थल विश्राम घाट के सामने किया जाने वाला ”होली रसोत्‍सव” कार्यक्रम रद्द होने का ठीकरा भले ही माथुर चतुर्वेद परिषद के सिर फोड़ने की कोशिश की जा रही हो किंतु हकीकत यह है कि इस कार्यक्रम के नाम पर बड़ा ”खेल” खेलने की जानकारी सार्वजनिक होने के कारण इसे रद्द किया गया है।
करोड़ों रुपए की उगाही
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार मथुरा में सांसद हेमा मालिनी द्वारा किये जाने वाले इस दो दिवसीय सांस्‍कृतिक कार्यक्रम के लिए करीब 10 करोड़ रुपए की उगाही की गई थी।
यह उगाही उन सौ लोगों से की गई जिन लोगों को यमुना की महाआरती में शामिल होने का अवसर दिया जा रहा था। ऐसे प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति से 10 लाख रुपए लिए गए थे।
यमुना की महाआरती में उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के भी शामिल होने की सूचना थी।
होली रसोत्‍सव के नाम से किया जाने वाला यह सांस्कृतिक महोत्‍सव 23 और 24 फरवरी को किया जाना था।
चूंकि 24 फरवरी को मथुरा के बरसाना में विश्‍व प्रसिद्ध लठामार होली के मुख्‍य अतिथि मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ हैं लिहाजा यह तय था कि योगी आदित्‍यनाथ इस कार्यक्रम में हिस्‍सा जरूर लेंगे।
इस दो दिवसीय होली रसोत्‍सव के आयोजन की तारीख 23 तथा 24 फरवरी भी इसीलिए बहुत सोच-समझ कर रखी गई थी ताकि इसमें शामिल होने के लिए योगी आदित्‍यनाथ आसानी से उपलब्‍ध हो जाएं और उनकी सहभागिता का भरपूर लाभ उठाया जा सके।
बताया जाता है कि इस पूरे कार्यक्रम का सूत्रधार मुंबई निवासी एक उद्योगपति है और इस उद्योगपति से हेमा मालिनी के काफी पुराने संबंध हैं।
सांसद का पक्ष नहीं आता सामने
हालांकि आयोजन के नाम से की गई करीब 10 करोड़ रुपए की उगाही के बावत सांसद हेमा मालिनी को कोई जानकारी है या नहीं, इसकी पुष्‍टि इसलिए नहीं हो सकी क्‍योंकि वह कभी अपना पक्ष रखने को उपलब्‍ध नहीं होतीं।
जो कुछ कहना व बताना होता है, वह उनके स्‍थानीय निजी सचिव जनार्दन शर्मा के हवाले से ही सामने आता है, और जनार्दन शर्मा करोड़ों रुपए की उगाही संबंधी जानकारी देने में न तो सक्षम हैं तथा न ही अधिकृत। यह बात अलग है कि स्‍थानीय मीडिया उन्‍हें सांसद प्रतिनिधि लिखता आया है।
सांसद के पक्ष ने इस कार्यक्रम पर होने जा रहा करीब साढ़े चार करोड़ रुपए का संभावित खर्च हेमा मालिनी द्वारा ही अपने स्‍त्रोतों से किए जाने की जानकारी तो दी किंतु यह नहीं बताया कि हेमा मालिनी के वो स्‍त्रोत कौन से हैं।
यहां सवाल यह भी उठता है कि बतौर सांसद लगभग चार साल के अपने कार्यकाल में हेमा मालिनी ने आजतक ऐसा कोई काम मथुरा के लिए नहीं किया जिसे रेखांकित किया जा सके।
सांस्‍कृति कार्यक्रम के लिए करोड़ों रुपए एकत्र करने वाली सांसद ने कभी मथुरा में किसी विकास कार्य के लिए अपने स्‍तर से धन एकत्र करने का प्रयास किया हो, ऐसी जानकारी भी नहीं मिलती।
यह भी पता लगा है कि होली रसोत्‍सव के लिए यमुना पार भव्‍य पण्‍डाल खड़ा करने से लेकर सांस्‍कृतिक कार्यक्रम की सभी तैयारियां करने जा रहे बॉलीवुड के प्रसिद्ध आर्ट डायरेक्‍टर एवं प्रोडक्‍शन डिजाइनर नितिन चंद्रकांत देसाई तक भी आयोजकों द्वारा किए जा रहे इस खेल की सूचना पहुंच गई थी इसलिए उन्‍होंने इससे अपना हाथ खींच लिया।
यह वही नितिन देसाई हैं जिन्‍होंने दिल्‍ली में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्‍थापक श्री-श्री रविशंकर द्वारा यमुना किनारे कराए गए वर्ल्‍ड कल्‍चरल फेस्‍टीवल के लिए भी अपनी सेवाएं दीं थीं।
कार्यक्रम का आधा खर्च उठा रहा था यूपी का पर्यटन मंत्रालय 
होली रसोत्‍सव पर आने वाले कुल खर्च का आधा पैसा उत्‍तर प्रदेश के पर्यटन मंत्रालय द्वारा दिया जाना था। यह जानकारी इलाहाबाद हाईकोर्ट और एनजीटी में यमुना प्रदूषण के मुद्दे को ले जाने वाले हिंदूवादी नेता गोपेश्‍वरनाथ चतुर्वेदी ने दी।
उन्‍होंने बताया कि योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्‍व वाली सरकार का चूंकि मथुरा पर काफी ध्‍यान केन्‍द्रित है और वह इस तीर्थ स्‍थल को उसकी गरिमा के अनुरूप विश्‍व पटल पर स्‍थापित करना चाहते हैं इसलिए उन्‍होंने हेमा मालिनी के कार्यक्रम में शिरकत करने की हामी भरने के साथ-साथ पर्यटन मंत्रालय से आधा खर्च वहन कराने की अनुमति भी सहर्ष दे दी लेकिन प्रचारित यह किया गया कि कार्यक्रम का पूरा खर्च हेमा मालिनी अपने स्‍तर से उठाएंगी।
आरती पर नहीं रहा कोई विवाद
गोपेश्‍वर नाथ चतुर्वेदी ने यह भी बताया कि यमुना की आरती विश्राम घाट पर न करके यमुना पार से किए जाने की नई परंपरा स्‍थापित करने को लेकर शुरू में विवाद उत्‍पन्‍न हुआ था लेकिन बाद में आरती का कार्यक्रम यमुना किनारे पर ही रखने की सहमति हो जाने के बाद यह विवाद खत्‍म हो गया।
माथुर चतुर्वेद परिषद इसलिए गया एनजीटी में
उन्‍होंने बताया कि जहां तक सवाल माथुर चतुर्वेद परिषद द्वारा इस मामले को नेशनल ग्रीन ट्रेब्‍यूनल (एनजीटी) में ले जाने की बात है तो परिषद ने ऐसा खुद को ”सेफ साइड” रखने के लिए किया। एनजीटी में इस पर सुनवाई के लिए 15 फरवरी की तारीख मुकर्रर की गई।
गौरतलब है कि दिल्‍ली में यमुना किनारे आध्‍यात्‍मिक गुरू श्री-श्री रविशंकर की संस्‍था आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा कराया गया वर्ल्‍ड कल्‍चरल फेस्‍टीवल तब भारी विवादों में आ गया था जब एनजीटी ने उसके आयोजकों पर 5 करोड़ रुपए का हर्जाना ठोक दिया।
एनजीटी के अनुसार इस कार्यक्रम से यमुना किनारे के प्राकृतिक वातावरण को काफी नुकसान हुआ और यमुना के प्रदूषण में भी वृद्धि हुई।
रविशंकर की संस्‍था द्वारा पेश सभी दलीलों को एनजीटी ने ठुकराते हुए भारी नाराजगी जाहिर की जबकि इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी सहित तमाम केंद्रीय मंत्री भी शामिल हुए थे।
गोपेश्‍वरनाथ चतुर्वेदी ने बताया कि उनके द्वारा स्‍वयं हेमा मालिनी से बात किए जाने और ऊर्जा मंत्री व स्‍थानीय विधायक श्रीकांत शर्मा द्वारा समझाने के बाद विश्राम घाट के सामने आरती किए जाने का मुद्दा भले ही हल हो गया किंतु यमुना किनारे कार्यक्रम करने के संबंध में एनजीटी द्वारा तय दिशा-निर्देशों का उल्‍लंघन होने की पूरी आशंका थी।
दरअसल, इन आदेश-निर्देशों के अनुसार यमुना किनारे कोई भी आयोजन यमुना की धारा से 500 मीटर की दूरी पर ही किया जा सकता है लेकिन हेमा मालिनी द्वारा कराए जाने वाले कार्यक्रम की तैयारियां यह बता रहीं थीं कि इसमें एनजीटी के आदेश-निर्देशों को ताक पर रखा जाना तय है।
पर्यटन सचिव ने किया था स्‍थलीय निरीक्षण
गोपेश्‍वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के माध्‍यम से पर्यटन सचिव अवनीश अवस्‍थी तक यह आशंका पहुंचाई गई, जिसके बाद अवनीश अवस्‍थी स्‍वयं यहां आए और उन्‍होंने स्‍थलीय निरीक्षण भी किया।
अवनीश अवस्‍थी से माथुर चतुर्वेद परिषद के प्रतिनिधियों सहित उस परिवार ने भी मुलाकात की जो अब तक परंपरागत रूप से विश्राम घाट पर यमुना आरती करता रहा है।
बताया जाता है कि पर्यटन सचिव अवनीश अवस्‍थी ने हेमा मालिनी द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रम के बाद उत्‍पन्‍न होने वाली परिस्‍थितियों से मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को भी अवगत करा दिया।
इस कार्यक्रम में प्रस्‍तुति देने के लिए पंडित जसराज, हरिप्रसाद चौरसिया, कैलाश खेर व शोभना सेठ सहित पर्यटन सचिव अवनीश अवस्‍थी की पत्‍नी व प्रसिद्ध लोक कलाकार मालिनी अवस्‍थी जैसे सिद्धहस्‍त कलाकार अपनी स्‍वीकृति दे चुके थे।
यही कारण है कि हेमा मालिनी की ओर से कार्यक्रम रद्द किए जाने का ठीकरा माथुर चतुर्वेद परिषद के सिर फोड़े जाने की कोशिश तो की जा रही है परंतु यह बताने को कोई तैयार नहीं कि सांसाद हेमा मालिनी ने किन स्‍त्रोतों से इसके लिए करोड़ों रुपए एकत्र किए।
मथुरा से ही ताल्‍लुक रखने वाले उस उद्योगपति की इसमें क्‍या भूमिका है जिसके न सिर्फ हेमा मालिनी से पुराने संबंध हैं बल्‍कि मुंबई स्‍थित उनका निवास भी उसी क्षेत्र में हैं जिस क्षेत्र में हेमा मालिनी का है।
यदि हेमा मालिनी मथुरा के विकास तथा यहां पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ही सारा आयोजन कर रहीं थीं तो उन्‍होंने इससे जुड़े लोगों को भरोसे में क्‍यों नहीं लिया। क्‍यों नहीं जानना चाहा कि यमुना किनारे कार्यक्रम करने के कोई दिशा-निर्देश एनजीटी ने जारी किए हुए हैं और क्‍यों यह तक जानने का प्रयास नहीं किया कि यमुना आरती का कार्यक्रम वह अपनी इच्‍छा से परंपरा को समझे बिना निर्धारित नहीं कर सकतीं।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

खूब ”हंसी” मर्दानी वह तो…

हमारे कांग्रेसी भाई पिछले दो दिनों से मोदी जी और किरन रिजिजू पर बहुत लाल-पीले हो रहे हैं।
कांग्रेसियों का आरोप है कि पीएम ने और गृह राज्‍य मंत्री ने उनकी महिला नेता रेणुका चौधरी को सांकेतिक रूप से ”शूपर्णखा” बताकर न सिर्फ रेणुका चौधरी का बल्‍कि संपूर्ण महिलाओं का भारी अपमान किया है जबकि बात ”इत्‍तू सी” थी कि बेचारी रेणुका चौधरी राज्‍यसभा में पीएम के अभिभाषण पर ”बुक्‍का फाड़” हंसी हंस रहीं थीं।
मेरी अपने कांग्रेसी भाइयों से करबद्ध प्रार्थना है कि रेणुका चौधरी को ”महिला” घोषित करने से पहले उनके बारे में सही-सही और पूरी जानकारी प्राप्‍त कर लें क्‍योंकि आधे अधूरे ज्ञान के आधार पर रेणुका जी को महिला घोषित करना भी रेणुका जी का अपमान है और इसके लिए रेणुका जी अपनी ही पार्टी के उन नेताओं पर ”अट्टहास” कर सकती हैं जो उन्‍हें महिला बताकर उनकी मर्दानगी को चुनौती दे रहे हैं।
रेणुका जी के बारे में पूरी जानकारी करने के लिए कांग्रेसी भाइयों को तनिक उनके राजनीतिक करियर की ओर झांकना होगा।
बताते हैं कि रेणुका जी के राजनीतिक सफर की शुरूआत टीडीपी अर्थात तेलगु देशम पार्टी से हुई थी।
टीडीपी के फाउंडर एनटी रामा राव यानि एनटीआर कहते थे कि रेणुका चौधरी ‘टीडीपी में इकलौती मर्द’ हैं.
हालांकि 1994 में रेणुका चौधरी टीडीपी से नाराज़ हो गईं और इस सदमे में 1996 के दौरान एनटीआर दुनिया से कूच कर गए.
बहरहाल, रेणुका चौधरी की टीडीपी और एनटी रामा राव से नाराज़गी चाहे जिस कारण भी रही हो किंतु इस वजह से तो नहीं थी कि उन्‍होंने रेणुका जी को पार्टी का ”इकलौता मर्द” घोषित किया था।
टीडीपी के सूत्रों ने भी इस बात की पुष्‍टि की है कि रेणुका जी ने अपनी ”मर्दानगी” को लेकर कभी कोई चुनौती तत्‍कालीन पार्टी या एनटीआर को नहीं दी।
हालांकि टीडीपी की कमान जब चंद्रबाबू नायडू के हाथों में आ गई तब पार्टी के कुछ उत्‍साही कार्यकताओं ने रेणुका जी को एक नया नाम ”जंबो” भी दिया था जिसका अर्थ भिन्‍न-भिन्‍न परिस्‍थितियों में भिन्न-भिन्‍न लोगों द्वारा भिन्‍न-भिन्‍न तरीकों से निकाला जाता रहा।
खैर, 1998 ख़त्म होते-होते रेणुका जी कांग्रेस में आ गईं किंतु कांग्रेस ज्‍वाइन करने के बाद से लेकर अब तक करीब 19 सालों के दरमियां रेणुका जी ने एनटीआर से मिले मर्दानगी के तमगे को वापस नहीं लौटाया लिहाजा यह मान लेने में कोई आपत्ति नहीं है कि वह आज भी खुद को ”मर्द” मानती हैं।
कांग्रेसी भाइयों ने हो सकता है कि उनकी मर्दानगी का समुचित प्रचार प्रसार इसलिए न किया हो कि टीडीपी की तरह रेणुका जी कांग्रेस में ”अकेली मर्द” नहीं रह गई थीं किंतु कभी इस बात का खण्‍डन भी नहीं किया। अलबत्ता रेणुका जी अपने बयानों से समय-समय पर यह साबित करती रहीं कि वह एनटीआर के आंकलन पर शत-प्रतिशत खरी उतरती हैं।
उदाहरण के तौर पर उनके द्वारा ”बलात्कारों” के संबंध में दिया गया वो बयान प्रस्‍तुत किया जा सकता है जिसमें वह कहती हैं कि रोज-रोज रेप पर क्‍या चर्चा करना। रेप तो होते ही रहते हैं।
रेणुका जी के बयान की तुलना माननीय मुलायम सिंह जी के उस बयान से की जा सकती है जिसमें उन्‍होंने बढ़ते ”बलात्‍कारों” पर कहा था कि ऐसी छोटी-मोटी भूल बच्‍चों से हो जाती हैं। इन्‍हें इतना तूल नहीं देना चाहिए।
राजनीति के प्रकांड पंडित और हर बात पर बहस करने के लिए टीवी चैनलों से आमंत्रण प्राप्‍त विद्वतजनों ने मुलायम सिंह के बयान को पुरूषों की कुत्‍सित मानसिकता घोषित किया था। विद्वतजनों की बात कौन झुठला सकता है, अत: यह मान लेने में कोई बुराई नहीं कि ”पुरूषों” की मानसिकता शायद ऐसी ही होती होगी।
वैसे भी चैनलों से सर्टीफाइड विद्वतजनों में पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी शामिल रहती हैं इसलिए उनके निष्‍कर्ष गलत कहे भी नहीं जा सकते।
जाहिर है कि रेणुका जी का बढ़ते ”बलात्‍कारों” पर खीझ कर दिया गया बयान सर्वसम्‍मति से उनकी पुरूषोचित मानसिकता का द्योतक है और यह साबित करता है कि उनकी मौलिक सोच भी पुरूषों से ज्‍यादा मिलती है, अपेक्षाकृत महिलाओं के।
ऐसे में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि रेणुका जी के मामले में ”कांग्रेसी भाई” किसी राजनीतिक साजिश के तहत उन्‍हें महिला साबित करने के लिए नरेन्‍द्र भाई मोदी के कथन और किरन रिजिजू की वीडियो पोस्‍ट का सहारा तो नहीं ले रहे क्‍योंकि राजनीति में कुछ भी संभव है। जैसे…कहीं पै निगाहें और कहीं पै निशाना, कुशल राजनीति की प्राथमिकताओं में शुमार रहता है।
इधर एक बात घड़े में से निकल कर यह भी आ रही है कि आधी आबादी को जब पूरे अधिकार देने की बात की जा रही है और यह माना जा रहा है कि महिलाएं किसी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं तो फिर भाई रेणुका जी की हंसी को महिला की हंसी साबित किसलिए किया जा रहा है। लोगों को इसके पीछे षड्यंत्र की ”बू” आ रही है।
”मेंगो पीपुल” की मानें तो रेणुका जी ”सांसद” हैं, न कि ”सांसदी”। राजनीति में महिलाओं के लिए ”आरक्षण” का बिल भी अभी अधर में लटका हुआ है। वह सामान्‍य सीट से राज्‍यसभा पहुंची हैं, फिर उनके पद को महिला सांसद और पुरूष सांसद के खांचे में बांटना किस हद तक उचित है।
अगर यूं ही बिना आरक्षण लिए-दिए बंटवारा हो गया तो महिलाओं के लिए प्रस्‍तावित ”आरक्षण” गया पानी में। ये तो कोई बात नहीं हुई।
माना भी यही जाता है कि कोई पद कभी पुल्‍लिंग अथवा स्‍त्रीलिंग नहीं होता। ऐसा होता तो ”राष्‍ट्रपति” के पद पर काबिज होने वाली महिला को ”राष्‍ट्रपत्‍नी” कहा जाता और महिला ”जिलाधिकारी” को ”जिलाधिकारिणी”। ऐसा नहीं होता न।
इस लिहाज से भी रेणुका चौधरी को महिला सांसद कहना, संसद और संविधान का अपमान है क्‍योंकि संविधान ने पुरुष और महिला को सांसद की हैसियत से समान अधिकार दिए हैं। समाज के अंदर महिला और पुरुषों की हंसी इस 21वीं सदी में भी विभाजित नहीं है। हंसी…हंसी है। फिर चाहे वह महिला की हो या पुरूष की।
…तो मेरा अपने कांग्रेसी भाइयों से निवेदन है कि पहले रेणुका जी की मर्दानगी और उनके संसदीय अधिकार और कर्तव्‍यों पर पार्टी के अंदर बहस कराकर तय कर लें कि क्‍या यह मामला एक महिला का है या फिर उसी तरह किसी सांसद का है जिस तरह मोदी जी और किरन रिजिजू का है। वह हंस दी और उन्‍होंने हंसा दिया।
कांग्रेसियों को रेणुका जी की मर्दानगी पर प्रश्‍न खड़ा करने से पहले उस घटना को भी याद करना होगा जब टीडीपी में रहते रेणुका जी थाने के अंदर घुसकर अपने उन तीन ”मर्द” समर्थकों को छुड़ा ले गई थीं जिन्‍हें पुलिस ने एक प्लॉट पर कब्ज़े को लेकर हिरासत में ले लिया था।
रेणुका जी की मर्दानगी को चुनौती देने से पहले कांग्रेसी भाइयों को उनके बयानों पर रिसर्च करनी पड़ सकती है। रेणुका जी एक बार मुख्‍यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को ‘बस स्टैंड के पास खड़ा जेबकतरा’ बता चुकी हैं और राज्‍यसभा की ही सांसद व प्रसिद्ध अभिनेत्री जयप्रदा को ‘बिंबो’
गौरतलब है कि बिंबो का एक अर्थ कमअक्‍ल खूबसूरत औरत भी होता है। और जयप्रदा के लिए यह बात उन्‍होंने बाकायदा एक टीवी चैनल पर कही थी।
जो भी हो, जयप्रदा को दी गई उपाधि भी यह साबित करती है कि रेणुका जी महिलाओं के प्रति कितना आदरभाव रखती हैं और उनकी दृष्‍टि में खुबसूरती के मायने क्‍या हैं।
सामान्‍य तौर पर ऐसे विचार पुरूषों के माने जाते हैं कि खूबसूरत महिलाएं अक्‍सर कमअक्‍ल होती हैं। पुरूषों से रेणुका जी की सोच का इस कदर मिलना कुछ तो इशारा करता है।
समूची कांग्रेस की तो कांग्रेसी जानें लेकिन मुझे अब उस बेचारे एक अदद कांग्रेसी तहसीन पूनावाला की फिक्र है जिसने मणिशंकर अय्यर के साथ-साथ रेणुका जी को भी पार्टी पर बोझ बता दिया और कहा कि राज्यसभा में उनकी हंसी से मैं छटपटा गया।
कहीं ऐसा न हो कि राज्‍यसभा से ध्‍यान हटते ही रेणुका जी तहसीन पूनावाला को निशाने पर ले लें और एकबार फिर साबित कर दें कि वह टीडीपी में ही नहीं, कांग्रेस में भी अकेली मर्द हैं। वह हंसकर फंसती नहीं हैं, फंसाती हैं। उनकी हंसी को चेलेंज करना चायवाले ये लेकर पूनावाला तक को भारी पड़ सकता है।
इस दौर में भले ही महाभारत का युद्ध न हो, और न हो राम-रावण का युद्ध, किंतु वाकयुद्ध तो हो सकता है। कहीं द्रोपदी को जिम्‍मेदार ठहराया जाता है, कहीं शूपर्णखा को लेकिन हकीकत तो यह है कि ”हंसी” हर वक्‍त मुफीद नहीं होती। कभी हंसने वालों के लिए तो कभी हंसाने वाले के लिए ”साढ़े साती” बन जाती है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शैतानी हो या साजिश…लेकिन ”निष्‍कलंक” नहीं रह पाया ”योगीराज”

योगी जी…क्‍या अब आप कभी यह कह सकेंगे कि मेरे शासनकाल में उत्तर प्रदेश के अंदर कोई सांप्रदायिक उपद्रव नहीं हुआ?
कासगंज में जो कुछ हुआ, वह कैसे हुआ और क्‍या उसके पीछे कोई साजिश थी…यह जांच का विषय है लिहाजा निष्‍कर्ष निकलने तक इस बावत कुछ भी नहीं कहा जा सकता किंतु यह जरूर कहा जा सकता है कि तमाम मुठभेड़ों के बावजूद न तो आपकी ”खाकी” अपराधियों के मन में भय बैठा सकी और न आप ”खाकी” के मन में।
एक सर्वमान्‍य सूक्‍ति है कि बेहतर शासन-प्रशासन चलाने के लिए सरकार का ”इकबाल” बुलंद होना लाजिमी है। जब सरकार का इकबाल बुलंद होता है तो सरकारी नुमाइंदे अपनी पूरी निष्‍ठा, लगन व ईमानदारी से सक्रिय रहते हैं। उनकी सक्रियता ही अपराधियों के लिए भय का वातावरण बनाती है और जनसामान्‍य के अंदर सुरक्षा की भावना पैदा करती है।
नि:संदेह उत्तर प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था काफी पहले से बदहाल थी और आम लोगों का ”सरकारों” से भरोसा उठ चुका था परन्‍तु अब तो यह भरोसा पैदा होना चाहिए।
देश के इस सबसे बड़े राज्‍य की कमान योगी आदित्‍यनाथ ने 19 मार्च 2017 को संभाली थी। इस हिसाब से उनकी सरकार को आज 10 महीने और 13 दिन पूरे हो चुके हैं लेकिन प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं जहां बदमाश पूरी तरह बेखौफ दिखाई देते हैं।
खुद सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने इसी महीने की 23 तारीख को सहारनपुर, मथुरा और लखनऊ में लगातार हो रहीं गंभीर आपराधिक वारदातों पर नाराजगी जताई थी। उन्‍होंने प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियों को तलब करके पूछा था कि अगर अपराधियों पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा तो जिलों में बैठे पुलिस अधिकारी कर क्‍या रहे हैं। उनसे काम नहीं हो पा रहा तो वह पद छोड़ दें।
23 जनवरी को मुख्‍यमंत्री द्वारा अपनी मंशा स्‍पष्‍ट कर देने के बाद भी तीसरे ही दिन 26 जनवरी पर गणतंत्र दिवस की तिरंगा यात्रा में हुई कासगंज की घटना ने यह साबित कर दिया कि न तो ”योगी राज” से ”खाकी” की कार्यप्रणाली प्रभावित हुई है और न ”खाकी” से बदमाशों में कोई भय उत्‍पन्‍न हुआ है।
गौरतलब है कि प्रदेश के राज्‍यपाल रामनाइक ने भी कासगंज की घटना को उत्तर प्रदेश के लिए ”कलंक” बताया है। राज्‍यपाल इससे पहले भी कानून-व्‍यवस्‍था पर असंतोष जाहिर कर चुके हैं।
रामनाइक के बयान इसलिए ज्‍यादा महत्‍व रखते हैं क्‍योंकि पिछले कुछ वर्षों से राज्‍यपाल का पद भी दलगत राजनीति का शिकार होने लगा था और अमूमन राज्‍यपालों की छवि का आंकलन राजनीतिक नजरिए से किया जा रहा था।
कानून-व्‍यवस्‍था और कासगंज में हुई हिंसा पर राज्‍यपाल के रूप में रामनाइक के बयानों ने निश्‍चित ही इस पद की गरिमा बढ़ाई है किंतु सवाल यह खड़ा होता है कि क्‍या उनके बयानों को शासन-प्रशासन भी गंभीरता से लेगा ?
योगी आदित्‍यनाथ द्वारा उत्तर प्रदेश में 21वें मुख्‍यमंत्री की शपथ लेने के मात्र 15 दिनों के बाद “Legend News” ने सबसे बड़ी चुनौती: क्‍या पुलिस का DNA बदल पाएगी योगी सरकार ?” शीर्षक से लिखा था कि जरूरत से ज्‍यादा राजनीतिक दखल, भ्रष्‍टाचार, जातिवाद और अनुशासनहीनता के चलते पुलिस पूर्णत: निरंकुश हो चुकी है।
प्रदेश के तत्‍कालीन डीजीपी जावीद अहमद ने खुद स्‍वीकारा था कि पुलिस में काफी लोगों की अपराधियों से सांठगांठ है। पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश अर्थात मेरठ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, नोएडा, मथुरा, आगरा आदि में उन्‍होंने ऐसे पुलिसकर्मियों की भरमार बताई जो अपराधियों से मिले हुए हैं। जावीद अहमद ने हालांकि ऐसे पुलिसजनों की सूची तैयार कर उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही करने की बात कही थी लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था, लिहाजा न वो कर पाए और न उनके बाद बने दूसरे डीजीपी।
कासगंज की घटना को समय रहते नियंत्रित न कर पाना और चार-पांच दिनों तक उसका सुलगते रहना, यह साबित करता है कि स्‍थानीय पुलिस पूरी तरह फेल रही। कुछ पूर्व पुलिस अधिकारियों सहित आईजी तथा कमिश्‍नर ने भी यह माना है कि पुलिस की लापरवाही ने कासगंज के हालातों को ज्‍यादा बिगाड़ दिया।
यूं भी नामजद आरोपियों के घर से असलहों का बरामद होना और तिरंगा यात्रा के दौरान माहौल बिगड़ने की भनक तक न लग पाना, यह बताता है कि स्‍थानीय पुलिस-प्रशासन किस तरह काम कर रहा था।
योगी आदित्‍यनाथ से प्रदेश को बड़ी उम्‍मीदें हैं। उनके गेरुआ वस्‍त्र भरोसा दिलाते हैं लेकिन ”भय” के बिना ”प्रीति” नहीं होती, इसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी माना था।
गोस्‍वामी तुलसीदास कृत रामायण की यह चौपाई यहां गौरतलब है-
विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिन होय न प्रीत।।
इसके अलावा ”चाणक्‍य नीति” भी कहती है कि ”दंड” प्रक्रिया का सख्‍ती पूर्वक प्रयोग किए बिना समाज में शांति स्‍थापित नहीं हो सकती।
”चाणक्‍य नीति” के इस गूढ़ार्थ को समझा जाए तो ”दंड” प्रक्रिया का सख्‍ती पूर्वक प्रयोग हर उस व्‍यक्‍ति, वर्ग अथवा गुट पर किया जाना चाहिए जो कानून-व्‍यवस्था में बाधा उत्‍पन्‍न करता हो। फिर वह शासन-प्रशासन के अंग ही क्‍यों न हों।
उत्तर प्रदेश जितना बड़ा है, उतनी ही बड़ी हो जाती हैं यहां कानून-व्‍यवस्‍था का राज कायम करने की जिम्‍मेदारियां।
माना कि उत्तर प्रदेश इससे पहले अनेक बार इतने बड़े-बड़े सांप्रदायिक उपद्रवों की आग में झुलसा है कि कासगंज में हुए उपद्रव की उनसे तुलना नहीं की जा सकती, किंतु दाग तो दाग है। योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्‍व वाली भाजपा सरकार पर यह दाग लग चुका है। अब यह छोटा हो या बड़ा, लेकिन दाग तो है।
कासगंज की घटना चाहे शैतानी हो या किसी साजिश का हिस्‍सा, किंतु इसमें दोराय नहीं कि योगी राज ”निष्‍कलंक” नहीं रह पाया।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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